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स्कंध  : पुं० [सं०] १. मोढ़ा। कंधा। २. वृक्ष के तने का वह ऊपरी भाग जिसमें डालियाँ निकलती हैं। कांड। (स्टेम) ३. कोई ऐसा मूल और बड़ा अंग जिसके साथ दूसरे छोटे अंग या उपांग लगे हों। (स्टेम) ४. शाखा। डाल। ५. समूह। झुंड। ६. वह स्थान जहाँ विक्रय उपयोग आदि के लिए बहुत-सी चीजें जमा रहती हैं। (स्टाक) ७. ग्रंथ का वह विभाग जिसमें कोई पूरा विषय हो। ८. शरीर। देह। ९. युद्ध। लड़ाई। १॰. हिंदू दर्शन शास्त्र में शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध। १२. मार्ग। रास्ता। १३. राज्याभिषेक के समय काम आनेवाली सामग्री। १४. राजा। १५. आचार्य। १६. आपस में होनेवाला करार या संधि। १७. आर्या छंद का एक भेद। १८. सफेद चील।
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स्कंधक  : पुं० [सं०] आर्या गीत या स्वधा नामक छंद का नाम।
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स्कंध-चाप  : पुं० [सं०] विहंगिका। बहँगी।
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स्कंधज  : पुं० [सं०] १. सलई। शल्लकी वृक्ष। २. बड़ का पेड़। वट-वृक्ष।
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स्कंध-देश  : पुं० [सं०] १. कंधा। २. हाथी के शरीर का वह भाग जिस पर महावत बैठता है। ३. तना।
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स्कंध-पंजी  : स्त्री० [सं०] वह पंजी या बही जिसमें स्कंध या भण्डार में रखी हुइ वस्तुओं का विवरण हो। (स्टाक-बुक)
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स्कंध-पथ  : पुं० [सं०] पगडंडी।
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स्कंध-परिनिर्वाण  : पुं० [सं०] बौद्धों के अनुसार शरीर के पाँचों स्कंधो का नाश। मृत्यु।
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स्कंध-पाल  : पुं० [सं०] वह अधिकारी जो किसी स्कंध या भंडार की देख-रेख आदि के लिए नियत हो। (स्टोर कीपर)
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स्कंध-फल  : पुं० [सं०] १. नारियल का पेड़। २. गूलर।
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स्कंध-बीज  : पुं० [सं०] ऐसी वनस्पति या वृक्ष जिसके स्कंध से ही शाखाएँ निकलकर जमीन तक पहुँचती और वृक्ष का रूप धारण करती हों। जैसे–बड़, पाकर आदि।
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स्कंध-मणि  : पुं० [सं०] एक प्रकार का यंत्र या तावीज।
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स्कंध-मार  : पुं० [सं०] बौद्धों के चार मारों अर्थात काम देवों में से एक।
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स्कंधरुह  : पुं० [सं०] वट वृक्ष। बड़ का पेड़।
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स्कंधवाह  : पुं० [सं०] १. वह जो कंधो पर माल ढोता हो। २. ऐसा पशु जो कंधो के बल बोझ खीचता हो। जैसे–बैल, घोड़ा आदि।
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स्कंध-वाहक  : वि० [सं०] कंधे पर बोझ उठानेवाला। जो कंधे पर रखकर बोझ ढोता हो। पुं०=स्कंद-वाह।
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स्कंधा  : स्त्री० [सं०] १. पेड़ की डाल। शाखा। २. लता। बेल।
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स्कंधाक्ष  : पुं० [सं०] कार्तिकेय के अनुसार देवताओं का एक गण।
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स्कंधावार  : पुं० [सं०] १. प्राचीन भारत मे, किसी बड़े राजा की वह सारी छावनी या पड़ाव जिसमें घोड़े, हाथी, सेना, सामंत और छोटे या बाहर से आये हुए राजाओं के शिविर आदि होते थे। २. सेना का पड़ाव। छावनी। ३. सेना। ४. वह स्थान जहाँ यात्री, व्यापारी आदि डेरा डाले पड़े हों।
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स्कंधी  : वि० [सं० स्कंधित] कांड से युक्त। तने से युक्त। पुं० पेड़। वृक्ष।
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स्कंधोपनेय  : पुं० [सं०] राजाओं में होनेवाली एक प्रकार की संधि जिसमें नियत या निश्चित बातें क्रम-क्रम से और कुछ दिनों में पूरी होती थीं। (कौ०)
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स्कंध्य  : वि० [सं०] स्कंध-संबंधी। स्कंध का।
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