शब्द का अर्थ
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विध :
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पुं०=विंध्य (विंध्याचल)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
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विध्याद्रि :
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पुं० [सं० मध्यम० स०] विंध्य पर्वत। |
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विधंसा :
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पुं०=विध्वंस। वि०=विध्वस्त। |
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विधंसना :
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स० [सं० विध्वसंन] नष्ट करना या बरबाद करना। |
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विध :
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पुं० [सं० विधि] ब्रह्मा। स्त्री०=विधि।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
विधत्री :
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स्त्री० [सं० विद्या+ष्ट्रन्+ङीष्] ब्रह्मा की शक्ति, महासरस्वती। |
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विधन :
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वि० [सं० ब० स०] धन-हीन। |
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विधना :
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स० [सं० विधि] १. प्राप्त करना। २. अपने साथ लगना। ऊपर लेना। |
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विधमन :
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पुं० [सं० वि√ध्मा (चौंकना)+ल्यु-अन, वि√ध्मा (धौंकना)+शतृ वा] धौंकनी से हवा करना। धौंकना। |
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विधर :
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अव्य,=उधर (उस तरफ)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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विधरण :
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पुं० [सं०] [भू० कृ० विधृत] १. पकड़ना। २. आज्ञा न मानना। |
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विधर्त्ता (तृ) :
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पुं० [सं० वि√धृ (धारण करना)+तृच्] विधरण करनेवाला। |
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विधर्म :
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वि० [सं०] १. धर्मशास्त्र की आज्ञा, विधि आदि से बाहर का। अधार्मिक। धर्महीन। २. जिससे किसी की धार्मिक भावना को आघात लगता हो। ३. अन्यायपूर्ण। ४. अवैध। पुं० १. किसी की दृष्टि से उसके धर्म से भिन्न धर्म। २. ऐसा कार्य जो किया तो गया हो अच्छी भावना से, परन्तु जो वस्तुतः धर्मशास्त्र के नियम के विरुद्ध हो। |
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विधर्मक :
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वि० [सं०] १. विधर्म-संबंधी। विधर्म का। २. विधर्म के रूप में होनेवाला। ३. दे० ‘विधर्मी’। |
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विधर्मिक :
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वि० [सं०]=विधर्मक। |
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विधर्मी (र्मिन्) :
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पुं० [सं० विधर्म+इनि] १. वह जो अपने धर्म के विपरीत आचरण करता हो। धर्म-भ्रष्ट। २. जो किसी दूसरे धर्म का अनुयायी हो। ३. जिसने अपना धर्म छोड़कर कोई दूसरा धर्म अंगीकृत कर लिया हो। |
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विधवा :
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स्त्री० [सं०] १. वह स्त्री जिसका धव अर्थात् पति मर गया हो। पतिहीन। राँड़। २. विशेषतः वह स्त्री जिसने पति के देहांत के उपरांत फिर और विवाह न किया हो। |
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विधवापन :
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पुं० [सं० विधवा+हिं० पन (प्रत्यय)] वह अवस्था जिसमें विधवा बिना विवाह किये ही अपना जीवन यापन करती है। रँड़ापा। वैधव्य। |
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विधवाश्रम :
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पुं० [सं० ष० त०, विधवा+आश्रम] वह स्थान जहाँ अनाथ विधवाओं को रखकर उनका पालन-पोषण किया जाता हो। |
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विधाँसना :
