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रंग  : पुं० [सं०√रंग् (गति)+अच्, वा√रञ्ज् (राग)+घञ्] १. किसी दृश्य पदार्थ का वह गुण जो उसके आकार या रूप से भिन्न होता है और जिसका अनुभव केवल आँखों से होता है। वर्ण। जैसे—नीला, पीला, लाल, सफेद या हरा रंग। विशेष—वैज्ञानिक दृष्टि से प्रकाश की भिन्न-भिन्न प्रकार की और अलग अलग लंबाइयों वाली किरणों के कारण हमें रंग की अनुभूति या ज्ञान होता है। जिन पदार्थों पर ऐसी किरणें पड़ती हैं, उनके रासायनिक गुण या तत्त्व भी हमें रंगों का बोध कराने में सहायक होते हैं। जब किसी वस्तु पर प्रकाश की किरणें पडती है, तब तीन प्रकार की क्रियाएँ होती हैं। एक तो उनका परावर्तन या पीछे की ओर लौटना, दूसरे उनका वर्तन या किसी ओर मुड़ना और तीसरे उस पदार्थ के द्वारा होनेवाला शोषण जिस पर प्रकाश की किरणें पड़ती हैं। जिन पदार्थों पर से प्रकाश किरणों का पूरा परावर्तन होता है, वे सफेद दिखाई देती हैं। जिन पदार्थों पर से प्रकाश परावर्तित नहीं होता, केवल वर्तित तथा शोषित होता है, वे बिना रंग के दिखाई देते हैं। जैसे—शुद्ध जल। और जो पदार्थ सारा प्रकाश सोख लेते हैं, वे काले दिखाई देते हैं, । प्रकाश की किरणें मुख्यतः सात रंगों की होती है। यथा—बैंगनी, नीली, काली या आसमानी, हरी, पीली, नारंगी के रंग की और लाल। इन सातों रंगों का मिश्रित रूप सफेद होता है, और रंग मात्र का अभाव काला दिखाई देता है। अलग-अलग प्रकार के पदार्थ अलग-अलग प्रकार के रंग सोखते और इसलिए अलग-अलग रंगों के दिखाई देते हैं। २. कुछ विशिष्ट रासायनिक क्रियाओं से बनाया हुआ वह पदार्थ जिसका व्यवहार किसी चीज को रँगने या रंगीन बनाने के लिए होता है। जैसे—जल-रंग, तैल-रंग। क्रि० प्र०—आना।—उड़ना।—उतरना।—करना।—चढ़ाना।—पोतना।—लगाना। पद—रंग-बिरंग। मुहावरा—रंग खेलना=होली के दिन में पानी में रंग घोलकर एक-दूसरे पर डालना। (किसी पर) रंग डालना= (होली में) पानी में रंग घोलकर किसी पर डालना। रंग निखरना=रंग का चमकीला या तेज होना और फलतः सुंदर जान पड़ना। ३. किसी पदार्थ के ऊपरी तल या शरीर का ऊपरी वर्ण। वक्ष और चेहरे की रंगत। वर्ण। क्रि० प्र०—उड़ना।—उतरना। मुहावरा—रंग निकलना या निखरना=चेहरे के रंग का साफ होना। चेहरे पर रौनक आना। ४. चौपट की गोटियों के खेल के काम के लिए किये हुए दो काल्पनिक विभागों में से हर एक। मुहावरा—रंग जमना=चौपड़ में रंग की गोटी का किसी अच्छे और उपयुक्त घर में जा बैठना, जिसके कारण खेलाड़ी की जीत अधिक निश्चित होती है। रंग मारना= (क) चौपड़ के खेल में किसी रंग की गोटी मारना। (ख) लाक्षणिक रूप में बाजी जीतना। प्रतियोगिता आदि में विजय। प्राप्त करना। ५. रूप, रंग आदि की सुंदरता के कारण दिखाई देनेवाली शोभा। छवि। रौनक। जैसे—आज तो इस पर रंग है। क्रि० प्र०—आना।—उतरना।—चढ़ना।—पकड़ना।—होना। पद—रंग है=वाह क्या बात है। बहुत अच्छे। मुहावरा—रंग पर आना=ऐसी स्थिति में आना कि यथेष्ट शोभा या सौदर्य दिखाई पड़े। रंग बरसना=शोभा या सौन्दर्य का इतना आधिक्य होना कि चारों ओर यथेष्ट प्रभाव पड़ रहा हो। ६. श्रृंगारिक क्षेत्र में होनेवाला अनुराग या प्रेम। मुहब्बत। मुहावरा—(किसी पर) रंग देना=किसी को अपने प्रेम पाश में फँसाने के उद्देश्य से उसके प्रति उत्कट प्रेम प्रकट करना। (बाजारू)। (किसी पर) रंग डालना=अपनी ओर अनुरक्त करना। उदाहरण—सतगुरु हो महाराज मोपै साई रंग डारा०।