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राँक  : वि० =रंक (दरिद्र)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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राँकड़  : स्त्री० [देश] कम उपजाऊ भूमि। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रांकव  : पुं० [सं० रकु+अण्] रंक नामक भेड़ या मृग के रोओं का बना हुआ वस्त्र।
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राँग  : पुं० =राँगा। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रांग  : वि० [सं० रंग+अण्] १. रंग-सम्बन्धी। रंग या रंगों का। जैसे—रांग-विन्यास। २. रंगों से युक्त। रंगीन।
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राँगड़  : पुं० [?] मुसलमान राजपूतों की एक जाति।
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राँगड़ी  : स्त्री० [हिं० राँगड़] १. दक्षिणी-पश्चिमी मालव तथा मेवाड़ के आस-पास की प्रांतीय बोली या विभाषा। २. पंजाब में होनेवाला एक प्रकार का चावल।
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राँगा  : पुं० [सं० रंग] सफेद रंग की एक प्रसिद्ध धातु जो अपेक्षया नरम या मुलायम होती है।
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राँच  : वि० =रंच (तनिक)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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राँचना  : अ० [सं० रंजन] १. रंग से युक्त होना। रंग पकड़ना। २. किसी के प्रेम में अनुरक्त होना। स० १. किसी को अपने प्रेम में अनुरक्त करना। २. रंग से युक्त करना रँगना। स०=रचना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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राँजना  : स० [सं० रंजन] १. रंजित करना। रँगना। स० [हिं० राँगा] राँगे के योग से कोई चीज जोड़ना। राँगा का टांका लगाना। स०=आँजना (आँखों में अंजन लगाना)।
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राँटा  : पुं० [देश] १. टिटिहरी चिड़िया। टिटिटभ। २. चरखा। ३. चोरों की सांकेतिक बोली। पुं० =रहट। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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राँटी  : स्त्री० [हिं० राँटा] टिटिहरी।
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राँड़  : वि० स्त्री० [सं० रंडा] (स्त्री) जिसका पति मर चुका हो तथा जिसने दूसरा विवाह आदि न किया हो। स्त्री० १. विधवा स्त्री। २. वेश्या। ३. स्त्रियों की एक गाली।
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राँढ़  : वि० स्त्री०=राढ़। पुं० [हिं० राढ़ देश] बंगाल में होनेवाला एक प्रकार का चावल।
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राँढ़ना  : स० [सं० रुदन] विलास करना। रोना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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राँध  : पुं० [सं० परान्त=दूसरी ओर] पड़ोस। पार्श्व। बगल। पद—राँध-पड़ोस। अव्य० निकट। पास। समीप। स्त्री० [हिं० राँधना] राँधने की क्रिया ढंग या भाव।
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राँधना  : स० [सं० रंधन] (भोजन आदि) पकाना। पाक करना। जैसे—दाल या चावल राँधना।
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राँधपड़ोस  : पुं० [हिं० राँध=पास+पड़ोस] आसपास या पार्श्व का स्थान। प्रतिवेश। पड़ोस। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रांपी  : स्त्री० [देश] पतली खुरपी के आकार का मोचियों का एक औजार जिससे वे चमड़ा काटते, छीलते और साफ करते हैं।
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राँभना  : अ०=रँभना।
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राँवाँ  : पुं० [?] १. गाँव या कस्बे के पास की जंगली या ऊसर भूमि। २. ऐसी भूमि पर पशु चराने का कर। सर्व० आप। श्रीमान। (पूरब में सम्बोधन)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रा  : विभ०=का। उदाहरण—कामाणि करग सुबाण कामरा।—प्रिथीराज। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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राआ  : पुं०=राजा। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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राइ  : पुं०=राय (राजा)। वि० सबसे बढ़कर। उत्तम। स्त्री०=राय (सम्मति)। स्त्री०=राजि (पंक्ति)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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राइता  : पुं० =रायता। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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राइफ़ल  : स्त्री० [अ०] वह विशिष्ट प्रकार की बढ़िया बन्दूक जिसकी नली या नाल के अन्दर चक्करदार गराड़ियाँ बनी होती हैं और जिसकी गोली उन गराड़ियों में से चक्कर काटती हुई निकलती है। ऐसी बन्दूक की गोली दूर तक जाती, प्रायः निशाने पर ठीक लगती और घातक मार करती है।
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राइरंगा  : पुं० =रामदाना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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राई  : स्त्री० [सं० राजिका, प्रा० राइआ] १. एक प्रकार की बहुत छोटी सरसों जिसका स्वाद बहुत तीक्ष्ण होता है। पद—राई रत्ती करके=(क) छोटी से छोटी रकम या तौल का ध्यान रखते हुए। जैसे—राई रत्ती करके सारा मकान छान डालना। तुम्हारी आँखों में राई नोन=ईश्वर करे तुम्हारी बुरी नजर न लगने पावे। मुहावरा—राई काई करना= (क) बहुत छोटे-छोटे टुकडे कर डालना। (ख) पूरी तरह से कुचल या नष्ट कर देना। राई नोन (या लोन) उतारना=नजर लगे हुए बच्चे पर उतारा या टोटका करके राई और नमक आग में डालना, जिससे नजर के प्रभाव का दूर होना माना जाता है। (किसी पर) राई नोन फेरना=किसी सुंदर व्यक्ति को बुरी नजर से बचाने के लिए उसके सिर के चारों ओर से राई और नमक घुमाकर या उतारकर फेंकना। (एक प्रकार का टोटका)। राई से पर्वत करना= (क) जरा सी बात को बहुत बढ़ा देना। (ख) बहुत तुच्छ या हीन को बहुत बड़ा बनाना। २. बहुत थोड़ी मात्रा या परिमाण। जैसे—राई भर नमक और दे दो। स्त्री० [हिं० राइ] राइ अर्थात् राजा होने की अवस्था या भाव। राजापन। स्त्री० [?] १. एक प्रकार का नृत्य। २. वह मंडली जो उक्त नृत्य करती हो। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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राउ  : पुं० राव (छोटा राजा)। स्त्री० [सं० रव] १. रव शब्द। २. मधुर शब्द। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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राउत  : पुं० =रावत।
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राउर  : पुं० [सं० राज+पुर, प्रा० राय+उर] राजाओं के महल का अंतःपुर। रनवास। जनानखाना। वि० श्रीमान् का। आप का। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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राउल  : पुं० =रावल (छोटा राजा)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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राकस  : पुं० [स्त्री० राकसिन, राकसी]=राक्षस। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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राकसगद्दा  : पुं० [हिं० राकस+गद्दा] कदंब नामक बेल और उसकी जड़।
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राकस ताल  : पुं० =राक्षस ताल।
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राकस-पत्ता  : पुं० [हिं० राकस=राक्षस+हिं० पत्ता] जंगली घीकुँआर जिसे काँटल और बबूर भी कहते हैं।
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राकसिन  : स्त्री०=राक्षसी।
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राकसी  : वि० स्त्री०=राक्षसी।
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राका  : स्त्री० [सं०√रा (दान)+क+टाप्] १. पूर्णिमा की रात। २. पूर्णिमा या पूर्णमासी का दिन अथवा पर्व। ३. खुजली नामक रोग। ४. युवती जिसे पहले-पहल रजोदर्शन हुआ हो।
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राकापति  : पुं० [सं० ष० त०] चंद्रमा।
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राकिम  : वि० [अ०] लिखनेवाला लेखक।
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राकेश  : पुं० [सं० राका-ईश, ष० त०] चंद्रमा।
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राक्षस  : पुं० [सं० रक्षस्+अण्] [स्त्री० राक्षसी] १. असुरों आदि की तरह की एक बहुत ही भीषण तथा विकराल योनि। इस योनि के व्यक्ति बहुत ही अत्याचारी क्रूर, और नृशंस कहे गये हैं, और कुबेर के धनकोश के रक्षक कहे गये हैं। दैत्य। निशिचर। निश्चर। २. आठ प्रकार के विवाहों में से एक प्रकार का विवाह जो राक्षसों में प्रचलित था और जिसमें लोग कन्या को जबर्दस्ती उठा ले जाते और उससे विवाह कर लेते थे। ३. बहुत ही दुष्ट प्रकृति का और निर्दय व्यक्ति। ४. साठ संवत्सरों में से उनचासवाँ संवत्सर। ५. वैद्यक में गंधक और पारे के योग से बननेवाला एक प्रकार का रसौषध।
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राक्षस-ताल  : पुं० [हिं०] तिब्बत की एक झील। रावण-ह्रद। मानतलाई।
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राक्षसी  : स्त्री० [सं० राक्षस+ङीष्] १. राक्षस की स्त्री। २. राक्षस स्त्री। दुष्ट, क्रूर स्वभाववाली स्त्री। वि० १. राक्षस का। राक्षस संबंधी। २. राक्षसों की तरह का। अमानुषिक तथा निर्दयतापूर्ण। जैसे—राक्षसी अत्याचार।
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राख  : स्त्री० [सं० रक्षा] किसी बिलकुल जले हुए पदार्थ का अवशेष। भस्म। राख। जैसे—कोयले की राख।
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राखना  : स० [सं० रक्षण] १. किसी से कोई बात छिपाना। कपट करना। २. रोक रखना। जाने न देना। ३. किसी पर कोई अभियोग लगाना या आरोप करना। ४. दे० ‘रखना’। ५. दे० ‘रखाना’। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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राखी  : स्त्री० [सं० रक्षा] रक्षा-बंधन के दिन बहन द्वारा भाई को और ब्राह्मण द्वारा यजमान को बाँधा जानेवाला सूत्र। क्रि० प्र०—बांधना। स्त्री० १. =राख (भस्म)। २. =रखवाली। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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राखीबंद  : वि० [हिं० राखी+सं० बंध] १. (पुरुष) जिसे किसी स्त्री ने राखी बाँधकर अपना भाई या भाई के समान बना लिया हो। २. (स्त्री) जो किसी पुरुष को राखी बाँधती हो, और इस प्रकार उसकी बहन बन गई हो।
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राग  : पुं० [सं०√रञ्ज् (रंगना)+घञ्] १. किसी चीज को रंग से युक्त करने की क्रिया या भाव। रंजित करना। रँगना। २. रँगने का पदार्थ या मसाला। रंग। ३. लाल रंग। ४. लाल होने की अवस्था या भाव। लाली। ५. प्राचीन भारत में, शरीर में लगाने का वह सुगंधित लेप जो कपूर, कस्तूरी, चंदन आदि से बनाया जाता था। अंगराग। ६. पैर में लगाने का आलता। ७. किसी के प्रति होनेवाला अनुराग या प्रेम। ८. किसी अच्छी चीज या बात के प्रति होनेवाला अनुराग, और उसे प्राप्त करने की इच्छा या कामना। अभिमत या प्रिय वस्तु पाने की अभिलाषा। ९. मन में रहनेवाली सुखद अनुभूति। १॰. खूबसूरती। सुंदरता। ११. क्रोध। गुस्सा। १२. कष्ट। तकलीफ। पीड़ा। १३. ईर्ष्या। द्वेष। मत्सर। १४. मन प्रसन्न करने की क्रिया या मनोरंजन। १५. राजा। १६. सूर्य। १७. चंद्रमा। १८. भारत के शास्त्रीय संगीत में वह विशिष्ट गान-प्रकार, जिसका स्वरूप स्वरों के उतार-चढ़ाव के विचार से निश्चित किया हुआ और ताल लय आदि विशिष्ट अंगों तथा उपांगों से युक्त होता है। विशेष—आरंभ में भरत और हनुमत् के मत से ये छः मुख्य राग निरूपति हुए थे।—भैरव, कौशिक (मालकौस) हिंडोल, दीपक, श्री और मेघ। कुछ परिवर्ती आचार्यों के मत से श्री, वसंत, पंचम, भैरव, मेघ और नट नारायण तथा कुछ आचार्यों के मत से मालव, मल्लार, श्री, वसंत, हिंडोल और कर्णाट ये ६ राग है। परवर्ती आचार्यों ने प्रत्येक की ६-६ रागिनियाँ और ६-६ पुत्र भी माने थे, और वे सब पुत्र भी राग कहलाने लगे थे। ये रागिनियाँ और राग अपने मूल या जनक राग की छाया से बहुत कुछ युक्त होते हैं। आगे चलकर सैकड़ों नई रागिनियाँ तथा राग बने थे, जिनकी स्वर-योजना आदि बहुत कुछ निरुपति तथा निश्चित है। इन सबकी गणना शास्त्रीय संगीत के अंतर्गत होती है, और लोक में इन्हें पक्का गाना कहते हैं। मुहावरा—अपना राग अलापना=अपनी ही बात कहना। अपने ही विचार प्रकट करना। दूसरों की बात न सुनना। १९. एक प्रकार का वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में १३ अक्षर (र, ज, र, ज और ग) होते हैं।
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रागचूर्ण  : पुं० [सं० ब० स०] १. कामदेव। २. खैर का पेड़।
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रागच्छन्न  : पुं० [सं० तृ० त०] १. कामदेव। २. श्रीरामचन्द्र।
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रागदारी  : स्त्री० [हिं० राग+फा० दारी] गाने का वह प्रकार जिसमें भारत से शास्त्रीय संगीत-शास्त्र के नियमों का ठीक तरह से पालन होता हो। ठीक तरह से राग-रागिनियाँ गाने की क्रिया या प्रकार। विशेष—इसमें गीत के बोलों के ताल-बद्ध उच्चारण भी होते हैं और शास्त्रीय दृष्टि से तीन पलटे भी होते हैं।
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रागद्रव्य  : पुं० [सं० ष० त०] राग।
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रागधर  : पुं० =शारंगधर (विष्णु) उदाहरण—तुलसी तेरो रागधर, तात, मात गुरुदेव।—तुलसी। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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रागना  : अ० [सं० राग] १. रँगा जाना। रंजित होना। २. किसी के प्रति अनुरक्त होना। ३. किसी काम या बात में निमग्न या लीन होना। स० १. रँगना। २. प्रयत्न करना। ३. अनुरक्त करना। स० [हिं० राग] १. गीत आदि गाना। २. राग अलापना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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राग-पुष्प  : पुं० [सं० ब० स०] गुल-दुपहरिया नामक पौधा और उसका फूल।
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राग-पुष्पी  : स्त्री० [सं० ब० स+ङीप्] जवा या जपा नामक फूल और उसका पौधा।
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राग-माला  : स्त्री० [सं० ष० त०] कोई ऐसा गीत या गेय पद जिसमें एक साथ कई शास्त्रीय रागों का प्रयोग किया गया हो।
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राग-रंग  : पुं० [सं० द्व० स०] १. आनंद-मंगल। २. कोई ऐसा उत्सव जिसमें आनंद-मंगल मनाया जाता हो।
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राग-रज्जु  : पुं० [सं० ब० स०] कामदेव।
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राग-लता  : स्त्री० [सं० मध्य० स०] कामदेव की स्त्री, रति।
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राग-षाडव  : पुं० [सं० मध्य० स०] १. अंगूर तथा अनार के योग से बनाया जानेवाला एक तरह का खाद्य। २. आम का मुरब्बा।
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राग-सागर  : पुं० [सं० स० त०] कोई ऐसा गेय पद या जिसमें एक साथ बहुत से शास्त्रीय रागो का प्रयोग किया जाता हो।
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रागसारा  : स्त्री० [सं० ब० स०+टाप्] मैनसिल (खनिज पदार्थ)।
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रागांगी  : स्त्री० [सं० राग-अंग, ब० स०+ङीष् ] मजीठ। (लता)।
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रागान्वित  : वि० [सं० राग-अन्वित, तृ० त०] १. जिसे राग या प्रेम हो। २. क्रोध से युक्त। क्रुद्ध। ३. अप्रसन्न। नाराज।
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रागारुण  : वि० [सं० राग-अरुण, तृ० त०] तो किसी प्रकार के राग, रंग, प्रेम आदि के कारण अरुण या लाल हो रहा हो। उदाहरण—मधुर माधवी संध्या में जब रागारुण रवि होता अस्त।—पंत।
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रागिनी  : वि० [सं० रागिनी] १. संगीत में किसी राग की पत्नी। २. भारतीय शास्त्रीय संगीत में कोई ऐसा छोटा राग जिसके स्वरों के उतार-चढ़ाव आदि का स्वरूप निश्चित और स्थिर हो। ३. चतुर और विदग्धा स्त्री। ४. मेना की बड़ी कन्या का नाम। ५. जय श्री नामक लक्ष्मी।
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रागिब  : वि० [अ०] १. इच्छुक। २. प्रवृत्त।
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रागी (गिन्)  : वि० [सं०√रंज्+घिनुण, वा राग+इनि] [स्त्री० रागिनी] १. राग से युक्त। २. रँगा हुआ। ३. रेंगनेवाला। ४. किसी के प्रति अनुरक्त या आसक्त। ५. लाल सुर्ख। ६. विषयवासना में पड़ा या फँसा हुआ। पुं० [सं० रागिन्] [स्त्री० रागिनी] १. अशोक वृक्ष। २. छः मात्राओं वाले छंदों का नाम। पुं० [हिं० राग+ई (प्रत्यय)] वह गवैया जो राग-रागिनियाँ गाता हो। शास्त्रीय संगीत का ज्ञाता। (पंजाब)। स्त्री० [?] मँडुआ या मकरा नामक कदन्न। स्त्री०=राज्ञी। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रागेश्वरी  : स्त्री० [सं० राग-ईश्वरी, ष० त०] संगीत में खम्माच ठाठ की एक रागिनी।
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राघव  : पुं० [सं० रघु+अण्] १. रघु के वंश में उत्पन्न व्यक्ति। २. श्रीरामचन्द्र। ३. दशरथ। ४. अज। ५. एक प्रकार की बहुत बड़ी समुद्री मछली।