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स० [सं० विध्वंसन] १. विध्वस्त या नष्ट करना। बरबाद करना। २. अस्त-व्यस्त या गड़बड़ करना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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विधा :
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स्त्री० [सं०] १. ढंग। तरीका। रीति। २. प्रकार। भाँति। ३. हाथी, घोड़े आदि का चारा। ४. वेधन। ५. भाड़ा। किराया। ६. मजदूरी। ७. कार्य। क्रिया। ८. उच्चारण। |
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विधातव्य :
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वि० [सं० वि√धा (धारण करना)+तव्यत्] १. जिसके संबंध में विधान हो सकता हो या होने के लिए हो। २. (काम) जो किया जा सकता हो या आवश्यक रूप से किया जाने को हो। कर्त्तव्य। |
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विधाता (तृ) :
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वि० [सं० वि√धा+तृच्] [स्त्री० विधातृका, विधात्री] १. विधान करनेवाला। २. रचने-वाला। बनानेवाला। ३. प्रबंध या व्यवस्था करनेवाला। पुं० १. सृष्टि की रचना करनेवाली शक्ति। २. ब्रह्मा। ३. विष्णु। ४. शिव। ५. कामदेव। ६. विश्वकर्मा। स्त्री० मदिरा। शराब। |
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विधातु :
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स्त्री० दे० ‘असार’ (धातुओं का)। |
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विधात्री :
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वि० स्त्री० [सं० विधातृ+ङीष्] १. विधान करनेवाली। २. रचनेवाली। बनानेवाली। ३. प्रबन्ध या व्यवस्था करनेवाली। स्त्री० पिप्पली। पीपल। |
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विधान :
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पुं० [सं० वि√धा+ल्युट-अन] [वि० वैधानिक] १. किसी कार्य के संबंध में किया जाने वाला आयोजन और उसका प्रबंध या व्यवस्था। २. कोई चीज तैयार करने के लिए बनाना। निर्माण। रचना। सर्जन। ३. किसी चीज या बात का किया जानेवाला उपयोग, प्रयोजन या व्यवहार। जैसे—धातु में प्रत्यय का विधान करना। ४. यह कहना या बतलाना कि अमुक काम या बात इस प्रकार होनी चाहिए। ढंग, प्रणाली या रीति बतलाना। ५. बतलाया हुआ ढंग,प्रणाली या रीति विशेषतः धार्मिक रीति। ६. कायदा। नियम। ७. कही या बतलाई हुई ऐसी बात जो आदेश के रूप में हो और जिसका अनुसरण या पालन आवश्यक और कर्तव्य के रूप में हो। जैसे—धर्मशास्त्र का विधान। ८. आजकल राज्य या शासन के द्वारा जारी किया हुआ कोई कानून जिसमें किसी विषय की विधि और निषेध के संबंध रखनेवाली सभी धाराओं के रूप में लिखी रहती है। कानून। (लाँ) ९. नाटक में विभिन्न भावनाओं,विचारों आदि में होनेवाला द्वन्द्व और संघर्ष। १॰. अनुमति। आज्ञा। 1१. अर्चन। पूजा। १२. धन-संपत्ति। १३. किसी को हानि पहुँचाने के लिए किया जानेवाला दांव-पेंच या शत्रुता का व्यवहार। शत्रुतापूर्ण आचरण। १४. शब्दों में उपसर्ग,प्रत्यय आदि लगाने की क्रिया या नीति। १५. हाथी को पस्त करने के लिए खिलाया जानेवाला चारा। |
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विधानक :
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पुं० [सं० विधान+कन्] १. विधान। २. वह जो विधान का ज्ञाता हो। वि० विधान करनेवाला। |
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विधान-परिषद् :
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स्त्री० [सं०] राज्य की विधान सभा से भिन्न दूसरी बड़ी विधि-निर्मात्री सभा जिसका चुनाव परोक्ष रीति से होता है। (लेजिसलेटिव कौंसिल)। |
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विधान-मंडल :
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पुं० [सं०] राज्य के संबंध में विधान बनानेवाले दोनों अंगों का सामूहिक नाम और रूप। (लेजिस्लेचर)। विशेष—इसके दो अंग या सदन हैं—विधान परिषद् और विधानसभा। |
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विधान-सप्तमी :
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स्त्री० [सं०] माघ शुक्ल सप्तमी। |
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विधान-सभा :
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स्त्री० [सं०] किसी देश या राज्य की वह सभा या संस्था, विशेषतः निर्वाचित प्रतिनिधियों की सभा या संस्था जिसे कानून या विधान बनाने का अधिकार होता है (लेजिसलेटिव एसेंबली)। |
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विधानांग :
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पुं० [सं०]=विधान-मंडल। |
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विधानी :
