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गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन

आध्यात्मिक प्रवचन

जयदयाल गोयन्दका

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1007
आईएसबीएन :81-293-0838-x

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इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।


उसी समय हनुमान्जी आ पहुँचे। पहले भगवान्के दूत आते हैं फिर भगवान् आते हैं। कहीं खुद भगवान् ही आ जाते हैं। करुणा भावसे रुदन करे तो विलम्ब होता ही नहीं। युधिष्ठिरको देवदूत कल्पित नरक में ले गये। उनके भाइयोंने उनसे वहीं रहनेको कहा। महाराजने निश्चय किया यहीं रहेंगे। दु:ख भोगना स्वीकार किया बस तुरन्त उलट गया। हम भी यदि ऐसा निश्चय कर लें तो जल्दी ही भगवान् प्रकट हो जायें। गौराङ्ग महाप्रभु विरहमें व्याकुल होकर रुदन करते थे। सुना जाता है उनकी कृपासे बहुतसे भक्तोंको भगवान्के दर्शन हो गये। प्रेमकी बात-हर समय हँसते-हँसते ही रहें, प्रत्यक्ष शान्ति और आनन्द है, फलमें और साधन काल दोनोंमें ही आनन्द है, रोना प्रिय लगे तो रोनेवाला मार्ग, हॅसना प्रिय लगे तो हॅसनेवाला मार्ग जो प्रिय लगे उसीका अनुसरण करें।

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    अनुक्रम

  1. सत्संग की अमूल्य बातें

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