गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन आध्यात्मिक प्रवचनजयदयाल गोयन्दका
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इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।
७१. मनुष्यको ऐसा बनना चाहिये कि पहले स्वयंको भगवत्प्राप्ति हो जाय, बादमें
जिसको प्राप्ति हुई कहे वह सत्य मानी जाय और फिर जिसको कह दे उसे प्राप्त हो
जाय और उसके चिन्तनमात्रसे ही भगवतप्राप्ति हो जाय।
७२. श्रीगीताजीकी महिमा, श्रीगीताजीके प्रचारके बराबर दूसरे काममें लाभ नहीं
है, मेरे जो कुछ लाभ देखनेमें आता है वह श्रीगीताजीका प्रभाव है।
७३. गीता गंगा गायत्री गौ गोविन्दका नाम। इन पाँचोंकी शरणसे पूर्ण होय सब
काम॥ एक-एककी शरणसे भी बेड़ा पार है। इनमें भी गीता और गोविन्दका नाम प्रधान
है।
७४. गीता ज्ञानका प्रवाह है।
७५. भजन-ध्यान करना चाहिये, सात्विक पदार्थ खाने चाहिये,
संयमसे रहना चाहिये, शांतिमय भाव रखना चाहिये।
७६. भजन-प्रेममें विह्वल होकर निष्कामभावसे नित्य-निरन्तर भगवान्का नाम-जप
करनेका नाम भजन है। ७७. ध्यान-भगवान्के साकार अथवा निराकार स्वरूपमें चितकी
एकाग्रताका नाम ध्यान है। भगवान्के सिवाय ध्यान करनेवालेको अपनेआपका भी ज्ञान
न रहे, उसका नाम समाधि है।
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- सत्संग की अमूल्य बातें