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वि० [सं० विधान+इनि, अथवा विधान+हिं० ई (प्रत्यय)] १. विधान जाननेवाला। २. विधान या विधिपूर्वक काम करनेवाला। |
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विधायक :
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वि० [सं० वि√धा+ण्वुल्-अक, युक्] [स्त्री० विधायिका] १. विधान करनेवाला। जैसे—एकता का विधायक। कार्य का सम्पादन करनेवाला। २. निर्माण या रचना करनेवाला। ३. निर्माण के रूप में होनेवाला। रचनात्मक। ४. प्रबंध या व्यवस्था करनेवाला। पुं० विधान सभा (या परिषद्) का सदस्य। |
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विधायन :
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पुं० [सं०] १. विधान करने या बनाने की क्रिया या भाव। २. आज-कल विशेष रूप से शासन अथवा विधान-मंडल द्वारा कोई विधान (कानून)। बनाने की क्रिया या भाव। (एनैक्टमेन्ट) ३. उक्त प्रकार से बने हुए अधिनियम विधियाँ आदि। |
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विधायन-संग्रह :
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पुं० [सं०] किसी विषय, विभाग आदि के कार्य-संचालन से संबद्ध नियमों, निर्देशों आदि का संग्रह। संहिता। (कोड) जैसे—बंगाल विधायन संग्रह। |
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विधायिका :
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वि० स्त्री० [सं०] विधान-निर्मात्री। संस्था। जैसे—विधान परिषद् विधान सभा, लोक सभा या राज्य सभा आदि। |
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विधायी (यिन्) :
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वि० [सं० वि√धा (धारण करना)+णिनि, युक्] [स्त्री० विधायिनी] विधान करने या बनानेवाला। विधायक। (दे०) पुं० १. निर्माण करनेवाला। २. संस्थापक। |
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विधारण :
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पुं० [सं० वि√धृ (धारण करना)+णिच्+ल्युट-अन] १. रोकना। २. वहन करना। |
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विधि :
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स्त्री० [सं०] १. कोई काम करने का ठीक ढंग या रीति, क्रिया व्यवस्था आदि की प्रणाली। मुहावरा— (किसी काम या बात की) विधि बैठना=लगाई हुई युक्ति या ठीक या सफल सिद्ध होना। जैसे—यदि तुम्हारी विधि बैठ गई तो काम होने में देर न लगेगी। २. आपस में होनेवाली अनुकूलता या संगति। मुहावरा— (आपस में) विधि बैठना=अनुकूलता मेल-मिलाप या संगति होना। जैसे—अब तो उन लोगों में विधि बैठ गई है। विधि मिलना=अनुरूपता होना। जैसे—जन्मकुंडली की विधि मिलना। ३. ऐसी आज्ञा या आदेश जिसका पालन अनिवार्य या आवश्यक हो। ४. धर्म-ग्रन्थों, शास्त्रों आदि में बतलाई हुई ऐसी व्यवस्था जिसे साधारणतः सब लोग मानते हों। पद—विधि निषेध=ऐसी बातें जिनमें यह कहा गया हो कि अमुक अमुक काम या बातें करनी चाहिए और अमुक-अमुक काम या बातें नहीं करनी चाहिए। ५. आचार-व्यवहार। पद—गति-विधि=आगे, बढ़ने पीछे हटने आदि के रूप में होनेवाली चाल-ढाल या रंग-ढंग। जैसे—पहले कुछ उसके रोजगार की गतिविधि तो देख लो, तब उनके साथ साझेदारी करना। ६. तरह। प्रकार। भ्रांति। उदाहरण—एहि विधि राम सबहिं समुझावा। तुलसी। ७. व्याकरण में वह स्थिति जिसमें किसी से काम करने के लिए कहा जाता है। जैसे— (क) तुम वहाँ जाओ। (ख) यह चीज यहीं रखनी चाहिए। ८. साहित्य में एक अर्थालंकार जिसमें किसी सिद्ध विषय का फिर से विधान किया जाता है। जैसे—वर्षा काल में ही मेघ, मेघ है। ९. आज-कल राज्य या शासन के द्वारा चलाये या बनाये हुए वे सब नियम, विधान आदि जिसका उद्देश्य सार्वजनिक हितों की रक्षा करना होता है और जिनका पालन सबके लिए अनिवार्य तथा आवश्यक होता है। कानून। (लाँ)। पुं० सृष्टि की रचना करनेवाला ब्रह्मा। |
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विधिक :
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वि० [सं०] [भाव० विधिकता] १. विधि संबंधी। २. विधि के रूप में होनेवाला। ३. (कार्य) जिसे करने में कोई कानूनी अड़चन न हो। ४. जो विधि के विचार से न्याय-संगत हो। (लीगल)। |
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विधिकता :
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पुं० [सं०] १. विधिक होने की अवस्था या भाव। २. कानून के विचार से होनेवाली अनुरूपता। |
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विधिक-प्रतिनिधि :
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पुं० [सं०] वह प्रतिनिधि जिसे किसी की ओर से न्यायालय में कानूनी कार्रवाई करने का अधिकार प्राप्त हो (लीगल रिप्रेज़ेटेटिव)। |
