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गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिवपुराण

शिवपुराण

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1190
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...


ऋषि बोले- मुने। हमने पहले से यह बात सुन रखी है कि भगवान् शिव का नैवेद्य नहीं ग्रहण करना चाहिये। इस विषय में शास्त्र का निर्णय क्या है यह बताइये। साथ ही बिल्व का माहात्म्य भी प्रकट कीजिये।

सूतजीने कहा- मुनियो! आप शिव-सम्बन्धी व्रत का पालन करनेवाले हैं। अत: आप सबको शतश: धन्यवाद है। मैं प्रसन्नतापूर्वक सब कुछ बताता हूँ, आप सावधान होकर सुनें। जो भगवान् शिव का भक्त है बाहर-भीतर से पवित्र और शुद्ध है; उत्तम व्रत का पालन करनेवाला तथा दृढ़ निश्चयसे युक्त है वह शिव-नैवेद्य का अवश्य भक्षण करे। भगवान् शिव का नैवेद्य अग्राह्य है इस भावना को मन से निकाल दे। शिव के नैवेद्य को देख लेनेमात्र से भी सारे पाप दूर भाग जाते हैं उसको खा लेनेपर तो करोड़ों पुण्य अपने भीतर आ जाते हैं। आये हुए शिव-नैवेद्य को सिर झुकाकर प्रसन्नता के साथ ग्रहण करे और प्रयत्न करके शिव-स्मरणपूर्वक उसका भक्षण करे। आये हुए शिव-नैवेद्य को जो यहकहकर कि मैं इसे दूसरे समय में ग्रहण करूँगा, लेने में विलम्ब कर देता है वह मनुष्य निश्चय ही पाप से बँध जाता है। जिसने शिव की दीक्षा ली हो, उस शिवभक्त के लिये यह शिव-नैवेद्य अवश्य भक्षणीय है - ऐसा कहा जाता है। शिव की दीक्षा से युक्त शिवभक्त पुरुष के लिये सभी शिवलिंगों का नैवेद्य शुभ एवं 'महाप्रसाद' है; अत: वह उसका अवश्य भक्षण करे। परंतु जो अन्य देवताओं की दीक्षा से युक्त हैं और शिवभक्ति में भी मन को लगाये हुए हैं उनके लिये शिव-नैवेद्य-भक्षण के विषयमें क्या निर्णय है - इसे आपलोग प्रेमपूर्वक सुनें। ब्राह्मणो! जहाँ से शालग्रामशिला की उत्पत्ति होती है वहाँ के उत्पन्न लिंग में, रसलिंग (पारदलिंग) में, पाषाण, रजत तथा स्वर्ण से निर्मित लिंग में, देवताओं तथा सिद्धों द्वारा प्रतिष्ठित लिंग में, केसर-निर्मित लिंग में, स्फटिकलिंग मे, रत्ननिर्मित लिंग में तथा समस्त ज्योतिर्लिंगों में विराजमान भगवान् शिव के नैवेद्य का भक्षण चान्द्रायणव्रत के समान पुण्यजनक है। ब्रह्महत्या करनेवाला पुरुष भी यदि पवित्र होकर शिव-निर्माल्य का भक्षण करके उसे (सिरपर) धारण करे तो उसका सारा पाप शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। पर जहाँ चण्ड का अधिकार है वहाँ जो शिव-निर्माल्य हो, उसे साधारण मनुष्यों को नहीं खाना चाहिये। जहाँ चण्ड का अधिकार नहीं है वहाँ के शिव-निर्माल्य का सभी को भक्तिपूर्वक भोजन करना चाहिये।

बाणलिंग  (नर्मदेश्वर), लोह-निर्मित (स्वर्णादि- धातुमय) लिंग, सिद्धलिंग (जिन लिंगों की उपासना से किसी ने सिद्धि प्राप्त की है अथवा जो सिद्धों द्वारा स्थापित हैं वे लिंग), स्वयंभूलिंग - इन सब लिंगों में तथा शिव की प्रतिमाओं (मूर्तियों) में चण्ड का अधिकार नहीं है। जो मनुष्य शिवलिंग को विधिपूर्वक स्नान कराकर उस स्नान के जल का तीन बार आचमन करता है उसके कायिक, वाचिक और मानसिक - तीनों प्रकार के पाप यहाँ शीघ्र नष्ट हो जाते हैं। जो शिव-नैवेद्य, पत्र, पुष्प, फल और जल अग्राह्य है वह सब भी शालग्रामशिला के स्पर्श से पवित्र ग्रहण के योग्य हो जाता है। मुनीश्वरो! शिवलिंग के ऊपर चढ़ा हुआ जो द्रव्य है वह अग्राह्य है। जो वस्तु लिंग स्पर्श से रहित है अर्थात् जिस वस्तु को अलग रखकर शिवजी को निवेदित किया जाता है - लिंग के ऊपर चढ़ाया नहीं जाता, उसे अत्यन्त पवित्र जानना चाहिये।

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