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शिखंड  : पुं० [सं० शिखा√अम्+ड, ष० त० स०] १. मोर की पूँछ। मयूर-पुच्छ। २. चोटी। शिखा। ३. काक-पक्ष। काकुल।
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शिखंडक  : पुं० [सं० शिखंड+कन्] १. काक-पक्ष। काकुल। २. मोर की पूँछ।
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शिखंडिक  : पुं० [सं० शखंड+ठन्-इक] १. कुक्कुट। मुर्गा। २. एक प्रकार का मानिक रत्न।
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शिखंडिका  : स्त्री० [सं० शिखंडिक-टाप्] शिखा। चोटी।
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शिखंडिनी  : स्त्री० [सं० शिखंड+इनि-ङीष्] १. मोरनी। मयूरी। २. जूही। ३. मुरगी। वि० स्त्री० शिखंड युक्त।
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शिखंडी  : पुं० [सं० शिखंडिन्] [स्त्री० शिखंडिनी] १. मोर। २. मुरगा। ३. बाण। तीर। ४. शिखा। ५. विष्णु। ६. शिव। ७. बृहस्पति। ८. कृष्ण। ९. द्रुपद का पुत्र जो जन्मतः स्त्री था, पर बाद में तपस्या से पुरुष बन गया था। महाभारत में अर्जुन ने इसी को बीच में खड़ा करके इसकी आड़ से भीष्म को घायल किया था। १॰. फलतः ऐसा व्यक्ति जिसमें पौरुष या बल का अभाव हो, पर जिसकी आड़ लेकर दूसरे लोग अपना काम निकालते हों। ११. पीली जूही। स्वर्ण यूथिका। १२. गुंजा। घुँघची।
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शिख  : स्त्री०=शिक्षा।
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शिखर  : पुं० [सं० शिखा+अरच् अलोप] १. किसी चीज का सबसे ऊपरी भाग। सिरा। चोटी। २. पहाड़ की चोटी। पर्वत-श्रृंग। ३. गुंबद मंदिर मसजिद आदि का ऊँचा नुकीला सिरा। ४. गुंबद। ५. मंडप। ६. मंदिर या मकान के ऊपर का उठा हुआ नुकीला सिरा। कँगूरा कलश। ७. जैनों का एक प्रसिद्ध तीर्थ। ८. एक प्रकार का छोटा रत्न। ९. उँगलियों की एक मुद्रा जो तान्त्रिक पूजन में बनाई जाती है। १॰. प्राचीन काल का एक प्रकार का अस्त्र। ११. लौंग। १२. कुंद की कली। १३. काँख। बगल। १४. लपुलक। रोमांच।
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शिखरणी  : स्त्री० [सं० शिखर√नि+क्विप्-ङीष्]=शिखरिणी।
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शिखर-दशना  : वि० स्त्री० [सं० ब० स०] (स्त्री) जिसके दाँत कुंद की कली के समान हों।
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शिखरन  : पुं० [सं० शिखर√नी (ढोना)+ड, शिखरिणी] दही और चीनी का बना हुआ एक प्रकार का मीठा गाढ़ा पेय पदार्थ जिसमें केशर, कपूर, मेवे आदि पड़े होते हैं।
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शिखर-वासिनी  : स्त्री० [सं० शिखर√वस् (रहना)+णिनि] शिखर पर बसनेवाली दुर्गा।
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शिखर-सम्मेलन  : पुं० [ष० त०] कई राष्ट्रों के सर्वोच्च अधिकारियों अथवा शासकों का ऐसा सम्मेलन जो किसी महत्वपूर्ण राजनीतिक विषय पर विचार करने के लिए हो (सम्मिट कान्फरेन्स)।
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शिखरा  : स्त्री० [सं० शिखर-टाप्] १. मूर्व्वा। मरोड़फली। मुर्रा। २. एक गदा जो विश्वामित्र ने रामचन्द्र को दी थी।
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शिखरिणी  : स्त्री० [सं० शिखर+इनि+हीष्] १. श्रेष्ठ स्त्री। २. शिखरन नामक पेय पदार्थ। ३. १७ अक्षरों की एक वर्णवृत्ति जिसमें छठें और ग्यारहवें वर्ण पर यति होती है। ४. रोमावली। ५. बेला का मोतिया नामक फूल। ६. नेवारी। ७. आम। ८. किशमिश। ९. मूर्वा। मरोड़-फली।
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शिखरी  : पुं० [सं० शिखर+इनि-द्रघी, नलोप] १. पर्वत। पहाड़। २. पहाड़ी। किला। ३. पेड़। वृक्ष। ४. अपामार्ग। चिचड़ा। ५. बंदाक। बाँदा। ६. लोवान। ७. काकड़ा सिंगी। ८. ज्वार। मक्का। ९. कुंदरू नामक गन्ध द्रव्य। १॰. एक प्रकार का मृग। स्त्री० [सं० शिखरा।] एक गदा जो विश्वामित्र ने रामचन्द्र को दी थी। शिखरा।
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शिखांत  : पुं० [सं० शिखा+अंत, ष० त०] शिखा का अंतिम अर्थात् सबसे ऊपरी भाग।