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विधिकर्ता :
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पुं० [सं०] वह जो विधि या कानून बनाता हो। (लॉ-मेकर)। |
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विधिक व्यवहार :
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पुं० [सं०] वह कार्य या प्रक्रिया जो किसी व्यवहार या मुकदमे में विधि या कानून के अनुसार होती है। (लीगल प्रोसीडिंग)। |
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विधिक-साध्य :
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स्त्री० [सं०] विधिक-निर्णय (दे०)। |
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विधिज्ञ :
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पुं० [सं०] १. वह जो विधि-विधान आदि का अच्छा ज्ञाता हो। २. कानून का ज्ञाता ऐसा व्यक्ति जो दूसरों के व्यवहारों के संबंध में न्यायालय में प्रतिनिधि के रूप में काम करता हो। (लायर)। ३. वह जो काम करने का ठीक ढंग जानता हो। |
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विधितः :
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अव्य० [सं०] १. विधि या रीति के अनुसार। २. कानून के अनुसार (बाई लाँ) ३. कानून की दृष्टि में या विचार से (डी० जूरी, लाँ-फुली)। |
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विधि-दर्शक :
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पुं० [सं०] विधिदर्शी (दे०)। |
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विधिदर्शी :
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पुं० [सं०] यज्ञ में वह व्यक्ति जो यह देखने के लिए नियुक्त होता था कि होता, आचार्य आदि विधि के अनुसार कर्म कर रहे हैं या नहीं। |
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विधिना :
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पुं०=विधना (ब्रह्मा)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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विधि-निषेध :
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पुं० [सं० ष० त०] साहित्य में आक्षेप अलंकार का एक भेद जिसमें कोई काम करने की विधि या अनुमति देने पर भी प्रकारांतर से उसका निषेध किया जाता है। जैसे—आप जाते हैं तो जाइए, अगले जन्म में मैं आपके दर्शन करूँगी। (अर्थात् आपके दर्शन की लालसा में प्राण दे दूँगी।) |
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विधि-पत्नी :
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स्त्री० [सं०] सरस्वती। |
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विधिपाट :
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पुं० [सं०] मृदंग के चार वर्णों में से एक वर्ण। शेष तीन वर्ण ये हैं—पाट, कूटपाट और खंडपाट। |
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विधिपुत्र :
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पुं० [सं० विधि+पुत्र] ब्रह्मा के पुत्र, नारद। |
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विधिपुर :
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पुं० [सं० विधि+पुर] ब्रह्मलोक। |
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विधि-भंग :
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पुं० [सं०] १. विधि अर्थात् कानून का उल्लंघन करने की क्रिया या भाव। नियम तोड़ना। (ब्रीच आँफ लाँ)। |
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विधि-भेद :
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पुं० [सं०] साहित्य में उपमा अलंकार का एक दोष जो उस समय माना जाता है, जब उपमेय और उपमान के गुण, धर्म आदि का मेल ठीक से नहीं बैठता। |
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विधिरानी :
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स्त्री० [सं० विधि+हिं० रानी] ब्रह्मा की पत्नी, सरस्वती। |
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विधिलोक :
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पुं० [सं०] ब्रह्मलोक। |
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विधिवत् :
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अव्य० [सं०] १. विधिपूर्वक। विधितः २. जिस प्रकार होना चाहिए उसी प्रकार। |
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विधि-वधू :
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स्त्री० [सं०] ब्रह्मा की पत्नी, सरस्वती। |
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विधि-वादपद :
