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विश्  : स्त्री० [सं० विश् (प्रवेश करना)+क्विप्] १. प्रजा। २. रिआया। ३. कन्या। लड़की। वि० जिसने जन्म लिया हो।
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विश्रृंखल  : वि० [सं० ब० स०] १. जो श्रृंखलित न हो। बंधनहीन। २. जो किसी प्रकार दबाया या रोका न जा सके। अदम्य।
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विश्रृंखलता  : स्त्री० [सं०] विश्रृंखल होने की अवस्था या भाव।
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विश्रृंग  : वि० [सं० ब० स०] जिसे श्रृंग न हो। श्रृंगरहित।
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विश्पति  : पुं० [सं० ष० त०] [स्त्री० विशपत्नी] १. राजा। २. वैश्यों या व्यापारियों का पंच या मुखिया।
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विश्रंभ  : पुं० [सं०] १. किसी में होनेवाला दृढ़ तथा पूर्ण विश्वास। २. प्रेम। मुहब्बत। ३. रति के समय प्रेमी और प्रेमिका में होनेवाला झगड़ा। ४. वध। हत्या। ५. स्वच्छन्दतापूर्वक घूमना-फिरना।
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विश्रंभी (भिन्)  : वि० [सं० वि√श्रम्भ् (विश्वास करना)+णिनि] १. विश्वास करनेवाला। विश्वास का पात्र। विश्वसनीय। ३. गोपनीय (वार्ता) ४. प्रेम-संबंधी।
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विश्रब्ध  : वि० [सं०] १. जिसका विश्वास किया जा सके २. जो किसी का विश्वास करे। ३. निडर। निर्भय। ४. शान्त और सुशील।
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विश्रब्ध-नवोढ़ा  : स्त्री० [सं०] साहित्य में वह नायिका (विशेषतः ज्ञातयौवना) जिसमें लज्जा और भय पहले से कम हो गया हो और जो प्रेमी की ओर कुछ-कुछ आकृष्ट होने लगी हो।
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विश्रम  : पुं० [सं० वि√श्रम् (श्रम करना)+घञ्, ब० स०]=विश्राम।
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विश्रय  : पुं० [सं० वि√श्रि (आश्रय देना)+अच्] आश्रय। स्थान।
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विश्रयी (यिन्)  : वि० [सं० विश्रय+इनि] आश्रय या सहारा लेनेवाला।
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विश्रव (स्)  : पुं० [सं०] ख्याति। प्रसिद्धि।
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विश्रवा (वस्)  : पुं० [सं०] कुबेर के पिता जो पुलस्त्य के पुत्र थे।
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विश्रांत  : वि० [सं० ब० स०] १. जिसने विश्राम कर लिया हो। २. जो कम हो गया या रुक गया हो। ३. रहित। ४. समाप्त। ५. वंचित। ६. क्लांत।
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विश्रांति  : स्त्री० [सं०] १. विश्राम। आराम २. थकावट। ३. कार्य-काल पूरा होने अथवा और किसी कारण से अपने कार्य, पद, सेवा आदि से स्थायी रूप से हट कर किया जानेवाला विश्राम (रिटायरमेन्ट)।
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विश्राम  : पुं० [सं०] १. ऐसा उपचार क्रिया या स्थिति जिससे श्रम दूर हो। थकावट कम करने या मिटानेवाला काम या बात। आराम। (रेस्ट) २. कर्मचारियों को कुछ नियत घंटों तक काम करने के बाद थकावट और सुस्ती मिटाने तथा जलपान आदि करने के लिए मिलनेवाला अवकाश। ३. ठहरने का स्थान। विश्रामालय। ४. चैन। सुख।
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विश्रामालय  : पुं० [सं० ष० त०] वह स्थान जहाँ यात्री लोग सवारी के इन्तजार में ठहर या रुककर विश्राम करते हों।
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विश्राव  : पुं० [सं० वि√श्रु (सुनना)+घञ्] १. तरल पदार्थ का झरना, बहना या रिसना। क्षरण। २. बहुत अधिक प्रसिद्धि। ३. ध्वनि।
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विश्रावण  : पुं० [सं० वि√श्रु+णिच्+ल्युट-अन] [भू० कृ० विश्रावित] कोई तरल पदार्थ विशेषतः रक्त बहना।
