गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन आध्यात्मिक प्रवचनजयदयाल गोयन्दका
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इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।
उत्तर-एक आदमीने पूछा गूगा बड़ा है या भगवान्। बात तो यह है कि भगवान् ही
बड़े हैं पर गूगासे भी डरना पड़ता है। है तो सत्संग ही बड़ा, भजन सत्संगसे ही
होता है। भगवान् तो कहते हैं कि सत्संग करो और संत कहते हैं भजन करो,
अपनी-अपनी जगह दोनों ही बड़े हैं। सत्संगसे ही भजन होता है। सत्संग ही कारण
है, भजन कार्य है। सत्संग माता है, भजन पुत्र है। भजन कमाऊ है। भगवान् भजनसे
ही मिलते हैं। दोनोंमें ज्यादा समय किसमें बितायें ? विचार करो भजनमें
स्वतन्त्रता है, रोज दो घंटा माला फेरनी है तो फेर सकता है। सत्संग रोज करनी
अपने वशकी बात नहीं है। सत्संगसे ही भजनमें रुचि बढ़ती है। बिना सत्संगके
रुचि घटनेकी संभावना है। सत्संगमें भजन भी तो बन सकता है, दोनों ही काम हो
जाते हैं। सत्संग भजनको खींच लाता है, परन्तु भजनसे सत्संग मिल ही जाय यह बात
नहीं है। नारदजी जब ब्रह्मलोकमें जाकर भगवान्का गुण गाते हैं, तब सनकादि
समाधि छोड़कर सुनने आते हैं। कहा भी है-
बिनु सत्संग न हरि कथा तेहिं बिनु मोह न भाग।
मोह गयें बिनु राम पद होय न दूढ़ अनुराग।।
बिना अनुरागके भगवान् नहीं मिलते। यह बात सिद्ध हुई कि भजनसे भी बढ़कर सत्संग
है। युक्तियोंसे, प्रमाणोंसे, शास्त्रसे, प्रत्यक्ष सब तरहसे सत्संग ही भजनसे
श्रेष्ठ है। दो घंटा एकान्तमें ध्यान करो और दो घंटा चुपचाप बैठकर महात्माके
पास ध्यान करो, दोनोंको मिलाओ कितना अन्तर है। कीर्तन एक अकेला करता है और एक
सौ आदमी शामिल होकर बड़े प्रेमसे करते हैं। एक-एकको १००-१०० गुना लाभ मिलता
है। प्रत्यक्ष लाभ है। विवाह में सात्विक आदमीपर भी उन बरातियोंका असर पड़
जाता है, १०० बरात जाने पर सात्विक पुरुष भी तामसी बन जाता है। १००
शवयात्रामें जानेपर तामसी भी सात्विक बन जाता है। मनुष्यकी जो वृत्ति
शवयात्रा में, सत्संगमें और अपने मृत्यु समयमें होती है, वैसी वृत्ति यदि सदा
रहे तो उसके कल्याणमें कोई शंका नहीं है। भजन बढ़िया है सत्संगमें फिर जायें
ही क्यों? सब घरपर ही भजन करें। पर गूगेके मंडपमें बैठकर गूगेको छोटा कैसे
बतायें। भगवान्के भजनको छोटी चीज कैसे बताया जाय। भगवान्के राज्यमें भगवान्के
भजनको छोटा कैसे बताया जाय, बड़ा तो है, सो है ही यह विनोद है, सात्त्विक
विनोद है।
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- सत्संग की अमूल्य बातें