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लों  : अव्य०=लौं।
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लोंदा  : पुं० [स्त्री० अल्पा० लोंदी] १. गीले पदार्थ का वह अंश जो ढेले की तरह बँधा हो। जैसे—घी का लोंदा, दही का लोंदा, मिट्टी का लोंदा। २. गली या घुली हुई वस्तु की वह अवस्था या आकृति जो उसे गलने के बाद ठण्डा होने के लिए छोड़ने पर प्राप्त होती है।
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लो  : अव्य० [हिं० लेना] लीजिए की तरह प्रयुक्त एक निरर्थक अव्यय जिसका प्रयोग सहसा सुनी हुई कोई आश्चर्यजनक बात किसी दूसरे को सुनाते समय किया जाता है। जैसे—लो और सुनो।
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लोइ  : स्त्री० [सं० रोयि, प्रा० लोई] १. प्रभा। दीप्ति। २. आग की लौ। पुं० १. =लोक। २. =लोग। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लोइन  : पुं० १. =लोचन। (आँख) २. लावण्य।
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लोई  : स्त्री० [सं० लोप्ती, प्रा० लोबी] गुँधे हुए आटे का उतना अंश जो एक रोटी बनाने के लिए निकालकर गोली के आकार का बनाया जाता है और जिसे बेलकर रोटी बनाते हैं। स्त्री० [सं० लोभीय=लोई] १. एक प्रकार का कंबल जो पतले ऊन से बुना जाता है और साधारणत कंबल से कुछ अधिक लंबा और चौड़ा होता है। २. कबीर की तथा-कथित पत्नी का नाम। प्रवाद है कि यह नवजात शिशु के रूप में किसी को लोई में लपेटी हुई मिली थी इसी से इसका यह नाम पड़ा था।
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लोकंजन  : पुं० =लोपांजन। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लोकंदा  : पुं० [हिं० लोकना] [स्त्री० लोकंदी] १. विवाह के कन्या में डोले के साथ दास या दासी भेजने की क्रिया। २. वह दास जो कन्या के डोले के साथ उसकी सेवा के लिए भेजा जाता है। ३. चंचल चरित्रहीन और दुष्ट व्यक्ति। उदाहरण—नंद को पूत वह धूत लोकंदा।
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लोक  : पुं० [सं०√लोक (दर्शन)+घञ्] १. कोई ऐसा स्थान जिसका बोध देखने से होता है। जगह। २. जगत् या संसार। ३. विश्व का कोई विशिष्ट भाग या स्थान जिसमें कुछ अलग प्रकार के जीव या प्राणी रहते हैं। जैसे—जीवलोक। देवलोक। ब्रह्मलोक। मनुष्यलोक। ४. पुराणानुसार किसी विशिष्ट देवता के रहने का वह स्थान जहाँ मरने पर उसके भक्त जाकर रहते हैं। जैसे—विष्णुलोक। विशेष—हमारे यहाँ अनेक दृष्टियों से कई प्रकार के लोक माने गये हैं, और उनकी अलग-अलग संख्याएँ कही गई है। मूलतः तीन ही लोक माने जाते थे, स्वर्ग, पृथ्वी, और पाताल। पर आगे चलकर चौदह लोक माने जाने लगे जिसमें से सात हमारे ऊपर और सात हमारे नीचे कहे गये हैं। ऊपर से सात लोक ये है—भूलोक, भ्रुवर्लोक, स्वर्लोक, महलोंक, जनर्लोक तपर्लोक और सत्यलोक या ब्रह्मलोक। नीचे के सात लोकों के नाम क्रमात् ये हैं—अतल, वितल, सुतल, रसातल, तलातल, महातल और पाताल। ४. उक्त के आधार पर कोई विशिष्ट दिशा या प्रांत। पद—लोक-पाल। ६. सारी मानवजाति। ७. किसी राजा या राज्य के अधीन रहनेवाले लोग। प्रजा। ८. किसी देश या स्थान में रहनेवाले सब मनुष्यों का वर्ग, समाज या समूह। लोग। ९. देश का कोई प्रान्त या विभाग। प्रदेश। १॰. लोगों में प्रचलित प्रणाली, प्रथा या रीति। ११. जीव। प्राणी। १२. देखने की इन्द्रिय या शक्ति। दृष्टि। १३. कीर्ति। यश। पुं० [?] बत्तख की तरह का एक प्रकार का बड़ा पक्षी।
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लोक-कंटक  : पुं० [सं० ष० त०] १. वह जो समाज का कलंक, विरोधी या हानिकारक हो। दुष्ट प्राणी। २. कोई ऐसा काम या बात जिसमें लोगों को कष्ट होता हो। (नुएज़ेन्स)। वि० जन-साधारण को कष्ट देने या पीड़ित करनेवाला।
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लोक-कथा  : स्त्री० [सं० ष० त०] लोक विशेषतः ग्राम्य लोगों में प्रचलित कोई प्राचीन गाथा।
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लोक-कर्ता (र्तृ)  : पुं० [सं० ष० त०] १. ब्रह्मा। २. विष्णु। ३. महेश।
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लोक-काम  : वि० [सं० लोक√कम् (चाहना)+णिङ्, +अण्, उप० स०] किसी विशेष लोक में जाने की कामना करनेवाला।
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लोककार  : पुं० [सं० लोक√कृ+अण्, उप० स०] ब्रह्म, विष्णु और महेश।
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लोक-गत  : वि० [सं० द्वि० त०] जिसे जन साधारण ने अपनाकर स्वीकृत कर लिया हो। लोक में प्रचलित तथा प्रिय।
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लोक-गति  : स्त्री० [सं० ष० त०] लोकाचार।
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लोक-गाथा  : स्त्री० [सं० मध्य० स०] परंपरा से चले आये हुए वे गीत आदि जो लोक में प्रचलित हों।
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लोक-गीत  : पुं० [सं० मध्य० स० या ष० त०] गाँव-देहातों में गाये जानेवाले जन-साधारण के वे गीत जो परम्परा से किसी जन-समाज में प्रचलित तथा लय-प्रधान हों। (फोक साँग) जैसे—भिन्न-भिन्न ऋतुओं में त्यौहारों पर अथवा धार्मिक उत्सवों, संस्कारों आदि के समय गाये जानेवाले गीत।
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लोक-घोषणा  : स्त्री० [सं० ष० त०] सब लोगों की जानकारी के लिए की जानेवाली घोषणा। (मैनिफ़ेस्टी)।
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लोक-चक्षु (स्)  : पुं० [सं० ष० त०] सूर्य।
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लोकचार  : पुं० =लोकाचार।
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लोकजित्  : पुं० [सं० लोक√जि (जय)+क्विप्, तुगागम] गौतम बुद्ध।
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लोक-जीवन  : पुं० [सं० मध्य० स०] १. घरेलू जीवन से भिन्न वह चर्या जिसमें व्यक्ति सार्वजनिक महत्त्व के कार्यों में संलग्न रहता है। २. वह अवधि या भोग-काल जिसमें कोई व्यक्ति सार्वजनिक कार्य करता है। (पब्लिक लाइफ़)।
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लोकज्ञ  : वि० [सं० लोक√ज्ञा (जानना)+क] १. लोगों की प्रवृत्तियों, मनोभाव आदि जानेवाला। २. लौकिक या सांसारिक व्यवहारों में कुशल। दुनियादार।
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लोकटी  : स्त्री० =लोमड़ी। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लोक-तंत्र  : पुं० [सं० ष० त०] [वि० लोकतांत्रिक] वह शासन-प्रणाली जिसमें जन-साधारण प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में अपने राष्ट्र या राज्य पर शासन करता हो जनता का शासन। (डिमोक्रेसी)
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लोक-तंत्रिक  : वि० [सं० लोकतांत्रिक] लोकतन्त्र-संबंधी। (डिमोक्रेटिक)
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लोत-तंत्री (त्रिन्)  : वि० [सं० लोकतंत्र+इनि] लोकतंत्र के सिद्धान्तों का प्रतिपादक या समर्थक। (डैमोक्रैट)
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लोकतांत्रिक  : वि० [सं० लोकतंत्र+ठक्-इक]=लोक-तांत्रिक।