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राचना  : स० [हिं० रचना] रचना करना। बनाना। अ० रचा या बनाया जाना। बनना। स० [सं० रंजन] रंग से युक्त करना। रँगना। अ० १. रंग से युक्त होना। रँगा जाना। २. किसी के प्रेम में पड़ना। अनुरक्त होना। ३. किसी काम या बात में मग्न या लीन होना। ४. प्रसन्न होना। ५. भला लगना। फबना। ६. सोच में पड़ना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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राछ  : स्त्री० [सं० रक्ष] १. कारीगरों का औजार। उपकरण। २. लकड़ी के अंदर का ठोस और पक्का अंश। हीर। ३. जुलाहों के करघों में का कंघी नामक उपकरण जिसकी सहायता से ताने के सूत ऊपर उठने और नीचे गिरते हैं। ४. बरात। मुहावरा—विवाह के समय वर को पालकी पर चढ़ाकर किसी जलाशय या कुएँ की परिक्रमा कराना। ५. जुलूस। ६. वह खूँटा जिसके चारों ओर चक्की या जाँते का ऊपरी पाट घुमता या घुमाया जाता है। ७. हथौड़ा। ८. बुदेलखंड में श्रावण मास में गाये जानेवाले एक प्रकार के गीत।
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राछछ  : पुं०=राक्षस। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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राछ-बँधिया  : पुं० [हिं० राछ+बाँधना] वह जो जुलाहे के साथ रहकर राछ बाँधने का काम करता हो।
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राछस  : पुं० =राक्षस। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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राज  : पुं० [सं० राज्य] १. राजा के अधिकार में रहने वाले क्षेत्र या भूखंड। राज्य। २. राजकीय शासन हुकूमत। ३. राजाओं का सा वैभव और सुख तथा उसका भोग। मुहावरा—राज रजना= (क) राज्य का शासन करना। (ख) राजाओं की तरह रहकर सब प्रकार के सुख भोगना। (किसी का) राज रजाना=राजाओं की तरह बहुत अधिक सुखपूर्वक रखना या सुख-भोग कराना। ४. किसी क्षेत्र या विषय में होनेवाले किसी का पूरा अधिकार। जैसे—आज कल तो पेशेवर नेताओं का राज है। ५. किसी के पूर्ण अधिकार या स्वामित्व की पूरी अवधि या काल। जैसे—मैं तो पिता जी के राज में सब सुख भोग चुका। वि० १. ‘राजा’ का वह संक्षिप्त रूप जो यौगिक के आरंभ में लगाकर नीचे लिखे अर्थ देता है। (क) राज-संबंधी या राजा का। जैसे—राज-गुरु, राज-महल। (ख) प्रधान या मुख्य। जैसे—राजवैद्य। (ग) बहुत बड़ा या बड़िया। जैसे—राजहंस। २. राज या शासन संबंधी। जैसे—राजनीति। सर्व० राजाओं या बड़ों के लिए एक प्रकार का संबोधन। उदाहरण—राज लगैं मेल्हियौ रुषमणि।—प्रिथीराज। पुं० [सं० राजन्] १. राजा। २. वह मिस्त्री जो ईटों की जुड़ाई तथा पलस्तर आदि करता हो। मकान बनानेवाला कारीगर। पुं० [फा० राज] गुप्त या छिपी हुई बात। भेद। रहस्य।
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राजक  : वि० [सं०√राज् (दीप्ति)+ण्वुल-अक] प्रकाशमान्। चमकानेवाला। पुं० [राजन्+कन्] १. राजा। २. काला अगरु।
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राज-कथा  : स्त्री० [सं० ष० त०] राजाओं का इतिहास या तवारीख।
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राज-कदंब  : पुं० [सं० ष० त० परनिपात] कदंब की एक जाति।
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राज-कन्या  : स्त्री० [सं० ष० त०] १. राजा की पुत्री। राजकुमारी। २. केवड़े का फूल।
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राजकर  : पुं० [सं० मध्य० स०] राजा या राज्य की ओर से लगाया हुआ कर।
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राजकर्कटी  : स्त्री० [सं० ष० त०] एक प्रकार की बड़ी ककड़ी।
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राज-कर्ण  : पुं० [सं० ष० त०] हाथी की सूँड़।
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राजकर्ता  : पुं० न १. वह जो किसी को राजगद्दी पर बैठाता हो। २. फलतः ऐसा व्यक्ति जिसमें किसी को राजगद्दी पर बैठाने तथा उतारने की भी सामर्थ्य हो। ३. वह जो राजा या शासन-सम्बन्धी बड़े और महत्त्वपूर्ण कार्य करता हो।
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राजकर्म (र्मन्)  : पुं० [सं० ष० त०] १. राजा के कृत्य। २. राजा के कर्त्तव्य।
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राजकला  : स्त्री० [सं० ष० त०] चंद्रमा की सोलह कलाओं में से एक।
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राजकल्याण  : पुं० [सं०] संगीत में कल्याण राग का एक प्रकार का भेद।
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राजकशेरु  : पुं० [सं० ष० त० परनिपात] नागरमोथा।
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राजकाज  : पुं० [सं० राजकार्य] राज्य या शासन के प्रतिदिन के या महत्त्वपूर्ण काम।
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राजकीय  : वि० [सं० राजन्+छ-ईय, कुक्-आगम] राज्य संबंधी। राज्य का। जैसे—राजकीय अधिकारी।
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राजकीय-समाजवाद  : पुं० [सं०] आधुनिक समाजवाद की वह शाखा जिसका मुख्य सिद्धांत यह है कि लोकोपयोगी कल-कारखाने और शिल्प राज्य के अधिकार और नियंत्रण में रहने चाहिए। स्टेट सोशलिज्म।
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राजकुँअर  : पुं० =राजकुमार। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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राजकुमार  : पुं० [सं० ष० त०] [स्त्री० राजकुमारी] राजा का पुत्र।
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राजकुल  : पुं० [सं० ष० त०] १. राजा का कुल या वंश। २. प्रसाद। ३. न्यायालय।
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राजकोल  : पुं० [सं० ष० त० परनिपात] बड़ा बेर (फल) और उसका पेड़।
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राजकोलाहल  : पुं० [सं० ष० त० परनिपात] संगीत में ताल के साठ मुख्य भेदों में से एक।
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राजकोष  : पुं० [सं०] १. वह स्थान जहाँ राजकीय धनसंपत्ति सुरक्षित रूप में रखी जाती है। सरकारी खजाना। २. आज-कल प्रमुख नगरों में वह विशिष्ट स्थान जहाँ से राज्य के आर्थिक लेन-देन के सब काम होते हैं। (ट्रेजरी)।
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राजकोषातक  : पुं० [सं० ष० त०, परनिपात] बड़ी तरोई। बड़ा नेनुआ।
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राजखर्जूरी  : स्त्री० [सं० मध्य० स०] पिंडखजूर।
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राजग  : वि० पुं० =राजगामी (दे०)।
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राजगद्दी  : स्त्री० [हिं० राजा+गद्दी] १. वह आसन या गद्दी जिस पर राजा बैठता है। राजसिंहासन। २. वह अधिकार जो उक्त आसन पर बैठने पर प्राप्त होता है। ३. नये राजा के पहले पहल गद्दी पर बैठने के समय का उत्सव तथा दूसरे कृत्य। राज्याभिषेक। राज्यारोहण। ४. लाक्षणिक अर्थ में बहुत बड़ा अधिकार। (व्यंग्य)।
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राजगामी  : वि० [सं०] (संपत्ति) जो उत्तराधिकारी के अभाव में राज्य या शासन के अधिकार में आ जाय। पुं० ऐसी संपत्ति जो उत्तराधिकारी के अभाव में राज्य के अधिकार में आ गई हो। नजूल। (एस्चीट)
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राज-गिद्ध  : पुं० [सं० राज-गृध्र] काले चमकीले रंग का एक प्रकार का गिद्ध जो प्रायः अकेला ही रहता है।
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राजगिरि  : पुं० [सं० मध्य० स०] १. मगध देश का पर्वत। २. बथुआ नामक साग। ३. दे० ‘राजगृह’।
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राजगी  : स्त्री० [हिं० राजा+गी (प्रत्यय)] राजा होने की अवस्था, पद या भाव। राजत्व। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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राजगीर  : पुं० [हिं० राज+फा० गीर] [भाव० राजगीरी] मकान बनानेवाला कारीगर। राज। थवई।
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राजगीरी  : स्त्री० [हिं० राजगीर+ई (प्रत्यय)] राजगीर का कार्य या पद।
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राजगृह  : पुं० [सं० ष० त०] १. राजा के रहने का महल। राज-प्रसाद। २. बिहार में पटने के पास का एक प्रसिद्ध प्राचीन स्थान जिसे पहले गिरिवज्र कहते थे।
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राजघ  : वि० [सं० राजन्√हन् (हिंसा)+क] १. राजा को मार डालनेवाला। राजा की हत्या करनेवाला। २. बहुत तीव्र या तेज।
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राज-घड़ियाल  : पुं० [हिं० राज+घड़ियाल] मध्य युग में एक प्रकार का समय-सूचक यंत्र जिसमें निश्चित समयों पर घडियाल या घंटा भी बजता था। उदाहरण—नव पौरी पर दसँव दुआरा। तेहि पर बाज राजघरियारा।—जायसी।
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राजचंपक  : पुं० [सं० ष० त० परनिपात] पुन्नाग का फूल। सुलताना चंपा।
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राजचार  : पुं० [सं० राजाचार] राजाओं के यहाँ किये जाने या होनेवाले आचार-व्यवहार। उदाहरण—मैं भाँवरि नेवछावरि, राजचार सब कीन्ह।—जायसी।
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राज-चिन्हक  : पुं० [सं० ष० त० परनिपात+कन्] शिश्न। उपस्थ।
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राजचूड़ामणि  : पुं० [सं० ष० त०] ताल के साठ भेदों में से एक।
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राजजंबू  : पुं० [सं० ष० त० परनिपात] १. बड़ा जामुन। फरेंदा। जामुन। २. पिंड खजूर।
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राजजीरक  : पुं० [सं० ष० त० परनिपात] एक प्रकार का जीरा।
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राजतंत्र  : पुं० [सं० ष० त०] १. ऐसा राज्य या शासन जिसमें सारी सत्ता एक राजा के हाथ में हो। (मॉनर्की) २. वह पद्धति या प्रणाली जिसके अनुसार उक्त प्रकार का शासन होता है। ३. राज्य के शासन करने के नियम, प्रकार या सिद्धान्त। (पॉलिटी)।
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राजत  : वि० [सं० रजत+अण्] १. रजत संबंधी। चाँदी का। २. रजत या चांदी का बना हुआ। पुं० रजत (चाँदी)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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राजतरंगिणी  : स्त्री० [सं० ष० त०] कल्हण कृत काश्मीर का एक प्रसिद्ध संस्कृत ऐतिहासिक ग्रंथ जिसमें पीछे कई पंडितों ने बहुत सी बातें बढ़ाई थीं। इसकी रचना का क्रम अब तक चल रहा है।
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राजतरु  : पुं० [सं० ष० त० परनिपात] १. कर्णिकार का वृक्ष। कनियारी। २. अमलतास।
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राज-तरुणी  : स्त्री० [सं० ष० त०] १. सफेद तथा बड़े फूलोंवाली एक तरह की गुलाब की लता। २. बड़ी सेवती।
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राजता  : स्त्री० [सं० राजन्+तल्+टाप्] १. राजा होने की अवस्था, पद या भाव। राजत्व।
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राज-तिलक  : पुं० [सं० ष० त०] १. राजा को लगाया जानेवाला तिलक। २. विशेषतः राज्या-रोहण के समय राजा को लगाया जानेवाला तिलक। ३. वह उत्सव जो नये राजा को सिंहासन पर बैठाकर तिलक लगाने के अवसर पर होता है।
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राजत्व  : पुं० [सं० राजन्+त्व] १. राजा होने की अवस्था, पद या भाव।
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राज-दंड  : पुं० [सं० ष० त०] १. राजा के हाथ में रहनेवाला वह दंड या डंडा जो उसके शासक होने का प्रतीक होता है। २. राजा या राज्य के द्वारा अपराधियों, दोषियों आदि को मिलनेवाला दंड या सजा।
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राज-दंत  : पुं० [सं० ष० त० परनिपात] दाँतों की पंक्ति के बीच का वह दांत जो और दांतों से कुछ बड़ा और चौड़ा होता है। चौका।
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राज-दारिका  : स्त्री०=राज-पुत्री।
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राज-दूत  : पुं० [सं० ष० त०] किसी राजा या राज्य का वह दूत जो दूसरे राजा के यहाँ या राज्य में अपने राजा या राज्य का प्रतिनिधित्व करता है।
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राजदृषद्  : स्त्री० [सं० ष० त० परनिपात] चक्की। जाँता।
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राजदेशीय  : वि० [सं० राजन्+देशीयर] जो राजा न होने पर भी राजा के बहुत कुछ समान हो। राजा के तुल्य। राज-कल्प।
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राज-द्रुम  : पुं० [सं० ष० त० परनिपात] अमलतास।
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राजद्रोह  : पुं० [सं० ष० त०] राजा या राज्य के प्रति किया जानेवाला द्रोह। वह कृत्य जिससे राजा या राज्य के नाश या बहुत बड़े अहित की संभावना हो। बगावत। जैसे—प्रजा या सेना को राजा या राज्य से लड़ने के लिए अथवा उसकी आज्ञाओं, नियमों, निश्चयों आदि के विरुद्ध काम करने के लिए उत्तेजित् करना या भड़कना। (सेडिसन)
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राजद्रोही (हिन्)  : पुं० [सं० राजद्रोह+इनि] वह जिसने राजद्रोह किया हो। बागी।
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राज-द्वार  : पुं० [सं० ष० त०] १. राजा के महल का द्वार। राजा की ड्योढ़ी। २. राजा के दरबार जहाँ अपराधियों का न्यास होता था। ३. कचहरी। न्यायालय।
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राज-धर्म  : पुं० [सं० ष० त०] राजा का कर्त्तव्य या धर्म। जैसे—प्रजा का पालन, शत्रु से देश की रक्षा, देश में शान्ति और व्यवस्था बनाये रखना आदि।
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राजधानी  : स्त्री० [सं० ष० त०] १. किसी राज्य का वह नगर जिसमें स्थायी रूप से उसका राजा निवास करता हो। २. किसी राज्य का वह नगर जो उसका केंद्र हो।
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राज-धान्य  : पुं० [सं० मध्य० स०] एक प्रकार का धान। श्यामा।
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राजधुस्तूरक  : पुं० [सं० ष० त० परनिपात] १. एक प्रकार का धतूरा जिसके फूल बड़े और कई आवरण के होते है। २. कनक-धतूरा।
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राज-नय  : पुं० [सं० ष० त०] राजनीति।
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राजनयिक  : वि० =राजनीतिक। पुं० राजनीतिज्ञ।
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राजना  : अ० [सं० राजन=शोभित होना] १. किसी पदार्थ से किसी अन्य पदार्थ या स्थान की शोभा बढ़ना। सुशोभित होना। उदाहरण—मोर-मुकुट की चन्द्रकनि यों राजत-नंद-नंद।—बिहारी। २. किसी व्यक्ति का किसी स्थान पर विराजमान होकर उसकी शोभा बढ़ाना। उदाहरण—मन्दिर मँह राजहिं रानी।—तुलसी।
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राजनामा (मन्)  : पुं० [सं० ब० स०] पटोल। परवल।
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राजनायक  : पुं० [सं०] राजमर्मज्ञ। (दे०)
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राजनीति  : स्त्री० [सं० ष० त०] [वि० राजनीतिक] १. वह नीति या पद्धति जिसके अनुसार किसी राज्य का प्रशासन किया जाता या होता है। २. गुटों, वर्गों आदि की पारस्परिक स्पर्धावाली तथा स्वार्थपूर्ण नीति। (पॉलिटिक्स) जैसे—विद्यालय की राजनीति से आचार्य महोदय दुःखी हैं।
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राजनीतिक  : वि० [सं० राजनीति+ठक्-इक] राजनीति-संबंधी। राजनीति का। जैसे—राजनीतिक आंदोलन, राजनीतिक सभा।
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राजनीतिज्ञ  : वि० [सं० राजनीति√ज्ञा (जानना)+क] राजनीति का ज्ञाता।
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राजन्य  : पुं० [सं० राजन्य+यत्] १. क्षत्रिय। २. राजा। ३. अग्नि। ४. खिरनी का पेड़ और उसका फल।
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राजन्यबंधु  : पुं० [सं० ष० त०] क्षत्रिय।
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राजपंखी  : पुं० =राजहंस।
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राजपंथ  : पुं० =राजपथ।
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राजप  : पुं० [सं० राजन√पा (रक्षा)+क, उप० स०] १. वह जिसे राजा की अल्पयवस्कता, अनुपस्थिति, शारीरिक असमर्थता आदि के समय राजा या राज्य के शासन के सब काम सौपे जायँ। शून्यपाल। २. कुछ संस्थाओं में वह सर्व-प्रधान अधिकारी जो उसके शासन संबंधी सब काम करता हो। (रीजेन्ट)।
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राज-पट्ट  : पुं० [सं० ष० त०] १. राजा का सिंहासन। २. चुंबक पत्थर।
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राज-पति  : पुं० [सं० ष० त०] राजाओं का राजा। सम्राट।
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राज-पत्नी  : स्त्री० [सं० ष० त०] १. राजा की स्त्री। रानी। २. पीतल नामक धातु।
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राजपत्र  : पुं० [सं०] राज्य द्वारा आधिकारिक रूप से प्रकाशित होनेवाला वह सामयिक पत्र जिसमें राजकीय घोषणाएँ, उच्च-पदस्थ कर्मचारियों की नियुक्तियाँ, नये नियम और विधान तथा इसी प्रकार की और प्रमुख सूचनाएँ प्रकाशित होती है। (गज़ट)
