वास्तु एवं ज्योतिष >> लघुपाराशरी सिद्धांत लघुपाराशरी सिद्धांतएस जी खोत
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5.7 राजभंग योग
धर्म कर्माधि नेता रन्ध्रलाभाधिपौ यदि
तयोः सम्बन्ध मात्रेण न योग लभते नरः ।।22।।
(i) केन्द्रेश व त्रिकोणेश का परस्पर सम्बन्ध राजयोग देवा है, यह एक सर्वमान्य नियम है। अब यदि इनमें कोई दोषयुक्त हो तो राजभंग योग हो जाता है। उदाहरण के लिए, मेष लग्न जातक का शनि दशमेश व एकादशेश तो गुरु भाग्येश व व्ययेश है। ये दोनों स्वतन्त्र रूप से क्रमशः केन्द्र व त्रिकोण के स्वामी होने के कारण पापी नहीं हैं। क्या यहाँ भी (केन्द्रेश+त्रिकोणेश) का सम्बन्ध राजयोग देगा? कदाचित नहीं, क्योंकि यह सम्बन्ध एकादशेश और व्ययेश का सम्बन्ध भी है। दोनों ग्रंह भिन्न स्वभाव के हैं अतः योग भंग करेंगे।
(ii) ध्यान रहे, केन्द्रेश व त्रिकोणेश यदि पाप भाव के स्वामी हों तो उन्हें दोष नहीं लगता किन्तु उनके परस्पर सम्बन्ध से बनने वाला राजयोग निश्चय ही भंग हो जाता है। केन्द्र व त्रिकोण भावाधिपति से बनें योगों में दोनों का दोषमुक्त होना आवश्यक है अन्यथा वह योग निर्बल या निष्प्रभावी सिद्ध होगा।
(iii) मतान्तर से दोष को अन्य भावाधिपत्य न मानकर ग्रह का नीचस्थ, शत्रुक्षेत्री, पाषाक्रान्त या अस्तंगत होने को ही दोष मानना चाहिए।
(iv) यहाँ चर्चा ग्रह दशा और भुक्ति की है तो -
(v) मकर लग्न जातक का मंगल 4L सुखेश तथा 11L एकादशेश होने पर भी अशुभ नहीं हैं।
(vi) लग्नेश सर्वाधिक शुभ ग्रह है। उसे षष्ठेश या अष्टमेश होने का दोष नहीं लगता। वृष लग्न में शुक्र षष्ठेश तो तुला लग्न में शुक्र अष्टमेश होने पर भी शुभ होता है।
(vii) इसी प्रकार मेष लग्न में मंगल लग्नेश होने के साथ अष्टमेश भी है। किन्तु अशुभ नहीं है। वृश्चिक लग्न में मंगल षष्ठेश होने पर भी शुभ ही माना जाएगा-अशुभ तो कदापि नहीं।
(viii) ध्यान रहे, द्वितीय व द्वादश भाव को सम भाव कहते हैं। ये भाव अपनी अन्य राशि या साहचर्य का फल दिया करते हैं। यदि द्वितीयेश बुध या गुरु हो तथा उसकी अन्यराशि पंचम भाव में पड़े तो वह निश्चय ही विद्या, बुद्धि व सन्तान सम्बन्धी सुख की वृद्धि करेगा।
ये तो चर्चा हुई ग्रहों के शुभत्व की; इनमें शुभ व पाप भाव का स्वामी एक ही ग्रह है, अतः शुभ है। अब इसके विपरीत यदि ये ग्रह अलग-अलग हों, इनमें परस्पर सम्बन्ध न हो क्या तब भी शुभता बरकरार रहेगी? पीछे राजभंग योग में बताया-
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