—कबीर। (किसी के) रंग में बींधना=किसी पर पूर्णरूपेण अनुरक्त होना। ७. किसी पर अनुरक्त होने के कारण उसके प्रति की जानेवाली कृपा या प्रकट की जानेवाली प्रसन्नता। ८. मनोविनोद के लिए की जानेवाली कीड़ा, और उससे प्राप्त होनेवाला आनंद या मजा। उदाहरण—मोकों व्याकुल छाँड़ि कै आपुन करै जु रंग।—सूर। क्रि० प्र०—आना।—उख़ड़ना।—जमना।—मचाना।—रचाना। पद—रंगरली या रंगरलियाँ। मुहावरा—रंग में भंग करना=आनंद में बाधा डालना। होते हुए आमोद-प्रमोद को ठप करना। रंग में होना=मन की यथेष्ट उमंग या प्रसन्नता की दशा में होना। जैसे—आज तो यह रंग में है। रंग में भंग पड़ना या होना=आनंद और हर्ष के समय कोई दुःखद घटना घटित होना या कोई बाधक बात होना। रंग रलना=आमोद-प्रमोद करना। क्रीड़ा या भोग-विलास करना। ९. यौवन। जवानी। युवावस्था। क्रि० प्र०—आना।—उतरना।—चढ़ना। मुहावरा—रंग चूना या टपकना=पूर्ण यौवन की अवस्था में रूप या सौदर्य का इतना आधिक्य होना कि औरों पर उसका पूरा-पूरा प्रभाव पड़ता हो। १॰. गुण, महत्त्व, योग्यता, शक्ति आदि का दूसरों के हृदय पर पडनेवाला आतंक या प्रभाव। धाक। रोब। क्रि० प्र०—उखड़ना।—जमना। मुहावरा—रंग बाँधना= (क) धाक या रोब जमाने के उद्देश्य से लंबी-चौड़ी हाँकना। (ख) प्रभावित करने के लिए व्यर्थ का आडम्बर खड़ा करना या ढोंग रचना। (किसी का) रंग बिगाड़ना= (क) प्रभाव या महत्व कम होना या न रह जाना। (ख) अभिमान चूर्ण करना। शेखी किरकिरी करना। रंग लाना=अपना गुण या प्रभाव दिखाना। उदाहरण—रंग लाएगी हमारी फाका मस्ती एक दिन।—गालिब। ११. किसी प्रकार का अद्भुत दृश्य। विलक्षण कार्य या व्यापार। जैसे—आज तो तुमने वहाँ एक रंग खड़ा कर दिया। १२. नृत्य, गीत आदि का उत्सव। पद—नाच-रंग। १३. वह स्थान जहाँ नृत्य या अभिनय होता हो। नाचने, गाने आदि के लिए बना हुआ स्थान। पद—रंग-देवता, रंगभूमि, रंगमंच, रंगशाला। १४. अवस्था। दशा। हालत। जैसे—कहो आज-कल उनका क्या रंग है १५. ढंग। ढब। पद—रंग-ढंग। मुहावरा—रंग काछना=कोई नई चाल या नया ढंग अख्तियार करना। (किसी को अपने) रंग में ढालना या रंगना=किसी को अपने ही विचारों का अनुयायी बना लेना। प्रभाव डालकर अपना सा कर लेना। १६. भाँति। प्रकार। तरह। पद—रंग-बिरंग। १७. युद्ध। लड़ाई। समर। क्रि० प्र०—ठानना।—मचाना। १८. लड़ाई का मैदान। युद्ध क्षेत्र। रणभूमि। पुं० [सं०+अच्] १. राँगा नामक धातु। २. खदिर सार।
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रंगई  : पुं० [सं० रंग+ई (प्रत्यय)] १. धोबियों की एक जाति जो विशेष रूप से रंगीन या छापे के कपड़े धोती है। २. उक्त जाति का व्यक्ति। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रंग-काष्ठ  : पुं० [सं० ब० स०] पतंग नामक वृक्ष की लकड़ी। बक्कम।
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रंग-क्षेत्र  : पुं० [सं० ष० त०] १. अभिनय करने का स्थान। रंग-स्थल। २. उत्सव आदि के लिए सजाया हुआ स्थान। रंगभूमि।
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रंग-गृह  : पुं० [सं० ष० त०] रंगशाला। (दे०)
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रंग-चर  : पुं० [सं० रंग√चर् (गति)+ट, उप० स०] अभिनेता। नट।