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शिखा  : स्त्री० [सं० शि+खक, पृषो०-टाप्] १. हिन्दुओं में मुंडन के समय सिर के बीचोबीच छोड़ा हुआ बालों का गुच्छा जो फिर कटाया नहीं जाता और बढ़कर लंबी चोटी के रूप में हो जाता है। चुंदी। चोटी। पद-शिखासूत्र=चोटी और जनेऊ जो द्विजों के मुख्य चिन्ह हैं और जिनका त्याग केवल सन्यासियों के लिए विधेय है। २. मोर, मुर्गी आदि पक्षियों के सिर पर उठी हुई चोटी या पंखों का गुच्छा। चोटी। कलगी। ३. आग, दीपक आदि की ऊपर उठनेवाली लौ। ४. प्रकाश की किरण। ५. किसी चीज का नुकीला सिरा। नोक। ६. ऊपर उठा हुआ सिरा। चोटी। ७. पैर के पंजों का सिरा। ८. स्तन का अगला भाग। चूचुक। ९. एक प्रकार का वर्णवृत्त जिसके विषम पदों में २८ लघु मात्राएँ और अन्त में एक गुरु होता है। सम पादों में ३॰ लघु मात्राएँ और अन्त में एक गुरु होता है। १॰. पहने हुए कपड़ें का आँचल। दामन। ११. पेड़ की जड़। १२. पेड़ की डाल। शाखा। १३. श्रेष्ठ वस्तु या व्यक्ति। १४. नायक। सरदार। १५. काम-वासना की तीव्रता के कारण होनेवाला ज्वर। काम-ज्वर। १६. तुलसी। १७. बच। १८. जटामासी। बालछड़। १९. कलियारी नामक विष। लांगली। २॰. मरोड़-फली। मूर्वा।
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शिखाकंद  : पुं० [सं० ब० स०] शलजम। शलगम।
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शिखातरु  : पुं० [सं० ष० त० स०] दीप-वृक्ष। दीवट। दीयर।
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शिखाधर  : पुं० [सं० ष० त० स०] मयूर। मोर। वि० शिखा धारण करनेवाला।
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शिखाधार  : पुं० [सं०]=शिखाधर।
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शिखापित्त  : पुं० [सं० ब० स०] एक प्रकार का रोग जिसमें हाथ-पैर की उँगलियों में सूजन और जलन होती है।
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शिखाभरण  : पुं० [सं० ष० त० स०] १. शिरोभूषण। २. मुकुट।
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शिखामणिक  : पुं० [सं० ष० त० स०] १. सिर पर धारण किया जानेवाला रत्न। २. मुकुट में लगाया जानेवाला रत्न। ३. सर्वश्रेष्ठ पदार्थ या वस्तु।
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शिखामूल  : पुं० [सं० ब० स०] ऐसा कंद जिसके ऊपर पत्तियाँ या पत्तें हों। जैसे—गाजर, शलजम आदि।
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शिखालु  : पुं० [सं० शिखा+आलुच्] मोर की चोटी। कलगी।
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शिखावल  : पुं० [सं० शिखा+मतुप-म=व-नुम्-दीर्घ नलोप] [स्त्री० शिखावती] सिखावाला। पुं० १. अग्नि। २. चित्रक। चीता। ३. केतु ग्रह। ४. मयूर। मोर।
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शिखावृक्ष  : पुं० [सं० ष० त० स०] वह आधार जिस पर दीया रखा जाता है। दीवट।
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शिखावृद्धि  : स्त्री० [सं० ष० त० स०] १. ब्याज का प्रतिदिन बढ़ना। २. ब्याज पर भी जोड़ा जानेवाला ब्याज। सूद-दर-सूद। (कम्पाउंड इस्टरेस्ट)।
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शिखि (खिन्)  : पुं० [सं० शिखा+इन] १. मोर। मयूर। २. तामस मन्वन्तर के इन्द्र का नाम। ३. कामदेव। ४. अग्नि। ५. तीन की संख्या का वाचक शब्द। वि०=शिखावान्।
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शिखि-ग्रीव  : पुं० [सं० शिखि-ग्रीवा,०+अच्, ब० स० वा] १. नीलाथोथा। २. कांत पाषाण नाम का नीला पत्थर।
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शिखिध्वज  : पुं० [सं० ष० त० स०] १. धूम। धूआँ। २. एक प्राचीन तीर्थ। ३. मयूरध्वज राजा का दूसरा नाम।
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शिखिनी  : स्त्री० [सं० शिखा+इनि-ङीप्] १. मयूरी। मोरनी। २. मुरगी। ३. जटाधारी नाम का पौधा।
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शिखि-वाहन  : पुं० [सं० ब० स०] मयूर की सवारी करनेवाले कार्तिकेय।
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शिखींद्र  : पुं० [सं० ष० त०] १. तेदू। (पेड़)। २. आबनूस (वृक्ष)।
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शिखी (खिन्)  : वि० [सं०] [स्त्री० शिखिनी] शिखा या शिखाओं से युक्त। चोटी या चोटियोंवाला। पुं० १. मोर। मयूर। २. मुरगा। ३. एक प्रकार का सारस। बगला। ४. बैल या साँड़। ५. घोड़ा। ६. चित्रक। चीता। ७. अग्नि। ८. तीन की संख्या का वाचक शब्द। ९. दीपक। दीआ। १॰. पित्त। ११. पुच्छल तारा। केतु। १२. मेथी। १३. शतावर। १४. पेड़। वृक्ष। १५. पर्वत। पहाड़। १६. ब्राह्मण। १७. बाण। तीर। १८. जटाधारी साधु। १९. इन्द्र। २॰.एक प्रकार का विष।
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शिखीश्वर  : पुं० [ष० त० स०] कार्तिकेय।
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