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लोक-दूषण  : वि० [सं० ष० त०] १. लोगों को हानि पहुँचानेवाला। २. लोगों में दोष निकालनेवाला।
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लोक-धर्म  : पुं० [सं० ष० त०] वास्तविक धर्म से भिन्न वे बातें या कृत्य जो जन-साधारण में प्राय धर्म के रूप में प्रचलित हों। जैसे—तंत्र-मंत्र भूत-प्रेत की पूजा-वीर पूजा आदि।
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लोक-धारिणी  : स्त्री० [सं० ष० त०] पृथ्वी।
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लोक-धुनि  : स्त्री० [सं० लोक-ध्वनि] अफवाह। किवदंती।
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लोकन  : पुं० [सं०√लोक (देखना)+ल्युट—अन] अवलोकन।
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लोकना  : स० [?] १. उड़ती गिरती या फेंकी हुई वस्तु को जमीन छूने से पहले ही हवा में पकड़ लेना। जैसे—उछाला हुआ गेंद या कटी हुई पतंग लोकना। बीच में उड़ा या हड़प लेना। पुं० [स्त्री० लोकती] दे० ‘लोकंदा’।
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लोक-नाट्य  : पुं० [सं० मध्य० स०] शास्त्रीय नियमों से बननेवाले नाटकों से भिन्न वे नाटक या अभिनय जो जन-साधारण बिना नाट्य-कला सीखे अपनी उद्भावना से बनाते और जन-साधारण को दिखलाते हैं। जैसे—कठपुतली का नाच, नौटंकी रामलीला आदि।
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लोक-नाथ  : पुं० [सं० ष० त०] १. ब्रह्मा। २. लोकपाल। ३. गौतम बुद्ध।
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लोक-निर्माण  : पुं० [सं० ष० त०] लोक वस्तु।
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लोकनी  : स्त्री० =लोकंदी। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लोकनीय  : वि० [सं०√लोक् (दर्शन)+अनीयर्] अवलोकन करने योग्य। दर्शनीय।
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लोक-नृत्य  : पुं० [सं० मध्य० स०] शास्त्रीय नृत्य-कला से रहित ऐसे नाच जो गाँव देहात के लोग उमंग में आकर नाचते हैं। (फोक डान्स) जैसे—अहीरों, धोबियों आदि के नृत्य, मणिपुरी सन्थाली आदि नृत्य।
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लोक-पद  : पुं० [सं०] लोक या जनता की सेवा से सम्बन्ध रखनेवाला राजकीय पद या ओहदा। (पब्लिक आफिस)
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लोक-पाल  : पुं० [सं० लोक√पाल् (रक्षा)+णिच्+अण्] १. दिक्पाल। २. नरेश।
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लोक-पितामह  : पुं० [सं० ष० त०] ब्रह्मा।
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लोक-प्रत्यय  : पुं० [सं० ब० स०] वह जो संसार में सर्वत्र दिखाई देता या मिलता हो।
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लोक-प्रवाद  : पुं० [सं० ष० त०] १. ऐसी साधारण बात जो संसार के सभी लोग कहते और समझते हों। २. लोक में प्रचलित प्रवाद या किवदंती।
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लोक-प्रवाही (हिन्)  : वि० [सं० लोक-प्रवाह, ष० त०+इनि] लोगों की प्रवृत्ति या रूख देखकर उसी के अनुसार चलनेवाला।
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लोक-प्रिय  : वि० [सं० ष० त०] [भाव० लोक-प्रियता] १. जो जन-साधारण को प्रिय तथा रुचिकर प्रतीत होता हो। २. समाज के बहुमत की पसंद या रुचि के अनुकूल होनेवाला। जैसे—लोकप्रिय-साहित्य।
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लोक-प्रियता  : स्त्री० [सं० लोकप्रिय+तल्+टाप्] लोकप्रिय होने की अवस्था या भाव। (पॉपुलेरिटी)
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लोक-बंधु  : पुं० [सं० ष० त०] १. शिव। २. सूर्य।
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लोक-बाह्य  : वि० [सं० ष० त०] १. जो इस लोक या संसार में न होता या न दिखाई देता हो। २. जो साधारण जन समाज में न होता हो। ३. बिरादरी या समाज से निकाला हुआ। ४. झक्की। सनकी।
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लोक-भावन  : स्त्री० [सं० ष० त०] लोक की रचना करनेवाला। २. लोक की भलाई करनेवाला।
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लोक-भावना  : स्त्री० [सं० ष० त०] लोक अर्थात् जनता का उपकार, सेवा आदि करने की भावना या वृत्ति। (पब्लिक स्पिरिट)
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लोक-मत  : पुं० [सं० ष० त०] किसी बात या विषय में देश या समाज में रहनेवाले सब अथवा अधिकतर लोगों का मत, राय या विचार। समाज के बहुत से लोगों का ऐसा मत जो किसी एक दल या वर्ग का नहीं बल्कि समष्टि के विचार या हित का सूचक हो। (पब्लिक ओपीनियन)
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लोक-माता (तृ)  : स्त्री० [सं० ष० त०] १. लक्ष्मी। २. गौरी।
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लोक-यात्रा  : स्त्री० [सं० ष० त०] संसार में रहकर लोगों के साथ व्यवहार करना।
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लोक-रंजन  : पुं० [सं० ष० त०] सब को प्रसन्न तथा सुखी रखना। वि० सबको प्रसन्न तथा सुखी रखनेवाला।
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लोक-रंजनी  : स्त्री० [सं० ष० त०] संगीत में कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी।
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लोक-रक्षक  : वि० [सं० ष० त०] सब लोगों की रक्षा करनेवाला। पुं० १. राजा। २. शासक।
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लोकल  : वि० [अं०] १. (निवासियों की दृष्टि से उनके) नगर या गाँव की सीमा के अन्दर-अन्दर होनेवाला। जैसे—लोकल पालिटिक्स। २. जिसका संबंध किसी विशिष्ट गाँव, नगर आदि में ही सीमित हो। जैसे—लोकल पोस्टकार्ड।
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लोक-लीक  : स्त्री० [सं० लोक+हिं० लीक] लोक में प्रचलित प्रथाएँ और मर्यादा।
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लोक-लोचन  : पुं० [सं० ष० त०] सूर्य।
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लोक-वदंती  : स्त्री० [सं० मध्य० स०] लोक में प्रचलित चर्चा। अफवाह। किवदंती।
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लोक-वाद  : पुं० [सं० ष० त०] १. कहावत। २. किवदंती। अफवाह।
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लोक-वार्ता  : स्त्री० [सं० ष० त०] इतिहास पुरातत्व आदि के अध्ययन का वह अंग जिसमें लोक में प्रचलित पुरानी धारणाओं, प्रथाओं, विश्वासों आदि से संबंध रखनेवाली बातों का विचार या विवेचन होता है। (फोकलोर)
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लोक-वास्तु  : पुं० [सं० ष० त०] १. राज्य या शासन का वह विभाग जो लोक के उपयोग तथा कल्याण के लिए इमारतें, नहरें सड़के आदि बनाता है। (पब्लिक वर्क्स) २. जन साधारण तथा राजकीय विभागों के काम में आनेवाली इमारते, सड़के आदि।