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रंग-चित्र  : पुं० [सं० मध्य० स०] विशेष प्रकार के रंगों के घोल से कूँची या तूलिका की सहायता से बनाया हुआ चित्र। (पेन्टिंग)
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रंग-चित्रक  : पुं० [सं० रंगचित्र+णिच्+ण्वुल्—अक] रंगचित्र बनानेवाला चित्रकार (पेन्टर)।
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रंग-चित्रण  : पुं० [सं० रंगचित्र+णिच्+ल्युट—अन] रंगचित्र बनाने की कला, क्रिया या भाव। (पेन्टिंग)।
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रंगज  : पुं० [सं० रंग√जन् (उत्पत्ति+ड] सिंदूर। वि० रंग से उत्पन्न निकला या बना हुआ।
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रंग-जननी  : स्त्री० [सं० ष० त०] लाख। लाक्षा।
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रंग-जीवक  : पुं० [सं० रंग√जीव (जीना)+ण्वुल्-अक, उप० स०] १. चित्रकार। २. अभिनेता। नट।
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रंग-ढंग  : पुं० [सं० +हिं] १. गति-विधि आदि की प्रवृत्ति या स्वरूप। जैसे—इसका रंग-ढंग ठीक नहीं दिखाई देता। २. आचरण, व्यवहार आदि का प्रकार का रूप। तौर-तरीका। जैसे—अब वह धीरे-धीरे अपना रंग-ढंग बदल रहा है। ३. ऐसी दशा बात या लक्षण जो किसी भावी व्यापार या स्थिति का सूचक हो। आसार। जैसे—आज तो आकाश में वर्षा का रंग-ढंग है।
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रंगत  : स्त्री० [सं० रंग+हिं० त (प्रत्यय)] १. रंग से युक्त होने की अवस्था या भाव। २. किसी रंगीन पदार्थ की दिखाई पड़नेवाली रंग की झलक। ३. किसी विलक्षण काम या बात में आनेवाला आनंद या मजा। ४. अवस्था। दशा। हालत। ५. वे कपड़े जो रँगने के लिए आये हों या रंगे जाने को हो। (रंगरेज) ६.छाप। प्रभाव। मुहावरा—(किसी की किसी पर) रंगत चढ़ना=किसी के विचारों या रहन-सहन का प्रभाव किसी दूसरे पर लक्षित होना।
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रंगतरा  : पुं० [हिं० रंग] एक प्रकार की बड़ा और मीठी नारंगी। संगरा।
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रंगद  : पुं० [सं० रंग√दा (काटना)+क] १. सोहागा। २. खदिर सार।
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रंगदा  : स्त्री० [सं० रंगद+टाप्०] फिटकरी, जिससे रंग पक्का होता है।
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रंगदानी  : स्त्री० [हिं० रंग+फा० दानी] वह प्याली जिसमें चित्रकार आदि किसी चीज पर लगाने के लिए अपने सामने रंग रखते हैं।
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रंगदुनी  : पुं० [?] खरगोश की तरह का एक प्रकार का पहाड़ी जन्तु जो हिमालय के ऊँचे पर्वतों पर रहता है। रँगरूट।
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रंगदृढ़ा  : स्त्री० [सं० उपमि० स०] फिटकरी, जिससे रंग पक्का होता है। रंगदा।
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रंग-देवता  : पुं० [सं० ष० त०] रंग-भूमि के अधिष्ठाता।
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रंग-द्वार  : पुं० [सं० ष० त०] १. रंगमंच का प्रवेश-द्वार। २. नाटक की प्रस्तावना।
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रंगन  : पुं० [देश] एक प्रकार का मझोले आकार का वृक्ष जिसके हीर की लकड़ी कड़ी, चिकनी और मजबूत होती है। कोटा गंधल।
