गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन आध्यात्मिक प्रवचनजयदयाल गोयन्दका
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इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।
ध्यायतो विषयान् पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।
सङ्गात्सञ्जायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥
क्रोधाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः।
स्मृतिभ्रंशाद बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।।
(गीता २।६२-६३)
विषयों का चिन्तन करनेवाला पुरुष की उन विषयों में आसक्ति हो जाती
है, आसक्तिसे उन विषयोंकी कामना उत्पन्न होती है और कामनामें विघ्न पड़नेसे
क्रोध उत्पन्न होता है। क्रोधसे अत्यन्त मूढ़भाव उत्पन्न हो जाता है,
मूढ़भावसे स्मृतिमें भ्रम हो जाता है, स्मृतिमें भ्रम हो जानेसे बुद्धि
अर्थात् ज्ञानशक्तिका नाश हो जाता है और बुद्धिका नाश हो जानेसे यह पुरुष
अपनी स्थितिसे गिर जाता है।
संसारसे स्नेह हटाकर परमात्मामें लगाना ही एक उपाय है। दृढ़ वैराग्यरूपी
शस्त्रद्वारा इस संसारवृक्षको काट डालें। रागबुद्धिसे कभी चिन्तन ही न करें,
इसको आदर ही न दें। फिर ईश्वरकी शरण होकर ध्यानके द्वारा उनकी खोज करनी
चाहिये।
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- सत्संग की अमूल्य बातें