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गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण

मार्कण्डेय पुराण

गीताप्रेस

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :294
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1196
आईएसबीएन :81-293-0153-9

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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...

महर्षि शमीक अपने पुत्र श्रृङ्गी ऋषि तथा समस्त शिष्योंसे घिरे हुए बैठे थे; उन्होंने जब उन पक्षिशावकों की यह शुद्ध संस्कृतमयी स्पष्ट वाणी सुनी, तब उन्हें बड़ा कौतूहल हुआ। उनके शरीर में रोमाञ्च हो आया। उन्होंने पूछा-'बच्चो! तुमलोग ठीक-ठीक बताओ, तुम्हें किस कारणसे ऐसी वाणी प्राप्त हुई है। पक्षियोंका रूप और मनुष्य की-सी वाणी प्राप्त होनेका क्या रहस्य है?'

पक्षी बोले-'मुनिवर! प्राचीन कालमें विपुलस्वान् नामक एक श्रेष्ठ मुनि रहते थे, जिनके दो पुत्र हुए- सुकृष और तुम्बुरु। सुकृष अपने चित्तको वशमें रखनेवाले महात्मा थे। उन्हींसे हम चार पुत्रोंका जन्म हुआ। हम सब लोग विनय, सदाचार एवं भक्तिवश सदा विनीत भावसे रहते थे। पिताजी सदा तपस्यामें संलग्न रहते और इन्द्रियोंको काबूमें रखते थे। उस समय उन्हें जब जिस वस्तुकी अभिलाषा होती, हम उसे उनकी सेवामें प्रस्तुत करते थे। एक दिनकी बात है, देवराज इन्द्र पक्षीका रूप धारण करके वहाँ आये। उनका शरीर बहुत बड़ा था, पंख टूट गये थे। बुढ़ापे ने उनपर अधिकार जमा लिया था। उनकी आँखें कुछ- कुछ लाल हो रही थीं और सारा शरीर शिथिल जान पड़ता था। वे सत्य, शौच और क्षमाका पालन करनेवाले अत्यन्त उदारचित्त महात्मा मुनिश्रेष्ठ सुकृषकी परीक्षा लेने आये थे। उनका आगमन ही हमारे लिये शापका कारण बन गया।

पक्षिरूपधारी इन्द्र ने कहा- विप्रवर! मुझे बड़े जोरकी भूख सता रही है, मेरी रक्षा कीजिये, महाभाग! मैं भोजनकी इच्छासे यहाँ आया हूँ आप मेरे लिये अनुपम सहारा बनें। मैं विन्ध्यपर्वतके शिखरपर रहता था। वहाँसे किसी प्रबल पक्षीके पंखसे प्रकट हुई अत्यन्त वेगयुक्त वायुके झोंके खाकर पृथ्वीपर गिर पड़ा और मूर्च्छित हो गया। एक सप्ताह तक मुझे होश नहीं हुआ। आठवें दिन मेरी चेतना लौटी। सचेत होनेपर मैं भूखसे व्याकुल हो गया और भोजनकी इच्छासे आपकी शरणमें आया हूँ। इस समय मुझे तनिक भी चैन नहीं है। मेरे मनमें बड़ी व्यथा हो रही है। विमल बुद्धिवाले महर्षि! अब आप मेरी रक्षाके लिये भोजन दीजिये, जिससे मेरी जीवन-यात्रा चालू रहे।

यह सुनकर महर्षिने उन पक्षिरूपधारी इन्द्रसे कहा-'मैं तुम्हारे प्राणोंकी रक्षाके लिये तुम्हें यथेष्ट भोजन दूंगा।' यों कहकर द्विजश्रेष्ठ सुकृषने पुन: उनसे पूछा- 'मुझे तुम्हारे लिये कैसे आहारकी व्यवस्था करनी चाहिये।' उन्होंने कहा- 'मुने! मनुष्यके मांससे मुझे विशेष तृप्ति होती है।'

ऋषिने कहा- 'अरे! कहाँ मनुष्य का मांस और कहाँ तुम्हारी वृद्धावस्था। जान पड़ता है, जीवकी दूषित भावनाओं का सर्वथा अन्त कभी नहीं होता। अथवा मुझे यह सब कहनेकी क्या आवश्यकता। जिसे देनेकी प्रतिज्ञा कर ली गयी, उसे सदा देना ही चाहिये; मेरे मनमें सदा ऐसा ही भाव रहता है।

इन्द्रसे यों कहते हुए अपनी प्रतिज्ञा पूरी करनेका निश्चय करके विप्रवर सुकृषने हम सबको शीघ्र ही बुलाया और हमारे गुणोंकी बारंबार प्रशंसा करते हुए कहा- 'पुत्रो! यदि तुमलोगोंके विचारसे पिता परम गुरु और पूजनीय हो तो निष्कपट भावसे मेरे वचनका पालन करो।' उनकी यह बात सुनते ही हम सब लोगोंने बड़े आदरके साथ कहा-'पिताजी! आप जो कुछ भी कहेंगे, जिस कार्यके लिये भी हमें आज्ञा देंगे, उसे हमारे द्वारा पूर्ण किया हुआ ही समझिये।'

ऋषि बोले-यह पक्षी भूख-प्याससे पीड़ित होकर मेरी शरणमें आया है। तुमलोग शीघ्र ही ऐसा करो, जिससे तुम्हारे शरीरके मांससे क्षणभर इसकी तृप्ति और तुम्हारे रक्तसे इसकी प्यास बुझ जाय।

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    अनुक्रम

  1. वपु को दुर्वासा का श्राप
  2. सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
  3. धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
  4. राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
  5. पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
  6. जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
  7. जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
  8. पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
  9. दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
  10. दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
  11. अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
  12. पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
  13. तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
  14. ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
  15. मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
  16. मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
  17. श्राद्ध-कर्म का वर्णन
  18. श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
  19. त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
  20. सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
  21. योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
  22. योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
  23. अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
  24. मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
  25. एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
  26. प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
  27. स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
  28. दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
  29. जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
  30. श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
  31. भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
  32. भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
  33. स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
  34. पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
  35. राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
  36. तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
  37. रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
  38. चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
  39. वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
  40. सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
  41. मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
  42. देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
  43. सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
  44. इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
  45. देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
  46. धूम्रलोचन-वध
  47. चण्ड और मुण्ड का वध
  48. रक्तबीज-वध
  49. निशुम्भ-वध
  50. शुम्भ-वध
  51. देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
  52. देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
  53. सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
  54. नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
  55. रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
  56. भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
  57. सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
  58. अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
  59. सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
  60. दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
  61. वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
  62. राजा खनित्रकी कथा
  63. क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
  64. राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
  65. श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य

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