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राजपत्रित  : भू० कृ० [सं०] जिसका उल्लेख या घोषणा राजपत्र में हो चुका हो। (गज़टेड) जैसे—राजपत्रित, पदाधिकारी, राजपत्रित सेवा।
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राज-पथ  : पुं० [सं० ष० त०] राजमार्ग। (दे०)
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राज-पद्धति  : स्त्री० [सं० ष० त०] १. राजपथ। २. राजनीति।
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राज-पलाडुं  : पुं० [सं० ष० त० परनिपात] लाल छिलकनेवाला प्याज।
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राज-पाट  : पुं० [सं० राजपट्ट] १. राजा का सिंहासन और राज्य। २. राजा के अधिकार तथा कर्त्तव्य। ३. राज्य का शासन-प्रबंध।
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राज-पाल  : पुं० [सं० राजन्√पाल्+अच्] वह जिससे राजा या राज्य की रक्षा हो। जैसे सेना आदि। पुं० =राज्यपाल। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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राजपीलु  : पुं० [सं० मध्य० स०] महापीलु (वृक्ष)।
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राज-पुत्र  : पुं० [सं० ष० त०] १. राजा का पुत्र या बेटा। राजकुमार। २. प्राचीन भारत की एक वर्णसंकर जाति जिसकी उत्पत्ति क्षत्रिय पिता और कर्ण की माता से कही गई है। ३. एक प्रकार का बड़ा आम। ४. बुध ग्रह।
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राजपुत्रक  : पुं० =राजपुत्र।
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राज-पुत्रा  : स्त्री० [सं० ब० स०+टाप्] राजमाता।
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राजपुत्रिका  : स्त्री० [सं० राजपुत्री+कन्+टाप्, ह्रस्व] १. राजा की बेटी। राजकन्या। २. सफेद जूही। ३. पीतल नामक धातु। ४. एक प्रकार का पक्षी जिसे शरारि भी कहते हैं।
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राज-पुत्री  : स्त्री० [सं० ष० त०] १. राजा की बेटी या लड़की। राजकुमारी। २. रेणुका का एक नाम। ३. कडुआ कद्दू। ४. जाती या जाही नामक पौधा और उसका फूल। ५. मालती। ६. छछूँदर।
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राज-पुरुष  : पुं० [सं० ष० त०] राज्य का कोई प्रधान अधिकारी या कार्यकर्ता। राजकर्मचारी।
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राज-पुष्प  : पुं० [सं० ष० त० परनिपात] १. नागकेसर। २. कनक चंपा।
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राज-पुष्पी  : स्त्री० [सं० ब० स०+ङीष्] १. वन-मल्लिका। २. जाती या जाही। ३. कोंकण प्रदेश में होनेवाला करुणी नामक पौधा और उसका फूल।
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राज-पूजित  : वि० [सं० तृ० त०] १. जिसकी जीविका का प्रबंध राजा या राज्य करता हो। पुं० ब्राह्मण।
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राज-पूज्य  : पुं० [सं० ष० त०] सुवर्ण। सोना। वि० राजा या राज्य जिसे आदरणीय और पूज्य समझता हो।
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राजपूत  : पुं० [सं० राजपुत्र] १. राजपूताने में रहनेवाले क्षत्रियों के कुछ विशिष्ट वंश जो एक बड़ी और स्वतंत्र जाति के रूप माने जाते हैं। २. राजपूताने का क्षत्रिय वीर।
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राजपूताना  : पुं० [हिं० राजपूत+आना (प्रत्यय)] आधुनिक राजस्थान का पुराना नाम जो राजपूतों का गढ़ माना जाता है।
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राज-प्रिय  : पुं० [सं० ष० त०] १. राजपलांडु। २. कोंकण का करुणी नामक पौधा और उसका फूल। ३. लाल धान। ४. लाल प्याज।
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राजप्रिया  : स्त्री० [सं० ष० त०] १. एक प्रकार का धान जो लाल रंग का होता है और जिसका चावल सफेद तथा स्वादिष्ट होता है। तिलवासिनी। २. दे० ‘राजप्रिय’।
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राज-प्रेष्य  : पुं० [सं० ष० त०] राजकर्मचारी।
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राज-फल  : पुं० [सं० मध्य० स०] १. पटोल। परवल। २. बड़ा और बढ़िया आम। ३. खिरनी।
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राज-फला  : स्त्री० [सं० ब० स०+टाप्] जामुन।
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राजबंसी  : पुं० [सं० राजवंश] साँप।
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राजबन्दर  : पुं० [सं० प० त० परनिपात] १. पैवंदी या पेउँदी बैर। २. [ष० त०] लाल आँवला। ३. नमक। लवण।
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राज-बहा  : पुं० [हिं० राज+बहना] वह प्रधान या बड़ी नहर जिससे अनेक छोटी छोटी नहरें खेतों को सींचने के लिए निकाली जाती हैं। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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राज-बाड़ी  : स्त्री० [सं० राजवाटिका] १. राजा की वाटिका। राजवाटिका। २. राजा के रहने का महल।
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राज-बाहा  : पुं० =राज-बहा।
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राज-भंडार  : पुं० [सं० राजभंडार] राजा या राज्य का कोश या खजाना।
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राज-भक्त  : वि० [सं० प० त०] [भाव० राजभक्ति] जो अपने राजा या राज्य के प्रति भक्ति तथा निष्ठा रखता हो।
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राज-भक्ति  : स्त्री० [सं० ष० त०] राजा या राज्य के प्रति भक्ति अर्थात् निष्ठा और श्रद्धा।
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राज-भट्टिका  : स्त्री० [सं० ष० त०] एक प्रकार का जलपक्षी। गोभांडीर। पकरीट।
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राज-भवन  : पुं० [सं० ष० त०] १. वह भवन जिसमें राजा या राज्य का प्रधान अधिकारी निवास करता हो। २. राजमहल। प्रासाद। ३. वह सरकारी भवन जिसमें राजपाल रहते हों। ३. सरकारी अधिकारियों के अतिथि के रूप में ठहरने के लिए बना हुआ भवन।
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राजभूय  : पुं० [सं० राजन्√भू (सत्ता)+क्यप्] राजत्व। राज्य।
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राज-भूत्य  : पुं० [सं० ष० त०] राजा के वेतनभोगी भृत्य।
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राज-भोग  : पुं० [सं० राजभोग्य] १. एक प्रकार का बढ़िया महीन चावल। २. एक प्रकार का बढ़िया आम।
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राज-भोग्य  : पुं० [सं० तृ० त०] १. जावित्री। २. चिरौंजी। पयाल। ३. एक प्रकार का धान। वि० जिसके भोग राजा लोग करते हों।
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राज-मंडल  : पुं० [सं० ष० त०] किसी राज्य के आसपास तथा चारों ओर के राजाओं का मंडल या उनका समाहार।
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राज-मंडूक  : पुं० [सं० ष० त०, परनिपात] एक प्रकार का बड़ा मेढ़क। महामंडूक।
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राज-मराल  : पुं० [सं० ष० त०, परनिपात] राजहंस।
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राज-मर्मज्ञ  : पुं० [सं०] वह जो राज्य के शासन की सभी सूक्ष्म बातें अच्छी तरह समझता हो और राज्य-संचालन के कार्यों में दक्ष हो। (स्टेट्समैन)
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राज-महल  : पुं० [हिं० राज+महल] १. राजा के रहने का महल। राजप्रासाद। २. बंगाल के सन्थाल परगने के पास का एक पर्वत।
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राज-महिषी  : स्त्री० [सं० ष० त०] पट्टरानी।
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राजमात्र  : पुं० [सं० राजन्+मात्रच्] नाम मात्र का राजा।
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राज-मार्ग  : पुं० [सं० ष० त०] १. राजधानी अथवा किसी प्रमुख नगर की सबसे बड़ी और चौड़ी सड़क। २. विशेषतः वह चौड़ी सड़क जो राजभवन को जाती हो।
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राज-माष  : पुं० [सं० ष० त० परनिपात] काली उरद। कालामाष।
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राज-माष्य  : पुं० [सं० राजमाष+यत्] वह खेत जिसमें माष बोया जाता हो। मलार।
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राज-मुद्ग  : पुं० [सं० ष० त०, परनिपात] सुनहले रंग का एक प्रकार का मूँग, जो बहुत स्वादिष्ट होता है।
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राज-मुद्रा  : स्त्री० [सं० ष० त०] १. सरकारी मोहर। २. उक्त मोहर की छाप।
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राज-मुनि  : पुं० [सं० उपमित० स०] राजर्षि।
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राज-मृगांक  : पुं० [सं० ष० त०, परनिपात] वैद्यक में एक प्रकार का रस जो यक्ष्मा रोग में उपकारी माना जाता है।
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राज-यक्ष्मा (क्ष्मन्)  : पुं० [सं० ष० त०, परनिपात] क्षय या यक्ष्मा नामक रोग तपेदिक।
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राज-यक्ष्मी (क्ष्मिन्)  : वि० [सं० राजयक्ष्मन्+इनि] जिसे राजयक्ष्मा रोग हुआ हो। क्षय रोग से पीड़ित (रोगी)।
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राज-यान  : पुं० [सं० ष० त०] १. प्राचीन काल में वह रथ जिस पर राजा की सवारी निकलती थी। २. राज-मार्ग पर निकलनेवाली राजा की सवारी। ३. पालकी, जिस पर पहले केवल राजा लोग चलते थे।
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राज-योग  : पुं० [सं० ष० त०, परनिपात] १. वह मूल योग जिसका प्रतिपादन पतंजलि ने योगशास्त्र में किया है। अष्टांग योग। २. फलित ज्योतिष के अनुसार कुछ विशिष्ट ग्रहों का योग जिसके जन्म-कुंडली में पड़ने से मनुष्य राजा या राजा के तुल्य होता है।
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राज-योग्य  : पुं० [सं० ष० त०] चंदन।
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राज-रंग  : पुं० [सं० मध्य० स०] चाँदी।
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राज-रथ  : पुं० [सं० ष० त०] १. राजा की सवारी का रथ। २. बहुत बड़ा रथ।
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राज-राज  : पुं० [सं० ष० त०] १. राजाओं का राजा। अधिराज। महाराज। २. कुबेर। ३, सम्राट।
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राज-राजेश्वर  : पुं० [सं० राजराज-ईश्वर, ष० त०] [स्त्री० राजराजेश्वरी] १. राजाओं का राजा। अधिराज। महाराज। २. वैद्यक में एक प्रकार का रसौषध जिसका प्रयोग दाद, कुष्ठ आदि रोगों में होता है।
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राज-राजेश्वरी  : स्त्री० [सं० राजराज-ईश्वरी, ष० त०] १. राजराजेश्वर की पत्नी। महाराज्ञी। २. दस महाविद्याओं में से एक का नाम। भुवनेश्वरी।
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राज-रानी  : स्त्री० [हिं०] १. राजा का रानी २. बहुत ही सम्पन्न और सुखी स्त्री।
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राज-नीति  : पुं० [सं० ष० त० परनिपात] काँसा।
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राज-रोग  : पुं० [ष० त० परनिपात] ऐसा रोग जिससे पीछे छूटना असंभव हो। असाध्य रोग। जैसे—यक्ष्मा, लकवा, श्वास आदि।
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राजर्षि  : पुं० [सं० राजन्-ऋषि, उपमित स०] वह ऋषि जिसका जन्म किसी राजवंश अर्थात् क्षत्रिय कुल में हुआ हो।
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राजल  : पुं० [हिं० राजा+ल (प्रत्यय)] अगहन में तैयार होनेवाला एक प्रकार का धान।
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राज-लक्षण  : पुं० [सं० ष० त०] सामुद्रिक के अनुसार शरीर के वे चिन्ह या लक्षण जो इस बात के सूचक होते हैं कि उनका धारणकर्ता राजा बनेगा।
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राजलक्ष्म (क्ष्मन्)  : पुं० [सं० ष० त०] १. राजाओं के साथ चलनेवाले प्रतीक। राजचिन्ह।
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राज-लक्ष्मा (क्ष्मन्)  : पुं० [सं० ब० स०] १. वह मनुष्य जिसमें सामुद्रिक के अनुसार राजाओं के लक्षण हों। राज-लक्षण से युक्त पुरुष। २. युधिष्ठिर का एक नाम।
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राज-लक्ष्मी  : स्त्री० [सं० ष० त०] १. राजाओं या राज्य का वैभव। राजश्री। २. राजा या राज्य की शोभा और संपदा।
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राज-वंश  : पुं० [सं० ष० त०] राजा का कुल। राजकुल।
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राजवंशी (शिन्)  : वि० [सं० राजवंश+इनि] १. राज-वंश सम्बन्धी राजवंश का। २. जो राजवंश में उत्पन्न हुआ हो। पुं० साँप।
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राज-वंश्य  : वि०=राजवंशी।
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राज-वर्चा (र्चस्)  : पुं० [सं० ष० त०] राजा का पद और शक्ति।
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राज-वर्त्म (र्त्मन)  : पुं० [सं० ष० त०] राजमार्ग। राजपथ।
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राजवला  : स्त्री० [सं०√राज् (दीप्ति)+अच्+टाप्, राजा-वला० कर्म० स०] प्रसारिणी लता।
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राजवल्लभ  : पुं० [सं० ष० त०] १. खिरनी। २. बड़ा और बढ़िया आम। ३. पैबन्दी और बड़ा बैर। ४. वैद्यक में एक मिश्र औषध जो शूल, गुल्म, ग्रहणी, अतिसार आदि में दी जाती है।
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राज-वल्ली  : स्त्री० [सं० मध्य० स०] करेले की लता।
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राज-वसति  : स्त्री० [सं० ष० त०] राजा का महल। राजभवन।
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राजवाह  : पुं० [सं० राजन्√वह् (ढोना)+अण्, उप० स०] घोड़ा।
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राजवाह्य  : पुं० [सं० ष० त०] हाथी।
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राज-वि  : पुं० [सं० ष० त०] नीलकंठ।
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राज-विजय  : पुं० [सं० ष० त०] संपूर्ण जाति का एक राग (संगीत)।
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राज-विद्या  : स्त्री० [सं० ष० त०] १. राज्य के शासन संबंधी ज्ञातव्य बातें। २. राजनीति।
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राज-विद्रोह  : पुं० [सं० ष० त०] राजा या राज्य के प्रति किया जानेवाला विद्रोह जो भीषण अपराध माना गया है। राजद्रोह। बगावत।
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राज-विद्रोही (हिन)  : पुं० [सं० राजविद्रोह=इनि] राजा या राज्य के प्रति विद्रोह करनेवाला व्यक्ति। बागी।
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राज-विनोद  : पुं० [सं० ष० त०] संगीत में एक प्रकार का ताल।
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राजवी  : पुं० [सं० राजजीवी] राजवंशी। उदाहरण—नम नम नीसरियाह राण बिना सहराजवी।—पृथ्वीराज।
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राजजीवी (जिन)  : वि० [सं० राजन-बीज, ष० त०+इनि] राजवंशी।
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राज-वीथी  : स्त्री० [सं० ष० त०] १. राजमार्ग। राजपथ। चौड़ी सड़क। २. प्राचीन भारत में वह गली या छोटी सड़क जो आकर राजमार्ग में मिली थी।
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राजवृक्ष  : पुं० [सं० ष० त० परनिपात] १. आरग्वध या अमलतास का पेड़। २. चिरौंजी या पयाल का पेड़। ३. भद्रचूड़ नामक वृक्ष। ४. श्योनाक। सोनापाढ़ा।
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राजशण  : पुं० [सं० ष० त०] पटसन।
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राजशफर  : पुं० [सं० मध्य० स०] हिलसा (मछली)।
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राज-शाक  : पुं० [सं० स० त० परनिपात वा मध्य स] वास्तुक शाक। बथुआ।
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राज-शालि  : पुं० [सं० मध्य० स०] एक प्रकार का जड़हन धान जिसे राजभोग्य या राजभोग भी कहते हैं। इसका चावल बहुत महीन और सुगंधित होता है।
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राज-शिंबी  : स्त्री० [सं० ष० त०, परनिपात] एक प्रकार की सेम जो चौड़ी और गूदेदार होती है।
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राज-शुक  : पुं० [सं० ष० त०, परनिपात] एक प्रकार का लाल रंग तोता। नूरी।
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राज-श्री  : स्त्री० [सं० ष० त०] राजा का ऐश्वर्य या वैभव। राज-लक्ष्मी।
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राज-संसद  : पुं० [सं० ष० त०] १. राजसभा। २. वह दरबार जिसमें राजा स्वयं बैठकर अभियोगों का न्याय करता हो।
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राजसंस्करण  : पुं० [सं०] किसी पुस्तक के साधारण संस्करण से भिन्न वह संस्करण जो बहुत बढ़िया कागज पर छपा हो और जिस पर बढ़िया जिल्द बँधी हो। (डीलक्स एडिसिन)
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राजस  : वि० [सं० रजस्+अण्] [स्त्री० राजसी] रजोगुण से उत्पन्न अथवा युक्त। रजोगुणी। जैसे—राजस दान, राजस बुद्धि आदि।