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लोक-वाहक  : पुं० [सं० ष० त०] जनता का सामान ढोने के लिए प्रयुक्त मोटर गाडियाँ आदि (पब्लिक कैरियर)।
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लोक-विरुद्ध  : वि० [सं० तृ० त०] (आचरण, कथन या कार्य) जो लोक में प्रचलित न हो और इसीलिए ठीक न माना जाता हो।
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लोक-विश्रुत  : वि० [सं० स० त०] संसार भर में अर्थात् सब जगह प्रसिद्ध। जनद्विख्यात।
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लोक-वेद  : पुं० [सं०, लोक और वेद से] हिन्दुओं में प्रचलित वे पौराणिक आचार-विचार जिन्हें लोक वेदों के विधान के समान ही आवश्यक और मान्य समझते हैं।
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लोक-व्यवहार  : पुं० [सं० ष० त०] १. वह व्यवहार जो लोक में सब लोगों से मेल-जोल बनाए रखने के लिए करना पड़ता है। लोकाचार। २. समाज की मर्यादा के विचार से किया जानेवाला शिष्ट व्यवहार।
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लोक-शांति  : स्त्री० [सं० स० त०] लोक अर्थात् जन-साधारण या समाज में बनी रहनेवाली ऐसी शांति जिसमें किसी प्रकार का उत्पात, उपद्रव या लडा़ई-झगड़ा न हो। (पब्लिक पीस)
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लोक-शासन  : पुं० [सं० ष० त०] देश या राज्य का ऐसा शासन या सरकार जो लोक-मत के आधार पर चलती हो। जन-तन्त्र। (पापुलर गवर्नमेंट)
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लोक-श्रुति  : स्त्री० [सं० ष० त०] जनश्रुति। अफवाह।
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लोक-संग्रह  : पुं० [सं० ष० त०] १. सब लोगों को प्रसन्न रखकर उन्हें अपने साथ मिलाये रखना। २. संसार के सभी लोगों के कल्याण या मंगल का ध्यान रखना। ३. लोगों को अपनी ओर मिलाना या अपने पक्ष में करना।
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लोक-संग्रही (हिन्)  : वि० [सं० लोक-संग्रह+इनि] जो सब लोगों को प्रसन्न रखकर अपने पक्ष में करता हो।
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लोक-संस्कृति  : स्त्री० [सं० ष० त०] साधारण जन-समाज में प्रचलित ये सब बातें जो सिद्धान्ततः संस्कृति के क्षेत्र से संबद्ध हों।
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लोक-सत्ता  : स्त्री० [सं० ष० त०] लोक-तांत्रिक शासन-प्रणाली के द्वारा लोक या सारी जनता को प्राप्त होनेवाली सत्ता।
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लोक-सत्ताक  : वि० =लोक-सत्तात्मक।
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लोक-सत्तात्मक  : वि० [सं० लोकसत्ता-आत्मन्, ब० स०+कप्] १. लोकसत्ता संबंधी। लोक सत्ता का। २. (देश या राज्य) जिसमें लोक तांत्रिक शासन प्रणाली प्रचलित हो।
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लोक-सदन  : पुं० [सं० ष० त०] लोक सभा। (दे०)
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लोक-सभा  : स्त्री० [सं० ष० त०] १. प्रतिनिधि सत्तात्मक या प्रजातन्त्र शासन में साधारण जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों की वह सभा जो देश के लिए विधान आदि बनाती है। २. भारतीय संविधान में उक्त प्रकार की केन्द्रीय सभा (हाउस आफ पीपुल्स) ३. इंग्लैड़ में उक्त प्रकार की सभा (हाउस आफ कामन्स)।
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लोक-सिद्ध  : वि० [सं० ष० त०] इतिहास या शास्त्र-सम्मत न होने पर भी जिसे जन-साधारण ठीक मानता हो। जन सामान्य में मान्य और प्रचलित।
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लोकसुंदर  : वि० [सं० स० त०] जो सब की दृष्टि में अच्छा हो। पुं० गौतम बुद्ध।
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लोक-सेवक  : पुं० [सं० स० त०] १. वह जो लोक अर्थात् जनता की सेवा या हित के कामों में लगा रहता हो। वह अधिकारी या कर्मचारी जो राज्य या शासन की ओर से जनता की सेवा और हित के लिए नियुक्त हो (पब्लिक सर्वेन्ट)।
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लोक-सेवा  : स्त्री० [सं० ष० त०] १. जन-साधारण की सेवा अर्थात् उपकार या हित के लिए निःस्वार्थ भाव से किये जानेवाले काम। २. राज्य या शासन की नौकरी जो वस्तुतः जन साधारण की सेवा या हित के लिए होती है। (पब्लिक सर्विस)।
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लोक-सेवा-आयोग  : पुं० [सं० ष० त०] राज्य द्वारा नियुक्त कुछ व्यक्तियों का वह आयोग या समिति जिसके जिम्मे राजकीय सेवाओं से सम्बन्ध रखनेवाले पदों पर नियुक्त करने के लिए प्रार्थियों में से उपयुक्त तथा योग्य व्यक्ति चुनने का काम होता है। (पब्लिक सर्विस कमीशन)
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लोक-स्वास्थ्य  : पुं० [सं०] सार्वजनिक रूप से जनता या लोगों का स्वास्थ्य (पब्लिक हेल्थ)।
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लोक-हार  : पुं० [सं० लोक√हृ (हरण)+अण्, उप० स०] संसार का नाश करनेवाले शिव।
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लोक-हित  : पुं० [सं० ष० त०] लोक-सेवा। (दे०)
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लोकांतर  : पुं० [सं० अन्य-लोक, मयू० स०] वह लोक जहाँ मरने पर जीव जाता है। पर-लोक।
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लोकांतरण  : पुं० [सं० लोकांतर+णिच्+ल्युट—अन] इस लोक से हटकर दूसरे लोक में कर देना।
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लोकांतरित  : भू० कृ० [सं० लोकांतर+णिच्+क्त] १. जो इस लोक से दूसरे लोक में चला गया हो। २. जो मर चुका हो।
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लोकाचार  : पुं० [सं० लोक-आचार, ष० त०] १. वह व्यवहार जो दूसरों से सामाजिक संबंध बनाए या स्थिर रखने के लिए आवश्यक समझा जाता हो। २. दे० ‘लोक व्यवहार’।
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लोकाचारी (रिन्)  : वि० [सं० लोकाचर+इनि] १. लोकाचार का आचरण या पालन करनेवाला। २. दिखावटी आचरण या व्यवहार करनेवाला। ढोंगी ३. लोक को प्रसन्न रखनेवाला आचरण अथवा व्यवहार करनेवाला। दुनियादार। स्त्री० =लोकाचार।
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लोकाट  : पुं० =लुकाट।
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लोकाधिक  : वि० [सं० लोक-अधिक, पं० त०] लोक अर्थात् संसार से परे या बाहर अर्थात् असाधारण।
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लोकाधिप  : पुं० [सं० लोक-अधिप, ष० त०] १. लोकपाल। २. बुद्ध।
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लोकाना  : स० [हिं० लोकने का प्रे०] ऊपर से फेंकना। उछालना।
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लोकानुग्रह  : पुं० [लोक-अनुग्रह, स० त०] लोगों का कल्याण। लोकहित।
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लोकापवाद  : पुं० [सं० लोक-अपवाद, स० त०] लोक-निंदा। बदनामी।
