शब्द का अर्थ
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					शम					 :
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					पुं० [सं०√शम् (शान्ति प्राप्त करना)+घञ्] १. शांति। २. मोक्ष। ३. निवृत्ति। छुटकारा। ४. अंतःकरण तथा इन्द्रियों को वश में रखना जो साहित्य में शान्त रस का स्थायी भाव माना गया है। ५. क्षमा। ६. उपकार। ७. तिरस्कार। ८. हस्त। हाथ।				 | 
			
			
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					शमई					 :
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					वि० [अं० शमअ] १. शमा का। २. शमा के रंग का। पुं० शमा अर्थात् मोमबत्ती की तरह का सफेद रंग।				 | 
			
			
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					शमक					 :
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					वि० [सं०√शम्+ण्वुल्-अक] १. शमन करनेवाला (ओषधि या औषध) जो त्वचा की जलन और शोथ की पीड़ा कम करता अथवा उनका शमन करता हो (डिमल्सेन्ट)।				 | 
			
			
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					शमता					 :
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					स्त्री० [सं० शम्+तल्+टाप्] शम का धर्म या भाव। शमत्व।				 | 
			
			
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					शमथ					 :
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					पुं० [सं० शम+अथच्, बाहु] १. शांति। २. मंत्री।				 | 
			
			
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					शमन					 :
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					पुं० [सं०√शम् (शान्त होना)+ल्युट-अन] १. बढ़ हुए उपद्रव, कष्ट, दोष को दबाने की क्रिया। दमन। जैसे—रोग या विद्रोह का शमन। २. शांति। ३. वैद्यक में, ऐसी ओषधि जो बात-संबंधी दोषों को दूर करती है। ४. यम। ५. हिंसा। ६. अनाज। ७. बलि।				 | 
			
			
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					शमनवस्ति					 :
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					स्त्री० [सं० मध्य० स०] एक प्रकार का वस्तिकर्म जिसमें प्रियंगु, मुलेठी नागरमोथा और रसौत को दूध में पीसकर मलद्वार से पिचकारी देते हैं।				 | 
			
			
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					शमनस्वसा					 :
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					स्त्री० [सं० ष० त०] यम की भगिनी अर्थात् यमुना।				 | 
			
			
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					शमनी					 :
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					स्त्री० [सं० शमन+ङीष्] रात। रात्रि।				 | 
			
			
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					शमनीय					 :
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					वि० [सं०√शम् (शान्त होना)+अनीयर्] जिसका शमन किया जा सके या किया जाने को हो।				 | 
			
			
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					शमल					 :
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					पुं० [सं० शम+कलच्] १. विष्ठा। गुह। २. पाप।				 | 
			
			
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					शमला					 :
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					पुं० [अ० मिलाओ, सं० शामुल्य] १. प्राचीन काल का एक प्रकार का पतला शाल जो पगड़ी पर बंद के रूप में बाँधा जाता था। २. पुरानी चाल की एक प्रकार की पगड़ी। ३. पगड़ी पर लगाया जानेवाला तुर्रा। कलँगी।				 | 
			
			
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					शमशम					 :
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					पुं० [सं० मध्यम० स०] शिव।				 | 
			
			
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					शमशीर					 :
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					स्त्री०=शमशेर।				 | 
			
			
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					शमशेर					 :
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					स्त्री० [फा० शम=नाखून+शेर=सिहं] १. वह हथियार जो शेर की पूँछ अथवा नख के समान बीच में कुछ झुका हो अर्थात् तलवार खड्ग आदि । २. तलवार।				 | 
			
			
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					शमांतक					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] कामदेव।				 | 
			
			
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					शमा					 :
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					स्त्री० [अ० शमअ] १. मोम। २. मोमबत्ती। ३. दीया।				 | 
			
			
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					शमादान					 :
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					पुं० [फा०] वह पात्र जिसमें मोमबत्तियां रखकर जलाई जाती हैं।				 | 
			
			
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					शमि					 :
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					स्त्री० [सं० शम+इनि] १. शिंबी धान्य (मूँग, मसूर, सोठ, उड़द, चना, अरहर, मटर, कुलथी, लोबिया इत्यादि)। २. सफेद कीकर। पुं०=यज्ञ।				 | 
			
			
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					शमित					 :
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					भू० कृ० [सं०√शम् (शान्त होना)+क्त] १. जिसका शमन किया गया हो या हुआ हो। दबाया हुआ। २. शान्त।				 | 
			
			
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					शमिता (तृ)					 :
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					पुं० [सं०√शम् (शान्त होना)+तृच्] यज्ञ में पशु की बलि देनेवाला।				 | 
			
			
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					शमिपत्र					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] पानी में होनेवाली लजालू नाम की लता।				 | 
			
			
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					शमी					 :
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					स्त्री० [सं० शमि+ङीष्, शिवा] एक प्रकार का बड़ा कीकर जो पवित्र माना जाता है। सफेद कीकर। वि० [सं० शमिन्] १. शमन करनेवाला। २. शान्त।				 | 
			
			
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					शमीक					 :
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					पुं० [सं० शमी+कन्-शम्+ईकन्] एक प्रसिद्ध क्षमा-शील ऋषि जिनके गले में परीक्षित ने मरा हुआ साँप डाल दिया था। इस पर वे तो कुछ भी न बोले,पर इनके पुत्र श्रृंगी ऋषि ने परीक्षित को शाप दिया जिसके कारण सातवें दिन तक्षक के काटने से परीक्षित की मृत्यु हुई थी।				 | 
			
			
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					शमीगर्भ					 :
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					पुं० [सं० शमीगर्भ+अच्] १. ब्राह्मण। २. अग्नि।				 | 
			
			
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					शमीधान्य					 :
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					पुं० [सं० मयू० स०]=शिबी धान्य।				 | 
			
			
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					शमीर					 :
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					पुं० [सं० शमी+र] शमी वृक्ष।				 | 
			
			
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					शमीरकंद					 :
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					पुं० [सं० मध्यम० स०] वाराही कंद। शूकर कंद।				 | 
			
			
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					शम्स					 :
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					पुं० [अं] १. सूर्य। २. तसबीह में लगा हुआ फुँदना।				 | 
			
			
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					शम्सी					 :
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					वि० [अ०] सूर्य संबंधी। सौर। स्त्री० मुगल शासन में मिलनेवाला छमाही वेतन।				 | 
			
			
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					शमिंदा					 :
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					वि०=शरमिंदा।				 | 
			
			
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