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विश्री  : वि० [सं०] १. जिसकी श्री नष्ट या लुप्त हो गयी हो। श्रीहीन। २. (व्यक्ति) जिसके मुख पर सौन्दर्य की झलक न दिखायी पड़ती हो। भद्दा।
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विश्रुत  : वि० [सं० तृ० त०] [भाव० विश्रुति] १. जिसे लोग अच्छी तरह से सुन चुके हों। २. जिसे सब लोग जान चुकें हों, फलतः प्रसिद्ध।
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विश्रुतात्मा (त्मन्)  : पुं० [सं० विश्रुत+आत्मा, ब० स०] विष्णु।
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विश्रुति  : स्त्री० [सं० वि√श्रु (ख्याति होना)+क्ति] विश्रुत होने की अवस्था या भाव।
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विश्लथ  : वि० [सं० ब० स०] १. बहुत थका हुआ। श्लथ। क्लान्त। २. ढीला। शिथिल। ३. बन्धन से छूटा हुआ। मुक्त।
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विश्लिष्ट  : भू० कृ० [सं० वि√श्लिष (संयुक्त होना)+क्त] १. जिसका विश्लेषण हो चुका हो। २. जो अलग किया जा चुका हो। ३. खिला हुआ। विकसित। ४. प्रकट। व्यक्त। ५. खुला हुआ। मुक्त। ६. थका हुआ। शिथिल।
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विश्लिष्ट-संधि  : स्त्री० [सं० ब० स०] शरीर के अंगों की ऐसी संधि या जोड़ जिसकी हड्डी टूट गई हो। (वैद्यक)।
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विश्लेष  : पुं० [सं० वि√श्लिष्+घञ्] १. अलग या पृथक् होना। २. वियोग। ३. थकावट। शिथिलता। ४. विरक्ति। ५. विकास।
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विश्लेषण  : पुं० [सं०] [भू० कृ० विश्लेषित] १. अलग या पृथक् करना। २. किसी वस्तु के संयोजक अंगों या द्रव्यों को इस उद्देश्य से अलग-अलग करना कि उनके अनुपात कर्तृत्व, गुण, प्रकृति पारस्परिक संबंध आदि का पता चले। ३. किसी विषय के सब अंगों की इस दृष्टि से छान-बीन करना कि उनका तथ्य या वास्तविक स्वरूप सामने आए। (एनैलिसिस उक्त दोनों अर्थों के लिए) ४. वैद्यक में, घाव या फोड़े में वायु के प्रकोप से होनेवाली एक प्रकार की पीड़ा।
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विश्लेषणात्मक  : वि० [सं० विश्लेषण+आत्मक] (विचार या निश्चय) जो विश्लेषणवाली प्रक्रिया के अनुसार हो। ‘आश्लेषात्मक’ का विपर्याय। (एनैलिटिकल)।
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विश्लेषी (षिन्)  : वि० [सं० विश्लेष+इनि] १. विश्लेषण करनेवाला। २. वियुक्त।
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विश्लेष्य  : वि० [सं०] जिसका विश्लेषण होने को हो या हो रहा हो।
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विश्वंतर  : पुं० [सं० विश्व√तृ (पार करना)+खच्, मुम्] भगवान् बुद्ध का एक नाम।
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विश्वंभर  : वि० [सं० विश्व√भृ (भरण पोषण करना)+खच्, मुम्] [स्त्री० विश्वंभरा] विश्व का भरण-पोषण करनेवाला। पुं० १. विष्णु। २. इन्द्र। ३. अग्नि। ४. एक उपनिषद् का नाम।
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विश्वंभरा  : स्त्री० [सं०] पृथ्वी।
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विश्वंभरी  : स्त्री० [सं०] १. पृथ्वी। २. संगीत में कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी।
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विश्व  : वि० [सं०√विश् (प्रवेश करना)+क्वन्] १. कुल। समस्त। पुं० १. सृष्टि का वह सारा अंश जो हमें दिखाई देता है। २. ब्रह्मांड। समस्त सृष्टि। ३. जगत्। संसार ४. विष्णु ५. शिव। ६. जीवात्मा। ७. देह। शरीर।
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विश्वक  : वि० [सं०] १. विश्व-संबंधी। २. जिसका प्रभाव, प्रसार आदि विश्व-व्यापी हो (यूनीवर्सल)।
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विश्वकर्ता  : पुं० [सं० ष० त०] विश्व का स्रष्टा। ईश्वर।
