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गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन

आध्यात्मिक प्रवचन

जयदयाल गोयन्दका

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1007
आईएसबीएन :81-293-0838-x

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इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।



बर्फके ढेलेमें सभी जगह चारों ओर समान रूपसे ठंड और जल होते हुए भी यहाँ एक ढेला टँगा हो तो वह नीचेकी तरफसे ही चूता है, इसीलिये चरणोंकी विशेषता है।

महात्माओंकी जहाँतक दृष्टि जाती है, वहाँतक पवित्रता हो जाती है। यह नेत्रोंकी विशेषता है। यह बात नहीं कही जाती कि जहाँतकका शब्द उन्हें सुन पड़े वहाँतक पवित्र हो जाता है। परमात्माकी प्राप्तिवाले पुरुषोंमें भगवान्की दृष्टिमें कोई भेद नहीं होनेपर भी साधकोंकी दृष्टिमें उन पुरुषोंमें विशेषता है जो प्रचार आदि करते हैं।
भगवान् स्वयं आते हैं या कारक पुरुषको प्रतिनिधि बनाकर भेजते हैं या किसीको अपनी ओरसे अधिकार दे देते हैं अर्थात् किसी वर्तमान महापुरुषको ही विशेष शक्ति दे देते हैं। कारकको उद्धार करनेकी तो आज्ञा है, परन्तु यदि एकदम जगत्का विनाश करना हो तो आज्ञा लेनी पड़ती है।

महात्माओंका यह सारा वर्णन व्यवहार-दृष्टिसे है, पारमार्थिक दृष्टिसे कोई भेद नहीं है। शान्ति, आनन्द सब एक-सा है, उसमें कोई अन्तर नहीं है।

साधक जो ऊपरको उठता है, उसके उठनेमें कई विघ्न आते हैं। समय-समय पर सब नष्ट हो जाते हैं। एक विघ्न तबतक रहता है, जबतक अन्त:करण में अहंकार रहता है। जितना-जितना अहंकार कम होता जाता है, उतना-उतना वह भी कम हो जाता है। वह विघ्न मान-बड़ाई-प्रतिष्ठा की इच्छा है।

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    अनुक्रम

  1. सत्संग की अमूल्य बातें

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