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श्रावण  : वि० [सं० श्रावणी+अण्] १. श्रवण संबंधी। कान संबंधी। २. श्रवण नक्षत्र संबंधी। श्रवण नक्षत्र का। पद—श्रावण वर्ष (देखें)। ३. श्रावण नक्षत्र में उत्पन्न। पुं० १. चांद्र गणना के अनुसार वह महीना जिसकी पूर्णिमा को श्रवण नक्षत्र होता और जो असाढ़ तथा भादों के बीच में पडता है। सावन। २. उक्त मास की पूर्णिमा। ३. श्रवणेंद्रिय का विषय अर्थात् आवाज या शब्द। ४. पुराणानुसार योगियों के योग से होनेवाले पाँच प्रकार के विघ्नों में से एक प्रकार का विघ्न या उपसर्ग जिसमें योगी हजार योजन तक के शब्द ग्रहण करके उनके अर्थ ह़दयंगम करता था। ५. पाखंड।
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श्रावण-वर्ष  : पुं० [सं० मध्य० स०] ज्योतिष की गणना में, एक प्रकार का वर्ष जो उस दिन से माना जाता है जिस दिन श्रवण या घनिष्ठा नक्षत्र में बृहस्पति उदित होता है। फलित ज्योतिष के अनुसार ऐसे वर्ष में साधारण लोग धन-धान्य से सुखी रहते हैं, परन्तु दुष्ट और पाखंडी बहुत ही दुःखी रहते हैं।
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श्रावणिक  : पुं० [सं० श्रावणी+ठन्—इक] गुप्त काल में वह कर्मचारी या सेवक जो न्यायालय में वाद उपस्थित होने पर वादी प्रतिवादी और साक्षी को बुलाने के लिए जोर से आवाज लगाता था।
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श्रावणी  : स्त्री० [सं० श्रावण-ङीष्] श्रावण मास की पूर्णिमा को होनेवाला एक प्रकार का धार्मिक कृत्य जिसमें यज्ञोपवीत का पूजन भी होता है।
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