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रंगना  : स० [सं० रंग+हिं० ना (प्रत्यय)] १. ऐसी क्रिया करना जिससे कोई चीज किसी एक या अनेक रंगों से युक्त हो जाय। जैसे—(क) धोती या साड़ी रँगना। (ख) दीवार या छत रँगना। (ग) चित्र रँगना। मुहावरा—रँगे हाथ या रँगे हाथों पकड़ा जाना=अपराधी या दोषी का ठीक अपराध करते समय पकड़ा जाना। २. लेखन में, बहुत अधिक लिखना विशेषतः लीपा-पोती करना। जैसे—कापी या किताब रँगना। ३. किसी को अपने प्रेम में फँसाना। अनुरक्त करना। ४. किसी को अपने अनुकूल बनाने के लिए अपने मतलब की बातें बतलाना या समझाना अथवा और किसी प्रकार अपने अनुकूल बनाना। ५. किसी के शरीर, विशेषतः सिर पर ऐसा भीषण आघात करना कि उसमें से रक्त की धार बहने लगे (गुण्डे) ६. किसी को अपने प्रभाव से युक्त करना। अ०१. रंग से युक्त होना। २. किसी के प्रेम में लिप्त होना। किसी पर आसक्ति होना। संयो० क्रि०—जाना।
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रंगपत्री  : स्त्री० [सं० ब० स० ङीष्] नीली (वृक्ष)।
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रंग-पीठ  : पुं० [सं० ष० त०] रंगशाला।
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रंग-पुरी  : स्त्री० [रंगपुर=बंगाल का एक नगर] एक तरह की छोटी नाव, जिसके दोनों ओर की गलही एक-सी होती है।
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रंगपुष्पी  : स्त्री० [सं० ब० स० ङीष्] रंगपत्री। (दे०)
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रंग-प्रवेश  : पुं० [सं० स० त०] अभिनय के निमित्त रंगमंच पर अभिनेता या नट का आना।
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रंग-बदल  : पुं० [हिं० रंग+बदलना] हल्दी। (साधू)
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रंगबाज  : वि० [सं०+फा० ] १. दूसरों पर अपना आतंक जमानेवाला। रंग बाँधनेवाला। २. मौज-मस्ती करनेवाला। आनंद मनानेवाला।
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रंगबाजी  : स्त्री० [हिं० +फा० ] १. रंगबाज होने की अवस्था या भाव। २. चौसर का एक विशेष प्रकार का खेल जो स्त्री और पुरुष मिलकर खेलते हैं, और जो विशेष नियमों या प्रतिबंधों के कारण अपेक्षाकृत अधिक कठिन होता है। ३. ताश का एक प्रकार का खेल।
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रंग-बाती  : स्त्री० [हिं० रंग+बत्ती] शरीर में लगाई जानेवाली सुगंधित वस्तुओं की बत्ती।
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रंग-बिरंग (ा)  : वि० [हिं० रंग+बिंरगा (अनु)०] १. कई रंगों का। २. कई तरह या प्रकार का। भांति-भांति का। जैसे—रंग-बिरंगे कपड़े।
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रंग-भरिया  : पुं० [हिं०] दीवारों, छतों आदि पर रंग पोतने का काम करनेवाला कारीगर।
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रंगभवन  : पुं० [सं० ष० त०] रंगमहल।
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रंग-भूति  : स्त्री० [सं० ब० स०] आश्विन की पूर्णिमा।
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रंग-भूमि  : स्त्री० [सं० ष० त०] १. वह स्थान जहाँ पर आमोद-प्रमोद के उद्देश्य से उत्सव समारोह आदि किये जाते हैं। २. खेल-कूद तमाशे आदि का स्थान। क्रीड़ास्थल। ३. नाटक खेलने का स्थान। रंगमंच। ४. कुश्ती लड़ने का अखाड़ा। ५. युद्ध क्षेत्र। लड़ाई का मैदान।
