लोगों की राय

वास्तु एवं ज्योतिष >> लघुपाराशरी सिद्धांत

लघुपाराशरी सिद्धांत

एस जी खोत

प्रकाशक : मोतीलाल बनारसीदास पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :630
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 11250
आईएसबीएन :8120821351

Like this Hindi book 0

परिशिष्ट - 3

गोचर विचार


(जन्म चंद्र या चंद्र कुंडली से देखें)
सूर्य:
शुभ स्थान-3, 6, 10, 11
वेध स्थान-9, 12, 4, 5
1H उदर रोग, धन हानि, प्रवास संबंधी कष्ट
2H धन हानि, नेत्र पीड़ा, मुख रोग
3H धन संचय, हर्ष मंगल, शत्रु नाश
4H सुख व धन की चिन्ता, रोग वृद्धि
5H रोग, चिन्ता, संतान या मित्र क्लेश
6H रोग, शत्रु व चिंता का नाश
7H यात्रा, उदर रोग से चिंता व दीन भाव
8H रोग पीड़ा, दुख व राज्य से संताप
9H में अपात्ति रोग व दीनता तथा धनागम में बाधा
10H कार्य सिद्धि, सुख व सफलता
11H धन, वैभव, सुयश की वृद्धि, रोग नाश
12H कार्य हानि, असफलता, कष्ट क्लेश

चन्द्रमा :
शुभ स्थाl,-3, 6, 7, 10, 11
वेध स्थान-5, 9, 12, 2, 4, 8
1H भाग्योदय, स्वास्थय व सम्मान प्राप्ति
2H धन हानि, कुटुम्ब में विवाद या कलह (सन्तोष व सुख)
3H जय, सफलता व सुयश
4H भय, संताप, मानसिक क्लेश
5H शोक, चिन्ता (ज्ञान वृद्धि व सफलता)
6H नीरोगता, आरोग्य व लाभ
7H सुख, सम्पन्नता व सुयश
8H अनिष्ट भय, विषति आपदा
9H रोग भय (धर्म लाभ व तीर्थाटन)
10H कार्य सिद्धि, सफलता व सुयश
11H प्रसन्नता व लाभ प्राप्ति
12H व्यय और धन हानि

मंगल :
शुभ स्थान - 3,6,11
वेध स्थान - 12,9,5
1H आप्तजन का वियोग, रक्त विकार, गर्मी रोग से कष्ट व शोक देता है।
2H धन हानि, अप्रिय संवाद, भय होता है।
3H सर्व कार्य सिद्धि व सफलता, स्वर्णाभूषण व प्रसन्नता प्राप्त हो।
4H घर-परिवार की चिन्ता, भाइयों से विवाद या कष्ट कलह, उदर रोग हो।
5H ज्वर, पीड़ा, मित्र व संतान से कलह, क्लेश या चिन्ता मिले।
6H विवाद-स्पर्धा में जय, रोग शान्ति, धन लाभ व सर्वत्र अनुकुलता मिले।
7H स्त्री से मतभेद, कलह, कष्ट या नेत्र व उदर रोग हो।
8H धन और मान की हानि हो।
9H पराजय, धनहानि, देह में दुर्बलता और गति में मन्दता होवे।
10H कार्य में विध्न-बाधा तो कभी दोषपूर्ण कार्यों में रुचि दिया करता है।
11H धन मान व स्वास्थ्य और सुख की वृद्धि होती है।
12H चिन्ता, संताप, धन हानि व उष्णताजन्य रोग हो।

बुध :
शुभ स्थान - 2, 4, 6, 8, 10, 11 वेध स्थान : 5, 8, 9, 1, 8, 12
1H धन हानि, रोग व चिन्ता हो।
2H धन लाभ, वाणी संबंधी सुख मिले।
3H बल, पराक्रम में कमी होने से शत्रु भय बढ़े।
4H धन लाभ व सुख प्राप्ति।
5H पुत्र व पत्नी से विवाद और विग्रह।
6H सभी कार्यों में सफलता, सुख व सम्मान की वृद्धि।
7H पत्नी या सहकर्मियों से विवाद और विरोध देता है।
8H संतान सुख व धन की प्राप्ति हो।
9H व्यर्थ भ्रमण, विध्न-बाधा या कठिनाई देता है।
10H सुख, सफलता व सम्मान देता है।
11H उन्नति, विकास व पुष्टिदायक होता है।
12H हीनता, पराजय व भय देता है।


