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सीढ़ी  : स्त्री० [सं० श्रेणी] १. वास्तु कला में वह रचना अथवा रचनाओं का समूह जिस या जिन पर क्रमशः पैर रखकर ऊपर चढ़ा या नीचे उतरा जाता है। २. बाँस के दो बल्लों या काठ के लंबे ठुकड़ों का बना लंबा ढांचा जिसमें थोड़ी-थोड़ी दूर पर पैर रखने के लिए डंडे लगे रहते हैं। और जिसके सहारे किसी ऊँचे स्थान पर चढते हैं। पद-सीढ़ी का डंडा=पैर रखने के लिए सीढ़ी में बना हुआ स्थान। २. लाक्षणिक रूप में, उन्नति या बढ़ाव के मार्ग पर पड़ने वाली विभिन्न स्थितियों में से प्रत्येक स्थिति। मुहा०—सीढ़ी-सीढ़ी चढना=क्रम-क्रम से ऊपर की ओर बढना धीरे-धीरे उन्नति करना। ३. छापे आदि यंत्रो में काठ की सीढ़ी के आकार का वह खंड जिस पर से होकर बेलन आदि आगे-पीछे आते जाते हैं। ४. किसी प्रकार के यंत्र में उक्त आकार प्रकार का कोई अंश या खंड।
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सीढ़ीनुमा  : वि० [हिं०+फा०] जो देखने में सीढ़ियों की तरह बराबर एक के बाद एक ऊँचा होता गया हो। सम-समुन्नत। (टेरेस-लाइक)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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