विभिन्न रामायण एवं गीता >> श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1 श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1महर्षि वेदव्यास
|
0 |
भगवद्गीता की पृष्ठभूमि
यद्यप्येते न पश्यन्ति लोभोपहतचेतसः।
कुलक्षयकृतं दोषं मित्रद्रोहे च पातकम्।।38।।
कथं न ज्ञेयमस्माभिः पापादस्मान्निवर्तितुम्।
कुलक्षयकृतं दोषं प्रपश्यद्भिर्जनार्दन।।39।।
कुलक्षयकृतं दोषं मित्रद्रोहे च पातकम्।।38।।
कथं न ज्ञेयमस्माभिः पापादस्मान्निवर्तितुम्।
कुलक्षयकृतं दोषं प्रपश्यद्भिर्जनार्दन।।39।।
यद्यपि लोभ से भ्रष्टचित्त हुए ये लोग कुल के नाश से उत्पन्न दोष को और
मित्रों से विरोध करने में पाप को नहीं देखते, तो भी हे जनार्दन! कुल के
नाश से उत्पन्न दोष को जानने वाले हम लोगों को इस पाप से हटने के लिये
क्यों नहीं विचार करना चाहिये?।।38-39।।
अर्जुन के विचार अब कौरवों के अज्ञान की ओर मुड़ जाते हैं, वह सोचने लगता है कि कौरवों का चित्त (यदि हम अपने मन को भी कई स्तरों पर समझें तो चित्त हमारे वैयक्तिक मन का प्राकृतिक भाव समझा जा सकता है जो कि हर व्यक्ति विशेष के लिए नितांत व्यक्तिगत होता है) भ्रष्ट हुआ है अर्थात् अच्छे विचारों से दूर हो गया है अतएव यह स्वाभाविक है कि इस मानसिक अवस्था के कारण बुद्धि से भ्रष्ट हुए लोग कुल के नाश की चिंता करें ऐसी स्थिति में नहीं रह जाते हैं। उसी प्रकार ऐसी दशा को प्राप्त हुए लोग अपने मित्रों अथवा सुहृदों की राय को न मानकर और उनसे भी विरोध कर लेते हैं। परंतु हे जनार्दन, हम तो सुबुद्धि हैं, और हमें तो इस पाप से बचने के लिए अवश्य ही विचार करना चाहिए।
अर्जुन के विचार अब कौरवों के अज्ञान की ओर मुड़ जाते हैं, वह सोचने लगता है कि कौरवों का चित्त (यदि हम अपने मन को भी कई स्तरों पर समझें तो चित्त हमारे वैयक्तिक मन का प्राकृतिक भाव समझा जा सकता है जो कि हर व्यक्ति विशेष के लिए नितांत व्यक्तिगत होता है) भ्रष्ट हुआ है अर्थात् अच्छे विचारों से दूर हो गया है अतएव यह स्वाभाविक है कि इस मानसिक अवस्था के कारण बुद्धि से भ्रष्ट हुए लोग कुल के नाश की चिंता करें ऐसी स्थिति में नहीं रह जाते हैं। उसी प्रकार ऐसी दशा को प्राप्त हुए लोग अपने मित्रों अथवा सुहृदों की राय को न मानकर और उनसे भी विरोध कर लेते हैं। परंतु हे जनार्दन, हम तो सुबुद्धि हैं, और हमें तो इस पाप से बचने के लिए अवश्य ही विचार करना चाहिए।
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book