गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
शोक तो उन स्त्रियोंके लिये करना चाहिये, जो पतिवियोगिनी होकर भी जीवित हों। जो पतिके साथ ही प्राण त्याग देती हैं, वे कदापि शोकके योग्य नहीं हैं। मदालसा बड़ी कृतज्ञ थी; इसलिये इसने पतिवियोगका दुःख नहीं भोगा। जो इहलोक तथा परलोकमें सब प्रकारके सौख्य प्रदान करनेवाला है, उस पतिको कौन स्त्री मनुष्य समझेगी। अतः मेरा वह पुत्र ऋतध्वज, यह पुत्रवधू, मैं तथा ऋतध्वजकी माता-इनमेंसे कोई भी शोकके योग्य नहीं है। मेरे पुत्रने ब्राह्मणोंकी रक्षाके लिये अपने प्राण त्यागकर हम सबका उद्धार कर दिया। संग्राममें ब्राह्मणोंकी रक्षाके लिये प्राणत्याग करके मेरे पुत्रने अपनी माताके सतीत्व, वंशकी निर्मलता तथा अपने पराक्रमका त्याग नहीं किया है।'
तदनन्तर कुवलयाश्वकी माताने अपने पतिकी ओर देखकर कहा- 'राजन्! मेरी माता और बहिनको भी ऐसी प्रसन्नता नहीं प्राप्त हुई, जैसी कि मुनियोंकी रक्षाके लिये पुत्रका वध सुनकर मुझे हुई है। जो शोकमें पड़े हुए बन्धु- बान्धवोंके सामने रोगसे क्लेश उठाते और अत्यन्त दुखी होकर लंबी साँसें खींचते हुए प्राणत्याग करते हैं, उनकी माताका सन्तान उत्पन्न करना व्यर्थ है। जो गौ और ब्राह्मणोंकी रक्षामें तत्पर हो रणभूमिमें निर्भयतापूर्वक युद्ध करते हुए शस्त्रोंसे आहत होकर मृत्युको प्राप्त होते हैं, वे ही इस पृथ्वीपर धन्य मनुष्य हैं। जो याचकों, मित्रों तथा शत्रुओंसे कभी विमुख नहीं होता, उसीसे पिता वस्तुतः पुत्रवान् होता है और माता उसीके कारण वीर पुत्रकी जननी मानी जाती है। पुत्रके जन्मकालमें माताको जो क्लेश उठाना पड़ता है, वह तभी सफल होता है जब पुत्र शत्रुओंपर विजय प्राप्त करे अथवा युद्ध में लड़ता हुआ मारा जाय।'*
* न मे मात्रा न मे स्वस्रा प्राप्ता प्रीतिर्नृपेदृशी।
श्रुत्वा मुनिपरित्राणे हतं पुत्रं यथा मया ॥
शोचतां बान्धवानां ये निश्वसन्तोऽतिदुःखिताः।
म्रियन्ते व्याधिना क्लिष्टास्तेषां माता वृथाप्रजा॥
संग्रामे युध्यमाना येऽभीता गोद्विजरक्षणे।
क्षुण्णाः शस्त्रैर्विपद्यन्ते त एव भुवि मानवाः ॥
अर्थिनां मित्रवर्गस्य विद्विषां च पराङ्मुखम्।
यो न याति पिता तेन पुत्री माता च वीरसूः॥
गर्भक्लेशः स्त्रियो मन्ये साफल्यं भजते तदा।
यदारिविजयी वा स्यात् संग्रामे वा हतः सुतः॥
(अ० २२। ४१-४५)
तदनन्तर राजा शत्रुजित् ने अपनी पुत्रवधू मदालसा का दाह-संस्कार किया और नगरसे बाहर निकलकर पुत्रको जलाञ्जलि दी। तालकेतु फिर यमुनाजलसे निकलकर राजकुमारके पास गया और प्रेमपूर्वक मीठी वाणीमें बोला- 'राजकुमार! अब तुम जाओ। तुमने मुझे कृतार्थ कर दिया। तुम जो यहाँ अविचल भावसे खड़े रहे, इससे मैंने बहुत दिनों की अपनी अभिलाषा पूरी कर ली। मुझे महात्मा वरुणकी प्रसन्नताके लिये वारुण यज्ञका अनुष्ठान करनेकी बहुत दिनोंसे अभिलाषा थी; वह सब कार्य अब मैंने पूरा कर लिया।' उसके यों कहनेपर राजकुमार उसको प्रणाम करके गरुड़ तथा वायुके समान वेगवाले उसी अश्वपर आरूढ़ हुए और अपने पिताके नगरकी ओर चल दिये।
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- वपु को दुर्वासा का श्राप
- सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
- धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
- राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
- पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
- जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
- जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
- पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
- दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
- दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
- अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
- पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
- तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
- ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
- मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
- मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
- श्राद्ध-कर्म का वर्णन
- श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
- त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
- सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
- योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
- अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
- मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
- प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
- स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
- दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
- जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
- श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
- भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
- भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
- स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
- पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
- राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
- तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
- रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
- चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
- वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
- सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
- मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
- देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
- सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
- इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
- देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
- धूम्रलोचन-वध
- चण्ड और मुण्ड का वध
- रक्तबीज-वध
- निशुम्भ-वध
- शुम्भ-वध
- देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
- देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
- सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
- नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
- रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
- भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
- सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
- अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
- दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
- राजा खनित्रकी कथा
- क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य