गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन आध्यात्मिक प्रवचनजयदयाल गोयन्दका
|
443 पाठक हैं |
इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।
प्रश्न-स्त्री-पुत्रके मरनेपर फिर लोग पापमें प्रवृत्त क्यों होते हैं?
उत्तर-कोई दयालु लालटेन बुझा देता है, पतंगे दूसरी लालटेनपर चले जाते हैं तो
कोई क्या करे। बुझानेवालेकी तो दया ही है।
जगत् में बिना कारण दया करनेवाले दो ही हैं-एक-भगवान्, दूसरे-महापुरुष।
जैसे-सूर्यका प्रकाश उल्लूको नहीं दीखता, आँखोंमें दोष-वालेको भी नहीं दीखता,
परन्तु प्रभु तो उल्लूको भी आदमी बना सकते हैं। महात्मा और प्रभुकी दया
समभावसे सब जगह परिपूर्ण है। वे समदर्शी हैं-समदर्शीके साथ ही परहित रत
हैं-'सर्वभूतहिते रताः" (गीता १२।४)। जिसे सब त्याग देते हैं, ईश्वर और
महात्मा उसे भी नहीं त्यागते। भगवान्का नाम पतितपावन है, पवित्रपावन नहीं,
दीनबन्धु हैं, शैतान-बन्धु नहीं, अनाथनाथ हैं। महाप्रभु गौराङ्गकी घोषणा
प्रथम पतितोंका उद्धार करनेकी थी। जो नहीं चाहता उससे भगवान् जबरदस्ती
सम्बन्ध नहीं जोड़ते। भगवान् तो भक्तके इच्छा करनेपर ही उद्धार करते हैं,
परन्तु भक्त तो बिना इच्छा करनेवालेका भी कल्याण कर देते हैं। भगवान्के यहाँ
दोका निभाव नहीं है, एक-कामचोरका, दूसरा-न चाहनेवालेका। भगवान् कामचोरबन्धु
नहीं हैं, दीनबन्धु हैं। पापीके नाते तो उसका भी उद्धार कर देते हैं। जिसके
दिलमें इतना भाव भी नहीं है कि भगवान् दयालु हैं, परम प्रेमी हैं, हितैषी
हैं, उसके लिये भगवान्
लाचार हैं। जो शक्ति रहते काम नहीं करते, वे कामचोर हैं। जिनमें इच्छा नहीं
है उनका उद्धार कैसे हो ? महात्माओंके मनका यह भाव कि इनका उद्धार कैसे हो,
यही उन लोगोंके उद्धारका कारण होगा। महात्माओंकी दया ही उनका उद्धार कर देती
है। कोई भगवान्से जोरदार मिल जायें तो भगवान्से कानून तुड़वा देते हैं।
भीष्मने अस्त्र ग्रहण करवा दिया। कानून तोड़ना भी कानून ही है। इसीलिये तो
भक्त भगवान्से बड़े हैं।
|
- सत्संग की अमूल्य बातें