शब्द का अर्थ
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सात्त्विक :
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वि० [सं० सत्त्व+ठन्—क] १. जिसमें गुण हो। सतोगुणी। २. सत्त्व गुण से संबंध रखनेवाला। ३. सत्य-निष्ठ। ४. प्राकृतिक। ५. वास्तविक। ६. अनुभूति या भावना-जन्य। पुं० १. साहित्य में, सतोगुण से उत्पन्न होनेवाले निसर्ग जाति के आठ अंगविकार—स्तंभ, स्वेद, रोमांच, स्वर-भंग, कंप या वेपथु, वैवर्ण्य, अश्रु-पात और प्रलय। विशेष—वस्तुतः ये बातें अन्तः करण के सत्त्व से ही उत्पन्न होनेवाली मानी गई हैं। इसलिए इन्हें सात्त्विक कहा गया है। बाद में कुछ आचार्यों ने इसमें जृभा नामक नवाँ अंग-विकार भी बढ़ाया था। २. नाट्य-शास्त्र में, स्त्रियों के अंगज और अपलज कुछ शारीरिक गुण तथा विशेषताएँ जो आकर्षक तथा मोहक होती हैं, और इसी लिए जिनकी गणना स्त्रियों के अलंकारों में की गई है। विशेष—हिन्दी में इनका अन्तर्भाव ‘हाव’ में ही होता है। दे० ‘हाव’। ३. नाट्य-शास्त्र में, नाटक के नायक के विशिष्ट गुण जो आठ माने गये हैं। यथा—शोभा, विलास, माधुर्य, दंभीप्य, स्थैर्य, तेज, ललित और औदार्य। ४. नाट्य-शास्त्र में, चार प्रकार के अभिनयों में से एक जिसमें केवल सात्त्विक भावों का प्रदर्शन होता है। ५. काव्य और नाट्य-शास्त्र की सात्वती नाम की वृत्ति। (दे० सात्वती) ६. ब्रह्मा। ७. विष्णु। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
सात्त्विक अलंकार :
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पुं० [सं०] नाट्यशास्त्र में, नायिकाओं के वे क्रियाकलाप तथा सौन्दर्यवर्धक तत्त्व जिनके अंगज, अयत्नज और स्वभावज ये तीन भेद किये गये हैं। (दे० अंगज अलंकार, अयत्नज अलंकार और स्वभाव अलंकार) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
सात्त्विकी :
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स्त्री० [सं० सात्त्विक+ङीप्] १. दुर्गा का एक नाम। २. गौणी भक्ति का एक प्रकार या भेद जिसमें विशुद्ध भक्ति-भाल बनाये रखने के उद्देश्य से ही इष्टदेव का अर्चन और पूजन होता है। वि० सं० ‘सात्विक’ का स्त्री०। |
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