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विवर्ण  : वि० [सं०] १. जिसका कोई रंग न हो। रंगहीन। २. जिसका रंग बिगड़ गया हो। ३. कांति-हीन। ४. रंग-बिरंगा। ५. जो किसी वर्ण के अन्तर्गत न हो, अर्थात् जाति-च्युत। पुं० साहित्य में एक भाव जिसमें भय, मोह, क्रोध, लज्जा आदि के कारण नायक और नायिका के मुख का रंग बदल जाता है।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
विवर्णता  : स्त्री० [सं०] विवर्ण होने की अवस्था या भाव। वैवर्ण्य।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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