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विश्वकर्मा (र्म्मन्)  : पुं० [सं० ब० स०] १. समस्त संसार की रचना करनेवाला अर्थात् ईश्वर। २. ब्रह्मा। ३. सूर्य। ४. शिव। ५. वैद्यक में शरीर की चेतना नामक धास्तु। ६. एक शिल्पकार जो देवताओं के शिल्पी और वास्तु कला के सर्वश्रेष्ठ आचार्य माने गए है। ७. इमारत का काम करनेवाले राज, बढ़ई लोहार आदि।
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विश्वकाय  : पुं० [सं० ब० स०] सारा विश्व जिसका शरीर हो, अर्थात् विष्णु।
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विश्वकाया  : स्त्री० [सं० विश्वकाय+टाप्] दुर्गा।
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विश्वकार  : पुं० [सं० ष० त०] विश्वकर्मा।
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विश्वकार्य  : पुं० [सं० ब० स०] सूर्य की सात किरणों का या रश्मियों में से एक।
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विश्वकृत्  : पुं० [सं०] १. विश्व का निर्माता अर्थात् ईश्वर। २. विश्वकर्मा।
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विश्वकेतु  : पुं० [सं० ष० त०] (कृष्ण के पौत्र) अनिरुद्ध।
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विश्वकोश  : पुं० [सं०] ऐसा कोश या भंडार जिसमें संसार भर के पदार्थ संगृहीत हो। २. ऐसा विशाल ग्रन्थ जिसमें ज्ञान-विज्ञान की समस्त शाखाओं, प्रशाखाओं तथा महत्वपूर्ण बातों का विश्लेषण तथा विवेचन होता है (एनसाइक्लोपीडिया) विशेष—विश्व कोश में विभिन्न विषयों के बड़े-बड़े विद्वानों के लिखे हुए ग्रन्थों,निबंधों,विवेचनों आदि के सारांश संकलित होते हैं और उन विषयों के शीर्षक प्रायः अक्षर-क्रम से लगे रहते हैं।
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विश्वगंध  : पुं० [सं० ब० स०] १. बोल (गंध द्रव्य) २. प्याज। वि० जिसकी गंध बहुत दूर-दूर तक फैलती हो।
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विश्वगंधा  : स्त्री० [सं० विश्वगंध+टाप्] पृथ्वी।
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विश्वग  : वि० [सं० विश्व√गम् (जाना)+ड] विश्व भर में जिसका गमन या गति हो। पुं० ब्रह्मा।
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विश्वगर्भ  : पुं० [सं० ब० स०] १. विष्णु। २. शिव।
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विश्वगुरु  : पुं० [सं० ष० त०] विष्णु।
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विश्व-गोचर  : वि० [सं०] जिसे सब लोग जान या देख सकते हों।
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विश्वगोप्ता  : पुं० [सं० ष० त०] १. विष्णु। २. इन्द्र। २. विश्वम्भर।
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विश्व-चक्र  : पुं० [सं० ब० स०] पुराणानुसार बारह प्रकार के महादानों में से एक। इसमें एक हजार पल का सोने का चक्र बनवाकर दान किया जाता है।
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विश्व-चक्षु (ष्)  : पुं० [सं०] ईश्वर।
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विश्वजित्  : वि० [सं०] विश्व को जीतनेवाला। पुं० १. वह जिसने सारे विश्व को जीत लिया हो। २. एक प्रकार की अग्नि। ३. एक प्रकार का यज्ञ। ४. वरुण का पाश।
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विश्वजीव  : पुं० [सं० ष० त०] ईश्वर।
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विश्वतः (तस्)  : अव्य० [सं० विश्व+तसिल्] १. विश्व भर में सब कहीं। सर्वत्र। २. सारे विश्व के विचार से।
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विश्वतोया  : स्त्री० [सं०] गंगा नदी।
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विश्वत्रय  : पुं० [सं०] आकाश, पाताल और मर्त्य लोक।
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विश्वदेव  : पुं० [सं०] देवताओं का एक वर्ग जिसकी पूजा नांदी-मुख श्राद्ध में की जाती हैं।