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लोकायत  : पुं० [सं० लोक-आयत=विस्तीर्ण] १. वह जो इस लोक के अतिरिक्त दूसरे लोक को न मानता हो। २. भारतीय दर्शन में एक प्राचीन भूतवादी नास्तिक सम्प्रदाय जिसके प्रवर्तक देव-गुरु बृहस्पति कहे जाते हैं। इसलिए इसे बार्हस्पत्य भी कहते हैं। प्रवाद है कि बृहस्पति ने असुरों का नाश कराने के लिए ही उनमें इस मत का प्रचार किया था। विशेष—कुछ लोगों का मत है कि किसी समय लोक में इसी नास्तिक मत का सबसे अधिक प्रचार था। इसीलिए इसका नाम लोकायत पड़ा। इस मत का मुख्य सिद्धान्त यह है कि आत्मा, परलोक, नरक और स्वर्ग की कल्पनाएँ मिथ्या हैं, और वर्णाश्रम आदि का विधान व्यर्थ है। ३. चार्वाक दर्शन, जिसमें परलोक या परोक्षवाद का खंडन है। ४. दुर्मिल छंद का एक नाम।
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लोकायतिक  : वि० [सं० लोकयत+ठन्—-इक] लोकायत सम्बन्धी। लोकायत का। पुं० १. लोकायत सम्प्रदाय का अनुयायी। २. नास्तिक।
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लोकालोक  : पुं० [सं० लोक-आलोक, कर्म० स०] पुराणानुसार एक पर्वत जो सातों समुद्रों और द्वीपों को चारों ओर से घेरे हुए है, और जिसके उस पार घोर अंधकार है। बौद्ध ग्रन्थों में इसी को चक्रवाल कहा गया है।
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लोकित  : वि० [सं०√लोक (दर्शन)=क्त] देखा हुआ।
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लोकेश्वर  : पुं० [सं० लोक-ईश्वर, ष० त०] १. लोक का स्वामी। परआत्मा। २. गौतम बुद्ध।
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लोकैषणा  : स्त्री० [सं० लोक-एषणा, ष० त०] १. सांसारिक अभ्युदय की कामना। समाज में प्रतिष्ठा और यश की कामना। २. स्वर्ग सुख की कामना।
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लोकोक्ति  : स्त्री० [सं० लोक-उक्ति, मध्य० स०] १. लोक में समान रूप से प्रचलित बात। कहावत। मसला। २. साहित्य में एक अलंकार जो उस समय माना जाता है जब लोकोक्ति के प्रयोग से काव्य में अधिक रोचकता आ जाती है।
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लोकोत्तर  : वि० [सं० लोक-उत्तर, पं० त०] लोक में होनेवाले पदार्थों या बातों से अधिक बढ़कर या श्रेष्ठ। जो इस लोक में न होता हो। (पदार्थ या बात)
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लोकोपकार  : पुं० [सं० लोक-उपकार, ष० त०] लोक या जन साधारण के उपकार, लाभ या हित के नाम।
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लोकोपकारी (रिन्)  : वि० [सं० लोकोपकार+इनि] १. लोगों का उपकार करनेवाला। २. लोकोपकार-संबंधी। २. जिनमें लोगों का उपकार होता हो।
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लोकोपयोगि-सेवा  : स्त्री० [सं० उपयोगिनी-सेवा, कर्म० स० लोक-उपयोगि-सेवा, ष० त०] वह सेवा या कार्य जो जनता के लिए विशेष उपयोगी या काम का का हो। जैसे—नगर की जल-कल व्यवस्था, बिजली, सफाई आदि के काम (पब्लिक युटिलिटि सर्विस)।
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लोखड़ी  : स्त्री० =लोमड़ी।
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लोखर  : पुं० [हिं० लोहा+खण्ड] १. नाई के औजार। जैसे—छुरा, कैची नहरनी आदि। २. बढ़इयों, लोहारों आदि के लोहे के औजार। ३. दुकानदारी के लोहे के बटखरे।
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लोग  : पुं० [सं० लोक] [स्त्री० लुगाई] १. बहुत से मनुष्यों का दल, वर्ग समूह या समाज। २. दे० ‘लोक’।
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लोग-बाग  : पुं० [हिं० लोग-बाग (अनु०)] साधारण लोग। जन-साधारणर (बहु०में प्रयुक्त)।
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लोगाई  : स्त्री०=लुगाई (स्त्री)।
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लोच  : स्त्री० [हिं० लचक] १. वह गुण जिसके कारण कोई चीज दबाने पर दब जाती हो और दबाव न रहने पर फिर अपना सामान्य रूप प्राप्त कर लेती हो। २. कोमलता। मृदुता। ३. कोमलता पूर्ण सौन्दर्य। पुं० [सं० लुचन] जैन साधुओं का अपने सिर के बालों को उखाड़ना। लुंचन। स्त्री०=रुचि। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लोचक  : वि० [सं०√लोच् (दर्शन)+ण्वुल्—अक] १. जिसका आहार दूध हो। २. मूर्ख। बेवकूफ। पुं० १. आँख का तारा या पुतली। २. काजल। ३. मांस-पिंड। ४. माथे पर पहनने का एक गहना। ५. केला। ६. सांप की केंचुली। ७. धनुष की पतंचिका।
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लोचन  : पुं० [सं०√लोच्+ल्युट—अन] आँख। नेत्र। नयन। वि० चमकनेवाला।
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लोचना  : स० [सं० लोचन] १. प्रकाशित करना। चमकाना। २. इच्छा या कामना करना। ३. किसी में किसी बात का अनुराग या रुचि उत्पन्न करना। ४. विचार करना। सोचना। ५. देखना। अ० १. इच्छा, कामना, या रुचि होना। २. तरसना या ललचाना। ३. शोभा देना। फबना। ४. तृप्त होना। उदाहरण—लोचन उतावरे हैं, लोचै हाय कैसे हो।—घनानंद। पुं० दर्पण। शीशा। विशेषतः हज्जामों के पास रहनेवाला शीशा। मुहावरा—(कहीं) लोचना भेजना= नाई या हज्जाम के द्वारा संबंधियों आदि के यहाँ शुभ समाचार अथवा धार्मिक संस्कार का निमंत्रण भेजना।
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लोचून  : पुं०=लोह-चून।
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लोजंग  : स्त्री० [देश] एक प्रकार की नाव।
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लोट  : स्त्री० [हिं० लोटना] १. लोटने की क्रिया या भाव। मुहावरा—लोट मारना या लगाना=लेटना। (किसी पर) लोट होना= (क) आसक्त या मोहित होना। (ख) विकल होना। २. जलाशय के किनारे पर का घाट। ३. बिजली। पुं०=नोट। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लोटन  : वि० [हि० लोटना] १. लोटने अर्थात् जमीन पर उलटबाजी लगानेवाला। जैसे—लोटन कबूतर। २. लुढ़कनेवाला। स्त्री० १. लोटने की क्रिया या भाव। २. छोटी कंकड़ियाँ जो तेज हवा चलने पर इधर-उधर लुढ़कने लगती है। ३. कटीली झाड़ी। ४. एक प्रकार की सज्जी। पुं० एक तरह का कबूतर जो चोंच से पकड़कर जमीन पर लुढ़काये जाने पर लोटने लगता है। २. एक प्रकार का छोटा हल।
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लोटना  : अ० [हिं० लोट] १. थकावट आदि मिटाने के उद्देश्य से लेटे-लेटे पेट और पीठ के बल लुढ़कना या उलटे-पुलटे होते रहना। २. क्रोध, जिद, दुःख, शोक आदि के कारण उक्त प्रकार से पड़कर इधर-उधर होना। मुहावरा—लोट जाना=(क) मर जाना या मृतप्राय हो जाना। (ख) दिवालिया हो जाना। (किसी बात) पर लोटना=जिद करना। हठ करना। ३. अधिक प्रसन्नता के फलस्वरूप इधर-उधर गिरना पड़ना। जैसे—हँसते-हँसते लोट जाना। ४. किसी पर पूरी तरह से आसक्त होना। संयो० क्रि०—जाना। अ० [हिं० लोटना] मुकर जाना।
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लोट-पटा  : पुं० [हिं० लोटना+पाटा] १. विवाह के समय पीढ़ा या स्थान बदलने की रीति। इससे वर के स्थान पर वधू को और वधू के स्थान पर वर को बैठाया जाता है। २. किसी को धोखा देने के लिए किया जानेवाला उलट-फेर या दाँव-पेंच।
