लोगों की राय

वास्तु एवं ज्योतिष >> लघुपाराशरी सिद्धांत

लघुपाराशरी सिद्धांत

एस जी खोत

प्रकाशक : मोतीलाल बनारसीदास पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :630
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 11250
आईएसबीएन :8120821351

Like this Hindi book 0

9. केतु का गोचर


9.1 जन्म सूर्य पर केतु का गोचर अधिक परिश्रम कराता है। कभी तो कपट व जालसाजी का शिकार बनकर जातक विचित्र परिस्थति या उलझन में पड़ जाता है। इस अवधि में जुआ या सट्टा खेलना हानि देगा । कभी पिता समान व्यक्ति की मृत्यु का क्लेश होता है। स्वास्थ्य बिगड़ता है। जातक थका-थका सा रहता है। कोई जातक सभी बातों से घृणा करने लगता है। उसे कुछ भी अच्छा नहीं लगता। उसका कठोर व रूक्ष व्यवहार उसके गुणों को छिपा देता है तथा जातक असफल और और एकाकी हो जाता है।

9.2 जन्म चंद्र पर केतु का गोचर माता को रोग पीड़ा या माता से अलगाव देता है। मन संतप्त तथा घर-परिवार में मतभेद व मतिभ्रम होता है। कभी पिता स्वार्थ सिद्धि के लिए जातक का उपयोग करता है। नई संपदा खरीदना शायद लाभकर नहीं होता किन्तु वर्तमान परिस्थिति की मरम्मत व नवीनीकरण शुभ परिणाम देता है। कोई जातक अपने गलत व्यवहार से संबंधियों से अपमान व अपयश पाता है। कभी पत्नी व संतान के सुख व सहयोग से वंचित होना, पड़ता है। ईष्र्या, द्वेष, क्रोध व घृणां से बचना आवश्यक है। धैर्य व न्यायपरक और संतुलित व्यवहार शुभ परिणाम देगा।

9.3 जन्म के मंगल पर केतु का गोचर जातक से अनेक गलतियाँ कराता है। कोई पद प्रतिष्ठा में कमी या अवनति के कारण निराश व अवसादयुक्त हो जाता है। कभी अनचाहे स्थान पर तबादला होता है तथा मन के प्रतिकूल काम करना एक विवश्ता या लाचारी होती है। धैर्य व सहिष्णुता से काम लेना उत्तम होगा। स्वभाव में सौम्यता व विनम्रता बनाए रखना, कभी अधीर या निराश न होना तथा अपने लक्ष्य की ओर निरन्तर आगे बढ़ना मानो सभी विषमताओं को मिटाने का सिद्ध मंत्र है। लोभ-लालच से बचें, जो पास में है उसी में संतोष करना उचित होगा। कभी घर में वैर-विरोध तथा भ्रान्तिपूर्ण स्थिति भी मन का संताप बढ़ाती है।

9.4 जन्म बुध पर केतु का गोचर मन तथा घर-परिवार में अशान्ति देता है। जल्दबाजी करना उचित नहीं। बड़ी सावधानी से धीरे-धीरे आगे बढ़ना ही अक्लमंदी है। कभी तो दूसरों की भलाई करना भी जातक को अपयश दिलाता है। धन के लेन-देन में अधिक सावधानी की जरूरत पड़ती है। जातक छल कपट या षडयंत्र वश हानि उठाता है। बड़े, मंहगे और लंबे समय तक चलने वाली योजनाओं से बचना ही बेहतर है। हाँ, छोटी व शीघ्र पूरी होने वाली योजनाएँ धन व यश देती हैं।

9.5 जन्म गुरु पर केतु का गोचर कभी अचानक व अप्रत्याशित बड़े खर्च कराता है। कभी धन की हानि होती है। भौतिक सुख व कामोपभोग पर अंकुश लगाना आवश्यक है। बहुधा ऊँचे स्थान से गिरने का भय होता है, कभी कोई जातक सोते में करवट बदलने के कारण नीचे गिरता है तथा कूल्हे या जंघा की हड्डी तोड़ लेता है। उधार लेने पर शायद कर्ज उतारना बहुत मुश्किल होता है। घर में शान्ति बनाए रखना आवश्यक होता है। अन्यथा घर में तनाव होने पर जातक अस्वस्थ होता है तथा उसका वजन भी घटता है।

9.6 जन्म शुक पर केतु का गोचार प्रणय व रोमांस में विघ्न व बाधा देता है। अचानक संबंध बिखरने लगते हैं। अकारण ही मतभेद व तनाव प्रेम-संबंधों को नष्ट कर देता है। विवाह के लिए यह समय अशुभ जानें। परस्पर भ्रान्तियों, गलतफहमी तथा अविश्वास से बचना चाहिए। कोई भी झगड़ा आपस में मिल बैठकर सुलझाना ही अक्लमंदी होती है। यदि बिगड़ते संबंधों की
अनदेखी की जाए तो अलगाव या तलाक सुनिश्चित जानें। नए काम में पूँजी लगाना या काम-काज बदलना बहुधा घाटे का सौदा बनता है।

9.7 जन्म शनि पर केतु का गोचर दूसरों से मतभेद तथा विरोध बढ़ाकर व्यर्थ की शत्रुता कराता है। अधिक चिन्ता या आराम की कमी स्वास्थ्य बिगाड़ती है। कभी मन में हताशा, निराशा व अवसाद की स्थिति होती है। कभी रूखे व चिड़चिड़े स्वभाव के कारण पत्नी दूर चली जाती है। भावनाओं में बहना अनुचित होगा। यथार्थ के धरातल पर खड़े होकर सत्य व न्याय का आश्रय ले निस्वार्थ भाव से सेवा, सहायता और परोपकार करना निश्चय ही धन, प्रतिष्ठा व यश देगा।

9.8 जन्म राहु पर केतु का गोचर सभी प्रयत्न व प्रयासों में धैर्य की माँग करता है। कभी ठगे जाने का भय होता है। अपने हितों की रक्षा कर सूझ-बूझ से काम करना श्रेष्ठ रहता है। कभी कोई जातक अकर्मण्य व आलसी हो जाता है। किसी भी काम में उसका मन नहीं लगता या फिर कुछ भी करने की उसकी इच्छा या हिम्मत नहीं होती। यदि उत्साह और लगन के साथ जातक काम में जुट जाए तो धन, मान और यश की प्राप्ति होती है।

9.9 जन्म केतु पर केतु का गोचर कामकाज की गलती करा के पदभंग, निराशा व असफलता देता है। दूरस्थ प्रदेश में स्थानान्तरण या विषम परिस्थिति में काम करने की विवशता होती है। कभी गलतफहमी से उपजा मतभेद जातक को अपयश व अवहेलना देता है। नयी संपदा खरीदना हानिकारक किन्तु प्राप्त संपति को सुधारना लाभप्रद रहता है।

 

***

...Prev |

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ

    अनुक्रम

  1. अपनी बात
  2. अध्याय-1 : संज्ञा पाराशरी

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book