लोगों की राय

गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण

मार्कण्डेय पुराण

गीताप्रेस

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :294
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1196
आईएसबीएन :81-293-0153-9

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

317 पाठक हैं

अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...

पहले की बात है, वज्रपाणि इन्द्र ने एक बार शम्बरासुर के ऊपर अपने वज्र का प्रहार किया था। उस वज्रने उसकी छातीमें चोट पहुँचायी, तथापि वह असुर मर न सका। परन्तु काल आनेपर उन्हीं इन्द्रने उसी वज्रसे जब-जब दानवोंको मारा, वे तत्काल मृत्युको प्राप्त हो गये। यह समझकर तुम्हें भय नहीं करना चाहिये। तुम सब लोग लौट आओ।' उनके इस प्रकार समझानेपर वे दैत्य मृत्युका भय त्यागकर रणभूमिमें लौट आये। शुक्राचार्यकी कही हुई उपर्युक्त बातोंको इन श्रेष्ठ पक्षियोंने सत्य कर दिखाया; क्योंकि उस अलौकिक युद्धमें पड़कर भी इनकी मृत्यु नहीं हुई। ब्राह्मणो! भला, सोचो तो सही- कहाँ अण्डोंका गिरना, कहाँ उसके साथ ही घंटे का भी टूट पड़ना और कहाँ मांस, मज्जा तथा रक्तसे भरी हुई भूमि का बिछौना बन जाना - ये सभी बातें अद्भुत हैं। विप्रगण! ये कोई सामान्य पक्षी नहीं हैं। संसार में दैवका अनुकूल होना महान् सौभाग्य का सूचक होता है।'

यों कहकर शमीक मुनि ने उन बच्चोंको भलीभाँति देखा और फिर अपने शिष्योंसे इस प्रकार कहा- 'अब तुमलोग इन पक्षिशावकोंको लेकर आश्रम को लौट चलो और ऐसे स्थानपर रखो जहाँ इन्हें बिल्ली, चूहे, बाज अथवा नेवले आदि से कोई भय न हो। ब्राह्मणो! यद्यपि यह ठीक है कि किसी की रक्षाके लिये अधिक प्रयत्न करनेकी आवश्यकता नहीं है, क्योंकि सम्पूर्ण जीव अपने कर्मों से ही मारे जाते हैं और कर्मों से ही उनकी रक्षा होती है - ठीक उसी प्रकार, जैसे इस समय ये पक्षिशावक इस युद्धभूमि में बच गये हैं, तथापि सब मनुष्योंको सभी कार्यों के लिये यत्न अवश्य करना चाहिये, क्योंकि जो पुरुषार्थ करता है, वह (असफल होनेपर भी) सत्पुरुषोंकी निन्दाका पात्र नहीं होता।' मुनिवर शमीकके इस प्रकार कहनेपर वे मुनिकुमार उन पक्षियोंको लेकर अपने आश्रमको चले गये, जहाँ भाँति-भाँतिके वृक्षोंकी शाखाओंपर बैठे हुए भौरे फलोंका रस ले रहे थे और अनेक तपस्वियोंके रहनेसे जहाँकी रमणीयता बहुत बढ़ गयी थी।

विप्रवर जैमिने! मुनिश्रेष्ठ शमीक प्रतिदिन अन्न और जल देकर तथा सब प्रकारसे रक्षाकी व्यवस्था करके उन बच्चोंका पालन-पोषण करने लगे। एक ही महीना बीतनेपर वे पक्षियोंके बच्चे आकाशमें इतने ऊँचे उड़ गये, जितनेपर सूर्यके रथके आने-जानेका मार्ग है। उस समय आश्रमवासी मुनिकुमार कौतूहलभरे चञ्चल नेत्रोंसे उन्हें देख रहे थे। उन पक्षिशावकोंने नगर, समुद्र और बड़ी-बड़ी नदियोंसहित पृथ्वीको वहाँसे रथके पहियेके बराबर देखा और फिर आश्रमपर लौट आये। तिर्यक्-योनिमें उत्पन्न हुए वे महात्मा पक्षी अधिक उड़नेके कारण परिश्रम से थक गये थे। एक दिन महर्षि शमीक अपने शिष्योंपर कृपा करनेके लिये उन्हें धर्मके तत्त्व का उपदेश कर रहे थे। उस समय वहाँ महर्षिके प्रभावसे उन पक्षियोंके अन्त:करणमें स्थित ज्ञान प्रकट हो गया। फिर तो उन सबने महर्षिकी परिक्रमा की और उनके चरणोंमें मस्तक झुकाया। तत्पश्चात् वे बोले-'मुने! आपने भयानक मृत्युसे हमारा उद्धार किया है। आपने हमें रहनेके लिये स्थान, भोजन और जल प्रदान किया है। आप ही हमारे पिता और गुरु हैं। हमलोग जब गर्भमें थे, तभी माताकी मृत्यु हो गयी। पिताने भी हमारी रक्षा नहीं की। आपने ही पधारकर हमें जीवनदान दिया और शैशव-अवस्थामें हमलोगोंकी रक्षा की। हम कीड़ोंकी तरह सूख रहे थे, आपने हाथीके घण्टेको उठाकर हमारे सङ्कटका निवारण किया। अब हम बड़े हो गये, हमें ज्ञान भी हो गया; अत: आज्ञा दीजिये, हम आपकी क्या सेवा करें?'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. वपु को दुर्वासा का श्राप
  2. सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
  3. धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
  4. राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
  5. पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
  6. जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
  7. जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
  8. पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
  9. दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
  10. दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
  11. अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
  12. पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
  13. तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
  14. ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
  15. मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
  16. मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
  17. श्राद्ध-कर्म का वर्णन
  18. श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
  19. त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
  20. सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
  21. योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
  22. योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
  23. अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
  24. मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
  25. एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
  26. प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
  27. स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
  28. दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
  29. जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
  30. श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
  31. भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
  32. भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
  33. स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
  34. पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
  35. राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
  36. तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
  37. रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
  38. चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
  39. वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
  40. सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
  41. मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
  42. देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
  43. सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
  44. इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
  45. देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
  46. धूम्रलोचन-वध
  47. चण्ड और मुण्ड का वध
  48. रक्तबीज-वध
  49. निशुम्भ-वध
  50. शुम्भ-वध
  51. देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
  52. देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
  53. सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
  54. नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
  55. रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
  56. भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
  57. सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
  58. अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
  59. सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
  60. दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
  61. वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
  62. राजा खनित्रकी कथा
  63. क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
  64. राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
  65. श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book