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राज-सत्ता  : स्त्री० [सं० ष० त०] राजशक्ति। राजा या राज्य के हाथ में होनेवाली सत्ता या शक्ति।
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राज-सभा  : स्त्री० [सं० ष० त०] १. राजा की सभा। दरबार। २. बहुत से राजाओं की सभा या मजलिस।
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राज-समाज  : पुं० [सं० ष० त०] १. राजा का दरबार। राज-दरबार। २. राजाओं की सभा, वर्ग या समूह।
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राज-सर्प  : पुं० [सं० ष० त०, परनिपात] एक प्रकार का बडा साँप। भुजंग-भोजी।
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राज-सर्षण  : पुं० [सं० ष० त०, परनिपात] राई।
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राज-सायुज्य  : पुं० [सं० ष० त०] राजस्व।
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राज-सारस  : पुं० [सं० ष० त०] मयूर। मोर।
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राज-सिंहासन  : पुं० [सं० ष० त०] वह सिंहासन जिस पर राजा दरबार में बैठता है। राजगद्दी।
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राजसिक  : वि० [सं० रजस्+ठञ्-इक] रजोगुण से उत्पन्न। राजस।
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राजसिरी  : स्त्री०=राजश्री। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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राजसी  : वि० [हिं० राजा] जो राजाओं के महत्त्व, वैभव आदि के लिए उपयुक्त हो। जिसका उपयोग राजा ही करते या कर सकते हों, अथवा जो राजाओं को ही शोभा देता हो। जैसे—राजसी ठाठबाट राजसी महल। वि० [सं० ०] जिसमें रजोगुण की प्रधानता हो। रजोगुण युक्त।
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राजसूय  : पुं० [सं० राजन्√सू (प्रसव)+क्यप्] एक प्रकार का यज्ञ जो बड़े-बड़े राजा सम्राट पद के अधिकारी बनने के लिए करते थे। यह अनेक यज्ञों की समष्टि के रूप में होता और बहुत दिनों तक चलता था। इस यज्ञ के उपरान्त राजा को दिग्विजय के लिए निकलना पड़ता था और दिग्विजय कर चुकने पर वह सम्राट पद का अधिकारी होता था।
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राजसूयिक  : वि० [सं० राजसूय+ठक्-इक] राजसूय यज्ञ के रूप में होनेवाला अथवा उससे संबंध रखनेवाला।
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राजसूयी (यिन्)  : पुं० [सं० राजसूय+इनि] राजसूय यज्ञ करनेवाला पुरोहित।
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राज-स्कंध  : पुं० [सं० ष० त०] घोड़ा।
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राज-स्थान  : पुं० [सं० ष० त०] गणतन्त्र भारत में पश्चिमोत्तर का एक राज्य जिसकी राजधानी जयपुर में है और जिसमें पुराना राजपूताना अन्तर्भुक्त है।
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राजस्व  : पुं० [सं० मध्य० स०] १. राजा या राज्य की आय। २. वह धन जो राजा या राज्य को अधिकारिक रूप से मिलता हो। ३. वह शास्त्र जिसमें राज्य की आय के साधनों और उनकी व्यवस्था आदि का विवेचन होता है।
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राज-स्वर्ण  : पुं० [सं० ष० त० परनिपात] राजधर्तूरक। राजधतूरा।
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राज-स्वामी (मिन्)  : पुं० [सं० ष० त०] विष्णु।
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राज-हंस  : पुं० [सं० ष० त०, परनिपात] [स्त्री० राजहंसी] १. एक प्रकार का हंस। २. संगीत में एक प्रकार का संकर राग जो मालव, श्रीराग पुं० मनोहर राग के मेल से बनता है।
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राज-हर्म्य  : पुं० [सं० ष० त०] राजप्रसाद। राजमहल।
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राजा (जन्)  : पुं० [सं०√राज् (दीप्त)+कनिन्] [स्त्री० राज्ञी, रानी] १. वह जो किसी राज्य या भू-खंड का पूरा मालिक हो और उसमें बसनेवाले लोगों पर सब प्रकार के शासन करता हो, उन्हें अपने नियंत्रण में रखता हो और दूसरे राजाओं के आक्रमणों आदि से रक्षित रखता हो। नृपति। भूप। २. अधिपति। मालिक। स्वामी। ३. बहुत बड़ा धनवान् या संपन्न व्यक्ति। ४. परमप्रिय के लिए श्रृंगारिक संबोधन। (बाजारू)
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राजाग्नि  : स्त्री० [सं० राजन्-अग्नि, ष० त०] राजा का कोष।
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राजाज्ञा  : स्त्री० [सं० राजन्-आज्ञा, ष० त०] राजा या राज्य की आज्ञा।
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राजातन  : पुं० [सं० राजन्-आ√तन् (विस्तार)+अच्] चिरौंजी का पेड़। पयार।
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राजादन  : पुं० [सं० राजन्-अदत्, ष० त०] १. शीरिका। खिरनी। २. चिरौजी। पयार। ३. टेसू।
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राजादनी  : स्त्री० [सं० राजादन+ङीष्] खिरनी।
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राजाद्रि  : पुं० [सं० राजन-अद्रि, ष० त० परनिपात] १. एक प्राचीन पर्वत। २. एक प्रकार का अदरख। बवादा।
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राजाधिकारी (रिन्)  : पुं० [सं० राजन्-अधिकारिन्, ष० त०] न्यायाधीश। विचारपति।
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राजाधिराज  : पुं० [सं० राजन-अधिराज, ष० त०] राजाओं का भी राजा। सम्राट।
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राजाधिष्ठान  : पुं० [सं० राजन्-अधिष्ठान, ष० त०] १. राजधानी। २. वह नगर जहाँ राजा शासक या शासक वर्ग रहता हो।
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राजान्न  : पुं० [सं० राजन-अन्न, ष० त०] १. राजा का अन्न। २. आन्ध्र प्रदेश में होनेवाला एक प्रकार का शालिधान।
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राजाभियोग  : पुं० [सं० राजन-अभियोग, ष० त०] राजा का बलपूर्वक या जबरदस्ती प्रजा से कोई काम कराना।
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राजाम्र  : पुं० [सं० राजन्-आम्र, ष० त० परनिपात] एक प्रकार का बढ़िया और बड़ा आम। (फल)
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राजाम्ल  : पुं० [सं० राजन-अम्ल, ष० त०] अम्लवेतस। अमलबेत।
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राजार्क  : पुं० [सं० राजन-अर्क, ष० त० परनिपात] सफेद फूलोंवाला आक या मदार।
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राजार्ह  : पुं० [सं० राजन्√अर्ह (पूजा)+अण्] १. अगरु। अगर। २. कपूर। ३. जामुन का पेड़। वि० राजाओं के योग्य।
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राजार्हण  : पुं० [सं० राजन-अर्हण, ष० त०] १. राजा का दिया हुआ उपहार। २. राजा का दिया हुआ दान।
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राजावर्त्त  : पुं० [सं० राजन्-आ√वृत्त (बरतना)+णिच्+अण्] लाजवर्द।
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राजासन  : पुं० [सं० राजन-आसन, ष० त०] राजसिंहासन।
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राजासनी  : स्त्री० [सं० राजन-आसनी, ष० त०] यज्ञ में सोम का रस रखने की चौकी या पीढ़ा।
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राजाहि  : पुं० [सं० राजन्-अहि, ष० त०परनिपात] दो मुँहा साँप।
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राजि  : स्त्री० [सं०√राज् (शोभा)+इन्] १. पंक्ति। अवली। कतार। २. रेखा। लकीर। ३. राई। पुं० ऐल के पौत्र और आयु के एक पुत्र का नाम।
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राजिक  : वि० [अ०] रिज्क अर्थात् रोजी देनेवाला। पालनकर्ता। परवर्दिगार। पुं० ईश्वर। परमात्मा।
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राजिका  : स्त्री० [सं०√राज्+ण्वुल्-अक+टाप्, इत्व] १. केदार। क्यारी। २. राई। ३. आवली। पंक्ति। ४. रेखा। लकीर। ५. लाल सरसों। ६. मडुआ नामक कदन्न। ७. कठगूलर। कठूमर। ८. एक प्रकार का पुराना परिमाण या तौल। ९. एक क्षुद्र रोग जिसमें शरीर पर सरसों के दानों जैसी फुंसियाँ निकल आती हैं।
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राजिका-चित्र  : पुं० [सं० ष० त०] एक प्रकार का साँप जिसकी त्वचा पर सरसों की तरह छोटी-छोटी बुंदकियाँ होती हैं।
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राजित  : वि० [सं०√राज्+क्त] १. जो शोभा दे रहा हो। फबता हुआ। शोभित। २. विराजमान।
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राजि-फला  : स्त्री० [सं० ब० स०,+टाप्] चीना ककड़ी।
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राजिमान्  : पुं० [सं० राजि+मतुप्] एक तरह का साँप।
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राजिल  : पुं० [सं० राजि+लच्] एक प्रकार का साँप जिसके शरीर पर सीधी रेखाएँ होती हैं।
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राजीव  : पुं० =राजीव (कमल)।
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राजी  : स्त्री० [सं० राजि+ङीष्] १. पंक्ति। श्रेणी। कतार। २. राई। ३. लाल सरसों। वि० [अ० राजी] १. जो कोई कही हुई बात मानने को तैयार हो। अनुकूल। सहमत। २. प्रसन्न और सन्तुष्ट। क्रि० प्र०—रखना। ३. नीरोग। चंगा। तन्दुरुस्त। ४. सुखी। पद—राजी-खुशी=सही-सलामत। कुशल और आनन्दपूर्वक। स्त्री०=रजामंदी। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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राजीनामा  : पुं० [फा० राजीनामः] १. वह सुलहनामा जो वादी और प्रवादी न्यायालय में मुकदमा उठा लेने के उद्देश्य से उपस्थित करते हैं। २. स्वीकृति-पत्र। पुं० [फा० रजानामः] त्यागपत्र। इस्तीफा। (महाराष्ट्र)
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राजी-फल  : पुं० [सं० मध्य० स०] पटोल। परवल।
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राजीव  : पुं० [सं० राजी+व] १. हाथी। २. एक प्रकार का सारस। ३. नीला कमल। ४. कमल। पद—राजीव-लोचन। ५. एक प्रकार का मृग जिसकी पीठ पर धारियाँ होती है। ६. रैया नाम की मछली। वि० १. जिसे राजवृत्ति मिलती हो। २. धारीदार।
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राजीवगण  : पुं० [सं० उपमित स०] एक प्रकार का मांत्रिक छंद जिसके प्रत्येक चरण में अठारह मात्राएँ होती हैं तथा जिसमें नौ-नौ मात्राओं पर यति होती है। माली।
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राजीविनी  : स्त्री० [सं० राजीव+इनि+ङीष्] कमलिनी।
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राजेंद्र  : पुं० [सं० राजन-इंद्र, ष० त०] १. राजाओं का राजा। बादशाह। २. राजाद्रि या राजगिरि नामक पर्वत।
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राजेंद्रप्रसाद  : पुं० [सं० ष० त०] गणतन्त्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति।
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राजेश्वर  : पुं० [सं० राजन-ईश्वर, ष० त०] [स्त्री० राजेश्वरी] राजाओं का राजा राजेंद्र।
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राजेश्वरी  : स्त्री०[सं० राजन-ईश्वरी, ष० त०] संगीत में काफी ठाठ की एक रागिनी। स्त्री० हिं० राजेश्वर का स्त्री० रूप।
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राजेष्ट  : पुं० [सं० राजन-इष्ट, ष० त०] १. राजान्न (धान) २. लाल प्याज। वि० जो राजाओं को इष्ट हो, अर्थात् बहुत अच्छा या बढ़िया।
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राजेष्टा  : स्त्री० [सं० राजेष्ट+टाप्] १. केला। २. पिंड खजूर।
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राजो-नियाज  : पुं० [फा० राज व नियाज] किसी को अनुरक्त या प्रमाण करने के लिए घुल-मिलकर की जानेवाली बातें।
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राजोपकरण  : पुं० [सं० राजन-उपकरण, ष० त०] राजाओं के लक्षण या उनके साथ रहनेवाला सामान। राजकीय वैभव की सूचक सामग्री। राजचिन्ह। जैसे—झंडा, निशान, नौबत आदि।
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राजोपजीवी (विन्)  : पुं० [सं० राजन-उप√जीव् (जीना)+णिनि] १. वह जिसे राज्य से जीविका मिलती हो। २. राजकर्मचारी। ३. राजा का सेवक।
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राजोपस्थान  : पुं० [सं० राजन-उपस्थान, ष० त०] राजदरबार।
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राज्ञी  : स्त्री० [सं० राजन+ङीष्] १. राजा की पटरानी। राजमहिषी। २. रानी। ३. पुराणानुसार सूर्य की पत्नी का एक नाम। ४. काँसा। ५. नील का पौधा।
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राज्य  : पुं० [सं० राजन्+यक्] १. राजा का काम। शासन। २. वह क्षेत्र जिस पर किसी राजा का शासन हो। जैसे—नेपाल या भूटान राज्य। ३. आज-कल निश्चित सीमाओंवाला वह भूखंड जिसकी प्रभुसत्ता उसके निवासियों में ही निहित हो। ४. किसी संघ-राज्य की कोई इकाई। (भारत) (स्टेट अंतिम तीनों अर्थों में)।
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राज्य-कर्ता (र्तृ)  : पुं० [सं० ष० त०] १. राजा। २. राज्य का सर्वोच्च शासक। ३. राज्य कर्मचारी।
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राज्यक्ता  : स्त्री० [सं० राजि-अक्ता, तृ० त०] रायता।
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राज्य-क्षेत्र  : पुं० [सं० ष० त०] १. वह सारा-भूखंड जिसमें कोई व्यवस्थित राज्य या शासन हो। २. किसी राज्य के अंतर्गत कोई क्षेत्र। (टेरीटरी)
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राज्य-च्युत  : भू० कृ० [सं० ष० त०] [भाव० राज्य-च्युति] राजसिंहासन से उतारा या हटाया हुआ।
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राज्य-च्युति  : स्त्री० [सं० ष० त०] राजा को सिहासंन से उतारने या हटाने की क्रिया या भाव।
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राज्य-तंत्र  : पुं० [सं० ष० त०] १. राज्य की शासन-प्रणाली। २. शासन की वह प्रणाली जिसमें किसी राज्य का प्रधान शासक राजा होता है। ३. दे० ‘राजतंत्र’।
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राज्य-द्रव्य  : पु० [सं० पं० त०] वे मंगल वस्तुएँ जिनका उपयोग नये राजा को राजसिंहासन पर बैठाते समय होता है।
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राज्य-धुरा  : स्त्री० [सं० प० त०] १. राज्य-शासन। २. शासन का उत्तरदायित्व।
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राज्य-निधि  : स्त्री० [सं० ष० त०] वह निधि जो राज्य अपने विशिष्ट कार्यों के लिए सुरक्षित रखता है। (स्टेट फण्डस)
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राज्य-परिषद्  : स्त्री० [सं० ष० त०] गणतंत्र भारत की दो सर्वोच्च विधि-निर्मात्री संस्थाओं में से एक जिसके सदस्यों का निर्वाचन अप्रत्यक्ष रीति से होता है। दूसरी संस्था ‘लोकसभा’ है जिसके सदस्यों का निर्वाचन प्रत्यक्ष रीति से होता है।
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राज्यपाल  : पुं० [सं० राज्य√पाल् (रक्षा)+णिच्+अण्] भारत-संघ के अन्तर्गत किसी राज्य का प्रधान शासक जिसका मनोनयन राष्ट्रपति करते हैं (गवर्नर)।
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राज्यप्रद  : वि० [ष० त०] राज्य देनेवाला। जिससे राज्य मिलता हो।
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राज्य-भंग  : पुं० [ष० त०] वह अवस्था जिसमें किसी राज्य की प्रभुसत्ता नष्ट हो जाती है।
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राज्य-लक्ष्मी  : स्त्री० [ष० त०] १. राज्य का वैभव और सम्पत्ति। राज्यश्री। २. विजयलक्ष्मी।
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राज्यसभा  : स्त्री० [सं०] भारतीय शासन में वह विधि-निर्मात्री सभा जिसमें राज्यों के चुने हुए प्रतिनिधि होते हैं। लोक सभा से भिन्न।
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राज्यांग  : पुं० [सं० राज्य-अंग, ष० त०] राज्य के साधक अंग जिन्हें प्रकृति भी कहते हैं। जैसे—आमात्य, कोष, ०दुर्ग बल आदि।
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राज्याभिषिक्त  : भू० कृ० [सं० राज्य-अभिषिक्त, ष० त०] जिसका राज्याभिषेक हुआ हो।
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राज्यभिषेक  : पुं० [सं० राज्य-अभिषेक, स० त०] १. प्राचीन भारत में राजसिंहासन पर बैठने के समय या राजसूय यज्ञ में होनेवाला राजा का अभिषेक जो वेद के मंत्रों द्वारा पवित्र तीर्थों के जल और ओषधियों से कराया जाता था। २. किसी नये राजा का राजसिंहासन पर बैठना या बैठाया जाना। राजगद्दी पर बैठने के कृत्य। राज्यारोहण। ३. उक्त अवसर पर होनेवाला उत्सव या समारोह।
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राज्योपकरण  : पुं० [सं० राज्य-उपकरण, ष० त०] राजोपकरण। (दे०)
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राट् (ज्)  : पुं० [सं०√राज् (दीप्ति)+क्विप्] १. राजा। २. प्रधान या श्रेष्ठ व्यक्ति। वि० जो किसी काम या बात में औरों से बहुत बड़ा चढ़ा हो। (यौ० के अन्त में) जैसे—धृर्तराट्।
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राटुल  : वि० पुं०=रातुल।
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राठ  : पुं० =राष्ट्र। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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राठवर  : पुं० =राठौर। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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राठौर  : पुं० [सं० राष्ट्रकूट] १. राजस्थान का एक प्रसिद्ध राजवंश। जैसे—अमर सिंह राठौर। २. उक्त वंश का क्षत्रिय।