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पुं० [सं०] विधिक क्षेत्रों में वह वादपद जिसका संबंध व्यवहार या मुकदमे के केवल विधिक या कानूनी पक्ष से हो। तथ्य वादपद से भिन्न (इश्यू आप लॉ)। |
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विधि-वाहन :
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पुं० [सं०] ब्रह्मा की सवारी, हंस। |
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विधिविहित :
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वि० [सं० तृ० त०] शास्त्रीय विधियों आदि में कहा या बतलाया हुआ। विधि में जैसा विधान हो, वैसा। |
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विधिषेध :
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पुं० [सं० ष० त०] विधि और निषेध। |
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विधुंत :
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पुं० [सं० विधुंतुद] राहु। |
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विधुंतुद :
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पुं० [सं० विधि√तुद् (दुःख देना)+खच्, मुम्] चंद्रमा को दुःख देनेवाला। राहु। |
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विधु :
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पुं० [सं०] १. चन्द्रमा। २. ब्रह्मा। ३. विष्णु। ४. वायु। हवा। ५. कपूर। ६. अस्त्र। आयुध। ७. जल से किया जानेवाला स्नान। ८. पाँवों आदि का प्रक्षालन। |
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विधुक्रांत :
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पुं० [सं०] संगीत में एक प्रकार का ताल। |
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विधुदार :
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स्त्री० [सं० ष० त०] चन्द्रमा की स्त्री। रोहिणी। |
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विधुप्रिया :
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स्त्री० [सं० ष० त०] १. चंद्रमा की स्त्री। रोहिणी। २. कुमुदिनी। कोई (दे०)। |
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विधु-बंधु :
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पुं० [सं० ष० त०] कुमुद (फूल)। |
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विधु-बैनी :
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स्त्री० [सं० विधु+वदन, प्रा० वयन] चन्द्रमुखी। सुंदरी। स्त्री। |
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विधुमणि :
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स्त्री० [सं० ष० त०] चंद्रकांत मणि। |
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विधुमुखी :
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वि० [सं०] चन्द्रमा के समान सुन्दर मुखवाली (स्त्री)। |
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विधुर :
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वि० [सं०] [स्त्री० विधुरा] १. दुःखी। २. घबराया या डरा हुआ। ३. बेचैन। विकल। ४. अशक्त। असमर्थ। ५. छोड़ा या त्यागा हुआ। परित्यक्त। ६. मूढ़। ७. जिसकी स्त्री मर चुकी हो। रँडुआ। ८. किसी बात से रहित या हीन। (यौ० के अन्त में)। जैसे—अनुनय-विधुर्=जो अनुनय, विनय करना न जानता हो या न करता हो। पुं० १. कष्ट। दुःख। २. जुदाई। वियोग। ३. अलगाव। पार्थक्य। ४. कैवल्य। ५. दुश्मन। शत्रु। |
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विधुरा :
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स्त्री० [सं०] १. कानों के पीछे की एक स्नायु ग्रन्थि जिसके पीड़ित या खराब होने से आदमी बहरा हो जाता है। २. मट्ठा। लस्सी। |
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विधुवदनी :
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स्त्री० [सं० ब० स०] चन्द्रमुखी। |
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विधूत :
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भू० कृ० [सं०] [भाव० विधूति] १. काँपता हुआ। २. हिलता हुआ। ३. छोडा या त्यागा हुआ। ४. अलग या दूर किया हुआ। ५. निकाला या बाहर किया हुआ। |
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विधूति :
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स्त्री० [सं०] कंपन। |
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विधूनन :
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पुं० [सं० वि√धू (कंपन)+णिच्+ल्युट-अन] [भू० कृ० विधूनित] कंपन। काँपना। |
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समानार्थी शब्द-