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लोट-पोट  : स्त्री० [हिं० लोटना] लेटे-लेटे करवटें बदलने या लोटने की क्रिया या भाव। वि० १. हँसते-हँसते अपने को संभाल न सकने के कारण लोट जानेवाला। २. बहुत अधिक प्रसन्न। ३. उलटा-पुलटा हुआ। विपर्यस्त। ४. छिन्न-भिन्न किया हुआ।
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लोटा  : पुं० [हिं० लोटना] [स्त्री० अल्पा० लुटिया] धातु का एक प्रकार का प्रसिद्ध गोलाकार बरतन जो पानी रखने के काम आता है। पद—बे पेंदी का लोटा=ऐसा व्यक्ति जिसका अपना कोई मत या सिद्धान्त नहीं होता, वरन् जो दूसरों की बातों पर इधर-उधर ढुलकता फिरता हो।
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लोटिया  : स्त्री०=लुटिया।
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लोटी  : स्त्री० [हिं० लोटा+ई (प्रत्यय)] १. लोटे के आकार का वह बरतन जिससे तामोली पान सींचते हैं। २. छोटा लोटा। लुटिया। स्त्री० [हिं० लूटना] १. लूटने की क्रिया या भाव। लूट। २. वह अवस्था जिसमें हर कोई किसी चीज पर लूटने के लिए झपटता हो। (पश्चिम) क्रि० प्र०—मचना।
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लोडन  : पुं० [सं०√लोड् (मंथन)+ल्युट—अन] [भू० कृ० लोडित] १. हिलाने डुलाने या क्षुब्ध करने की क्रिया। २. मंथन।
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लोड़ना  : स० [पं० लोड़=आवश्यकता] आवश्यकता होना। दरकार होना।
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लोढना  : स० [सं० लुंचन] १. (पौधे से फूल) तोड़ना। २. (कपास) ओटना।
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लोढ़ा  : पुं० [सं० लोष्ट] [स्त्री० अल्पा० लोढ़िया पत्थर का वह लंबोतरा टुकड़ा जिससे सिल पर रखकर चीजें पीसी जाती हैं। बट्टा। पद—लोढ़ा ढाल=पूरी तरह से चौपट या नष्ट किया हुआ। मुहावरा—लोढ़ा डालना या ढालना=कुचल या पीसकर नष्ट या बरबाद करना।
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लोढ़िया  : स्त्री० [हिं० लोढ़ा का स्त्री० अल्पा०] छोटा लोढ़ा।
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लोढ़ी  : स्त्री० [पं०] १. मकर संक्रान्ति से पहले वाले दिन का एक त्योहार जिसमें रात के समय अग्नि की पूजा होती है। (पश्चिम) २. उक्त त्यौहार के उपलक्ष्य में गाये जानेवाले गीत।
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लोण  : पुं० [सं०] लोनी साग। पुं० लोन (नमक)।
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लोथ  : स्त्री० [सं० लोष्ट या लोठ] किसी प्राणी का मृत शरीर। लाश। शव। मुहावरा—(किसी का) लोथ डालना=किसी को मारकर उसका शव जमीन पर गिराना।
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लोथड़ा  : पुं० [हि० लोथ+ड़ा] शरीर से कटकर अलग गिरा हुआ मांस का ऐसा बड़ा टुकड़ा जिसमें हड्डी न हो। मांस पिंड।
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लोथ-पोत  : वि०=लथ-पथ।
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लोथारी  : स्त्री० [सं० लुंठन] १. कम पानी में से नाव को खींचते या धीरे-धीरे खेते हुए किनारे लगाना। (लश०)
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लोथारी-लंगर  : पुं० [हिं० लोथारी+हिं० लंगर] जहाज का सबसे छोटा लंगर जो उस समय डाला जाता है, जहाँ यह जानना अभिप्रेत होता है कि यह किनारे पर जाने का मार्ग है या नहीं।
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लोद  : स्त्री०=लोध (वृक्ष)।
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लोदी  : पुं० [?] पठानों की एक जाति।
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लोध  : स्त्री० [सं० लोध्र] १. पर्वतीय प्रदेश में होनेवाला एक प्रकार का बड़ा पेड़ जिसकी छाल रंगने के काम आती है।
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लोधरा  : पुं० [सं० लोध्र] एक प्रकार का ताँबा।
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लोधी  : पुं०=लोदी।
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लोध्र  : पुं० [सं०√रुध् (रोकना)+रन्, लत्व] १. लोध नामक वृक्ष। २. एक प्राचीन जाति। ३. लोधरा नाम का ताँबा।
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लोध्र-तिलक  : पुं० [सं० ष० त०] १. साहित्य में एक प्रकार का अलंकार जो उपमा का एक भेद कहा गया है।
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लोन  : पुं० [सं० लवण] १. लवण। नमक। मुहावरा—(किसी चीज को) लोन चराना=नमकीन बनाना। जैसे—आम की लोन चराना। (किसी का) लोन न मानना=किसी का उपकार न मानना। कृतघ्न होना। (किसी का) लोन निकालना=कृतघ्नता का नमक हरामी फल भोगना। पुं० [अं०] ऋण।
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लोन-हरामी  : वि०=नमक हराम। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लोना  : वि० [हिं० लोन] [भाव० लोनाई] १. नमकीन। सलोना। २. लावण्ययुक्त। सुन्दर। पुं० १. नमक की तरह का वह सफेद पदार्थ जो सीड़ के कारण ईंट, पत्थर मिट्टी आदि की दीवारों में लगता है। इससे दीवार कमजोर होकर झड़ने लगती हैं। यह रोग प्रायः नींव की ओर से आरम्भ होता है और क्रमशः ऊपर बढ़ता है। नोना। क्रि० प्र०—लगना। २. वह धूल या मिट्टी जो लोना लगने पर दीवार से झड़कर गिरती है। यह खाद के रूप में खेत में डाली जाती है। क्रि० प्र०—झडना। ३. खार मिली हुई वह मिट्टी जिससे शोरा बनता है। ४. वह क्षार जो चने की पत्तियों पर इकट्ठा होता है, और जिसके कारण उसकी पत्तियाँ चाटने में खट्टी जान पड़ती हैं। ५. घोंघे की जाति का एक प्रकार का कीड़ा जो प्रायः नाव के पेदे में चिपका हुआ मिलता है। ६. अमलोनी नामक घास जिसका प्रयोग धातु सिद्ध करने में करते हैं। उदाहरण—कहाँ सो खोए बीरौ लोना।—जायसी। स० खेत में की तैयार फसल काटना। लवना। स्त्री० एक कल्पित चमारी जिसके नाम से ओझा लोग मंत्र आदि पढ़ते हैं।
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लोनाई  : स्त्री० १. =लुनाई। २. =लवनी।
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लोनारा  : पुं० [हि० लोन०] वह स्थान जहाँ नमक निकलता बनता या बनाया जाता या मिलता हो।
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लोनिका  : स्त्री० =अमलोनी (साग)।
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लोनिया  : स्त्री० =अमलोनी (साग)। पुं० =नोनियाँ (जाति)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लोनी  : स्त्री० =अमलोनी।
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लोप  : पुं० [सं०√लुप् (काटना)+घञ्] १. किसी चीज के न रह जाने की अवस्था या भाव। जैसे—कार्यों का लोप होना। २. न मिलने की अवस्था या भाव। अभाव। ३. अदृश्य होने की अवस्था या भाव। अदर्शन। ४. व्याकरण के चार प्रधान नियमों में से एक जिसके अनुसार शब्द के साधन में कोई वर्ण उड़ा या हटा दिया जाता है।
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लोपक  : वि० [सं०√लुब्+णिच्+ण्वुल्-अक] १. लोप करनेवाला। २. बाधक। पुं० भाँग। विजया।
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लोपन  : पुं० [सं०√लुप्+णिच्+ल्युट—अन] १. लोपन करने की क्रिया या भाव। २. छिपाना। ३. नष्ट करना। न रहने देना।