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राड़  : स्त्री० [सं० रारि] १. युद्ध। लड़ाई। २. दे० ‘रार’। वि० १. तुच्छ। नीच। २. निकम्मा। ३. कायर। स्त्री०=राड़।
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राड़ा  : पुं० [देश] १. कान्ति। २. एक तरह की घास। राढ़ी।
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राढ़  : स्त्री० [सं० रारि=लड़ाई] १. लड़ाई-झगड़ा। २. तकरार। हुज्जत। ३. दे० ‘राड़’। पुं० =राढ़ा।
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राढ़ा  : स्त्री० [सं०] १. कान्ति। दीप्ति। २. छवि। शोभा। पुं० [सं० राढ़ि] वंग देश के उत्तर भाग का पुराना नाम। स्त्री० [?] एक प्रकार का कपास।
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राढ़ी  : स्त्री० [देश] एक प्रकार की मोटी घास। पुं० [राढ़ा देश] एक प्रकार का आम।
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राणा  : पुं० [सं० राट्] [स्त्री० राणी] १. राजा। (नेपाल और राजस्थान) २. राजा के परिवार का कोई व्यक्ति।
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राणापति  : पुं० [हिं० राणा+सं० पति] सूर्य जिसे चित्तोर के राणा अपना मूल पुरुष मानते है।
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रातंग  : पुं० [हिं०] गीध। गिद्ध।
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रात  : स्त्री० [सं० रात्रि] १. समय का वह भाग जिसमें सूर्य का प्रकाश हम तक नहीं पहुँचता। सन्ध्या से प्रातःकाल तक का समय जिसमें आकाश में चन्द्रमा और तारे दिखाई देते हैं। ‘दिन’ का विपर्याय। निशा। रजनी। २. लाक्षणिक अर्थ में अंधकारपूर्ण तथा निराशा-मयी स्थिति।
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रात की रानी  : स्त्री० [हिं०] एक प्रकार का पुष्प जिसमें रात के समय गुच्छों में लगे हुए सुगंधित फूल फूलते हैं। हुस्ने-हिना।
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रातड़ी  : स्त्री०=रात्रि (रात)।
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रात-दिन  : अव्य० [हिं०] १. हर समय। २. सदा। हमेशा।
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रातना  : अ० [सं० रक्त, प्रा० रत+ना (हिं० प्रत्यय)] १. लाल रंग से रँगा जाना। लाल हो जाना। २. रंजित होना। रँगा जाना। ३. किसी पर आसक्त होना। ४. किसी काम या बात में रत या लीन होना। ५. प्रसन्न होना। स० १. रंजित करना। रँगना। २. अनुरक्त करना। ३. प्रसन्न करना।
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रात-राजा  : पुं० [हिं०] उल्लू नामक पक्षी।
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रातरी  : स्त्री=रात्रि।
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राता  : वि० [सं० रक्त, प्रा० रत्त] [स्त्री० राती] १. रक्तवर्ण। लाल। २. रँगा हुआ। ३. अनुरक्त। ४. प्रसन्न तथा हर्षित।
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राति  : स्त्री०=रात। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रातिचर  : पुं० [हिं० रात+सं० चर] निशाचर। राक्षस।
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रातिब  : पुं० [अ०] १. एक दिन की खुराक। २. किसी पशु का एक दिन की खुराक। ३. वेतन। (क्व०)
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रातुल  : वि० [सं० रक्तालु, प्रा० रत्तालु] सुर्ख रंग का। लाल। पुं० [अ० रतनल=एक तौल] वह बड़ा तराजू जो लट्ठा गाड़कर लटकाया जाता है और जिस पर लोहा लकडी आदि भारी चीजें तौली जाती हैं।
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रातैल  : पुं० [हिं० राता+ऐल (प्रत्य)] ज्वार की फसल को हानि पहुँचानेवाला एक तरह का क्रीड़ा।
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रात्रिंचर  : वि० [सं० रात्रि√चर् (गति)+खच्, मुमागम] रात में घूमने वाला। पुं० राक्षस। निशाचर।
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रात्रिंदिव  : अ० [सं० द्व० स० नि० सिद्धि] रात-दिन।
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रात्रि  : स्त्री० [सं० रा (देना)+क्विप्] १. निशि। रात। पद—रात्रिदिव। २. हलदी। २. पुराणानुसार क्रौंच द्वीप की एक नदी।
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रात्रिक  : पुं० [सं० रात्रि+क] एक प्रकरा का बिच्छू।
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रात्रिकार  : पुं० [सं० रात्रि√कृ+ट] १. चंद्रमा। २. कपूर।
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रात्रिचर  : पुं० [सं० रात्रि√चर् (गति)+ट] राक्षस। निशाचर। वि० रात के समय विचरने या घूमने-फिरनेवाला।
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रात्रिचारी (रिन्)  : पुं० [सं० रात्रि√चर्+णिनि]=रात्रिचर।
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रात्रिज  : पुं० [सं० रात्रि√जन् (उत्पत्ति)+ड] रात में उत्पन्न होनेवाला। पु० तारा नक्षत्र आदि।
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रात्रि-जागर  : पुं० [सं० रात्रि√जागृ (जागना)+अच्] १. रात में होनेवाला जागरण। रत-जगा। २. कुत्ता जो रात को जागता है।
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रात्रि-नाशन  : पुं० [सं० ष० त०] सूर्य।
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रात्रि-पुष्प  : पुं० [सं० ब० स०] रात में खिलनेवाला पुष्प। कुँई।
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रात्रि-बल  : पुं० [सं० ब० स०] राक्षस।
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रात्रिमट  : पुं० [सं० रात्रि√अट् (गति)+अच्, मुम्-आगम] राक्षस।
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रात्रि-मणि  : पुं० [सं० ष० त०] चंद्रमा।
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रात्रि-राग  : पुं० [सं० ष० त०] अंधकार। अँधेरा।
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रात्रि-वास (सस्)  : पुं० [सं० ष० त०] १. रात के समय पहनने के कपड़े। २. अंधकार। अँधेरा।
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रात्रि-विराम  : पुं० [सं० ष० त०] तड़का। प्रभात।
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रात्रिवेद  : पुं० [सं० रात्रि√विद् (ज्ञान)+णिच्+अण्] मुरगा।
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रात्रिसाम (मन्)  : पुं० [सं० मध्य० स०] एक प्रकार का साम।
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रात्रि-सूक्त  : पुं० [सं० मध्य० स०] ऋग्वेद के एक सूक्त का नाम।
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रात्रि-हास  : पुं० [सं० ष० त०] कुमुद। कुई।
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रात्रिहिंडक  : पुं० [सं० ष० त०] राजाओं के अन्तःपुर का पहेरदार।
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रात्री  : स्त्री० [सं० रात्रि+ङीष्] १. रात। २. हलदी।
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रात्र्यंध  : वि० [सं० रात्रि-अंध, स० त०] जिसे रात को न दिखाई दे। पुं० १. रतौंधी रोग। २. कौआ, बंदर आदि पशु पक्षी जिन्हें रात के समय दिखाई नहीं पड़ता।
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राद  : पुं० [अ०] बिजली की कड़क।
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राद्ध  : भू० कृ० [सं०√राध् (सिद्धि)+क्त] १. पका हुआ। राँधा हुआ। २. ठीक या तैयार किया हुआ। सिद्ध। ३. पूरा किया हुआ।
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राद्धंत  : पुं० [सं० राद्ध-अंत, ब० स०] सिद्धांत। उसूल।
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राद्धि  : स्त्री० [सं०√राध् (सिद्धि)+क्तिन्] १. सिद्धि। २. सफलता या साफल्य।
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राध  : पुं० [सं० राधा=विशाखा+अण्+ङीष्=राधी+अण्] १. वैसाख मास। २. धन-संपत्ति। स्त्री० [?] पीब। मवाद।
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राधन  : पुं० [सं०√राध्+ल्युट-अन] १. साधने की क्रिया। साधन। २. प्राप्त या हस्तगत होना० मिलना। ३. तुष्ट करना। तोषण। ४. किसी प्रकार का उपकरण या औजार। ५. कोई ऐसी चीज या बात जिससे कोई पूरा काम हो। साधन।
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राधना  : स० [सं० आराधना] आराधना या पूजा करना। २. पूरा या सिद्ध करना। ३. युद्धि से काम निकालना।
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राधा  : स्त्री० [सं०√राध्+अच्+टाप्] १. प्रीति। प्रेम। २. वृषभानु गोप की कन्या जो पुराणानुसार श्रीकृष्ण की बाल्यावस्था की सबसे अधिक प्रिय सखी और प्रेयसी थी। ३. धृतराष्ट्र के सारथि अधिरथ की पत्नी जिसने कर्ण को पुत्रवत् पाला था। इसी से कर्ण का नाम ‘राधेय’ भी था। ४. एक प्रकार का वृत्त जिसके प्रत्येक चरण में रगण, तगण, मगण, यगण और एक गुरु सब मिलाकर १३ अक्षर होते हैं। ५. विशाखा नक्षत्र। ६. वैशाख की पूर्णिमा। ७. बिजली। विद्युत। ८. आँवला। ९. विष्णुकांता लता।
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राधा-कांत  : पुं० [सं० ष० त०] श्रीकृष्ण।
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राधा-कुंड  : पुं० [सं० ष० त०] गोवर्द्धन के निकट एक प्रख्यात सरोवर जो तीर्थ माना जाता है।
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राधा-तंत्र  : पुं० [सं० मध्य० स०] तंत्र जिसमें मंत्रों आदि के अतिरिक्त राधा की उत्पत्ति का भी रहस्यपूर्ण वर्णन है।
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राधा-वल्लभ  : पुं० [सं० ष० त०] श्रीकृष्ण।
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राधावल्लभी (भिन्)  : पुं० [सं० राधावल्लभ+इनि] १. वैष्णवों का एक प्रसिद्ध संप्रदाय। २. उक्त सम्प्रदाय का अनुयायी।
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राधाष्टमी  : स्त्री० [सं० राधा+अष्टमी, ष० त०] भादों सुदी अष्टमी।
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राधास्वामी  : पुं० [सं०] १. एक आधुनिक मत प्रवर्त्तक आचार्य जिनका आगरे में प्रसिद्ध केन्द्र है। २. उक्त आचार्य का चलाया हुआ संप्रदाय।
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राधिका  : स्त्री० [सं० राधा+कन्+टाप्, इत्व] १. वृषभानु गोप की कन्या राधा। २. एक प्रकार का मात्रिक छंद जिसके प्रत्येक चरण में १३ मात्राएँ और ९ के विश्राम से २२ मात्राएँ होती हैं। लावनी इसी छंद में होती है।
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राधेय  : पुं० [सं० राधा+ठक्-एय] (धृतराष्ट्र के सारथि अधिरथ की पत्नी राधा द्वारा पालित। कर्ण।
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राध्य  : वि० [सं०√राध् (सिद्धि)+यत्] आराधना करने के योग्य। आराध्य।
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रान  : स्त्री० [फा०] जंघा। जाँघ।
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रानतुरई  : स्त्री० [हिं० रानी+तुरई] एक तरह की कड़वी तरोई।
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राना  : पुं० =राणा। वि० [फा०] सुन्दर।
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रानी  : [सं० राज्ञी, प्रा० राणी] १. राजा की स्त्री। २. स्त्रियों के नाम के साथ प्रयुक्त होनेवाला आदरसूचक पद। जैसे—देविका रानी, राधिका रानी आदि। ३. प्रेयसी या पत्नी के लिए प्रेमपूर्ण संबोधन। ४. ताश का एक पत्ता जिसमें रानी का चित्र होता है। बेगम। वि० [फा० राना] प्रिय तथा सुन्दर। जैसे—रानी बेटी। स्त्री० [फा०] चलाने का काम। (यौ० के अन्त में) जैसे—जहाजरानी।
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रानी-काजर  : पुं० [हिं० रानी+काजल] एक प्रकार का धान।
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रानी-मक्खी  : स्त्री० [हिं०] मधुमक्खी के छत्ते की वह मक्खी जिसका काम केवल अंडे देना होता है। जननी मक्खी (क्वीन बी)।
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रापड़  : पुं० [?] बंजर भूमि।
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रापती  : स्त्री० [देश] एक छोटी नदी जो नैपाल के पहाड़ों से निकलकर गोरखपुर के निकट सरयू नदी में गिरती है।
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राप-रंगाल  : पुं० [सं० रंग√अल् (भूषण)+अच्, राप, ब० स० राप-रंगाल, कर्म० स०] एक प्रकार का नृत्य।
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रापी  : स्त्री०=राँपी (मोचियों का उपकरण)।
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राब  : स्त्री० [सं० द्रावक] १. आँच पर खूब औटाकर खूब गाढ़ा किया हुआ गन्ने का रस जो गुड़ से पतला और शीरे से गाढ़ा होता है। इसी को साफ करके खाँड़ बनाई जाती है। २. वह भूमि जो उस पर का घास-फूस जलाकर जोतने-बोने के लिए तैयार की गई हो (पूरब)। स्त्री० [देश] नाव में वह बड़ी लकड़ी जो उसकी पेंदी में लंबाई के बल एक सिरे से दूसरे सिरे तक होती है।
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राबड़ी  : स्त्री०=रबड़ी (बसौंधी)।
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राबना  : स० [?] खेत में एक विशेष प्रकार से खाद डालना।
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राबिस  : स्त्री० [अं० रबिस=कूड़ा] ईंटों के भट्ठों आदि में से निकले हुए कोयलों का चूरा और राख जो प्रायः इमारतों में ईटों की जोड़ाई करने में काम आती है।
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राम  : पुं० [सं०√रन् (क्रीड़ा)+घञ्] १. महाराज दशरथ के पुत्र जिनका विवाह जनक की कन्या जानकी या सीता से हुआ था और जो विष्णु के दस अवतारों में से एक माने जाते हैं। रामायण की कथा इन्हीं के चरित्र पर आधारित है। रामचन्द्र। पद—राम नाम सत्य है-एक वाक्य जिसका प्रयोग कुछ हिन्दू जातियों में मृतकों को श्मशान ले जाने के समय होता है और संसार की असारता और मिथ्यात्व तथा ईश्वर की सत्यता का बोध कराया जाता है। मुहावरा—राम जाने=(क) मुझे नहीं मालूम। ईश्वर जाने। (ख) यदि मैं झूठ बोलता होऊँ तो ईश्वर उसका साक्षी रहे और मुझे उसके लिए दंड दे। राम राम करके=बहुत कठिनता से। किसी प्रकार। जैसे—तैसे। ‘राम राम’ करना= (क) राम अर्थात् ईश्वर या भगवान् का नाम जपना। (ख) किसी से भेंट होने पर राम राम कह करके अभिवादन करना। (किसी का) राम राम हो जाना=मर जाना। गत हो जाना। (किसी से) राम राम होना=भेंट होना। मुलाकात होना। रामशरण होना=(क) साधु होना। विरक्त होना। (ख) परलोकवासी होना। मरना। २. कृष्ण के बड़े भाई बलराम या बलदेव। ३. परशुराम। ४. उक्त तीनों के आधार पर तीन की संख्या का वाचक शब्द। ५. ईश्वर। परमात्मा। ६. वरुण। ७. एक प्रकार का मात्रिक छंद जिसमें ९ और ८ के विराम के प्रत्येक चरण में १७ मात्राएँ होती हैं और अंत में यगण होता है। ८. रति क्रीड़ा। ९. घोड़ा। १॰. अशोक वृक्ष। ११. बथुआ नाम का साग। १२. तेजपत्ता। वि० [सं० रम्य] अभिराम। सुन्दर। उदाहरण—देखत अनूप सेना पति राम रूप छवि।—सेनापति। वि० [फा०] १. ठीक। दुरुस्त। २. अनुकूल। ३. राजी। सहमत। जैसे—उसने बातों ही बातों में उसे राम कर लिया (पश्चिम)।
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राम-अंजीर  : स्त्री० [सं० राम+फा० अंजीर] पाकर (वृक्ष)। पकरिया।
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राम-कजरा  : पुं० [देश] अगहन में पककर तैयार होनेवाला एक प्रकार का धान।
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राम-कपास  : स्त्री० [हिं० राम+कपास] देवकपास। नरमा।
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राम-कली  : स्त्री० [सं० ब० स०] एक रागिनी जो भैरव राग की स्त्री मानी जाती है।
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राम-कहानी  : स्त्री० [हिं०] १. अपने जीवन तथा उसके किसी प्रसंग का दूसरों को सुनाया जानेवाला वृत्तांत। २. किसी पर बीती हुई घटनाओं का लंबा या विस्तृत वर्णन। क्रि० प्र०—कहना।—सुनाना।
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राम-काँटा  : पुं० [हिं० राम+काँटा] एक प्रकार का बबूल।
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राम-कपूर  : पुं० [हिं०] गंधतृण।
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राम-कुंतली  : स्त्री० [सं०] संगीत में कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी।
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राम-कुसुमावलि  : स्त्री० [सं०] संगीत में कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी।
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राम-केला  : पुं० [हिं० राम+केला] १. एक प्रकार का बढ़िया केला। २. एक प्रकार का बढ़िया पूर्वी आम।
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राम-क्रिय  : पुं० संगीत में कर्नाटकी पद्धति का एक राग।
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राम-क्षेत्र  : पुं० [सं० ष० त०] दक्षिण भारत का एक प्राचीन तीर्थ। (पुराण)।
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राम-गंगरा  : पुं० [हिं० राम+गाँगरा] १. एक प्रकार की पहाड़ी चिड़िया। जिसका सिर, गरदन और छाती चमकीले काले रंग की होती है। यह जाड़े में भी मैदानों में उतर आती है।
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राम-गंगा  : स्त्री० [सं० मध्य० स०] उत्तर प्रदेश की एक नदी जो फर्खाबाद के पास गंगा में मिलती हैं।
