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गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिवपुराण

शिवपुराण

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1190
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

अध्याय १९-२०

 

पार्थिवलिंग के निर्माण की रीति तथा वेद-मन्त्रों द्वारा उसके पूजन की विस्तृत एवं संक्षिप्त विधि का वर्णन

तदनन्तर पार्थिवलिंग की श्रेष्ठता तथा महिमा का वर्णन करके सूतजी कहते हैं- महर्षियो! अब मैं वैदिक कर्मके प्रति श्रद्धा-भक्ति रखनेवाले लोगों के लिये वेदोक्त मार्ग से ही पार्थिव-पूजा की पद्धति का वर्णन करता हूँ। यह पूजा भोग और मोक्ष दोनों को देनेवाली है। आत्मिकसूत्रों में बतायी हुई विधि के अनुसार विधिपूर्वक स्नान और संध्योपासना करके पहले ब्रह्मयज्ञ करे। तत्पश्चात् देवताओं, ऋषियों, सनकादि मनुष्यों और पितरों का तर्पण करे। अपनी रुचि के अनुसार सम्पूर्ण नित्यकर्म को पूर्ण करके शिवस्मरणपूर्वक भस्म तथा रुद्राक्ष धारण करे। तत्पश्चात् सम्पूर्ण मनोवांछित फल की सिद्धि के लिये ऊँची भक्ति- भावना के साथ उत्तम पार्थिवलिंग की वेदोक्त विधि से भलीभांति पूजा करे। नदी या तालाब के किनारे, पर्वतपर, वन में, शिवालय में अथवा और किसी पवित्र स्थान में पार्थिव- पूजा करने का विधान है। ब्राह्मणो! शुद्ध स्थान से निकाली हुई मिट्टी को यत्नपूर्वक लाकर बड़ी सावधानी के साथ शिवलिंग का निर्माण करे। ब्राह्मण के लिये श्वेत, क्षत्रिय के लिये लाल, वैश्य के लिये पीली और शूद्र के लिये काली मिट्टी से शिवलिंग बनाने का विधान है अथवा जहाँ जो मिट्टी मिल जाय, उसी से शिवलिंग बनाये।

शिवलिंग बनाने के लिये प्रयत्नपूर्वक मिट्टी का संग्रह करके उस शुभ मृत्तिका को अत्यन्त शुद्ध स्थान में रखे। फिर उसकी शुद्धि करके जल से सानकर पिण्डी बना ले और वेदोक्त मार्ग से धीरे-धीरे सुन्दर पार्थिवलिंग की रचना करे। तत्पश्चात् भोग और मोक्षरूपी फल की प्राप्ति के लिये भक्तिपूर्वक उसका पूजन करे। उस पार्थिवलिंग के पूजन की जो विधि है, उसे मैं विधानपूर्वक बता रहा हूँ; तुम सब लोग सुनो। 'ॐ नमः शिवाय' इस मन्त्र का उच्चारण करते हुए समस्त पूजन-सामग्री का प्रोक्षण करे - उसपर जल छिड़के। इसके बाद 'भूरसि भूमिरस्यदितिरसि विश्वधाया विश्वस्य भुवनस्य धर्त्री। पृथिवीं यच्छ पृथिवीं दृँ ह पृथिवीं मा हि सीः।' (यजु० १३। १८) इत्यादि मन्त्र से क्षेत्रसिद्धि करे, फिर 'आपो अस्मान् मातरः शुन्धयन्तु घृतेन नो घृतप्वः पुनन्तु। विश्व्ँरिप्रं प्रवहन्ति देवीरुदिदाभ्यः शुचिरा पूत एमि। दीक्षातपसोस्तनूरसि तां त्वा शिवाँ शग्मां परि दधे भद्रं वर्णं पुष्यन्।'(यजु० ४। २)  इस मन्त्र से जल का संस्कार करे। इसके बाद 'नमस्ते रुद्र मन्यव उतो त इषवे नमः बाहुभ्यामुत ते नमः।'(यजु० १६। १) इस मन्त्र से स्फाटिकाबन्ध (स्फटिक शिला का घेरा) बनाने की बात कही गयी है। 'नमः शम्भवाय च मयोभवाय च नम शङ्कराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च।'(यजु १६। ४१) इस मन्त्र से क्षेत्रशुद्धि और पंचामृत का प्रोक्षण करे। तत्पश्चात् शिवभक्त पुरुष 'नमः' पूर्वक 'नमोऽस्तु नीलग्रीवाय सहस्राक्षाय मीढुषे। अथो ये अस्य सत्वानोऽहं तेभ्योऽकरं नमः।'(यजु० १६। ८) मन्त्र से शिवलिंग की उत्तम प्रतिष्ठा करे।

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