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लोपना  : स० [सं० लोपन] १. लुप्त करना। छिपाना। २. न रहने देना। नष्ट करना। ३. उपेक्षा करना अ० लुप्त होना।
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लोप-विभ्रम  : पुं० [सं० तृ० त०] दे० ‘भूल-चूक’ (हिसाब की)।
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लोपांजन  : पुं० [सं० लोप-अंजन, मध्य० स०] एक प्रकार का कल्पित अंजन जिसके विषय में यह प्रसिद्ध है कि इसे लगाने से लगानेवाला अदृश्य हो जाता है, उसे कोई देख नहीं सकता।
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लोपा  : स्त्री० [सं०√लुप् (काटना)+णिच्+अच्+टाप्] १. विदर्भ नरेश की पालिता कन्या और अगस्त्य की पत्नी। २. अगस्त्य मण्डल के पास उदित होनेवाला एक प्रकार का तारा।
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लोपापक  : पुं० [सं० लोप-आपक, ष० त०] [स्त्री० लोपापिका] गीदड़। सियार।
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लोपामुद्रा  : स्त्री० [सं० न√मुद्+रा+क+टाप्=अमुद्रा, लोप-अमुदा, स० त०] १. अगस्त ऋषि की स्त्री जो उन्होंने स्वयं सब प्राणियों के उत्तम उत्तम अंगों को लेकर बनाई थी और तब विदर्भ राज को सौंप दी थी। युवती होने पर अगस्त्य जी ने इसी से विवाह किया। एक तारा जो दक्षिण में अगस्त्य मंडल के पास उदय होता है
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लोपी (पिन्)  : वि० [सं०√लुप्+णिनि] १. लोप करनेवाला। २. छिपानेवाला। नष्ट करनेवाला। ३. जिसका लोप हो सके। जैसे—मध्यम पद लोपी समास।
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लोप्ता (तृ)  : वि० [सं०√लुप्+तृच्] लोप करनेवाला।
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लोफर  : पुं० [अं०] १. आवारा। २. लफँगा। ३. टुकड़-गदाई।
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लोबान  : पुं० [अं०] एक प्रकार के वृक्ष का सुगन्धित गोंद। इसका वृक्ष अफ्रीका के पूर्वी किनारों पर, और अरब के दक्षिणी समुद्र तट पर होता है। यह जलाने के काम के सिवा दवाओं के काम आता है। धूना।
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लोबानी  : वि० [अं०] लोबान संबंधी। लोबान का। २. जिससे लोबान निकलता हो। ३. लोबान के रंग का, सफेद। पुं० लोबान की तरह का सफेद रंग।
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लोबिया  : पुं० [अं०] एक प्रकार का बड़ा सफेद बीड़ा जिसके बीजों से दाल और दालमोट बनाते हैं।
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लोबिया-कंजई  : पुं० [हिं० लोबिया+कंजई] गहरा हरा रंग। वि० उक्त प्रकार के रंग का।
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लोभ  : पुं० [सं०√लुभ् (लोभ करना)+घञ्] [स्त्री० लुब्ध, लोभी] १. दूसरे की चीज पाने या लेने की प्रबल कामना या लालसा। २. कुछ प्राप्त करने की ऐसी प्रबल लालसा जिसकी पूर्ति हो जाने पर भी तृप्ति या संतोष न हो। पूरी हो जाने पर भी बनी रहनेवाली कामना या लालसा (ग्रीड)। ३. जैन धर्म से वह कर्म जिसके फलस्वरूप मनुष्य किसी प्रकार का त्याग नहीं कर सकता। ४. कंजूसी। ५. कृपणता।
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लोभन  : पुं० [सं०√लुभ्+ल्युट—अन] १. लालच। लोभ। २. सोना। स्वर्ण।
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लोभना  : अ० [हिं० लोभ] लुब्ध होना। मुग्ध होना। लुभाना। उदाहरण—भौंर चारों ओर रहे गंध लोभि के बार के।—भारतेन्दु। स० लुब्ध या मुग्ध करना। लुभाना।
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लोभनीय  : वि० [सं०√लुभ्+अनीयर्] १. जिसके प्रति लोभ हो सके। २. लुभानेवाला। मनोहर। आकर्षण।
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लोभाना  : अ० स०=लुभना। वि० =लुभावनी। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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लोभार  : वि० =लुभावना। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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लोभित  : भू० कृ० [सं०√लुभ्+णिच्+क्त] लुभाया हुआ। जो लुब्ध किया गया हो।
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लोभी (भिन्)  : वि० [सं० लोभ+इनि] १. जिसे किसी बात का लोभ हो। २. जो प्रायः अधिक लोभ करता हो। लालची। ३. लुभाया हुआ। लुब्ध (ग्रीड़ी)।
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लोभ्य  : वि० [सं०√लुभ्+ण्यत्]=लोभनीय।
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लोम  : पुं० [सं०√लू (छेदन)+मनिन्] १. शरीर पर के छोटे-छोटे बाल। रोएँ। रोम। २. केश। बाल। पुं० [सं० लोमश] लोमड़ी।
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लोम-कर्ण  : पुं० [सं० ब० स०] शशक। खरगोश।
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लोम-कूप  : पुं०=रोमकूप।
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लोमध्न  : पुं० [सं० लोमन√हन् (मारना)+क] सिर का गंजा नामक रोग। वि०=लोम नाशक।
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लोमड़ी  : स्त्री० [सं० लोभटक] १. कुत्ते की तरह का एक जंगली हिंसक पशु, जिसकी चालाकी बहुत प्रसिद्ध है। २. लाक्षणिक अर्थ में, चालाक स्त्री।
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लोम-नाशक  : वि० [सं० ष० त०] (औषध या पदार्थ) जिसे लगाने से शरीर के रोएँ या बाल झड़ जाते हों।
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लोमपाद  : पुं० [सं० ब० स०] अंग देश के एक राजा जो दशरथ के मित्र थे। रोमपाद।
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लोमपादपुर  : पुं० [सं० ष० त०] चंपा नगरी (आधुनिक भागलपुर) का एक पुराना नाम।
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लोम-विलोम  : पुं० [सं०] साहित्य में एक प्रकार का शब्दालंकार जिसमें किसी पद या वाक्य की रचना इस प्रकार की जाती है कि सीधी तरह से पढ़ने से तो उसका अर्थ निकलता ही है, उलटी तरह से अर्थात् अन्त से आरम्भ करके पढ़ने पर भी उसका कुछ भिन्न अर्थ निकलता है। जैसे—‘चोर सबे निमि काल फल’ को उलटी तरह से पढ़े तो रूप होगा।—लै फल कामिनि बेस रची।
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लोमश  : पुं० [सं० लोमन+श] १. एक ऋषि जिन्हें पुराणों में अमर माना गया है। महाभारत के अनुसार ये युधिष्ठिर के साथ तीर्थयात्रा को गये थे और उन्हें सब तीर्थों का वृत्तान्त इन्होंने बतलाया था। २. भेड़ा। मेष। वि० बड़े-बड़े रोमों या रोओंवाला।
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लोमश-मार्जार  : पुं० [सं० कर्म० स०] गंध-बिलाव।
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लोमशा  : स्त्री० [सं०] १. वैदिक काल की एक स्त्री जो कई मंत्रों की रचयिता मानी जाती है। २. काक-जंघा। ३. बच। ४. अतिबला। ५. केवाँच।
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लोमस  : पुं०=लोमश।
