गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन आध्यात्मिक प्रवचनजयदयाल गोयन्दका
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इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।
१७९. बड़ाई करनेवाले हमें चारों तरफसे ठगते हैं सांसारिक धन तथा हमारे मनमें
प्रसन्नता हो जाय तो हमारा परमार्थका धन हर लेते हैं।
१८०. व्यापार
(१) अत्रका व्यापार, रुई, वस्त्र नं० १
(२) धातु, रस, तांबा, पीतल, सोना आदि नं० २
(३) ब्याज (४) नील, लाख, टसर ये अपवित्र व्यापार हैं।
१८१. आत्माकी गतिमें तम्बाकू बहुत नुकसान पहुँचानेवाली है।
१८२. ऐसी चेष्टा करे जिससे अनाजमें जीव नहीं पड़ें, यदि पड़ जायें तो उस समय
बाजारभावसे बेच देना चाहिये। यदि नहीं बेचे तो पाप है, उनमें भी पीसनेवालेको
तथा पेरनेवालेको ज्यादा पाप है।
१८३. चाहे जैसा भी पापी क्यों न ही कल्याण हो सकता है, हिम्मत रखनी चाहिये।
आपलोग अपने साधनके समयको थोड़ा सुधार लें तो कल्याण हो सकता है। ईश्वरकी शरण
लेनेसे काम बना पड़ा है। विचारनेकी बात है कि हमलोगोंका समय प्राय: व्यर्थ
व्यतीत होता है।
१८४. दवाईमें उत्तम (१) काष्ठादि (२) धातुसे बनी औषधि
(३) सौंफ इत्यादिका अर्क निषिद्ध है, मदिरासे नीचे है।
(४) नौसादर घृणित होनेसे त्याज्य है।
१८५. दूध, घी, खोआ गायका सात्विक, भैंस, बकरीका २ नं० है।
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- सत्संग की अमूल्य बातें