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गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन

आध्यात्मिक प्रवचन

जयदयाल गोयन्दका

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1007
आईएसबीएन :81-293-0838-x

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इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।


साधना का क्रम

बिना इच्छाके प्राप्त कुसंग भगवान्का भेजा हुआ होता है। उससे तो वैराग्य और उपरामता ही बढ़ती है कोई हानि नहीं होती। स्वेच्छासे किया हुआ कुसंग आसक्ति बढ़ानेवाला होता है और उससे पतन होता है। स्त्रीपुत्रादिकी प्राप्तिमें भगवान्की दया है और इन सबके नाशमें भगवान्की विशेष दया है। प्रासिमें दया जैसे राजा साहब किसीको लानेके लिये मोटर भेज दें। हम स्त्री, धन आदिको भगवान्के कार्यमें लगाकर जल्दी प्राप्त कर लें। हम इनको भगवत्प्राप्तिमें सहायक न बनाकर संसारके विषयोंमें देते हैं। लालटेनपर पतंगे गिरकर मर रहे हैं, दयालु आदमी लालटेन बुझा देते हैं। मूर्ख पतंगे दु:खी होते हैं वास्तविकता नहीं समझते, ऐसे ही मूर्ख आदमी नहीं समझते। ऐसी ही बात बीमारी और आरोग्यतामें है। आरोग्यता भगवान्को जल्दी प्राप्त करनेके लिये ही है। बीमारीमें पापोंका फल भोगते हैं। भगवान् याद आते हैं। बीमारी तप है। भगवान् जो कुछ भेजते हैं, सब मंगलमय है। हमारी इच्छाके विरुद्ध जो भी कुछ कार्य होता है सब भगवान्का भेजा हुआ है, हमारे प्रतिकूल है पर भगवान्के अनुकूल है या तो किया हुआ या कराया हुआ है। क्रोधका कोई कारण ही नहीं है। परेच्छा अनिच्छासे जो कुछ भी होता है, सबमें भगवान्का हाथ समझकर क्रोधका त्याग करना चाहिये। सुख-दु:ख, लाभ-हानि, जयपराजय समान समझकर युद्ध कर, इससे तुझे पाप नहीं लगेगा, शुभ अशुभ दोनों प्रकारके बन्धनोंसे मुक्त हो जायेगा। नवीन कर्म करनेमें तो यह बात समझ लेनी चाहिये कि जो अच्छे कर्म हमारेद्वारा होते हैं, वे तो भगवान्की कृपासे होते हैं और जो बुरे कर्म हमारेद्वारा होते हैं वे हमारी आसक्ति और कामनाके कारण होते हैं। अच्छे काम हम महात्माओंके उपदेशसे करते हैं; अच्छे कामका आधार महात्मा हुए, उनकी दयासे ही
हुए। भगवान्के ही रचे हुए शास्त्र हमें विधि-निषेधका ज्ञान करा रहे हैं। सरकार लोगोंको पापसे बचानेके लिये कानून बनाती है। जो कोई भला काम करनेके लिये ईश्वरसे मदद चाहता है, भगवान् उसे मदद देते हैं। सरकारके अनुकूल काम करनेवालेको सरकार मदद देती है, विपरीत करनेवालेको नहीं। काम, क्रोधका जोर आये तो हे नाथ पुकारो, बस डाकू भाग जायेंगे। बिगुल बजा दो चोर, डाकू भाग जायेंगे। बिगुल बजाना-पुकार लगाना है। जिसे काम-क्रोध दबा ले उसे हम बड़ा साधक नहीं मानते।

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    अनुक्रम

  1. सत्संग की अमूल्य बातें

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