लोगों की राय

गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिवपुराण

शिवपुराण

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1190
आईएसबीएन :81-293-0099-0

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

100 पाठक हैं

भगवान शिव की महिमा का वर्णन...


इस प्रकार विधिपूर्वक भगवान् शंकर का नैवेद्यान्त पूजन करके उनकी त्रिभुवनमयी आठ मूर्तियों का भी वहीं पूजन करे। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, सूर्य, चन्द्रमा तथा यजमान - ये भगवान् शंकरकी आठ मूर्तियाँ कही गयी हैं। इन मूर्तियोंके साथ-साथ शर्व, भव, रुद्र, उग्र, भीम, ईश्वर, महादेव तथा पशुपति - इन नामों की भी अर्चना करे। तदनन्तर चन्दन, अक्षत और बिल्वपत्र लेकर वहाँ ईशान आदि के कम से भगवान् शिव के परिवार का उत्तम भक्तिभाव से पूजन करे। ईशान, नन्दी, चण्ड, महाकाल, भृंगी, वृष, स्कन्द, कपर्दीश्वर, सोम तथा शुक्र - ये दस शिव के परिवार हैं जो क्रमश: ईशान आदि दसों दिशाओं में पूजनीय हैं। तत्पश्चात् भगवान् शिव के समक्ष वीरभद्र का और पीछे कीर्तिमुख का पूजन करके विधिपूर्वक ग्यारह रुद्रों की पूजा करे। इसके बाद पंचाक्षरमन्त्र का जप करके शतरुद्रिय स्तोत्र का, नाना प्रकार की स्तुतियों का तथा शिवपंचांगका पाठ करे। तत्पश्चात् परिक्रमा और नमस्कार करके शिवलिंगका विसर्जन करे। इस प्रकार मैंने शिवपूजन की सम्पूर्ण विधि का आदरपूर्वक वर्णन किया। रात्रि में देवकार्य को सदा उत्तराभिमुख होकर ही करना चाहिये। इसी प्रकार शिवपूजन भी पवित्रभाव से सदा उत्तराभिमुख होकर ही करना उचित है। जहाँ शिवलिंग स्थापित हो, उससे पूर्व दिशा का आश्रय लेकर नहीं बैठना या खड़ा होना चाहिये; क्योंकि वह दिशा भगवान् शिवके आगे या सामने पड़ती है (इष्टदेवका सामना रोकना ठीक नहीं )। शिवलिंग से उत्तरदिशा में भी न बैठे; क्योंकि उधर भगवान् शंकर का वामांग है जिसमें शक्तिस्वरूपा देवी उमा विराजमान हैं। पूजक को शिवलिंग से पश्चिमदिशा में भी नहीं बैठना चाहिये; क्योंकि वह आराध्यदेव का पृष्ठभाग है  ( पीठ की ओर से पूजा करना उचित नहीं है )। अत: अवशिष्ट दक्षिणदिशा ही ग्राह्य है। उसी का आश्रय लेना चाहिये। तात्पर्य यह कि शिवलिंग से दक्षिणदिशा में उत्तराभिमुख होकर बैठे और पूजा करे। विद्वान् पुरुष को चाहिये कि वह भस्म का त्रिपुण्ड्र लगाकर, रुद्राक्ष की माला लेकर तथा बिल्वपत्र का संग्रह करके ही भगवान् शंकर की पूजा करे, इनके बिना नहीं। मुनिवरो। शिवपूजन आरम्भ करते समय यदि भस्म न मिले तो मिट्टी से भी ललाट में त्रिपुण्ड्र अवश्य कर लेना चाहिये।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book