शब्द का अर्थ
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					शर्म					 :
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					पुं० [सं०√शृ (हिंसा करना)+मनिन्] १. सुख। आनन्द। २. घर। मकान। वि० परम सुखी। स्त्री०=शरम। विशेष—शर्म और हया का अन्तर जानने के लिए दे० ‘हया’ का विशेष।				 | 
			
			
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					शर्मद					 :
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					वि० [सं० शर्म्म√दा (देना)+क०] [स्त्री० शर्मदा] आनन्द देनेवाला। सुखदायक। पुं० विष्णु का एक नाम।				 | 
			
			
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					शर्मन्					 :
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					पुं०=शम्म।				 | 
			
			
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					शर्मर					 :
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					पुं० [सं० शर्म्म√रा (लेना)+क] एक प्रकार का वस्त्र।				 | 
			
			
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					शर्मरी					 :
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					स्त्री० [सं० शर्म्मर—ङीष्] दारू हल्दी।				 | 
			
			
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					शर्मसार					 :
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					वि० [फा०] [भाव० शर्मसारी] १. लज्जाशील। २. लज्जित। शरमिन्दा।				 | 
			
			
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					शर्मा					 :
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					पुं० [सं० शर्म्मन्, दीर्घ, नलोप] ब्राह्मणों के नाम के अन्त में लगने वाली उपाधि। जैसे—पं० पद्मसिंह शर्मा।				 | 
			
			
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					शर्माऊ, शर्मालू					 :
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					वि०=शरमीला।				 | 
			
			
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					शर्माना					 :
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					अ० स०=शरमाना।				 | 
			
			
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					शर्माशर्मी					 :
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					अ० य०=शरमा-शरमी।				 | 
			
			
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					शर्मिदगी					 :
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					स्त्री०=शरमिंदगी।				 | 
			
			
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					शर्मिष्ठा					 :
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					स्त्री० [सं० शर्म्म+इष्ठन्-टाप्] दैत्यों के राजा वृषपर्वा की कन्या जो शुक्राचार्य की कन्या देवयानी की सखी थी।				 | 
			
			
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					शर्मीला					 :
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					वि०=शरमीला।				 | 
			
			
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