गुरु :
शुभ स्थान - 2, 5, 7, 9, 11
वेध स्थान - 12, 4, 3, 10, 8
1H परदेश गमन, धन नाश के लोगों से वैर विरोध हो।
2H धन लाभ, कुटुंब से सुख व वाणी को आदर-मान मिले।
3H पद,प्रतिष्ठा की हानि, कार्य की विध्न-बाधा व मित्रों का वियोग होवे।
4IH हीनता, भूमि भवन और वाहन से चिन्ता व हानि देता है।
5H सज्जनों से मिलन, संतान प्राप्ति व राजपक्ष से लाभ देता है।
6H शत्रु व जाति बंधु से पीड़ा व व्याधि-जन्य कष्ट हो।
7H शुभ कार्य के लिए यात्रा, स्त्री व पुत्र से प्रसन्नता की प्राप्ति होती है।
8H धन हानि, दुख क्लेश, भाग्य की कमी व यात्रा में कष्ट हो।
9H सुख, सौभाग्य व धर्म की वृद्धि तथा राजकृपा से मानवृद्धि हो।
10H धन सम्पति वे संतान को भय या कष्ट हो।
11H संतान सुख, धन, मान व सुयश की प्राप्ति हो।
12H धन-संपदा की हानि, देह कष्ट व मन में अशान्ति होवे।

शुक्र :
शुभ स्थान-1, 2, 3, 4, 5, 8, 9, 11, 12
वेध स्थान - 8, 7, 1, 10, 9, 5, 11, 3, 6
1H सभी प्रकार के भोग विलास व देह सुख प्राप्त हो।
2H धन लाभ, कुटुंब में स्नेह, सहयोग व सन्मान मिले।
3H बल, पराक्रम की वृद्धि से अभ्युदय व उन्नति हो।
4H बंधु बांधवों से मैत्री व सुख में वृद्धि होती है।
5H संतान व मित्रों से सुख मिले।
6H कार्य क्षेत्र में विध्न बाधा और विपत्ति देता है।
7H स्त्री कौ रोग पीड़ा या स्त्री संबंधी चिन्ता व शोक देता है।
8H धन लाभ व परिवार में सुख व सम्मान देता है।
9H भाग्य व सुख सम्पदा को बढ़ाता है।
10H झगड़ा करता है। 11H सुख, सम्मान व धन की वृद्धि।
12H विविध प्रकार के भोग सुख प्रदान करता है।

शनि :
शुभ स्थान - 3,6,11
वेध स्थान : 12, 9, 5
1H देह कष्ट, रोग, पीड़ा, प्रियजन का वियोग मिले।
2H धन व संतान की हानि।
3H सेवक, सत्ता व धन का सुख देता है। वह जातक पद प्रतिष्ठा वा सुख पाता है।
4H बंधु बांधव, स्त्री व धन हानि देता है।
5H धन, पुत्र वे मानसिक संतुष्टि और संतुलन की हानि करता हैं।
6H रोग व शत्रु का नाश कर सुख व सफलता देता है।
7H स्त्री को पीड़ा व यात्रा से भय दिया करता है।
8H मित्र, संतान, पशु या वाहन की हानि या रोग भय होता है।
9H धर्म कार्यों में बाधा, धन हानि तथा पिता समान व्यक्ति के वियोग का दुख होता है।
10H अशुभ कार्यों में रुचि, मानहानि व रोग पीड़ा होती है।
11H धन व मान की प्राप्ति व सुख होता है।
12H अपव्यय वे शत्रु के कारण धन हानि तथा स्त्री व पुत्र को व्याधि होती है।

राहु :                
शुभ स्थान - 3, 6, 11   
वेध स्थान - 19, 9, 5    
1H रोग, देह बन की हानि
2H धन का नाश      
3H सुख प्राप्ति        
4H दुःख-क्लेश        
5H धन नाश         
6H सुख प्राप्ति         
7H नाश              
8H मृत्यु तुल्य कष्ट    
9H हानि             
10H लाभ            
11H सौभाग्य वृद्धि     
12H व्यय            

केतु :
शुभ स्थान-3, 6, 11
वेध स्थान-12, 9,5
1H हानि व रोग भय
2H कुटुम्ब में वैर-विरोध व धन नाश
3H सुख लाभ और वृद्धि
4H भय व पीड़ा
5H शोक, धन नाश
6H धन व सुख प्राप्ति
7H पीड़ा व दुर्गति
8H पीड़ा, भय और हानि
9H पाप व दैन्य,
10H भय व दुःख
11H धन व सुयश प्राप्ति
12H वैर-विरोध से पीड़ा

नोट : शुभ गोचर का वेध होने पर शुभ फल नहीं मिलता।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. अपनी बात
  2. अध्याय-1 : संज्ञा पाराशरी

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book