भारतीय जीवन और दर्शन >> अभिज्ञानशाकुन्तलम्-कालिदास विरचित अभिज्ञानशाकुन्तलम्-कालिदास विरचितसुबोधचन्द्र पंत
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घड़े उठाते-उठाते इनके कन्धे ढीले पड़ गये हैं, हथेलियां लाल हो गई हैं,
बार-बार उठते हुए इनके स्तन बता रहे हैं कि थकान से इनकी सांस फूल गई है।
कानों में पहने हुए सिरस के फूल भी हिल नहीं रहे हैं, क्योंकि पसीने की
बूंदों से उनकी पंखुड़ियां गालों पर चिपक गई हैं। जूड़े के खुल जाने से यह
अपनी बिखरी हुई लटें भी किसी प्रकार बड़ी कठिनाई से अपने एक हाथ से सम्हाल
पा रही हैं।
अब इनसे ऋण चुका पाना कठिन है, लीजिए इनका ऋण मैं चुका देता हूं।
[राजा अपनी अंगूठी देना चाहता है।]
[अंगूठी पर दुष्यन्त का नाम पढ़कर दोनों सखियां एक-दूसरे को देखने लगती
हैं।]
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