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गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन आध्यात्मिक प्रवचनजयदयाल गोयन्दका
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इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।
ये त्वक्षरमनिर्देशयमव्यक्तं पर्युपासते।
सर्वत्रगमचिन्त्यं च कूटस्थमचलं ध्रुवम्॥
संनियम्येन्द्रियग्रामं सर्वत्र समबुद्धयः।
ते प्राग्नुवन्ति मामेव सर्वभूतहिते रता:।।
(गीता १२।३-४)
मन-बुद्धिसे परे सर्वव्यापी, अकथनीय स्वरूप और सदा एकरस रहनेवाले, नित्य,
अचल, निराकार, अविनाशी सचिदानन्दघन ब्रह्मको निरन्तर एकीभालसे ध्यान करते हुए
भजते हैं, वे सम्पूर्ण भूतों के हित में रत और सबमें समान भाववाले योगी मुझको
ही प्राप्त होते हैं।
नान्यं गुणेभ्यः कतारं यदा द्रष्टानुपश्यति।
गुणेभ्यश्च परं वेत्ति मद्भावं सोऽधिगच्छति।।
(गीता १४।१९)
जिस समय द्रष्टा तीनों गुणों के अतिरिक्त अन्य किसी को कर्ता नहीं देखता और
तीनों गुणोंसे अत्यन्त परे सच्चिदानन्दघन स्वरूप मुझ परमात्मा तत्त्व से
जानता है, उस समय वह मेरे स्वरूप को प्राप्त होता है।
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- सत्संग की अमूल्य बातें

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