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रंग-भौन  : पुं० =रंग-भवन (रंगमहल)।
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रंग-मंच  : पुं० [सं० ष० त०] १. वह ऊँचा उठा हुआ स्थान जहाँ पर पात्र अभिनय करते हैं। २. लाक्षणिक अर्थ में कोई ऐसा स्थान जिसे आधार बनाकर कोई काम किया जाय।
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रंग-मंडप  : पुं० [सं० ष० त०] नृत्यशाला।
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रंग-मल्ली  : स्त्री० [सं० च० त०] वीणा। बीन।
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रंग-महल  : पुं० [हिं० +अ०] १. भोग-विलास करने का महल। २. अंतःपुर।
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रंगमाता (तृ)  : स्त्री० [सं० ष० त०] १. कुटनी। २. लाक्षा। लाख।
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रंग-मातृका  : स्त्री० [सं० रंगमातृ+कन्-टाप्]=रंगमाता।
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रंग-मार  : पुं० [हिं० रंग+मारना] ताश का एक प्रकार का खेल।
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रंग-रली  : स्त्री०[हिं० रंग+रलना] आमोद-प्रमोद। आनंद। क्रीड़ा। चैन। मौज। (प्रायः बहुवचन रूप में प्रयुक्त)। क्रि० प्र०—मचना।—मनाना।
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रंग-रस  : पुं० [हिं० रंग+रस] आमोद-प्रमोद। आनंद-मंगल।
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रंग-रसिया  : पुं० [हिं०] १. वह व्यक्ति जिसकी प्रवृत्ति सदा आमोद-प्रमोद के कार्यों में रमती हो। २. विलासी पुरुष।
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रंग-राज  : पुं० [सं० ष० त०] ताल के साठ मुख्य भेदों में से एक। (संगीत)।
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रंगरूट  : पुं० [अं० रिक्रूट] १. पुलिस, सेना आदि में भर्ती हुआ नया व्यक्ति। २. नौसिखुआ।
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रंगरुडा  : वि० [सं० रंग+हिं० रूढ़ (प्रत्यय)] सुंदर। उदाहरण—नहिं भावै थाँरौं देश लड़ो रगरूड़ों।—मीराँ। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रंगरेज  : पुं० [फा० रँगरेज] [स्त्री० रँगरेजिन] वह जो कपड़े रँगने का व्यवसाय करता हो।
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रंगरैली  : स्त्री०=रंगरली। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रंगरैनी  : स्त्री० [हिं० रंग+रैनी=जुगनू] रंगी हुई लाल चुनरी।
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रंग-लासिनी  : स्त्री० [सं० रंग√लस् (शोभित होना)+णिच्+णिनि+ङीष्] शेफालिका।
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रंगवा  : पुं० [देश] चौपायों का एक रोग।
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रंगवाई  : स्त्री० [हिं० रँगवाना] रँगवाने की क्रिया, भाव या पारिश्रमिक। स्त्री०=रँगाई।
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रँगवाना  : स० [हिं० रँगना का प्रे०] रँगने का काम किसी दूसरे से कराना। किसी को रँगने में प्रवृत्त करना।
