शब्द का अर्थ
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सेन :
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पुं० [सं०] १. तन। शरीर। २. जीवन। ३. प्राचीन भारत में, व्यक्तियों के अन्त में लगनेवाला एक पद। जैसे–शूरसेन। ४. चार प्रकार के दिगम्बर जैन साधुओं में से एक। ५. बंगाल का सिद्ध राजवंश जिसने ११ वीं से १५ वीं शताब्दी तक राज्य किया था। ६. बंगाल की वैद्य नामक जाति का अल्ल। वि० १. जिसके सिर पर कोई मालिक हो। सनाथ। २. अधीन। आश्रित। वि० =सेना (फौज)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) पुं० =श्येन (बाज पक्षी)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री० =सेंध।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
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सेनप :
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पुं० [सं० सेनापति] सेनापति। |
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सेनपति :
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पुं०=सेनापति।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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सेनांग :
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पुं० [सं०] १. सेना के चार अंगों (हाथी, घोड़े, रथ और पैदल) में से हर एक । २. सैनिकों का छोटा दल या टुकड़ी। सेना का विभाग। |
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सेना :
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स्त्री० [सं०] १. युद्ध के लिए सिखाए हुए और अस्त्र—शस्त्र से सजे हुए सैनिकों या सिपाहियों का बड़ा दल या समूह। फौज। पलटन। (आर्मी)। २. किसी विशिष्ट उद्देश्य या कार्य की सिद्धि के लिए संघटित किया हुआ कोई बड़ा दल या समूह। जैसे–बालसेना, मुक्ति सेना, वानर सेना आदि। ३. इन्द्र का वज्र।। ४. भाला। ५. साँग। ६. इन्द्राणी। ७. वर्तमान अवसर्पिणी के तीसरे अर्हत् शंभव की माता का नाम। (जैन) ८. प्राचीन भारत में स्त्रियों के नाम के साथ लगनेवाला एक पद। जैसे–बसंतसेना। स० [सं० सेवन] १. सेवा—टहल करना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) मुहा०–चरणसेना=(क) पैर दबाना। (ख) तुच्छ चाकरी या सेवा करना। २. आराधना या उपासना करना। ३. औषध आदि का नियमित रूप से प्रयोग या व्यवहार करना। ४. पवित्र स्थान पर निरन्तर वास करना। जैसे–काशी या वृन्दावन सेना। ५. यों ही किसी चीज पर बराबर पड़े रहना। जैसे–चारपाई सेना। ६. मादा पक्षी का गरमी पहुँचाने के लिए अपने अंड़ो पर बैठना। ७. कोई चीज व्यर्थ लेकर बैठे रहना। (व्यंग्य)। |
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सेना-कक्ष :
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पुं० [सं०] सेना का पार्श्व। फौज का बाजू। |
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सेना-कर्म :
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पुं० [सं०] १. सेना का संचालन तथा व्यवस्था। २. सैनिक सेवा का काम। |
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सेनागोप :
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पुं० [सं०] प्राचीन भारत में, वह व्यक्ति जो सेना रखता था। |
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सेनाग्र :
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पुं० [सं०] सेना का अग्रभाव। फौज का अगला हिस्सा। |
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सेनाग्रणी :
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पुं० [सं०] १. सेना का अग्रणी या प्रधान नायक २. संगीत में कर्नाटकी पद्धति का एक राग। |
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सेनाचर :
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पुं० [सं०] १. सैनिक। २. शिविर। में रहनेवाला सौनिक। |
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सेनाजयंती :
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स्त्री० [सं०] संगीत में कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी। |
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सेनाजीवी (विन्) :
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पुं० [सं०] सेना में रहकर अपनी जीविका चलानेवाला सैनिक। सिपाही। योद्धा। |
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सेनादार :
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पुं० [सं० सेना+फा० दार] सेना—नायक। फौजदार। |
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सेनाधिकारी :
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पुं० [सं०] फौज का अफसर। सेना का अधिकारी। |
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सेनाधिप :
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पुं० [सं०]=सेनापति। |
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सेनाधिपति :
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पुं० [सं०]=सेनापति। |
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सेनाधीश :
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पुं० [सं०] सेनापति। |
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सेनाध्यक्ष :
