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सांख्य  : वि० [सं०] १. संख्या-संबंधी। जो संख्या के रूप में हो। पुं० १. संख्याएँ आदि गिनने और हिसाब लगाने की क्रिया। २. तर्क-वितर्क या विचार करने की क्रिया। ३. भारतीय हिन्दुओं के छः प्रसिद्ध दर्शनों में से एक दर्शन जिसके कर्ता महर्षि कपिल कहे गये हैं। विशेष—यह दर्शन इसलिए सांख्य कहा गया है कि इसमें २५ मूल तत्त्व गिनाये गये हैं, और कहा गया कि अंतिम या पचीसवें तत्त्व के द्वारा मनुष्य आत्मोपलब्धि या मोक्ष प्राप्त कर सकता है। इसमें आत्मा को ही पुरुष या ब्रह्म माना गया है।
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सांख्य-मार्ग  : पुं० [सं०] सांख्य-योग।
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सांख्य-योग  : पुं० [सं०] ऐसा सांख्य जो अच्छी तरह चित्त शुद्ध करके और पूरा ज्ञान प्राप्त करके सच्चे त्याग के आधार पर ग्रहण किया जाय।
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सांख्यायन  : पुं० [सं० सांख्य+क-फ—आयन] एक प्रसिद्ध वैदिक आचार्य जिन्होंने ऋग्वेद के सांख्य ब्राह्मण की रचना की थी। इनके कुछ श्रौत सूत्र भी हैं। सांख्यायन कामसूत्र इन्हीं का बनाया हुआ माना जाता है।
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सांख्यिक  : वि० [सं०] संख्या या गिनती से संबंध रखनेवाला। संख्या-संबंधी।
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सांख्यिकी  : स्त्री [सं०] १. किसी विषय की (यथा—अपराध, उत्पादन, जन्मरण, रोग आदि की) संख्याएँ एकत्र करके उनके आधार पर कुछ सिद्धांत स्थिर करने या निष्कर्ष निकालने की विद्या। स्थिति-शास्त्र। २. इस प्रकार एकत्र की हुई संख्याएँ। (स्टैटिस्टिक्स)
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