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संचित-कर्म  : पुं० [सं०] १. वैदिक युग में यज्ञ की अग्नि संचित कर लेने पर किया जानेवाला एक विशिष्ट कर्म। २. आज-कल, पूर्व जन्म में किए हुए वह वे सब कर्म जिनका फल इस जन्म में अथवा आनेवाले जन्मों में भोगना पड़ता है।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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