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पुं० [सं०] फौज का अफसर। सेनापति। |
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सेनानायक :
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पुं० [सं०] सेना का अफसर। फौजदार। |
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सेनानी :
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पुं० [सं०] १. सेनापति। सिपहसालार। २. कार्तिकेय का एक नाम। ३. एक रुद्र का नाम। ४. जूआ खेलने का एक प्रकार का पासा। |
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सेनापति :
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पुं० [सं०] १. सेना का नायक। फौज का अफसर। सिपहसालार। २. कार्तिकेय, जो देवताओं की सेना के प्रधान अधिकारी माने गये हैं। ३. शिव का एक नाम। |
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सेनापत्य :
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पुं० [सं०] सेनापति होने की अवस्था, पद या भाव। |
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सेनापरिधान :
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पुं० [सं०] सेना के साथ रहने वाले आवश्यक व्यक्तियों का सारा सामान। लवाजमा। (एकाउन्टरमेन्ट) |
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सेनापाल :
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पुं० [सं० सेनापाल] सेनापति। |
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सेनाभक्त :
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पुं० [सं०] सेना के लिए रसद और बेगार। (को०) |
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सेनाभक्ति :
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स्त्री० [सं०] प्राचीन भारत में, वह कर जो राजा या राज्य का ओर से सेना के भरण—पोषण के लिए लिया जाता था। |
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सेनामणि :
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पुं० [सं०] संगीत में कर्नटकी पद्धति का एक राग। |
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सेनामनोहरी :
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स्त्री० [सं०] संगीत में कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी। |
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सेनामुख :
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पुं० [सं०] १. सेना का अगला भाग २. सेना का एक विभाग, जिसमें तीन हाथी, ९ घोड़े और १५ पैदल सवार रहते थे। ३. नगर के मुख्य द्वार के सामने का बाहरी रास्ता। |
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सेनायोग :
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पुं० [सं०] सैन्य—सज्जा। फौज की तैयारी। |
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सेनावास :
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पुं० [सं०] १. वह स्थान जहाँ सेना रहती हो। छावनी। २. खेमा। डेरा। शिविर। |
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सेनावाह :
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पुं० [सं०] सेनानायक। |
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सेनाव्यूह :
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पुं० [सं०] युद्धकाल में विभिन्न स्थानों पर की गई सेना के विभिन्न अंगों की स्थापना या नियुक्ति। सैन्य—विन्यास। दे० ‘व्यूह’। |
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सेनि :
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स्त्री०=श्रेणी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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सेनिका :
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स्त्री० [सं० श्येनिका] १. बाज पक्षी की मादा। मादा बाज पक्षी। २. श्येनिका नामक छन्द। |
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सेनी :
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स्त्री० [फा० सीनी] १. तश्तरी। रकाबी। २. एक विशेष प्रकार की नक्काशीदार तश्तरी। स्त्री० [सं० श्येनी] १. बाज पत्री की मादा। मादा बाज पक्षी। स्त्री० [सं० श्रेणी] १. अवली। पक्ति। २. सीढ़ी। ३. दे० ‘श्रेणी’। पुं० [?] विराट् के यहाँ अज्ञातवास करते समय का सहदेव का रखा हुआ कल्पित नाम। |
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सेनुर :
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पुं० =सिंदूर। |
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सेनेट :
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स्त्री० दे ‘सीनेट’। |
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सेनेटर :
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पुं० =सीनेटर। |
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सेनूं :
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पुं० [हिं० नैनूँ का अनु०] नैनूँ की तरह का एक प्रकार का बूटीदार कपड़ा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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