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राम-गिरि  : पुं० [सं० मध्य० स०] १. मेघदूत में वर्णित एक पर्वत-शिखर जो आधुनिक नागपुर में स्थित माना जाता है। राम-टेक। २. संगीत में कर्नाटकी पद्धति का एक राग।
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राम-गिरी  : स्त्री०=रामकली। (रागिनी)। पुं० =रामगिरि।
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राम-गीती  : पुं० [सं०] एक प्रकार का मात्रिक छंद जिसके प्रत्येक चरण में ३६ मात्राएँ होती है।
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रामचन्द्र  : पुं० [सं० उपमित० स०] अयोध्यापति राजा दशरथ के पुत्र जिन्होंने रावण का बध किया था। विशेष—हिन्दुओं में ये विष्णु के अवतार माने जाते हैं।
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राम-चकरा  : पुं० [सं० राम+चक्र] १. उरद की पीठी को तलकर तैयार किया जानेवाला बडा। २. बड़ी और मोटी देहाती रोटी। ३. बाटी। लिट्टी।
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राम-चिड़िया  : स्त्री० [देश] मछरंगा।
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राम-जननी  : स्त्री० [सं० ष० त०] १. कौशल्या। २. रेणुका। ३. रोहिणी।
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राम-जना  : पुं० [हिं० राम+जना=उत्पन्न] [स्त्री० रामजनी] १. वह जिसका पिता ईश्वर हो, अर्थात् जिसके पिता का पता न हो। वर्णसंकार। दोगला। २. एक संकर जाति जिसकी कन्याएँ वेश्यावृत्ति करती हैं।
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राम-जनी  : स्त्री० [हिं० राम-जना] १. ऐसी स्त्री जिसके पिता का पता न हो २. रामजना जाति की स्त्री। ३. रंडी। वेश्या।
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राम-जमनी  : पुं० =रामजमानी।
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राम-जमानी  : पुं० [सं० राम+यवनी (अजवायन)] एक प्रकार का बहुत बारीक चावल।
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राम-जामुन  : पुं० [हिं० राम+जामुन] मझोले आकार का एक प्रकार का जामुन (वृक्ष)।
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राम-जुहारी  : स्त्री० [हिं०] १. एक प्रकार का अभिवादन जिसका अर्थ है-राम राम या जयराम। २. दे० ‘राम-दहारी’।
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राम-जौ  : पुं० [सं० राम+हिं० जौ] एक प्रकार की जई जिसके दाने जौ के दाने के आकार के होते हैं।
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राम-झोल  : स्त्री० [सं० राम+हिं० झूलना] पाजेब। पायल।
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राम-टेक  : पुं० [हिं० राम+टेक=लकड़ी (पहाडी)] नागपुर जिले में स्थित एक पर्वत शिखर। रामगिरि।
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रामटोड़ी  : स्त्री० [सं० ष० त०] एक संकर रागिनी जिसमें गंधार, कोमल और शेष सब स्वर शुद्ध लगते हैं। (संगीत)
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रामठ  : पुं० [सं०√रम्+अठ्, बृद्धि] १. बृहत्संहिता के अनुसार एक देश जो पश्चिम में है। २. उक्त देश का निवासी। ३. हींग। ४. अखरोट का पेड़। ५. मैनफल। ६. चिचड़ा।
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रामठी  : स्त्री० [सं० रामठ+ङीष्] हींग।
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रामणीयक  : पुं० [सं० रमणीय+वुञ्-अक] रमणीयत्व। मनोहरता। वि० रमणीय।
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राम-तरुणी  : स्त्री० [सं० ष० त०] १. रामचन्द्र की पत्नी, सीता। २. सेवती (सफेद गुलाब)।
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राम-तरोई  : स्त्री० [हिं० राम+तरोई या तुरई] भिंडी का पौधा और उसकी फली।
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रामता  : स्त्री० [सं० राम+तल्+टाप्] राम होने की अवस्था, गुण या भाव। रामत्व। राम-पन।
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राम-तापनीय  : स्त्री० [सं० मध्य० स० वा ष० त०] एक आधुनिक साम्प्रदायिक उपनिषद्।
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राम-तारक  : पुं० [सं० ष० त०] ‘रा रामाय नमः’ नामक मंत्र तो रामोपासक जपते हैं।
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रामति  : स्त्री० [हिं० रमना=घूमना फिरना] भिक्षा के लिए लगाई जानेवाली फेरी।
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राम-तिल  : पुं० [सं० मध्य० स०] एक प्रकार का तिल।
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राम-तीर्थ  : पुं० [सं० मध्य० स०] रामगिरि पर्वत शिखर जो एक तीर्थ है।
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राम-तुलसी  : स्त्री० [सं० मध्य० स०]=रामा-तुलसी (सफेद डंठलों वाली तुलसी)।
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राम-तेजपात  : पुं० [हिं० राम+तेजपात] तेजपात की जाति का एक प्रकार का वृक्ष और उसका पत्ता।
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रामत्व  : पुं० [सं० राम+त्व] राम होने की अवस्था, धर्म या भाव। रामता। राम-पन।
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राम-दल  : पुं० [सं० ष० त०] १. बंदरों की वह सेना जिसकी सहायता से रामचन्द्र ने लंका पर चढ़ाई की थी। २. कोई बहुत बड़ा और प्रबल समूह या सेना। ३. दशहरे के अवसर पर रामचन्द्र की स्मृति में निकलनेवाला जुलूस।
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राम-दाना  : पुं० [सं० राम+हिं० दाना] १. मरसे या चौराई की जाति का एक पौधा जिसमें सफेद रंग के बहुत छोटे-छोटे दाने या बीज लगते हैं। २. उक्त पौधे के दाने जो कई रूपों में खाने के काम आते हैं। ३. एक प्रकार का धान।
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राम-दास  : पुं० [सं० ष० त०] १. हनुमान। २. शिवाजी के गुरु समर्थ रामदास। ३. एक प्रकार का धान।
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राम-दूत  : पुं० [सं० ष० त०] हनुमान्।
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राम-दूती  : स्त्री० [सं० ष० त०] १. एकप्रकार की तुलसी। २. नागदौन। ३. नागपुष्पी।
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रामदेव  : पुं० [सं० कर्म० स०] १. रामचन्द्र। २. राजपूताने में प्रचलित एक सम्प्रदाय।
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राम-धाम (न्)  : पुं० [सं० ष० त०] साकेत, लोक, जहाँ भगवान नित्य राम —रूप में विद्यमान माने जाते हैं।
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राम-ननुआ  : पुं० [हिं० राम+ननुआ] १. घीया। २. कद्दू।
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राम-नवमी  : स्त्री० [सं० मध्य० स०] भगवान् रामचन्द्र का जन्म-दिवस चैत्र शुक्ल नवमी।
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रामना  : अ० [सं० रमण] १. रमण करना। २. घूमना-फिरना।
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रामनामी  : स्त्री० [हिं० राम+नाम+ई (प्रत्यय)] १. गले में पहनने का एक प्रकार का हार। २. वह वस्त्र जिस पर सब जगह रामनाम छपा हुआ हो।
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रामनौमी  : स्त्री०=रामनवमी।
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राम-पात  : पुं० [हिं० राम+पत्र] नील की जाति की एक प्रकार की झाड़ी जिसकी पत्तियों से रंग तैयार किया जाता है।
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रामपुर  : पुं० [सं० ष० त०] १. स्वर्ग। बैकुंठ। २. अयोध्या नगरी। साकेत।
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राम-फल  : पुं० [हिं० राम+फल] शरीफा। सीताफल।
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राम-बँटाई  : स्त्री० [हिं० राम+बाँटना] ऐसा बँटवारा या विभाजन जिसमें आधा एक व्यक्ति और आधा दूसरे व्यक्ति को मिले। आधे-आध की बँटाई।
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राम-बबूल  : पुं० [हिं० राम+बबूल] एक प्रकार का बबूल।
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राम-बाँस  : पुं० [हिं०] १. एक प्रकार का बाँस। २. केतकी की जाति का एक पौधा।
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राम-बान  : पुं० [हिं० राम+सं० बाण] १. एक प्रकार का नरसल। रामशर। २. दे०‘रामबाण’।
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राम-बिलास  : पुं० [हिं० राम+सं० विलास] एक प्रकार का धान और उसका चावल।
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राम-भक्त  : वि० [सं० ष० त०] रामचन्द्र का उपासक। पुं० हनुमान।
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राम-भद्र  : पुं० [सं० कर्म० स०] रामचन्द्र।
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राम-भोग  : पुं० [हिं० राम+भोग] १. एक प्रकार का चावल। २. एक प्रकार का आम।
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राम-मंत्र  : पुं० [सं० ष० त०] ‘रां रामाय नमः’ मंत्र जिसे रामभक्त भजते हैं।
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राम-रक्षा  : पुं० [सं० मध्य० स०] राम जी का एक स्तोत्र जो सब प्रकार की आपत्तियों से रक्षा करनेवाला माना जाता है।
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रामरज (स)  : स्त्री० [सं० मध्य० स०] एक प्रकार की पीली मिट्टी जिसका वैष्णव लोग तिलक लगाते हैं, तथा जो चूने आदि में मिलाकर दीवारे, छत्ते आदि पोतने के काम भी आती है।
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राम-रतन  : पुं० [हिं० राम+सं० रत्न] चंद्रमा। (डि०)
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राम-रस  : पुं० [हिं० राम+रस] १. नमक। २. पीने के लिए पीसी और घोली हुई भाँग। (दक्षिण भारत)
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राम-रहारी  : स्त्री० [हिं० राम राम] १. आपस में मिलने पर होनेवाला अभिवादन। पारस्परिक व्यवहार की वह स्थिति जिसमें किसी से बातचीत होती हो। जैसे—अब तो उन लोगों में राम-रहारी भी नहीं रह गई है।
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राम-राज्य  : पुं० [सं० ष० त०] १. भगवान् राम का राज्य या शासन। २. उक्त के आधार पर ऐसा राज्य या शासन जिसमें प्रजा सब प्रकार से निश्चित संपन्न तथा सुखी हो। ३. मध्य युग में मैसूर राज्य का एक नाम।
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राम-राम  : अव्य० [हिं० राम] १. भेंट के समय अभिवादन के लिए प्रयुक्त पद। २. आश्चर्य, दुःख आदि का सूचक अव्यय। स्त्री० भेंट। विशेषतः आकस्मिक तथा अल्पकालिक भेंट। जैसे—कई दिन हुए उनसे राम राम हुई थी। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रामल  : वि० [सं० रमल+अण्] रमल सम्बन्धी। रमल का।
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राम-लवण  : पुं० [सं० मध्य० स०] साँभर नामक।
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राम-लीला  : स्त्री० [सं० ष० त०] १. राम की क्रीड़ा। २. रामायण में वर्णित घटनाओं के आधार पर होनेवाला अभिनय या नाटक। ३. एक प्रकार का मात्रिक छंद जिसके प्रत्येक चरण में २४ मात्राएँ होती है। और अंत में ‘जगण’ का होना आवश्यक होता है।
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राम-वल्लभी (भिन्)  : पुं० [सं० रामवल्लभ] एक वैष्णव संप्रदाय।
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रामवाण  : पुं० [सं० ष० त०] वैद्यक में एक प्रकार का रस जो पारे, गंधक, सींगिया आदि के योग से बनता है और जो अजीर्ण रोग का नाशक कहा जाता है। वि० १. जो अत्यन्त गुणकारी हो। २. तुरन्त प्रभाव दिखानेवाला। ३. न चूकनेवाला।
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रामवीणा  : स्त्री० [सं० ष० त०] एक प्रकार का वीणा।
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राम-शर  : पुं० [सं० ष० त०] ऊख के आकार-प्रकार का एक प्रकार का नरसल या सरकंडा जो ऊख के खेतों में आप से आप ही उगता है।
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राम-शिला  : स्त्री० [सं० ष० त०] गया जिले में स्थित एक पर्वत शिखर जो एक तीर्थ है।
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राम-श्री  : पुं० [सं० ष० त०] एक प्रकार का राग जो हिंडोल राग का पुत्र माना जाता है।
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राम-संडा  : पुं० [सं० रामशर] एक प्रकार की घास जिससे रस्सी या बाध बनाते हैं। काँस।
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रामसखा  : पुं० [सं० ष० त०] सुग्रीव।
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राम-सनेही  : पुं० [हिं० राम+स्नेही] १. राजस्थान का एक वैष्णव सम्प्रदाय। २. उक्त सम्प्रदाय का अनुयायी। वि० राम से स्नेह या प्रीति रखनेवाला।
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रामसर (स्)  : पुं० [सं० मध्य० स०] पुराणानुसार एक प्राचीन तीर्थ का नाम। पुं० =रामशर। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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राम-सिरी  : स्त्री० [सं० रामश्री] १. एक प्रकार की चिड़िया। २. एक प्रकार की रागिनी।
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राम-सीता  : पुं० [हिं० राम+सीता] शरीफा। सीताफल।
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राम-सुंदर  : स्त्री० [हिं० राम+सुन्दर] एक प्रकार की नाव।
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राम-सेतु  : पुं० [सं० मध्य० स०] रामेश्वर तीर्थ के पास समुद्र में पड़ी हुई चट्टानों का समूह जिसके विषय में प्रसिद्ध है कि यह वही पुल है जिसे राम ने लंका पर चढ़ाई करते समय बँधवाया था।
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रामा  : स्त्री० [सं०√रम् (क्रीडा)+णिच्+ण+टाप्] १. सुन्दर स्त्री। २. गाने-नाचने में प्रवीण स्त्री। ३. सीता। ४. लक्ष्मी। ५. रुक्मिणी। ६. राधा। ७. शीतला देवी। ८. नदी। ९. कार्तिक कृष्ण एकादशी की संज्ञा। १॰. इंद्रवज्रा और उपेंद्रवज्रा के योग से बना हुआ एक प्रकार का उपजाति वृत्त जिसके प्रथम दो चरण इन्द्रवज्रा के होते हैं। ११. आर्या छंद का १७ वाँ भेद जिसमें ११ गुरु और ३५ लघु वर्ण होते हैं। १२. आठ अक्षरों का एक प्रकार का वृत्त जिसके प्रत्येक चरण में तगण, यगण और दो लघु वर्ण होते हैं। १३. हींग। १४. ईंगुर। शिगरफ। १५. घीकुँआर। १६. सफेद भटकटैया। १७. अशोक वृक्ष। १८. तमाल। १९. गोरोचन। २0०सुगंधवाला। २१. त्रायमाण लता। २२. गेरू।
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राम-तुलसी  : स्त्री० [सं०] सफेद डंठलोंवाली एक प्रकार की तुलसी (पौधा)।
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रामानंद  : पुं० [सं०] रामावत नामक वैष्णव संप्रदाय के प्रवर्त्तक एक प्रसिद्ध आचार्य (१३५६-१४६७ वि)।
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रामानंदी  : वि० [हिं० रामानंद+ई (प्रत्यय)] १. रामानंद-संबंधी। २. रामानंद के सम्प्रदाय से सम्बन्ध रखनेवाला। पुं० रामानन्द द्वारा प्रवर्तित रामावत सम्प्रदाय का अनुयायी।
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रामानुज  : पुं० [सं० राम-अनुज, ष० त०] १. राम का छोटा भाई। २. लक्ष्मण। ३. एक प्रसिद्ध वैष्णव आचार्य जिन्होंने श्री वैष्णव संप्रदाय का प्रवर्त्तन किया था।
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रामायण  : पुं० [सं० राम-अयन, ष० त०] १. राम का जीवन-मार्ग अर्थात् चरित्र। २. वह ग्रन्थ जिसमें राम के चरित्र का वर्णन हो।
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रामायणी  : वि० [सं०] रामायण संबंधी। रामायण का। पुं० १. वह जो रामायण का अच्छा ज्ञाता या पंडित हो। २. वह जो लोगों को रामायण की कथा सुनाता हो।
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रामायन  : पुं० =रामायण।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रामायुध  : पुं० [सं० राम-आयुध, ष० त०] धनुष।
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रामावत  : पुं० [सं० रामावित्] रामानन्द द्वारा प्रवर्तित एक वैष्णव संप्रदाय।
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रामिज  : वि० [अ०] रम्ज अर्थात् इशारा करनेवाला।
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रामिल  : पुं० [सं०] १. रमण। २. कामदेव। ३. स्त्री का पति। स्वामी। ४. प्रेमपात्र। ५. एक कवि।
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रामी  : स्त्री० [सं० रामा] काँस नामक घास।
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रामेश्वर  : पुं० [सं० राम-ईश्वर, ष० त०] १. दक्षिण भारत में समुद्र के तट पर एक शिवलिंग जो भगवान् रामचन्द्र द्वारा स्थापित किया हुआ माना जाता है। २. पुरी या बस्ती जिसमें उक्त शिवलिंग स्थापित है।
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रामोपनिषद्  : स्त्री० [सं० राम-उपनिषद्, मध्य० स०] अथर्वेद के अन्तर्गत एक उपनिषद् का नाम।
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राय  : पुं० [सं० राजा, प्रा० राया०] १. राजा। २. छोटा राजा। सरदार या सामन्त। ३. मध्ययुग में एक प्रकार की सम्मान-जनक उपाधि। पद—रायबहादुर, रायसाहब। ४. बंदीजनों या भाटों की उपाधि। ५. गन्धर्व जाति के लोगों की उपाधि। ६. दे० ‘रायबेल’। स्त्री० [फा०] सम्मति। सलाह।
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राय-करौंदा  : पुं० [हिं० राय=बड़ा+करौंदा] एक प्रकार का बड़ा करौंदा। (फल और झाड़)।
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रायगाँ  : वि० [फा० राएगाँ] १. रास्ते में पड़ा या फेंका हुआ अर्थात् निष्फल या व्यर्थ। २. नष्ट। बरबाद।
