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गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण

मार्कण्डेय पुराण

गीताप्रेस

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :294
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1196
आईएसबीएन :81-293-0153-9

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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...

काम्बोज, पह्लव, वडवामुख, सिन्धु, सौवीर, आनर्त, वनितामुख, द्रावण, शूद्र, कर्ण, प्राधेय, बर्बर, किरात, पारद, पाण्ड्य, पारशव, कल, धूर्तक, हैमगिरिक, सिन्धु, कालक, वैरत, सौराष्ट्र दरद, द्राविड, महार्णव-ये देश कूर्मभगवान् के दक्षिण चरणमें स्थित हैं। स्वाती, विशाखा और अनुराधा नक्षत्र भी वहीं हैं। मणिमेघ, क्षुराद्रि, खञ्जन, अस्तगिरि, अपरान्तिक, हैहय, शान्तिक, विप्रशस्तक, कोङ्कण, पञ्चनद, वमन, अवर, तारक्षुर, अङ्गतक, शर्कर, शाल्मवेश्मक, गुरुस्वर, फाल्गुनक, वेणुमतीनिवासी, फाल्गुलुक, घोर, गुरुह, चकल, एकेक्षण, वाजिकेश, दीर्घग्रीव, सुचूलिक तथा अश्वकेश-ये देश भगवान् कच्छपके पुच्छभागमें स्थित हैं। वहीं ज्येष्ठा, मूल और पूर्वाषाढा नक्षत्र भी हैं। माण्डव्य, चण्डखार, अश्मक, ललन, कुशात्त, लडह, स्त्रीबाह्य, बालिक, नृसिंह, वेणुमतीवासी, बलावस्थ, धर्मबद्ध, उलूक तथा उरुकर्मनिवासी मनुष्य भगवान् कूर्मके बायें चरणमें स्थित हैं। उत्तराषाढा, श्रवण और धनिष्ठाकी भी वहीं स्थिति है। कैलास, हिमवान्, धनुष्मान्, वसुमान्, क्रौञ्च, कुरुवक, क्षुद्रवीण, रसालय, भोगप्रस्थ, यामुन, अन्तर्वीप, त्रिगर्त, अग्नीज्य, अर्दन, अश्वमुख, चिबिड़, केशधारी, दासेरक, वाटधान, शवधान, पुष्कल, अधम, कैरात, तक्षशिलाश्रय, अम्बाल, मालव, मद्र, वेणुक, वदन्तिक, पिङ्गल, मानकलह, हूण, कोहलक, माण्डव्य, भूतियुवक, शातक, हेमतारक, यशोमत्य, गान्धार, स्वर, सागरराशि, यौधेय, दासमेय, राजन्य, श्यामक तथा क्षेमधूर्त- ये कूर्मभगवान् की बायीं कुक्षिमें हैं। शतभिष, पूर्वाभाद्रपदा और उत्तराभाद्रपदा- ये तीन नक्षत्र भी वहीं हैं। किन्नरराज्य, पशुपाल, कीचक, काश्मीरक, अभिसारजन, दरय, अङ्गण, कुरट, अन्नदारक, एकपाद, खश, घोष, स्वर्ग, भौम, अनवद्य, यवन, हिङ्ग, चीरप्रापरण, त्रिनेत्र, पौरव तथा गन्धर्व-ये कच्छपभगवान् के पूर्व-उत्तरवाले चरणके आश्रित हैं। रेवती, अश्विनी और भरणी भी वहीं हैं। विप्रवर! उक्त देशोंमें क्रमश: ये ही नक्षत्र ऐसे हैं, जिनके कारण मनुष्योंको पीड़ा होती है अर्थात् जब इनके साथ दुष्ट ग्रहोंका योग होता है तो ये उनसे प्रभावित होकर प्रजाको कष्ट देते हैं और उत्तम ग्रहोंके योग होनेपर ये वहाँके मनुष्योंको अभ्युदयकी प्राप्ति कराते हैं। जिस नक्षत्रराशिका जो ग्रह स्वामी है, उसीके अशुभ भावमें रहनेपर उस देशके लोगोंको कष्ट होता है और वही ग्रह जब उच्च स्थानमें होता है तो शुभ फलोंकी प्राप्ति होती है। नक्षत्रों और ग्रहोंसे होनेवाला शुभाशुभ फल साधारणतया सब देशोंमें सभी मनुष्योंको प्राप्त होता है। यदि अपने नक्षत्र खराब हों अथवा जन्मके समय ग्रह अशुभ स्थानोंमें पड़े हों तो मनुष्यको कष्ट भोगना पड़ता है। यह बात प्रत्येकके लिये सामान्य रूपसे लागू होती है। इसी प्रकार यदि नक्षत्र और ग्रह अच्छे पड़े हों तो उसका फल शुभ होता है। पुण्यात्मा मनुष्यके ग्रह यदि अशुभ स्थानोंमें हों तो उन्हें द्रव्य, गोष्ठ, भृत्य, सुहृद्, पुत्र एवं भार्याकी भी हानि उठानी पड़ती है। यदि पुण्य थोड़ा है तो अपने शरीरपर भी भय आ सकता है और जिन्होंने अधिक मात्रामें पाप-ही-पाप किये हैं, उन्हें तो सर्वत्र ही द्रव्य आदि तथा शरीर-सभीकी हानि उठानी पड़ती है। जो सर्वथा निष्पाप हैं, उन्हें ग्रह आदिसे कभी कहीं भी भय नहीं है।

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    अनुक्रम

  1. वपु को दुर्वासा का श्राप
  2. सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
  3. धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
  4. राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
  5. पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
  6. जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
  7. जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
  8. पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
  9. दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
  10. दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
  11. अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
  12. पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
  13. तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
  14. ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
  15. मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
  16. मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
  17. श्राद्ध-कर्म का वर्णन
  18. श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
  19. त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
  20. सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
  21. योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
  22. योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
  23. अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
  24. मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
  25. एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
  26. प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
  27. स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
  28. दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
  29. जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
  30. श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
  31. भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
  32. भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
  33. स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
  34. पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
  35. राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
  36. तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
  37. रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
  38. चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
  39. वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
  40. सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
  41. मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
  42. देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
  43. सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
  44. इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
  45. देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
  46. धूम्रलोचन-वध
  47. चण्ड और मुण्ड का वध
  48. रक्तबीज-वध
  49. निशुम्भ-वध
  50. शुम्भ-वध
  51. देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
  52. देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
  53. सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
  54. नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
  55. रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
  56. भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
  57. सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
  58. अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
  59. सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
  60. दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
  61. वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
  62. राजा खनित्रकी कथा
  63. क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
  64. राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
  65. श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य

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