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सूखा  : वि० [सं० शुष्क][स्त्री० सूखी, भाव० सूखापन] १. जिसमें फल या उसका कोई अंश न हो या न रह गया हो। निर्जल। जैसे–सूखा कपड़ा, सूखी नदी। २. जिसमें आर्द्रता या नमी न हो और हवा में नमी हो। ३. जिसमें जीवनी—शक्ति का सूचक हरापन निकल गया हो। जैसे–सूखा चेहरा, सूखा शरीर। ५. जिसमें भावुक्ता, मनोरंजकता, सरसता आदि कोमल गुणों का आभाव हो। जैसे–सूखा व्यवहार, सूखा स्वभाव। (ड्राई, उक्त सभी अर्थो के लिए) ६. कोरा। निरा। जैसे–सूखा अन्नसूखी शेखी। मुहा०–सूखा जवाब देना=साफ इनकार करना। ७. जिसमें जल आदि का योग न हो। जिसमें आवश्यक्ता होने पर भी जल का उपयोग न किया गया हो। जैसे–(क) यह चूरन सूखा ही घोंट आओं। (ख) वह बोतल की सारी शराब सूखी ही पी गया। ८. (बात या व्यवहार) जो दिखाने भर को या नाममात्र को हो। तत्त्व, तथ्य आदि से रहित। उदा०–लेके मैं ओढ़ूँ, बिछाऊँ या लपेटूँ, क्या करूँ। रूखी, फीकी, ऐसी सूखी मेहरबानी आपकी।–इन्शा। पुं० १. पानी न बरसने की दशा या समय। अनावष्टि। खुश्क—साली। (ड्राँट) क्रि० प्र०–पड़ना। २. ऐसा स्थान जहाँ जल न हो। जैसे–सूखे पर नाव लगाना। ३. तम्बाकू का सुखाया हुआ चूरा या पत्ता। ४. एक प्रकार का खाँसी जिसमें कफ नही निकलता और साँस जोरों से चलता है। हब्बा—डब्बा। ५. कोई ऐसा रोग जिससे शरीर जल्दी—जल्दी सूखने लगता हो। क्रि० प्र०–लगना। ६. भाँग की सूखी हुई पत्तियाँ।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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