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रायज  : वि० [फा० राइज़] जो चल रहा हो, अर्थात् जिसका प्रचल या प्रचार हो। प्रचलित।
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रायता  : पुं० [सं० राज्यक्ता] दही या मट्ठे में बुंदिया साग आदि डालकर तथा उसमे नमक, मिर्च, जीरा आदि मिलाकर बनाया जानेवाला व्यंजन।
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रायनी  : स्त्री०=राजकुमारी (डिं०)।
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राय-बहादुर  : पुं० [हिं० राय+फा० बहादुर] एक प्रकार की उपाधि जो ब्रिटिश-शासन में भारतीय बड़े आदमियों को मिलती थी।
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राय-बेल  : स्त्री० [हिं० रायबेल] एक प्रकार की लता जिसमें सुन्दर और सुगंधित दोहरे फूल लगते हैं। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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राय-भोग  : पुं० [सं० राज+भोग] एक प्रकार का धान और उसका चावल। राज-भोग।
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रायमुनी  : स्त्री० [सं० राय+मुनिया] लाल (पक्षी) की मादा। सदिया।
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राय-रायान  : पुं० [हिं० राय+फा० आन (प्रत्यय)] राजाओं के राजा। राजाधिराज। (मुगलशासन काल की एक उपाधि)।
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राय-रासि  : स्त्री० [सं० रायराशि] राजा का कोष। शाही खजाना। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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रायल  : वि० [अं०] १. राजन्य। २. राजकीय। ३. राजकीय ठाठ-बाटवाला। पुं० छापे की कलों तथा कागज की एक नाप जो २0 इंच चौड़ी और २६ इंच लंबी होती है।
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रायसा  : पुं० [सं० रहस्य] वह काव्य जिसमें किसी राजा का जीवनचरित्र वर्णित हो। रासा। रासो। जैसे—पृथ्वीराज रायसा।
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रायसाहब  : पुं० [राय+फा० साहब] एक प्रकार की पदवी जो ब्रिटिश-शासन में भारतीय बड़े आदमियों को मिलती और ‘रायबहादुर’ की उपाधि में निम्नकोटि की होती थी।
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रायहंस  : पुं० =राजहंस। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रायहर  : पुं० [सं० राज्यगृह, प्रा० राइहर] राजा का महल। राजगृह। उदाहरण—हरम करौ आनि रायहर।—प्रिथीराज।
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रार  : स्त्री० [सं० रारि, प्रा० राड़ि=लड़ाई] १. ऐसा झगड़ा जिसमें बहुत कहा-सुनी हो और जो कुछ देर तक चलता रहे। तकरार। हुज्जत। क्रि० प्र०—करना।—ठानना।—मचाना। २. ऐसी ध्वनि जिसमें रह रहकर (रकार) र का सा शब्द होता है। जैसे—पेड़ों की मर्मर में होनेवाली रार या पेड़ों के गिरने में अरर या रार का स्वर निकले। उदाहरण—कलरव करते किलकार रार। ये मौन मूक तृण करु दल पर।—पन्त। स्त्री०=राल।
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राल  : स्त्री० [सं०] १. एक प्रकार का बहुत बड़ा सदाबहार पेड़ जो दक्षिण भारत के जंगलों में होता है। २. उक्त वृक्ष का सुगंधित निर्यास जो प्रायः सुगन्ध के लिए जलाया जाता और औषधों, मसालों आदि के आता है। विशेष—धूप नामक सुगंधित द्र्व्य में प्रायः इसी की प्रधानता रहती है। स्त्री० [सं० लाला] १. मुँह से निकलनेवाला पतला रस। लार। (देखें) २. चौपायों का एक रोग जिसमें उन्हें खाँसी आती है और उनके मुँह से पतला लसदार पानी गिरता है। पुं० [?] एक प्रकार का देशी कंबल।
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राली  : स्त्री० [देश] एक प्रकार का बाजरा जिसके दाने बहुत छोटे हैं।
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राव  : पुं० [सं० राजा, प्रा० राय] १. राजा। २. राजा का दरबारी या सरदार। ३. बंदीजन। भाट। ४. अमीर। रईस। ५. कच्च के राजाओं की पदवी। ६. धीमा कोलाहल। हलका शोर (नोएज) पुं० =ख (शब्द)। पुं० [देश] छोटे आकार का एक प्रकार का पेड़ जिसकी लकड़ी कुछ ललाई लिये चिकनी और मजबूत होती है। इसकी लकड़ी की प्रायः छड़ियाँ बनाई जाती है।
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राव-चाव  : पुं० [हिं० राव=राजा+चाव] १. नृत्य, गीत आदि का उत्सव। राग-रंग। २. दुलार। लाड़। ३. अनुराग। प्रेम। ४. प्रेमपूर्ण व्यवहार।
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रावट  : पुं० [सं० राजावर्त] लाजवर्द नामक रत्न। उदाहरण—कनै पहार होत है रावट को राखै गहि पाई।—जायसी। पुं० =रावल (राजमहल)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रावटी  : स्त्री० [हिं० रावट] १. कपड़े का बना हुआ एक प्रकार का छोटा डेरा। छौलदारी। २. कपड़े का बना हुआ कोई छोटा घर। ३. बारह-दरी।
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रावण  : वि० [सं०√रु (शब्द)+णिच्=ल्यु—अन] जो दूसरों को रुलाता हो। रुलानेवाला पुं० लंका का एक राजा जिसका वध श्रीरामचन्द्र ने किया था।
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रावण-गंगा  : स्त्री० [सं० मध्य० स०] सिंहल द्वीप की एक नदी। (पुराण)
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रावणारि  : पुं० [सं० रावण-अरि, ष० त०] रावण को मारनेवाले रामचन्द्र।
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रावणि  : पुं० [सं० रावण+इञ्] १. रावण का पुत्र। २. मेघनाद।
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रावत  : पुं० [सं० राजपुत्र, प्रा० राय+उत्त] १. छोटा राजा। २. राजवंश का कोई व्यक्ति। ३. क्षत्रिय। ४. राजपूत। ५. सरदार। सामन्त। ६. शूरवीर योद्धा। ७. सेनापति।
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रावन  : वि० [सं० रमणीय] रम्य। रमणीय। उदाहरण—देखा सब रावन अब राऊ।—जायसी। पुं० =रावण। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रावनगढ़  : पुं० [हिं० रावण+गढ़] लंका। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
रावना  : स० [सं० रावण=रुलाना] दूसरे को रोने में प्रवृत्त करना। रुलाना। पुं० रावण। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
रावबहादुर  : पुं० [हिं० राव+फा० बहादुर] ब्रिटिश-शासन में दक्षिण भारत के बड़े आदमियों को मिलनेवाली उपाधि।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
रावर  : पुं० [सं० राजपुर] रनिवास। सर्व० वि० [हिं० राउ+र (विभ०)] [स्त्री० रावरी] आपका। भवदीय। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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राव-रखा  : पु० [देश] हिमालय में होनेवाला एक तरह का पेड़। बुरुल।
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रावरा  : सर्व० वि० =रावर।
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रावल  : पुं० [सं० राजपुर, हिं० राउर] अन्तःपुर। पुं० [पा० राजुल] [स्त्री० रावली] १. राजा। २. राजपूताने के कुछ राजाओं की उपाधि। ३. कुछ विशिष्ट पदों, महन्तों तथा योनियों की उपाधि। ४. एक आदरपूर्ण संबोधन। ५. श्री बदरीनारायण के मुख्य पंडे की उपाधि।
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रावलो  : सर्व०=रावर।
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राव-साहब  : पुं० [हिं० राव+फा० साहब] ब्रिटिश शासन में दक्षिण भारत के बड़े आदमियों को मिलनेवाली एक प्रकार की उपाधि।
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रावी  : स्त्री० [सं० ऐरावती] पश्चिम पंजाब (पाकिस्तान) की एक प्रसिद्ध नदी जो मुलतान के पास चनाब नदी में जा मिलती है।
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राश  : पुं० [अ० मि० सं० राशि] राशि। ढेर।
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राशन  : पुं० [अं० रैशन] १. खाने-पीने की वे चीजें जो अभी पकाई न गई हों, परन्तु उपयोग या व्यवहार के लिए एकत्र करके रखी या लोगों को दी गई हों। रसद। २. आज-कल वह व्यवस्था जिसके अनुसार उपयोग या व्यवहार की कुछ विशिष्ट वस्तुएँ लोगों को उनकी आवश्यकता के अनुसार नियमित रूप से और नियत मात्रा में बाँटी या दी जाती हों। ३. उक्त का वह अंश जो किसी विशिष्ट व्यक्ति को मिला या मिलता हो।
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राशि  : स्त्री० [सं०√राश् (शब्द)+इन्] १. किसी चीज के कणों, खंडों बिदुओं आदि की पुंज या समूह। जैसे—जलराशि, रत्नराशि। २. गणित में कोई ऐसी संख्या जिसके संबंध में जोड़, गुणा, भाग आदि क्रियाएँ की जाती हों। ३. कांति-वृत्त में पड़नेवाले विशिष्ट तारा समूह जिनकी संख्या बारह है और जिनके नाम इस प्रकार हैं—मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धन, मकर, कुंभ और मीन। विशेष—क्रांति-वृत्त अर्थात् पृथ्वी के परिभ्रमण मार्ग के दोनों ओर प्रायः ८0 अंश की दूरी तक लगभग सवा दो सौ बहुत बड़े तारे हैं जो प्रायः बहुत दूर होने के कारण हमें बहुत छोटे दिखाई देते हैं। हमें अपनी पृथ्वी तो चलती हुई दिखाई नहीं देती, और ऐसा जान पड़ता है कि चन्द्रमा और सूर्य ही इस क्रांति-वृत्त पर चल रहे हैं। चंद्रमा के परिभ्रमण के विचार से उक्त सब तारे २७ तारक पुंजों में विभक्त किये गये हैं, जिन्हें नक्षत्र कहते हैं। परन्तु सूर्य के परिभ्रमण के विचार से इन्हीं तारों के १२ विभाग किए गये हैं, जिन्हें राशि कहते हैं। प्रत्येक राशि में प्रायः दो या इससे अधिक नक्षत्र पड़ते हैं, और उनके योग से कुछ विशिष्ट प्रकार की कल्पित आकृतियों वाली ये राशियाँ मानी गई है, और उन्हीं आकृतियों के विचार से उन राशियों का नाम करण हुआ है। जैसे—तुला राशि की आकृति तराजू की तरह, मकर राशि की आकृति मगर की तरह, वृश्चिक राशि की आकृति बिच्छू की तरह, सिंह राशि की आकृति शेर की तरह आदि आदि। जब सूर्य एक राशि को पार करके दूसरी राशि में प्रवेश करता है, तब उस संधिकाल को संक्रांति कहते हैं। विशेष दे० ‘नक्षत्र’। मुहावरा—(किसी से किसी की) राशि बैठाना या मिलाना= (क) सामाजिक व्यवहार की दृष्टि से अनुकूलता होना। मेल बैठना। (ख) फलित ज्योतिष की दृष्टि से ऐसी स्थिति होना जिससे दोनों में वैवाहिक संबंध होने पर अच्छी तरह जीवन-यापन या निर्वाह हो सके। ४. वह स्थिति जिसमें कोई व्यक्ति किसी की धन-संपत्ति का उत्तराधिकारी होकर मालिक बनता है। रास। विशेष—इस अर्थ से संबंध रखनेवाले मुहा० के लिए दे० ‘रास’ के अंतर्गत मुहा०।
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राशि-चक्र  : पुं० [सं० ष० त०] आकाशस्थ बारह राशियों का वह मंडल जो सूर्य के परिभ्रमण के विचार से क्रांतिवृत्त में पड़ता है। (जोडियक)
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राशि-नाम (मन्)  : पुं० [सं० मध्य० स०] व्यक्ति के पुकारने के नाम से भिन्न वह नाम जो उसके जन्म के समय होनेवाली राशि के विचार से रखा जाता है। विशेष—ऐसे नामों का आरम्भ विभिन्न राशियों के विचार से विभिन्न वर्णों से होता है।
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राशिप  : पुं० [सं० राशि√पा (रक्षण)+क] किसी राशि का स्वामी या अधिपति देवता। (फलित ज्योतिष)
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राशि-भाग  : पुं० [सं० ष० त०] राशि-चक्र की किसी राशि का भाग या अंश। भग्नांश। (ज्योतिष)
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राशि-भोग  : पुं० [सं० ष० त०] १. किसी ग्रह के किसी राशि में स्थित होने का भाव। २. उतना समय जितना किसी ग्रह को एक राशि में स्थित रहना पड़ता है।
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राशी  : वि० [अ०] रिश्वत खानेवाला। घूसखोर। स्त्री०=राशि। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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राष्ट  : पुं० [सं० राष्ट्र] फारसी संगीत में १२ मुकामों में से एक।
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राष्ट्र  : पुं० [सं०√राज् (दीप्ति)+ष्ट्रन्] १. राज्य। देश। २. किसी निश्चित और विशिष्ट क्षेत्र में रहनेवाले लोग जिनकी एक भाषा, एक से रीति-रिवाज तथा एक सी विचार-धारा होती है (नेशन)। ३. किसी एक शासन में रहनेवाले सब लोगों का समूह ४. सारे देश में एक साथ खड़ा होनेवाला कोई उपद्रव या बाधा। इति। ५. पुराणानुसार पुरुरवा के वंशज काशी के पुत्र का नाम। वि० जो सब लोगों के सामने या जानकारी में आ गया हो। सर्वविदित। जैसे—उनके कानों तक पहुँचते ही यह बात राष्ट्र हो जायगी। (सबको मालूम हो जायगा)।
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राष्ट्रक  : पुं० [सं० राष्ट्र+कन्०] १. राज्य। २. देश। वि० राष्ट्र सम्बन्धी। राष्ट्र का।
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राष्ट्र-कर्षण  : पुं० [सं० ष० त०] राजा या शासक का प्रजा पर अत्याचार करना। राष्ट्र या जनता को कष्ट देना।
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राष्ट्र-कवि  : पुं० [सं० ष० त०] वह कवि जिसकी कविताएँ राष्ट्र की आकांक्षाओं, आदर्शों आदि की प्रतीक मानी जाती हों और इसीलिए जो सारे राष्ट्र में बहुत ही आदर की तथा पूज्य दृष्टि से देखा जाता हो। जैसे—राष्ट्र कवि की मैथिलीशरण गुप्त।
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राष्ट्र-कुल  : पुं० =राष्ट्र-मंडल।
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राष्ट्र-कूट  : पुं० [सं०] १. एक क्षत्रिय राजवंश जो आज-कल राठौर नाम से प्रसिद्ध है। २. दे० ‘राठौर’।
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राष्ट्र-गोप  : पुं० [सं० राष्ट्र√गुप् (रक्षा)+अप्] १. राजा। २. राजाओं के प्रतिनिधि के रूप में काम करनेवाला कोई बहुत बड़ा शासक। वि० राज्य की रक्षा करनेवाला।
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राष्ट्र-तंत्र  : पुं० [सं० ष० त०] राष्ट्र की शासन-पद्धति।
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राष्ट्रपति  : पुं० [सं० ष० त०] १. किसी राष्ट्र का सर्वप्रधान शासनिक अधिकारी। २. प्रजातंत्र शासन-पद्धति में मतदाताओं द्वारा निर्वाचित वह व्यक्ति जिसके हाथ में कुछ नियत काल के लिए राष्ट्र की प्रभुसत्ता विधितः निहित होती है। (प्रेजीडेंट उक्त तीनों अर्थों में)
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राष्ट्रपाल  : पुं० [सं० राष्ट्र√पाल् (रक्षा)+णिच्+अण्, उप० स०] १. राजा। २. मथुरा के राजा कंस का एक भाई।
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राष्ट्र-भाषा  : स्त्री० [सं० ष० त०] किसी राष्ट्र की वह भाषा जिसका प्रयोग उसके निवासी सार्वजनिक पारस्परिक कामों में करते हैं।
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राष्ट्र-भृत  : पुं० [सं० राष्ट्र√भू (पोषण)+क्विप्, तुक-आगम, उप० स०] १. राजा। २. शासक। ३. भरत का एक पुत्र। ४. प्रजा।
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राष्ट्र-भृत्य  : पुं० [सं० ष० त०] १. वह जो राज्य की रक्षा या शासन करता हो। २. प्रजा।
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राष्ट्र-भेद  : पुं० [सं० ष० त०] प्राचीन भारतीय राजनीति में ऐसा उपाय या कार्य जिसके द्वारा किसी शत्रु राजा के राज्य में उपद्रव, मत-भेद या विद्रोह खड़ा किया जाता था।
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राष्ट्र-मंडल  : पुं० [सं० ष० त०] समान हित और समान भाव से स्वेच्छापूर्वक आबद्ध होनेवाले स्वतन्त्र राष्ट्रों का मण्डल या समूह। (कामनवेल्थ)। जैसे—ब्रिटिश राष्ट्र-मंडल जिसमें आस्ट्रेलिया, पाकिस्तान, भारत आदि अनेक स्वतन्त्र राष्ट्र-सदस्य रूप से सम्मिलित हैं।
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राष्ट्र-वाद  : पुं० [सं० ष० त०] [वि० राष्ट्रवादी] यह मत या सिद्धान्त कि राष्ट्र के सभी निवासियों में राष्ट्रीयता की भावना दृढ़तापूर्वक बनी रहनी चाहिए, राष्ट्रीय परम्पराओं के गौरव का ध्यान रखते हुए उनका पालन होना चाहिए। यह धारणा कि हमें मात्र अपने राष्ट्र की उन्नति, सम्पन्नता, विस्तार आदि का ध्यान रखना चाहिए। (नेशनलिज्म)
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राष्ट्रवादी (दिन्)  : वि० [सं० राष्ट्रवाद+इनि] राष्ट्रवाद सम्बन्धी। राष्ट्रवाद का। पुं० वह जो राष्ट्रवाद के सिद्धान्तों का अनुयायी, पोषक तथा समर्थक हो।
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राष्ट्रवासी (सिन्)  : पुं० [सं० राष्ट्र√वस् (निवास करना)+णिनि] [स्त्री० राष्ट्रवासिनी] १. राष्ट्र में रहनेवाला। २. परदेशी। विदेशी।
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राष्ट्र-विप्लव  : पुं० [सं० ष० त०] राज्य में होनेवाला विप्लव। विद्रोह। बलवा।
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राष्ट्र-संघ  : पुं० [सं० ष० त०] १. संसार के प्रमुख राष्ट्रों की वह संख्या जो पहले यूरोपीय महायुद्ध की समाप्ति पर वासेई की सन्धि के अनुसार १0 जनवरी, १९२0 को सब के सामूहिक कल्याण तथा सुरक्षा के उद्देश्य से बनी थी। (लीग आफ नेशन्स)। २. दे० ‘संयुक्त राष्ट्र-संघ’।
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राष्ट्रांतपालक  : पुं० [सं० राष्ट्र-अंत, पालक, ष० त०] प्राचीन भारत में वह जो राष्ट्र की सीमाओं की देख-रेख तथा रक्षा करता था। सीमारक्षक अधिकारी।
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राष्ट्रिक  : पुं० [सं० राष्ट्र+ठक्-इक] १. राजा। २. प्रजा। वि० राष्ट्र-सम्बन्धी। राष्ट्र का।
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राष्ट्रिय  : पुं० [सं० राष्ट्र+घ-इय] [भाव० राष्ट्रियता] १. राष्ट्र का स्वामी राजा। २. प्राचीन भारतीय नाटकों में राजा के साले की संज्ञा। वि० राष्ट्र सम्बन्धी। राष्ट्र का। राष्ट्रिक।