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लोमहर्षक  : वि०=लोमहर्षक।
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लोम-हर्षण  : पुं० [सं० ष० त०] १. पुराणों के अनुसार व्यास के एक शिष्य का नाम जो उग्रस्रवा के पुत्र थे। इन्हीं को सूत भी कहते हैं। २. रोमांच। वि०=रोम-हर्षक।
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लोमांच  : पुं० =रोमांच।
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लोमाश  : पुं० [सं० लोमन्√अश् (भोजन)+अण्] [स्त्री० लोमाशिका] गीदड़। श्रृंगाल।
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लोय  : पुं० [सं० लोक] लोग। पुं०=लोयन (लोचन)। स्त्री० =लौ (लपट)। अव्य०=लौ (तक)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लोयन  : पुं० [?] लासा, जिससे चिड़ियाँ फँसाई जाती हैं।
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लोर  : वि० [सं० लोल] १. लोल। चंचल। २. अभिलाषी। इच्छुक। पुं० [सं० लोल] १. कान का कुंडल। २. लटकन। पुं० =रोर। (शब्द)।
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लोरना  : अ० [सं० लोल] १. चंचल होना। २. इधर-उधर झूलना लहराना या हिलाना। ३. पाने के लिए उत्सुक होना। ललकना। ४. पाने के लिए तेजी से आगे बढ़ना। लपकना। ५. लिपटना। ६. झुकना। ७. लोटना। स० १. चलायमान या चंचल करना। २. हिलाना-डुलाना। ३. नत करना। झुकाना। ४. किसी को नम्र अथवा विनीत करना अथवा बनाना। स० [?] निर्मल या स्वच्छ करना। उदाहरण—हमरा जीवन निंदकु लोरै।—कबीर।
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लोरिक  : पुं० [?] १. उत्तर प्रदेश में प्रचलित एक गीत-कथा का नायक जो आमीर जाति का था, और जिसका प्रेम किसी दूसरे आभीर की चन्दा नामक पत्नी से हो गया था। २. प्रेमी।
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लोरी  : स्त्री० [सं० लाल] वे गीत जो स्त्रियाँ छोटे बच्चों को सुलाने के लिए गाती हैं। ललबी। पुं० [?] एक प्रकार का तोता।
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लोल  : वि० [सं०√लोड् (विक्षिप्त होना)=अच्, ड-लः] १. हिलता हुआ। कंपायमान। २. चंचल। ३. परिवर्तनशील। ४. क्षणिक। ५. उत्सुक। पुं० १. समुद्र में उठनेवाली बहुत बड़ी तथा ऊँची लहर। २. लिंगेन्द्रिय। स्त्री० [?] चोच।
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लोलक  : पुं० [सं० लोल से] १. नथ, बाली आदि में पिरोया जानेवाला लटकन लरकन। २. कान की लौ। लोलकी। ३. घंटी या घंटे के बीच लगा हुआ वह लरकन जो हिलाने से इधर-उधर टकराकर शब्द उत्पन्न करता है।
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लोल-कर्ण  : वि० [सं० ब० स०] जो हर किसी की बात सुनकर सहज में ही उस पर विश्वास कर लेता हो। कान का कच्चा।
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लोलकी  : स्त्री० [हिं० लोलकी] कान के नीचे का वह कोमल भाग जिसमें छेद करके कुण्डल, बाली आदि पहनते हैं।
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लोल-जिन्ह  : वि० [सं० ब० स०] लालची। लोभी। पुं० साँप।
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लोल-दिनेश  : पुं० [सं० कर्म० स०] लोलार्क।
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लोलना  : अ० [सं० लोल] इधर-उधर लहराना या हिलना-डुलना।
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लोला  : स्त्री० [सं० लोल+टाप्] १. चिह्वा जीभ। २. लक्ष्मी। ३. मधु नामक दैत्य की माता। ४. एक योगिनी। ५. एक प्रकार का वृत्त जिसके प्रत्येक चरण में मगण, सगण, मगण, भगण और अंत में दो गुरु होते हैं। ६. एक प्रकार का छोटा डंडा जिसके दोनों सिरों पर लट्टू लगे रहते हैं।
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लोलार्क  : पुं० [सं० लोल-अर्क, कर्म० स०] बारह आदित्यों में से एक आदित्य।
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लोलित  : भू० कृ० [सं०√लुल् (विमर्दन)+घञ्, =लोल+इत्] १. हिला या हिलाया हुआ। २. क्षुब्ध।
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लोलिनी  : स्त्री० [सं० लोल+इनि-ङीष्] चंचल या चपल स्त्री।
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लोलुप  : वि० [सं०√लुभ्+यङ्, लुक्, द्वित्वादि+अतच्] [भाव० लोलुपता] लोभी। लालची। २. चटोरा। ३. परम उत्सुक। जैसे—युद्ध लोलुप।
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लोलुपता  : स्त्री० [सं० लोलुप+तल्+टाप्] लोलुप होने की अवस्था या भाव।
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लोलुपत्व  : पुं० [सं० लोलुप+त्व]=लोलुपता।
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लोवा  : स्त्री० =लोमड़ी। स्त्री० [सं० लोपाक] लोमड़ी। पुं० =लवा (पक्षी)।
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लोशन  : पुं० [अंस०] घोल।
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लोष्ट  : पुं० [सं०√लोष्ट् (ढेर करना)+घञ्] १. पत्थर। २. मिट्टी आदि का ढेला। ३. चित्र का काम देनेवाली कोई वस्तु ४. लोहे में लगनेवाला जंग। मोरचा।
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लोष्टध्न  : पुं० [सं० लोष्ट√हन्+क] खेतों में मिट्टी के ढेले तोड़ने का पटेला। पाटा।
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लोष्ट-लौह  : पुं० [सं० उपमित० स०] दे० ‘कच्चा लोहा’।
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लोहँड़ा  : पुं० [सं० लीह-भांड] [स्त्री० लोहँड़ी] लोहे का एक प्रकार का बड़ा तसला।
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लोह  : पुं० [सं०√लू (छेदन)+ह (करण)] १. लोहा नामक धातु। २. रक्त। लहू। ३. लाल बकरा। ४. मछली फँसाने का काँटा। ५. हथियार। ६. अगर। वि० ताँबे के रंग का लाल। २. लोहे का बना हुआ।
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लोहकार  : पुं० [सं० लोह√कृ (करना)+अण्, उप० स०] लोहार।
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लोह-किट्ट  : पुं० [सं० ष० त०] लोह चून। (दे०)
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लोह-चून  : पुं० [सं० लोह+चूर्ण] १. लोहे की मैल जो गलाने पर निकलती है। लोह किट्ट। २. लोहे को काटने, रेतने आदि पर निकलने वाले उनके छोटे-छोटे कण।
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लोह-जाल  : पुं० [सं० मध्य० स०] १. लोहे की बनी हुई जाली या जाल। २. योद्धाओं का पहनने का झिलम। ३. आज-कल बीच में खड़ा किया हुआ ऐसा आवरण या व्यवस्था जिसके कारण अन्दर की स्थिति आदि का बाहर वालों को पता न चल सके। (आयरन कर्टेन)
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लोहड़ा  : पुं० =लोढ़ा। पुं०=लोहँड़ा। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लोहड़ी  : स्त्री० =लोढ़ी (त्यौहार)।
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लोहद्रावी (विन्)  : पुं० [सं० लोह√द्रु (गति)+णिच्+णिनि] १. सुहागा। २. अम्लबेंत।
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लोह-नाल  : पुं० [सं० ब० स०] नाराच (अस्त्र)।
