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गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन

आध्यात्मिक प्रवचन

जयदयाल गोयन्दका

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1007
आईएसबीएन :81-293-0838-x

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इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।


८८. चलते समय सब जगह परमात्माको देखना चाहिये। इस तरह साधन करनेसे बहुत लाभ होता है। नेत्रोंसे जो चीज देखनेमें आती है वह चीज है नहीं, न वह पदार्थ ही है, न शरीर ही है, वास्तव में एक परमात्मा ही परिपूर्ण है, जो दीखता है सो है नहीं। जैसे-स्वप्नका संसार और मृगतृष्णाका जल तथा तिरमिरे। वास्तव में यह दृष्टान्त भी यहाँ घटता नहीं, एक आनन्दघन ही है, आनन्द है, बोध है, ज्ञान स्वरूप है, इस तरह विचार करनेसे पहले तो आनन्दकी लहर उठती हुई भान होती है। पीछे और साधन बढ़नेसे एक ज्ञानस्वरूप ही रह जाता है।
८९. अपनी तरफसे तो मुसलमानोंको भी किसी तरहकी तकलीफ नहीं पहुँचानी चाहिये। अपनी चाहे जितनी शक्ति हो तो भी उनको कष्ट नहीं देना चाहिये और हिन्दुओंको मदद देनी चाहिये। मुसलमानोंको जबरदस्ती हिन्दू बनाना अन्याय है, वैसे ही हिन्दुओंको मुसलमान बनाना अन्याय है।
९०. गीतामें एक-एक शब्द हीरा मानिककी तरह जड़ा है।
९१. मेरा मत गीता है। गीतासे विरुद्ध चाहे वेद ही क्यों न हो, मुझे मान्य नहीं है।
९२. श्रुति-स्मृति सबका सार गीता है।
९३. अर्जुन भगवान्के अच्छे भक्त थे। भगवान्को साक्षात् जाननेमें कुछ त्रुटि रहनेके कारण ही इतने भारी भक्तमें कुलका मोह हो गया। माया ऐसी चीज है, अद्भुत घटना भी घटा देती है।
९४. भगवान्में प्रेम होनेका उपाय है भगवत्-भक्ति भगवत्-भक्ति ही प्रेमका स्वरूप है। भगवान्में अत्यन्त अनुरागको प्रेम कहते हैं और उस भगवत्-भक्तिके जो भेद हैं उनके पूरी तरह पालनसे भगवान्में अनन्य प्रेम हो जाता है।

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    अनुक्रम

  1. सत्संग की अमूल्य बातें

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