गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
क्रौष्टुकि ने कहा-भगवन्! आपने मुझसे भारतवर्षका भलीभाँति वर्णन किया तथा वहाँकी नदियों, पर्वतों और जनपदोंको भी बतलाया। इसके पहले आपने यह कहा था कि भारतवर्ष में भगवान् श्रीहरि कूर्मरूपसे निवास करते हैं, सो उनकी स्थिति कहाँ और किस प्रकार है, यह सब सुननेकी मेरी इच्छा हो रही है। कूर्मरूपी भगवान् जनार्दन किस रूपमें स्थित हैं, उनसे मनुष्योंके शुभ-अशुभकी सूचना कैसे मिलती है? भगवान् कूर्मका मुख कैसा है? और उनके चरण कौन हैं? ये सारी बातें बताइये।
मार्कण्डेयजी बोले-ब्रह्मन्! कूर्मरूपधारी भगवान् श्रीहरि नौ भेदोंसे युक्त इस भारतवर्षको आक्रान्त करके स्थित हैं। उनका मुख पूर्व दिशाकी ओर है। उनके चारों ओर नौ भागोंमें विभक्त होकर सम्पूर्ण नक्षत्र और देश स्थित हैं। उन्हें बतलाता हूँ, सुनो। वेदि, मद्र, अरिमाण्डव्य, शाल्व, नीप, शक, उजिहान, घोषसंख्य, खस, सारस्वत, मत्स्य, शूरसेन, माथुर, धर्मारण्य, ज्योतिषिक, गौरग्रीव, गुडाश्मक, उद्वेहक, पाञ्चाल, सङ्केत, कंक, मारुत, कालकोटि, पाखण्ड, पारियात्रनिवासी, कापिञ्जल, कुरुबाह्य, उदुम्बर तथा गजाह्वय (हस्तिनापुर आदि)-के मनुष्य भगवान् कूर्मके मध्यभाग (कटिप्रदेश)-में स्थित हैं। कृत्तिका, रोहिणी और मृगशिरा-ये तीन नक्षत्र उक्त स्थानके निवासियोंके लिये शुभाशुभके सूचक होते हैं। वृषध्वज, अञ्जन, जम्बू, मानवाचल, शूर्पकर्ण, व्याघ्रमुख, खर्मक, कर्वटाशन, चन्द्रेश्वर, खश, मगध, मैथिल, पौण्ड्र, वदनदन्तुर, प्राग्ज्योतिष, लौहित्य, सामुद्र, पुरुषादक, पूर्णोत्कट, भद्रगौर, उदयगिरि, काशी, मेखल, मुष्ट, ताम्रलिप्त, एकपादप, वर्धमान और कोसल-ये देश कूर्मभगवान् के मुखभागमें स्थित हैं। आर्द्रा, पुनर्वसु और पुष्य- ये तीन नक्षत्र भी उनके मुखमें हैं।
अब कूर्मभगवान् के दक्षिण चरणमें जो देश हैं, उनके नाम सुनो-कलिङ्ग (उड़ीसा), वङ्ग (बंगाल), जठर, कोसल, मूषिक, चेदि, ऊर्ध्वकर्ण, मत्स्य, अन्ध्र, विन्ध्यवासी, विदर्भ (बरार), नारिकेल, धर्मद्वीप, ऐलिक, व्याघ्रग्रीव, महाग्रीव, त्रैपुर, श्मश्रुधारी, कैष्किन्ध्य, हेमकूट, निषध, कटकस्थल, दशार्ण, हारिक, नग्न, निषाद, काक्वलालक, पर्ण तथा शबर। ये देश भगवान् कूर्मके पूर्व-दक्षिण दिशावाले चरणमें स्थित हैं। आश्लेषा, मघा और पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र भी वहीं हैं। लङ्का, कालाजिन, शैलिक, निकट, महेन्द्र, मलय और दर्दुर पर्वतोंके पास बसे हुए जनपद, कर्कोटक वनमें रहनेवाले लोग तथा भृगुकच्छ, कोङ्कण, सम्पूर्ण आभीर-प्रदेश, वेण्या नदीके तटपर बसे हुए देश, अवन्ति, दासपुर, आकारी, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गोनर्द, चित्रकूट, चोल, कोलगिरि, क्रौञ्चद्वीप, जटाधर, कावेरीके तटवर्ती देश, ऋष्यमूक पर्वतपर बसे हुए प्रदेश, नासिक, शङ्ख, शुक्ति आदि तथा वैदूर्य पर्वतके समीपवर्ती देश, वारिचर कोल, चर्मपट्ट, गयबाह्य, कृष्णाद्वीपवासी, सूर्याद्रि और कुमुदाद्रिके निवासी, औखा वन, दिशिक, कर्मनायक, दक्षिण, कौरुष, ऋषिक, तापसाश्रम, ऋषभ, सिंहल, काञ्चीनिवासी, त्रिलिङ्ग, कुञ्जरदरी तथा कच्छमें रहनेवाले लोग और ताम्रवर्णी नदीके तटवर्ती देश-ये भगवान् कूर्मकी दायीं कुक्षिमें स्थित हैं। उत्तरा-फाल्गुनी, हस्त तथा चित्रा-ये तीन नक्षत्र भी वहीं हैं।
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- वपु को दुर्वासा का श्राप
- सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
- धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
- राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
- पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
- जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
- जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
- पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
- दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
- दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
- अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
- पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
- तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
- ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
- मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
- मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
- श्राद्ध-कर्म का वर्णन
- श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
- त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
- सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
- योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
- अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
- मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
- प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
- स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
- दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
- जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
- श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
- भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
- भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
- स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
- पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
- राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
- तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
- रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
- चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
- वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
- सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
- मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
- देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
- सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
- इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
- देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
- धूम्रलोचन-वध
- चण्ड और मुण्ड का वध
- रक्तबीज-वध
- निशुम्भ-वध
- शुम्भ-वध
- देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
- देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
- सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
- नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
- रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
- भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
- सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
- अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
- दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
- राजा खनित्रकी कथा
- क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य