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लोह-पाश  : पुं० [सं० मध्य० स०] लोहे की जंजीर या सिक्कड़।
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लोह-बंदा  : पुं० दे० ‘लोहाँगी’। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लोहबान  : पुं० =लोहबान। पुं० [हिं० लोहा] युद्ध।
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लोह-लंगर  : पुं० [हिं० लोहा+लंगर] १. जहाज का लँगर। २. बहुत भारी वस्तु।
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लोह-शंकु  : पुं० [सं० ष० त०] १. लोहे का काँटा। २. एक नरक।
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लोहस  : वि० [सं० लोह से] (द्रव्य) जिसमें लोहे का भी कुछ अंश या मेल हो। (फेरस)
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लोहसार  : पुं० [सं० ष० त०] १. पक्का लोहा। फौलाद। २. फौलाद की जंजीर।
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लोहाँगी  : स्त्री० [हिं० लोहा+अंग+ई] ऐसी लाठी जिसके ऊपरी या निचले अथवा दोनों सिरों पर लोहा लगा हो। (इसका प्रयोग प्रायः मार-पीट के लिए होता है)।
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लोहा  : पुं० [सं० लोह] १. प्रायः काले रंग की एक प्रसिद्ध धातु जिससे अनेक प्रकार के अस्त्र, उपकरण बरतन, यंत्र आदि बनाये जाते हैं। (आयरन)। पद—लोहे की स्याही, लोहे के चने (दे० स्वतंत्र पद)। २. उक्त धातु से बने हुए अस्त्र जो युद्ध में शत्रुओं को काटने-मारने के काम आते हैं। जैसे—कटार, तलवार भाला आदि। मुहावरा—लोहा गहना=किसी से लड़ने के लिए हथियार उठाना। लोहा बजना=तलवारों भालों आदि से युद्ध या लड़ाई होना। मार-काट होना। लोहा बरसना=युद्ध-क्षेत्र में अस्त्रों आदि का बहुत अधिकता से उपयोग होना। घमासान युद्ध होना। (किसी का) लोहा मानना=किसी काम या बात में किसी की योग्यता, शक्ति आदि की श्रेष्ठता अधिक योग्य या शक्तिशाली समझना। (किसी से) लोहा लेना= (क) किसी से डटकर मार-पीट युद्ध या लड़ाई करना। (ख) किसी के सामने उसके बल, योग्यता आदि का मुकाबला करना। टक्कर लेना। भिड़ना। लोहा सहना=लोहा लेना। (राज०)। ३. लोहे का बना हुआ कोई उपकरण। लोहे की चीज या सामान। जैसे—लोहे का रोजगार लोहे की दूकान। ४. लाल रंग का बैल। वि० [स्त्री० लोही] १. लाल। २. बहुत अधिक कठोर या कड़ा।
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लोहाना  : अ० [हिं० लोहा+आना (प्रत्यय)] किसी चीज का अधिक समय तक लोहे का बरतन में रखे रहने के कारण लोहे के गुण, रंग स्वाद आदि से युक्त होना। पुं० वैश्यों की एक जाति।
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लोहार  : पुं० [सं० लौहकार] [स्त्री० लोहारिन या लोहाइन] एक जाति जो लोहे की चीजें बनाने का काम करती है।
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लोहारखाना  : पुं० [हिं० लोहार+फा० खानः] वह स्थान जहाँ बैठकर लोहार लोग लोहे की चीजें बनाते हैं।
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लोहारी  : स्त्री० [हिं० लोहार+ई (प्रत्यय)] लोहार अथवा लोहे की चीजें बनाने का काम या पेशा।
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लोहा-सारंग  : पुं० [हिं०] लगलग की जाति का एक प्रकार का पक्षी।
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लोहित  : वि० [सं०√रुह् (उगना)+इतन्, र—ललम्] १. लाल रंग का। लाल। २. ताँबे का बना हुआ। पुं० १. लाल रंग। २. लाल चंदन। ३. मंगल ग्रह। ४. साँप। ५. एक तरह का हिरन। ६. ब्रह्मपुत्र नदी। ७. पलक संबंधी एक रोग। ८. गौतम बुद्ध का एक नाम।
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लोहितक  : पुं० [सं० लोहित+कन्] १. पद्मराग या लाल की तरह का एक प्रकार का घटिया रत्न। २. फूल नामक धातु। ३. आधुनिक रोहतक नगर का पुराना नाम। ४. दे० ‘लोहित’।
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लोहित-चंदन  : पुं० [सं० उपमित० स०] केसर।
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लोहित-मृत्तिका  : स्त्री० [सं० कर्म० स०] गेरू।
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लोहित-सागर  : पुं० [सं०] अफरीका और अरब के बीच का वह समुद्र जो पहले भू-मध्य सागर से पृथक् था, पर अब बीच में स्वेज नहर बन जाने से उक्त सागर के साथ संबंद्ध हो गया। (रेड सी)
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लोहितांग  : पुं० [सं० लोहित-अंग, ब० स०] १. मंगल ग्रह। २. कांपिल्ल वृक्ष।
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लोहिताक्ष  : पुं० [सं० लोहित-अक्षि० ब० स०,+षच्] १. एक तरह का साँप। २. कोयल। ३. विष्णु। ४. काँख। कोख। ५. चूतड़। नितंब।
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लोहिताक्षक  : पुं० [सं०] एक तरह का साँप।
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लोहिताश्व  : पुं० [सं० लोहित-अश्व, ब० स०] १. अग्नि। २. शिव।
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लोहितिमा (मन्)  : स्त्री० [सं० लोहित+इमनिच्] रंग के विचार से लोहित होने की अवस्था या भाव। लालिमा। लाली।
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लोहितोद  : पुं० [सं० लोहित-उदक, ब० स० उदादेश] एक नरक। (पुरा०)
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लोहित्य  : पुं० [सं०] १. ब्रह्मपुत्र नदी। २. पुराणानुसार एक समुद्र जो कुश द्वीप के पास है। ३. एक प्राचीन जनपद या बस्ती।
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लोहिनी  : स्त्री० [सं० लोहित+ङीष्, न—आदेश] लाल वर्णवाली स्त्री।
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लोहिया  : वि० [हिं० लोहा+इया (प्रत्यय)] १. लोहे का बना हुआ। २. लाल रंग का। जैसे—लोहिया घोड़ा। पुं० १. लोहे की चीजों का व्यापार करनेवाला व्यक्ति। लोहे का रोजगारी। २. राजस्थानी वैश्यों की एक जाति। ४. लाल रंग का बैल।
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लोही  : वि० [सं० लोहिन्] [स्त्री० लोहिनी] लाल रंग का सुर्ख। स्त्री० [सं० लोह] प्रभात के समय की लाली। मुहावरा—लोही फटना=प्रभात के समय सूर्य कि किरणों की लाली दिखाई देना। पौ फटना। स्त्री० १. =लोई (चुगली)। २. =लोई (ऊनी चादर)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लोहू  : पुं० =लहू (रक्त)।
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लोहे की स्याही  : स्त्री० [हिं०] एक प्रकार का काला रंग जो शीरे में लोह-चून का खमीर उठाकर बनाई जाती और कपड़ों की छपाई, रँगाई आदि में काम आती है।
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लोहे के चने  : पुं० [हिं०] बहुत ही कठिन, दुष्कर तथा श्रम-साध्य काम। मुहावरा—लोहे के चने चबाना=उतना ही दुस्साध्य तथा लगभग असंभव कार्य करना जितना लोहे के चने चबाना होता है।
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लोहोत्तम  : पुं० [सं० लोह-उत्तम, स० त०] सोना।
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लोह्य  : पुं० [सं०] पीतल।
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