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विश्वदैवत  : पुं० [सं०] उत्तराषाढ़ नक्षत्र जिसके देवता विश्वदेव माने जाते हैं।
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विश्वधर  : पुं० [सं० विश्व√धृ (धारण करना)+अच्] विश्व को धारण करनेवाले विष्णु।
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विश्वधाम (न्)  : पुं० [सं०] ईश्वर।
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विश्वधारिणी  : स्त्री० [सं०] पृथ्वी।
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विश्वधारी (रिन)  : पुं० [सं०] विष्णु।
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विश्वनाथ  : पुं० [सं०] १. विश्व के स्वामी, शंकर। महादेव। २. काशी का एक प्रसिद्ध ज्योतिलिंग
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विश्वनाभ  : पुं० [सं०] विष्णु।
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विश्व-नाभि  : स्त्री० [सं०] विष्णु का चक्र जो विश्व की नाभि के रूप में माना जाता है।
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विश्वपति  : पुं० [सं०] १. ईश्वर। २. श्रीकृष्ण।
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विश्व-पदिक  : वि० [सं०] (रोग या विकार) जो बहुत बड़े भू-भाग सारे महाद्वीप या सारे संसार में फैला या फैल सकता हो (पैण्डेमिक)
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विश्व-प्रकाश  : पुं० [सं० ष० त०] सूर्य।
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विश्वप्स (प्सन्)  : पुं० [सं० विश्व√प्सा (खाना)+कनिन्] १. अग्नि। २. चन्द्रमा। ३. सूर्य। ४. देवता। ५. विश्वकर्मा।
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विश्व-बंधु  : वि० [सं० ष० त०] जो विश्व का मित्र हो। पुं० शिव।
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विश्वबाहु  : पुं० [सं०] १. विष्णु। २. महादेव।
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विश्व-बीज  : पुं० [सं० ष० त०] विश्व की मूल प्रकृति, माया।
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विश्वभद्र  : पुं० [सं० ब० स०] सर्वतोभद्र (चक्र)।
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विश्व-भर  : वि० [सं० ष० त०] जिससे विश्व उत्पन्न हुआ हो। पुं० ब्रह्मा।
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विश्वभुज्  : पुं० [सं० विश्व√भुज् (भोग करना)+क्विप्] १. ईश्वर। २. इन्द्र।
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विश्वमाता (तृ)  : स्त्री० [सं० ष० त०] दुर्गा जो विश्व की माता कही गई है।
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विश्वमुखी  : स्त्री० [सं० ब० स०] पार्वती।
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विश्वमूर्ति  : वि० [सं० ब० स०] जो सब रूपों में प्याप्त हो। पुं० विष्णु।
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विश्व-योनि  : पुं० [सं० ष० त०] ब्रह्मा।
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विश्वरुचि  : पुं० [सं०] एक देव-योनि।
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विश्वरुची  : स्त्री० [सं०] अग्नि की सात जिह्वाओं में से एक।
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विश्वरूप  : पुं० [सं०] १. विष्णु। २. शिव। ३. भगवान् श्रीकृष्ण का वह स्वरूप जो उन्होंने गीता का उपदेश करते समय अर्जुन को दिखलाया था। ४. एक प्राचीन तीर्थ।
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विश्वरूपी (पिन्)  : पुं० [सं० विश्वरुप+इनि] विष्णु।
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विश्वलोचन  : पुं० [सं०] १. सूर्य। २. चन्द्रमा।
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विश्ववाद  : पुं० [सं०] १. दार्शनिक क्षेत्र का यह मतवाद कि विज्ञान की दृष्टि से यह सिद्ध किया जा सकता है कि सारा विश्व एक स्वतंत्र सत्ता है और कुछ निश्चित नियमों के अनुसार उसका निरन्तर विकास होता चलता है (कॉजमिस्म) २. यह सिद्धान्त कि तत्वज्ञान संबंधी सभी बातें सारे विश्व में समान रूप से पाई जाती हैं। (युनिवर्सलिज़्म)।
