शब्द का अर्थ
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					शिष					 :
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					पुं०=शिष्य।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री०=सीख। (शिक्षा)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					शिषरी					 :
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					पुं० [सं० शिष√रा (लेना)+क-इनि] अपामार्ग। चिचड़ा। वि०=शिखरी (शिखर से युक्त)।				 | 
			
			
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					शिषा					 :
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					स्त्री०=शिखा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					शिषि					 :
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					पुं०=शिष्य।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					शिषी					 :
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					पुं०=शिखी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					शिष्ट					 :
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					वि० [सं०√शास्+क्त,√शिष+क्त] [भाव० शिष्टता] १. (व्यक्ति) जो एक सामाजिक प्राणी के रूप में दूसरों से सभ्यतापूर्ण तथा सौजन्यपूर्ण व्यवहार करता हो। २. धीर तथा शान्त। ३. बुद्धि-मान। ४. आज्ञाकारी। ५. प्रसिद्ध। पुं० १. मंत्री। वजीर। २. सभासद्। सभ्य।				 | 
			
			
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					शिष्ट-कथ					 :
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					वि० [सं० शिष्ट√कथ्+णिच्-अच्] शिष्टतापूर्वक बात चीत करनेवाला।				 | 
			
			
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					शिष्टता					 :
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					स्त्री० [शिष्ट+तल्-टाप्] १. शिष्ट होने की अवस्था, गुण या भाव। २. शिष्ट आचरण। ३. उत्तमत्ता। श्रेष्ठता। ४. अधीनता।				 | 
			
			
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					शिष्टत्व					 :
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					पुं० [शिष्ट+त्व]=शिष्टता।				 | 
			
			
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					शिष्टमंडल					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] १. शिष्ट व्यक्तियों का दल। २. किसी विशिष्ट कार्य के लिए कहीं भेजा जाने वाला विशिष्ट व्यक्तियों का दल (डेपुटेशन)। जैसे—जापान या रूस से सांस्कृतिक सम्पर्क बढाने के लिए भेजा जानेवाला शिष्ट-मंडल। ३. दे० ‘प्रतिनिधिमंडल’।				 | 
			
			
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					शिष्ट-सभा					 :
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					स्त्री० [सं० ष० त० स०] प्राचीन भारत की राज्यसभा या राज्यपरिषद्।				 | 
			
			
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					शिष्टाचार					 :
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					पुं० [ष० त० स०] १. शिष्टतापूर्ण आचरण और व्यवहार। २. ऐसा आचरण जो साधारणतया एक सामाजिक प्राणी से अपेक्षित हो। ३. ऊपरी या दिखावटी सभ्य व्यवहार। ४. आवभगत। सत्कार।				 | 
			
			
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					शिष्टाचारी (रिन्)					 :
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					पुं० [सं० शिष्टाचार+इनि, शिष्ट-आ√चर् (चलना)+णिनि वा] १. शिष्ट आचरण करनेवाला। २. सदाचारी। ३. विनम्र। ४. किसी समाज, संस्था, कार्यालय आदि द्वारा निर्धारित नियमों के अनुसार आचरण करनेवाला। वि० शिष्टाचार संबंधी।				 | 
			
			
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					शिष्टि					 :
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					स्त्री० [सं०√शास् (अनुशासन करना)+क्तिन्] १. आज्ञा। आदेश। २. शासन। हुकूमत। ३. दंड। सजा। ४. सुधार। ५. सहायता।				 | 
			
			
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					शिष्ण					 :
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					पुं०=शिश्न।				 | 
			
			
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					शिष्य					 :
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					पुं० [सं०√शास् (अनुशासन करना)+क्पष्] [भाव० शिष्यता] १. वह जो शिक्षक से किसी प्रकार की शिक्षा पाता हो। विद्यार्थी। २. किसी की दृष्टि से वह व्यक्ति जिसने उससे विद्या सीखी हो। ३. वह जिसने किसी को अपना गुरु और आदर्श मानकर उससे कुछ पढ़ा या सीखा हो या उसके दिखलाये मार्ग का श्रद्धापूर्वक अनुकरण किया हो। चेला। शागिर्द। (डिसाइपुल)। ४. वह जिसने गुरु आदि से गुरुमंत्र लिया हो। चेला। ५. वह जो अभी हाल में श्रावक बना हो।				 | 
			
			
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					शिष्यता					 :
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					स्त्री० [सं० शिष्य+तल्-टाप्] शिष्य होने की अवस्था या भाव। शिष्यत्व।				 | 
			
			
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					शिष्यत्व					 :
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					पुं० [सं० शिष्य+त्व]=शिष्यता।				 | 
			
			
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					शिष्य-परंपरा					 :
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					स्त्री० [सं० ष० त० स०] किसी गुरु के सम्प्रदाय की परम्परागत शिष्य मंडली।				 | 
			
			
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					शिष्या					 :
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					स्त्री० [सं० शिष्य-टाप्] एक प्रकार का वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में सात गुरु अक्षर होते हैं। शीर्षरूपक। स्त्री० सं० शिष्य का स्त्री।				 | 
			
			
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