शब्द का अर्थ
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विकास :
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पुं० [सं०] १. अपने आपको प्रकट या व्यक्त करना। २. फैलना या बढ़ना। ३. फूलों आदि का खिलना। ४. आँख, मुँह आदि का खुलना। ५. किसी चीज या बात का अस्तित्व में आकर या आरम्भ होकर फैलते या बढ़ते हुए और उन्नति की अनेक क्रमिक अवस्थाएं पार करते हुए अपनी पूरी बाढ़ तक पहुँचना। बढ़ते-बढ़ते अपना पूरा रूप धारण करना। ६. उक्त क्रिया के परिणाम-स्वरूप प्रकट होनेवाला रूप या स्थिति। ६. यह सिद्धान्त कि कोई वस्तु अपनी आरम्भिक सामान्य अवस्था से अपनी प्रकृति के अनुसार बढ़ती तथा फूलती-फलती हुई पूर्ण अवस्था प्राप्त करती है (इवोल्यूशन)। स्त्री० [?] दूब की तरह की एक घास जो चौपाये बहुत चाव से खाते हैं। |
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विकासक :
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वि० [सं० वि√कस्+ण्वुल्-अक] विकास करने अर्थात् खोलने या बढ़ानेवाला। |
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विकासन :
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पुं० [सं० वि√कस्+ल्युट-अन] [भू० कृ० विकसित] विकास करने की क्रिया या भाव। २. खिलना। ३. खुलना। ४. फैलना। |
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विकासना :
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स० [सं० विकास] १. विकास करना। २. खोलकर प्रकट या व्यक्त करना। ३. खिलने में प्रवृत्त करना। अ०=विकसना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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विकासवाद :
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पुं० [ष० त०] यह सिद्धान्त कि ईश्वर से यह सृष्टि (अथवा इसका कोई अंग) इसी या प्रस्तुत रूप में नहीं उत्पन्न कर दी थी, वरन् इसका रूप प्रतिक्षण बदलता और बढ़ता जा रहा है (थियरी आँफ इवोल्यूशन)। विशेष—इस सिद्धान्त के अनुसार यह माना जाता है कि इस पृथ्वी पर प्राणियों, वनस्पतियों आदि का आरम्भ बहुत ही सूक्ष्म रूप में हुआ था, और धीरे-धीरे उनका विकास होने पर वे सब फैलते, बढ़ते और अनेक प्रकार के रूप-रंग धारण करते गये, उनकी शक्तियाँ आदि बढ़ती गई और उनके बहुत-से भेद-विभेद होते गये। |
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विकासवादी :
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वि० [सं०] विकासवाद संबंधी। पुं० वह जो विकासवाद का अनुयायी या ज्ञाता हो। |
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विकासित :
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भू० कृ० [सं० वि√कस्+णिच्+क्त] १. जिसका विकास किया गया हो। २. सामने लाया हुआ। ३. फैलाया या बढ़ाया हुआ। |
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