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राष्ट्री (ष्ट्रिन्)  : पुं० [सं० राष्ट्र+इनि] १. राज्य का अधिकारी, राजा। २. प्रधान शासक। स्त्री रानी।
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राष्ट्रीय  : वि० [सं० राष्ट्रीय] [भाव० राष्ट्रीयता] राष्ट्र-सम्बन्धी। राष्ट्र का। राष्ट्रिय। विशेष—राष्ट्रीय रूप सं० व्याकरण से असिद्ध होने पर भी लोक में चल गया है।
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राष्ट्रीयता  : स्त्री० [सं० राष्ट्रीय+तल्+टाप्] १. राष्ट्रीय अर्थात् राष्ट्र के अंग या सदस्य होने की अवस्था, धर्म या भाव। २. ऐसी धारणा या भावना कि हमें आपसी मत-भेद, वैर-विरोध आदि भूलकर सारे राष्ट्र की समान उन्नति, रक्षा, समृद्धि, सुरक्षा आदि का ध्यान रखना चाहिए। (नेशनलिज्म)
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रास  : स्त्री० [सं०√रास् (शब्द)+अञ्] १. कोलाहल। शोरगुल। हो-हल्ला। २. जोर की ध्वनि या शब्द। ३. वाणी। ४. प्राचीन भारत में गोपों की वह क्रीड़ा जिसमें वे घेरा बाँधकर गाते और नाचते थे। ५. उक्त का वह विकसित रूप जो अब तक ब्रज में प्रचलित है और जिसमें श्रीकृष्ण की बाल-लीलाओं का अभिनय सम्मिलित हो गया है। पद—रास-धारी। रास-मंडली। ६. मध्ययुग में एक प्रकार का गेय पद जो गुजरात और राजस्थान में प्रचलित थे और जो बाद में ‘रास’ (देखें) के रूप में विकसित हुए। ७. आनन्दमय क्रीड़ा। विलास। ८. एक प्रकार का चलता गाना। ९. लास्य नामक नृत्य। १॰. नाचने-गानेवालों की मंडली या समाज। ११. जंजीर। श्रृंखला। १२. संगीत में तेरह मात्राओं का एक ताल। स्त्री० [सं० राशि=ढेर] १. किसी चीज का ढेर या समूह। जैसे—खलिहान में पड़ी हुई गेहूँ चने या जौ की रास। २. उत्तराधिकार के विचार से धन, संपत्ति या प्राप्त होनेवाला उसका स्वामित्व। ३. गोंद लिया हुआ लड़का। दत्तक पुत्र। मुहावरा—(किसी का) किसी को रास बैठना=दत्तक बनकर या और किसी प्रकार उत्तराधिकारी होना। जैसे—अब तो आप उनकी रास बैठेगें (विशेषतः परिहास में)। ४. एक प्रकार का छंद जिसके प्रत्येक चरण में ८+८+६ के विराम से २२ मात्राएँ और अंत में सगण होता है। ५. संख्याओं आदि का जोड़। योग। ६. ब्याज। सूद। ७. एक प्रकार का धान जो अगहन में तैयार होता है। इसका चावल सैकड़ों वर्षों तक रखा जा सकता है। स्त्री० [सं० राशि=राशि-चक्र में तारा समूह] प्रवृत्ति, रुचि, स्वभाव आदि की अनुकूलता। जैसे—उनसे किसी की रास नहीं बैठती। क्रि० प्र०—बैठना।—बैठाना। वि० १. उक्त अर्थ के विचार से, अनुकूल, लाभदायक शुभ अथवा हितकर। जैसे—यह मकान उन्हें खूब रास आया है (अर्थात् इसे पाकर वे अच्छे सम्पन्न या सुखी हुए हैं)। २. उचित। ठीक। मुनासिब। वाजिब। स्त्री० [फा० मिलाओ, सं० रश्मि, प्रा०रस्मि] १. घोड़े बैल आदि पशुओं को चलाने की रस्सी। जैसे—घोडे़ की बागडोर या बैल की रास। मुहावरा—रास कड़ी करना= (क) घोड़े की लगाम अपनी ओर खींचे रहना। (ख) लाक्षणिक रूप में किसी पर कड़ा या पूरा नियंत्रण रखना। रास में लाना=अपने अधिकार या वश में करना। २. रस्सा या रस्सी। उदाहरण—राणों षिमै न रास प्रद्यत्नो साँड़ प्रताप सी।—प्रिथीराज। स्त्री० [इब, राश=सिर] १. चौपायों की गिनती के समय संख्या-सूचक इकाइयों के साथ लगनेवाली संज्ञा। (हेड आँफ कैटल) जैसे—चार रास घोड़े पाँच रास बैल। २. चौपायों या पशुओं का झुंड।
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रासक  : पुं० [सं० रास+कन्] एक तरह का हास्य-रस-प्रधान उपरूपक जिसमें पाँच अभिनेता होते हैं। इसका नायक मूर्ख और नायिका चतुर होती है।
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रास-चक्र  : पुं० राशि-चक्र। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रास-धारी (रिन्)  : पुं० [सं० रास+धृ (धारण)+णिनि] १. वह जो रासलीला का व्यवस्थापक हो। २. रासलीला की मण्डली का प्रधान। ३. वह जो रास-लीला में सम्मिलित होकर अभिनय, नृत्य आदि करता हो। स्त्री० राजस्थानी नृत्य नाट्य की एक विशिष्ट शैली जो ब्रज की रासलीला की तरह होती और जिसमें धार्मिक लोक-नायकों के चरित्र का अभिनय होता है।
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रासन  : वि० [सं० रसना+अण्] स्वादिष्ट। जायकेदार। पुं०=राशन। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रास-नशीन  : वि० [सं० राशि+फा० नशीन] १. जो किसी का रास अर्थात् सम्पत्ति का उत्तराधिकारी हुआ हो। २. गोद बैठाया हुआ। दत्तक। मुतबन्ना (लड़का)।
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रासना  : स्त्री०=रास्ना।
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रास-नृत्य  : पुं० [सं० मध्य० स०] गति के अनुसार नृत्य का एक भेद।
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रास-पूर्णिमा  : स्त्री० [सं० ष० त०] मार्गशीर्ष पूर्णिमा। श्रीकृष्ण ने रास-क्रीड़ा इसी तिथि को आरम्भ की थी।
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रास-मंडल  : पुं० [सं० ष० त०] १. श्रीकृष्ण के रास-क्रीड़ा करने का स्थान। २. रास-क्रीड़ा या रास-लीला करनेवालों की मण्डली। ३. उक्त मण्डली का अभिनय।
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रास-मंडली  : स्त्री० [सं० ष० त०] रासधारियों का समाज या टोली।
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रास-यात्रा  : स्त्री० [सं० ष० त०] शरत् पूर्णिमा के दिन मनाया जानेवाला एक प्राचीन उत्सव (पुराण) २. तांत्रिकों का एक उत्सव जिसे वे चैत्र पूर्णिमा को मानते हैं।
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रास-लीला  : स्त्री० [सं० ष० त०] १. वे नृत्यात्मक क्रीड़ाएँ जो श्रीकृष्ण अपनी सखियों के साथ करते थे। २. वह नाटक या अभिनय जिसमें कृष्ण और गोपियों की प्रेम-संबंधी क्रीड़ाएँ दिखाई जाती है।
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रास-विलास  : पुं० [सं० ष० त०] रास-क्रीड़ा।
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रास-बिहारी (रिन्)  : पुं० [सं० रास-वि√ह्र+णिनि, उप० स०] श्रीकृष्णचंद्र।
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रासा  : पुं० [हिं० रासा=एक प्रकार का गेय पद] १. वह काव्य जिसमें किसी के वीरतापूर्ण कृत्यों या युद्धों का सविस्तर वर्णन हो। २. किसी प्रकार का कथा-काव्य (राज०) ३. बाइस मात्राओं का एक छंद जिसके अंत में सगण होता है। ४. गहरी तकरार या हुज्जत। लड़ाई-झगड़ा।
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रासायन  : वि० [सं० रसायन+अण्] १. रसायन संबंधी। २. रसायन के रूप में होनेवाला।
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रासायनिक  : वि० [सं० रसायन√ठक्—इक] रसायन-शास्त्र-संबंधी। रसायन का। पुं० वह जो रसायन-शास्त्र का ज्ञाता हो।
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रासि  : स्त्री०=राशि। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रासिख  : वि० [अ० रासिख] १. पक्का। मजबूत। अटल। स्थिर।
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रासी  : स्त्री० [देश] १. तीसरी बार खींची हुई शराब जो सबसे निकृष्ट समझी जाती है। २. सज्जी। वि० १. खराब, झूठा या नकली। २. जिसमें खोट या मिलावट हो। जैसे—सोने का रासी तार। स्त्री०=राशि। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रासु  : वि० [फा० रास्त] १. सीधा। सरल। २. उचित। ठीक। वाजिब। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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रासेरस  : पुं० [सं० अलुक० स०] १. गोष्ठी। २. रास-बिहार। रासक्रीड़ा। ३. श्रृंगार। सजावट। ४. उत्सव। ५. परिहास। हँसी-ठठ्ठा।
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रासेश्वरी  : स्त्री० [सं० रास-ईश्वरी, ष० त०] राधा।
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रासो  : पुं० [सं० रहस्य] किसी राजा का पद्यमय जीवन-चरित्र। जैसे—पृथ्वीराज रासो।
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रास्त  : वि० [फा०] १. दाहिने ओर पड़ने या होनेवाला। दाहिना। २. सीधा। सरल। ३. ठीक। दुरुस्त। ४. उचित। वास्तविक। वाजिब। ५. अनुकूल। मुआफिक। क्रि० प्र०—आना।—पड़ना।—होना।
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रास्तगो  : वि० [फा०] [भाव० रास्तगोई] सब बोलनेवाला सत्यवक्ता।
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रास्तगोई  : स्त्री० [फा०] १. सत्य बोलना। २. सत्य-कथन।
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रास्तबाज  : वि० [फा० रास्तबाज़] [भाव० रास्तबाजी] ईमानदार और सच्चा। विशेषतः लेन-देन में साफ २. नेकचलन। सदाचारी।
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रास्तबाजी  : स्त्री० [फा० रास्तबाज़ी] १. ईमानदारी। सच्चाई। २. सदाचार।
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रास्ता  : पुं० [फा० रास्तः] १. वह कच्ची या पक्की जमीन जिस पर लोग सामान्यतया चलते-फिरते या आते-जाते रहते हैं। मुहावरा—रास्ता कटना=चलने से रास्ता पार या पूरा होना। जैसे—बात-चीत में ही आधा रास्ता कट गया। (किसी का) रास्ता काटना=किसी के चलने के समय उसके सामने से होकर किसी का निकल जाना। जैसे—बिल्ली रास्ता काट गई। रास्ता देखना या पकड़ना= (क)मार्ग का अवलंबन करना। रास्ते पर चलना। (ख) कहीं से हटकर चले जाना। जैसे—अच्छा, अब तुम अपना रास्ता देखो। (या पकड़)। (किसी का) रास्ता देखना=प्रतीक्षा करना। हटाना। (ख) इधर-उधर की बातें करके टालना। रास्ते पर लाना=सुमार्ग पर चलाना। अच्छे या ठीक रास्ते पर लगाना। रास्ते लगना= (क) चल पड़ना। (ख) ऐसे मार्ग पर चलना जिससे उद्देश्य सिद्ध हो। २. प्रथा। रीति। चाल। जैसे—अब तो आपने यह नया रास्ता चला ही दिया है। ३. उपाय। तरकीब। युक्ति। जैसे—अभी तो इस संकट से निकलने का रास्ता सोचना है। मुहावरा—(किसी को) रास्ता बताना= (क) उपाय, तरकीब या युक्ति बताना। (ख) कोई काम करने का ढंग बताना या सिखाना।
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रास्ना  : स्त्री० [सं०√रस् (आस्वादन)+न, दीर्घ, +टाप्] १. गंधना हुली नामक कंद जो आसाम, लंका, जावा आदि में अधिकता से होता है। २. गंधनाकुली। ३. रुद्र की प्रधान पत्नी।
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रास्निका  : स्त्री० [सं० रास्ना+कन्+टाप्, ह्रस्व, इत्व] रास्ना।
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रास्य  : पुं० [सं० रास्+यत्] श्रीकृष्ण।
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राह  : स्त्री० [फा०] १. मार्ग। पथ। रास्ता। मुहावरा—राह पड़ना= (क) रास्ते पर चलना या जाना। (ख) रास्ते में चलनेवाले पर छापा डालना। लूटना। राह मारना= (क) रास्ते में चलनेवाले को लूटना। (ख) दे० ‘रास्ता’ के अंतर्गत (किसी का) रास्ता काटना। विशेष—राह के सब मुहावरा के लिए दे० ‘रास्ता’ के मुहावरा। २. कोई काम या बात करने का उचित और ठीक ढंग। पद—राह राह का=ठीक ढंग या तरह का। उदाहरण—नखरो राह राह को नीको।—भारतेन्दु। राह राह से=सीधी या ठीक तरह से। ३. प्रथा। रीति। ४. कायदा। नियम। ५. तरकीब। युक्ति। पुं० =राहु (ग्रह) स्त्री०=रोहू (मछली)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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राह-खरच  : पुं० [फा० राह+खर्च] यात्रा करते समय होनेवाला व्यय। मार्ग-व्यय।
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राह-खरची  : स्त्री०राह-खरच (मार्ग-व्यय)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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राहगीर  : पु० [फा०] वह जो रास्ता पकड़े हुए हो। बटोही।
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राह-चलता  : पुं० [फा० राह+हिं० चलता] [स्त्री० राह-चलती] १. रास्ता चलनेवाला। पथिक। राहगीर। बटोही। २. व्यक्ति जिससे विशेष परिचय न हो। जैसे—यों ही राह-चलतों से मजाक नहीं करना चाहिए।
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राहजन  : पुं० [फा० राहज़न] [भाव० राहजनी] रास्ते में चलनेवालों को लूटनेवाला। बटमार।
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राहजनी  : स्त्री० [फा० राहज़नी] रास्ते में चलनेवाले लोगों को लूटना। बटमारी।
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राहड़ी  : पुं० [देश] एक प्रकार का घटिया कंबल।
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राहत  : स्त्री० [अ०] १. आराम। सुख। चैन। २. वह आराम जो कष्ट, रोग आदि में कमी होने पर मिलता है। ३. बोझ, भार, उत्तरदायित्व से छुट्टी मिलने पर होनेवाली आसानी या सुगमता।
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राहत-तलब  : वि० [अ०] [भाव० राहत-तलवी] १. आराम तलब। २. कामचोर।
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राहदार  : पुं० [फा०] वह जो किसी रास्ते की रक्षा करता या उस पर आने-जानेवालों से कर वसूल करता हो।
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राहदारी  : स्त्री० [फा०] १. किसी दूर देश में जाने के लिए रास्ते पर चलना। २. वह कर जो प्राचीन काल में यात्रियों को कुछ विशिष्ट स्थानों पर चुकाना पड़ता था। दे० ‘राहदारी का परवाना’।
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राहदारी का परवाना  : पुं० [हिं०] प्राचीन काल में वह परवाना या अधिकार-पत्र जो दूर देश के यात्रियों को कुछ विशिष्ट मार्गों से आने-जाने के लिए राज्य की ओर से मिलता था। २. दे० ‘पारपत्र’।
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राहना  : स० [हिं० राह (राह बनाना)] १. चक्की के पाटों को खुरदुरा करके पीसने योग्य बनाना। जाँता कूटना। २. रेती आदि को खुरदुरा करके ऐसा रूप देना कि वह ठीक तरह से चीजें रेत सके। पुं० =रहना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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राहनुमा  : वि० [फा०] [भाव० राहनुमाई] पथ-प्रदर्शक।
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राहनुमाई  : स्त्री० [फा०] पथ-प्रदर्शन।
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राहबर  : वि० [फा०]=रहबर (मार्ग-प्रदर्शक)।
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राहर  : पुं० =अरहर (अन्न)।
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राह-रस्म  : स्त्री० [फा०] १. मेल-जोल। व्यवहार घनिष्ठता। २. चाल। परिपाटी। प्रथा।
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राह-रीति  : स्त्री० [हिं० राह+सं० रीति] १. पारस्परिक राह-रस्म। व्यवहार।। २. जान-पहचान। परिचय। ३. आचरण, व्यवहार आदि का उचित या ठीक तरह से किया जानेवाला पालन।
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राहा  : पुं० [हिं० रहना] मिट्टी का वह चबूतरा जिस पर चक्की के नीचे का पाट जमाया रहता है।
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राहिन  : वि० [अ] रेहन अर्थात् गिरों या बंधक रखनेवाला।
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राही  : पुं० [फा०] राहगीर। मुसाफिर। रास्ता चलनेवाला व्यक्ति। पथिक। मुहावरा—राही करना=धता बताना (बाजारू) राही होना=चलता बनना। रास्ता पकड़ना (बाजारू)। स्त्री० [सं० राधिका, प्रा० रहिया] राधा या राधिका। उदाहरण—राजमती राही जी सी।—नरपति नाल्ह।
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राहु  : पुं० [सं०√रह् (त्याग)+उण्] १. पुराणानुसार नौ ग्रहों में से एक जो विप्रचिति के वीर्य से सिहिंका के गर्भ से उत्पन्न हुआ था। विशेष—प्राचीन काल में चंद्रमा के आरोह-पात और अवरोह-पात वाले बिंदुओं को क्रमात् राहु और केतु कहते थे (दे० ‘पात’) पर आगे चलकर पौराणिक काल में राहु की राक्षस रूप में कल्पना होने लगी और समुद्र-मंथन वाली कथा के प्रसंग में उसका सिर काटने की बात भी सम्मिलित हुई, तब केतु उस राक्षस का कबंध तथा राहु उसका सिर माना जाने लगा। लोक में ऐसा माना जाता है कि उसी के ग्रसने से चन्द्रमा और सूर्य को ग्रहण लगता है। २. लाक्षणिक अर्थ में, कोई ऐसा व्यक्ति या पदार्थ जो किसी की सत्ता के लिए विशेष रूप से कष्टदायक या घातक हो। पुं० [सं० राघव] रोहू मछली।
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राहु-ग्रसन  : पुं० [सं० ष० त०] ग्रहण। उपराग।
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राहु-ग्रास  : पुं० [सं० ष० त०] ग्रहण। उपराग।
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राहु-दर्शन  : पुं० [सं० ष० त०] ग्रहण। उपराग।
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राहु-भेदी (दिन्)  : पुं० [सं० राहु√भिद् (विदारण)+णिनि] विष्णु।
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राहु-माता (तृ)  : स्त्री० [सं० ष० त०] राहु की माता सिहिंका।
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राहु-रत्न  : पुं० [सं० मध्य० स०] गोमेद मणि जो राहु के दोषों का शमन करनेवाली मानी जाती है।
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राहुल  : पुं० [सं०] यशोधरा के गर्भ से उत्पन्न गौतम बुद्ध के पुत्र का नाम।
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राहु-सूतक  : पुं० [सं० ष० त०] ग्रहण। उपराग।
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राहु-स्पर्श  : पुं० [सं० ष० त०] ग्रहण। उपराग।
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राहूत  : पुं० [?] सूफी मत के अनुसार ऊपर के नौ लोकों में से आठवाँ लोक।
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