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विधृत :
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पुं० [सं० वि√धृ (धारण करना)+क्त] १. ग्रहण या धारण किया हुआ। २. अलग किया हुआ। ३. रोका हुआ। ४. अपने अधिकार में लाया हुआ। ५. सँभाला हुआ। पुं० १. आज्ञा की अवज्ञा। २. असंतोष। |
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विधृति :
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स्त्री० [सं० वि√धृ+क्तिन्] १. अलगाव। पार्थक्य। २. विभाजन। ३. व्यवस्था। ४. नियम। ४. विभाजन रेखा। |
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विधेय :
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वि० [सं०] १. देने योग्य। २. प्राप्त करने योग्य। ३. जिसके प्रति विधि का आदेश दिया जाय। ४. जिसे कुछ करने का आदेश दिया जाय। ५. जिसके संबंध में विधान किया जाने को हो। ६. प्रदर्शित किये जाने के योग्य। ७. प्रज्जवलित किये जाने के योग्य। पुं० १. वह काम जो अवश्य किये जाने के योग्य हो। २. व्याकरण में, वह पद या वाक्यांश जिसके द्वारा किसी के संबंध में कुछ विधान किया अर्थात् कहा या बतलाया जाता है। हिन्दी में इसका अन्वय या तो (क) कर्ता से होता है या (ख) प्रधान कर्म से। जैसे— (क) राम जाता है। और (ख) राम रोटी खाता है। में जाता ‘है’ और खाता ‘है’ विधेय है, क्योंकि ‘जाता है’ से राम (कर्ता) के संबंध में और ‘खाता है’ से राम (कर्ता) के सम्बन्ध में और ‘खाता है’ से रोटी (कर्म) के संबंध में कुछ कहा या बतलाया गया है। ३. साहित्य में प्रिय के मन-मोचन के दो उपचारों में से एक जिसमें उपेक्षा, धृष्टता, भय, हर्ष आदि दिखलाकर उसे प्रकारान्तर से अनुकूल करने का प्रयत्न किया जाता है। |
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विधेयक :
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पुं० [सं० विधेय+कन्] आज-कल किसी कानून या विधान का वह प्रस्तावित रूप या मसौदा जो विधान बनानेवाली परिषद् या सभा के सामने विचारार्थ उपस्थित किया जाने को हो (बिल)। |
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समानार्थी शब्द-
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विधेयता :
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स्त्री० [सं० विधेय+तल्+टाप्] १. विधेय होने की अवस्था, गुण या भाव। २. अधीनता। |
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समानार्थी शब्द-
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विधेयत्व :
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स्त्री० [सं० विधेय+तल्+टाप्] विधेयता। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
विधेयात्मा (त्मन्) :
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पुं० [सं० ब० स०] विष्णु। |
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विधेयाविमर्ष :
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पुं० [सं० ब० स०] साहित्य में एक प्रकार का वाक्य-दोष जो विधेय अंश के प्रधान स्थान प्राप्त होने पर होता है। मुख्य बात का वाक्य-रचना के बीच दबा रहना। |
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समानार्थी शब्द-
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विध्य :
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वि० [सं०√विध् (छेदना)+यत्] जो बींधा जाने को हो या बेधा जा सकता हो। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
विध्यात्मक :
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वि० [सं०] १. विधि से संबंध रखता हुआ और उससे युक्त। २. जो विधि के पक्ष में हो। सकारात्मक। सहिक। ‘निषेधात्मक’ का विपर्याय पाज़िटिव)। |
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समानार्थी शब्द-
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विध्वंस :
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पुं० [सं० वि√ध्वंस (नाश करना)+घञ्] १. विनाश। नाश। बरबादी। २. घृणा। ३. वैर। शत्रुता। ४. अनादर। अपमान। |
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समानार्थी शब्द-
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विध्वंसक :
|
वि० [सं० वि√ध्वंस (नाश करना)+ण्वुल-अक] विध्वंस या नाश करनेवाला। पुं० एक प्रकार के विनाशक पोत (डेस्ट्रायर)। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
विध्वस्त :
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भू० कृ० [सं० वि√ध्वंस+क्त] नष्ट किया हुआ। बरबाद किया हुआ। |
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समानार्थी शब्द-
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