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विश्ववास  : पुं० [सं०] संसार। जगत्।
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विश्वविद्  : वि० [सं० विश्व√विद् (जानना)+क्विप्] १. जो विश्व की सब बातें जानता हो। २. बहुत बड़ा पंडित। पुं० ईश्वर।
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विश्वविद्यालय  : पुं० [सं०] वह बहुत बड़ी शैक्षणिक संस्था जिसके अन्तर्गत या अधीन सभी प्रकार के विषयों की सर्वोच्च शिक्षा देनेवाले बहुत से महाविद्यालय हों और जिसे, अपने स्नातकों को शिक्षा संबंधी उपाधियाँ देने का अधिकार हो। (यूनिवर्सिटी)।
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विश्वव्यापक  : वि० पुं० [सं०] विश्वव्यापी। (दे०)
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विश्वव्यापी  : वि० [सं० विश्वव्यापिन्] १. जो सारे विश्व में व्याप्त हो। २. जो संसार या उसके अधिकतर भागों में व्याप्त हो। पुं० ईश्वर या परमात्मा।
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विश्वश्रवा (वस्)  : पुं० [सं०] रावण के पिता का नाम।
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विश्वसन  : पुं० [सं० वि√श्वस् (जीवन देना)+ल्युट्-अन] १. विश्वास। २. ऋषियों और मुनियों के रहने का स्थान।
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विश्वसनीय  : वि० [सं० वि√श्वस् (विश्वास करना)+अनीयर्] १. (व्यक्ति) जिस पर विश्वास किया जा सकता हो। २. (बात) जिस पर विश्वास किया जाना चाहिए।
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विश्व-साक्षी (क्षिन्)  : पुं० [सं०] ईश्वर।
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विश्वसित  : भू० कृ० [सं० वि√श्वस् (विश्वास करना)+क्त] १. जिस पर विश्वास किया गया हो। २. विश्वास-पात्र। ३. जिसे अपने पर पूर्ण विश्वास हो।
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विश्व-सृज्  : पुं० [सं०] विश्व की सृष्टि करनेवाला ईश्वर या ब्रह्मा।
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विश्वस्त  : भू० कृ० [सं० वि√श्वस् (विश्वास करना)+क्त] १. जिसका विश्वास किया जाय। २. जिसके मन में विश्वास हो चुका हो।
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विश्वहर्ता (र्तृ)  : पुं० [सं० ष० त०] शिव।
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विश्व-हेतु  : पुं० [सं०] विश्व की सृष्टि करनेवाले विष्णु।
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विश्वांड  : पुं० [सं० कर्म० स०] ब्रह्माण्ड।
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विश्वा  : स्त्री० [सं०√विश् (प्रवेशकरना)+क्वन्+टाप्] १. दक्ष की एक कन्या जो धर्म को ब्याही थी और जिससे वसु, सत्य, क्रतु आदि दस पुत्र उत्पन्न हुए थे। २. बीस पल की एक प्राचीन तौल या मान। ३. पीपल। ४. सोंठ। ४. अतीस। ६. शतावर। ७. चोरपुष्पी। शंखिनी।
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विश्वाक्ष  : वि० [सं० विश्व+अक्ष] जिसकी दृष्टि पूर्ण विश्व पर हो। पुं० ईश्वर।
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विश्वातीत  : वि० [सं० ष० त०] १. जिसे विश्व प्राप्त न कर सकता हो। २. विश्व से अलग या दूर। पुं० ईश्वर।
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विश्वात्मा (त्मन्)  : पुं० [सं० ब० स० विश्व+आत्मन्] १. ब्रह्मा। २. विष्णु। ३. शिव। ४. सूर्य।
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विश्वाद्  : पुं० [सं० विश्व√अद् (खाना)+क्विप्] अग्नि।
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विश्वाधार  : पुं० [सं० ष० त०] विश्व का आधार अर्थात् परमेश्वर।
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विश्वानर  : वि, पुं०=वैश्वानार।