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रंग-विद्याधर  : पुं० [सं० ष० त०] १. अभिनेता। नट। २. नृत्य-कला में, कुशल नर्तक। ३. ताल के साठ मुख्य भेदों में से एक (संगीत)।
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रंगबीज  : पुं० [सं० ब० स०] चाँदी।
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रंग-शाला  : स्त्री० [सं० ष० त०] १. भोग-विलास का स्थान। २. वह स्थान जहाँ दर्शकों को अभिनेतागण या नट लोग अपना अभिनय या करतब दिखाते हों। ३. नाट्यशाला।
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रंगसाज  : पुं० [फा० हिं० रंग+फा० साज] [भाव० रंगसाजी] १. उपकरणों के योग से तरह-तरह के रंग तैयार करनेवाला कारीगर। २. मेज, कुरसी, किवाड़, आदि पर रंग चढ़ानेवाला कारीगर। (पेंटर)
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रंगसाजी  : स्त्री० [हिं० रंग+फा० साजी] १. रंगने की कला या विद्या। २. रंगसाज का काम पेशा या भाव।
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रंग स्थल  : पुं० [सं० ष० त०] १. आमोद-प्रमोद के लिए नियत स्थान। २. रंगशाला।
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रंग-स्थापक  : पुं० [सं० ष० त०] कोई ऐसी चीज जिसकी सहायता से रंग, पतले पत्तर आदि दूसरी चीजों पर चिपक या जम जाते हों। (मारडेंट)
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रंगांगण  : पुं० [सं० रंग-अंगण, ष० त०] नाट्यशाला। २. रंगभूमि।
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रंगांगा  : स्त्री० [सं० रंग-अंग, ब० स०-टाप्] फिटकरी।
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रँगाई  : स्त्री० [हिं० रंग+आई (प्रत्यय)] रँगने का काम , पेशा या भाव या मजदूरी।
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रंगाजीव  : पुं० [सं० रंग-आ√जीव् (जीना)+अण्] वह जिसकी जीविका का आधार रंग सम्बन्धी काम हो। जैसे—रंगसाज, रँगरेज आदि।
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रंगाना  : स० [हिं० रँगना का प्रे०] रँगवाना (दे०)
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रँगामेज़ी  : स्त्री० [फा०] १. किसी चीज में यथास्थान तरह-तरह के रंग भरने का काम। २. तरह-तरह की चीजें एक साथ बनाने या रखने की क्रिया या भाव। उदाहरण—रंगामेजी का खेल जब हो तो क्यों न सब सृष्टि बने अनुरागी।—बालकृष्ण शर्मा नवीन। ३. किसी बात को रोचक बनाने के लिए उसमें अपनी तरफ से भी कुछ बातें बढ़ाना।
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रंगारंग  : वि० [हिं०] १. बहुत से रंगोंवाला। २. अनेक प्रकार का। तरह-तरह का। जैसे—रंगारंग कपड़े या खिलौने। पुं० आकाश-वाणी का एक प्रकार का कार्यक्रम जिसमें अनेक प्रकार के गीत सुनाये जाते हैं।
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रंगार  : पुं० [देश] १. वैश्यों की एक जाति या वर्ग। २. राजपूतों की एक जाति या वर्ग।
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रंगारि  : पुं० [सं० रंग-अरि, ष० त०] कनेर।
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रंगालय  : पुं० [सं० रंग-आलय, ष० त०] रंगभूमि। रंगशाला।
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रंगावट  : स्त्री० [हिं० रंग+आवट (प्रत्यय)] १. रँगे हुए होने का भाव। २. वह झलक या आभा जो किसी रँगे हुए वस्त्र आदि में प्रकट होती है।