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विश्वामित्र  : वि० [सं० ब० स०, विश्व+मित्र] जो विश्व का मित्र हो। पुं० गाधि नामक कान्यकुब्ज नरेश के पुत्र जिन्होंने घोर तपस्या से ब्राह्मणत्व प्राप्त किया था। विशेष—भगवान राम ने इन्हीं की आज्ञा से ताड़का का वध किया था।
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विश्वामृत  : वि० [सं० विश्व+अमृत] जिसकी कभी मृत्यु न हो। अमर।
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विश्वायन  : पुं० [सं० ष० त०] १. वह जो विश्व की सब बातें जानता हो। सर्वज्ञ। २. ब्रह्मा।
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विश्वावसु  : पुं० [सं० ब० स०] १. विष्णु। २. साठ संवत्सरों में से एक। स्त्री० रात्रि। रात।
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विश्वावास  : पुं० [सं० ष० त०] ईश्वर। परमात्मा।
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विश्वाश्रय  : पुं० [सं० ष० त०] विश्व को आश्रय देनेवाला अर्थात् ईश्वर।
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विश्वास  : पुं० [सं० वि√श्वस्+घञ्] १. किसी बात, विषय, व्यक्ति आदि के संबंध में मन में होनेवाली यह धारणा कि यह ठीक, प्रामाणिक या सत्य है, अथवा उसे हम जैसा समझते हैं, वैसा ही है, उससे भिन्न नहीं है। एतबार। यकीन। २. धार्मिक क्षेत्र में, ईश्वर, देवता, मत्त सिद्धान्त आदि के संबंध में होनेवाली उक्त प्रकार की धारणा। (बिलीफ़) मुहा०— (किसी पर) विश्वास जमना या बैठना=विश्वास का दृढ़ रूप धारण करना। (किसी को) विश्वास दिलानाकिसी के मन में उक्त प्रकार की धारणा दृढ़ करना। ३. केवल अनुमान के आधार पर होनेवाला मन का दृढ़ निश्चय। जैसे—मेरा तो यह दृढ़ विश्वास है कि वह अवश्य आएगा।
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विश्वास-घात  : पुं० [सं० ष० त०, तृ० त०] १. किसी को विश्वास दिला कर उसके प्रति किया जानेवाला द्रोह। २. विश्वसनीय व्यक्ति द्वारा अपने मित्र या स्वामी के हितों के विरुद्ध किया हुआ ऐसा बुरा काम जिससे उसका विश्वास जाता रहे।
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विश्वास-घातक  : वि० [सं० विश्वास√हन् (मारना)+ण्वुल्, अक, ब० स०] विश्वासघात करनेवाला (व्यक्ति)।
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विश्वास-पात्र  : वि० [सं०] (व्यक्ति जिसका विश्वास किया जाता हो और जो विश्वास किये जाने के योग्य हो। विश्वसनीय।
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विश्ववासिक  : वि० [सं० वैश्वासिक]=विश्वसनीय।
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विश्वासित  : वि० [सं० विश्वास+इचत्] जिसे विश्वास दिलाया गया हो।
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विश्वासी (सिन्)  : वि० [सं० विश्वास+इनि] १. जो किसी एक पर विश्वास करता हो। विश्वास करनेवाला। २. जिसका विश्वास किया जा सके।
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विश्वास्य  : वि० [सं० वि√श्वस्+णिच्+यत्] विश्वास के योग्य। विश्वसनीय।
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विश्वेदेव  : पुं० [सं०] १. अग्नि। २. वैदिक युग में इन्द्र, अग्नि आदि ऐसा नौ देवताओं का एक वर्ग जो विश्व के अधिपति और लोकरक्षक माने जाते थे। विशेष—अग्नि-पुराण में इनकी संख्या दस कही गई है। यथा—क्रतु, दक्ष, वसु, सत्य, काम, काल, ध्वनि, रोचक, आद्रव और पुरूरवा। नांदीमुख श्राद्ध में इन्हीं का पूजन होता है।
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विश्वेश  : पुं० [सं० विश्व-ईश, ष० त०] १. शिव। २. विष्णु। ३. उत्तराषशाढ़ा नक्षत्र जिसके अधिपति विश्व नामक देवता कहे गए हैं।
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विश्वेश्वर  : पुं० [सं० विश्व+ईश्वर, ष० त०] १. ईश्वर। २. शिव की एक मूर्ति।
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