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रंगावतारक  : पुं० [सं० रंग-अवतारक, ष० त०] १. रँगरेज। २. अभिनेता। नट।
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रँगावतारी (रिन्)  : पुं० [सं० रंग-अव√तृ (पार करना)+णिनि] अभिनेता। नट।
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रंगासियार  : पुं० [हिं] ऐसा व्यक्ति जो ऊपर से तो भला लगता हो परन्तु हो बहुत बड़ा चालाक या धूर्त।
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रंगिया  : पुं० [हिं० रंग+इया (प्रत्यय)] १. कपड़ा रँगनेवाला। रंगरेज। २. रंगसाज। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रंगी  : स्त्री० [सं० रंग+अच+ङीष्] १. शतमूली। २. कैवर्तिकी लता। वि० [हिं० रंग] १. विनोदशील प्रकृति का। २. मनमौजी।
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रंगीन  : वि० [फा०] १. जिस पर कोई रंग चढ़ा हो। रँगा हुआ। रंगदार। जैसे—रंगीन साड़ी, रंगीन चित्र। २. जिसकी प्रकृति या स्वभाव में विनोद, विलास आदि तत्त्वों की प्रधानता हो। आमोदप्रिय और विलासी। ३. चमत्कारपूर्ण तथा विलासमय। जैसे—रंगीन तबीयत, रंगीन महफिल।
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रंगीनबाजी  : स्त्री०=रँगबाजी (चौसर का खेल)।
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रंगीनी  : स्त्री० [फा०] १. रंगीन होने की अवस्था या भाव। २. बनाव-सिंगार। सजावट। ३. प्रकृति या स्वभाव से रसिक और विनोदप्रिय होने की अवस्था या भाव।
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रंगीरेटा  : पुं० [देश] एक प्रकार का जंगली वृक्ष जो दारजिलिंग में अधिकता से होता है।
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रंगीला  : वि० [हिं० रंग+ईला (प्रत्यय)] [स्त्री० रँगीली] १. जिसकी प्रकृति या स्वभाव में रसिकता, विनोदशीलता आदि बातें मुख्य रूप से हों। रसिक-प्रकृति। रसिया। २. कई रंगों से युक्त होने के कारण आकर्षक और मनोहर लगनेवाला। जैसे—रँगीले छैल खेलैं होरी।
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रंगीली टोड़ी  : स्त्री० [हिं० रंगीला+टोड़ी (रागिन)] संपूर्ण जाति की एक रागिनी जिसमें सब शुद्ध स्वर लगते हैं।
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रंगैया  : पुं० [हिं० रंग+ऐला (प्रत्यय)] रँगनेवाला।
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रंगोपजीवी (विन)  : पुं० [सं० रंग-उप√जीव् (जीना)+णिनि] अभिनय आदि के द्वारा अपनी जीविका चलानेवाला।
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रंगोली  : स्त्री० [सं० रंगवल्ली] साँझी का वह रूप जो महाराष्ट्र में प्रचलित है (देखें ‘साँझी’)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रंगौधी  : स्त्री० [हिं० रंग+औंधी (अधा से) प्रत्यय] आँखों का वह रोग जिसमें रोगी रंग या वर्ण नहीं पहचान सकता। वर्णान्धता (कलर ब्लाइन्डनेस)।
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रंगौनी  : स्त्री० [हिं० रंग] लाल रंग की एक प्रकार की चुनरी। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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