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यथांश  : अव्य० [सं० यथा—अंश, अव्य० स०] प्रत्येक के अंश या भाग के अनुसार। जिसका जितना अंश हो, उसे उतना। पुं० किसी के लिए निश्चित किया हुआ अंश या हिस्सा जो उसे दिया जाय या उससे लिया जाय (कोटा)।
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यथा  : अव्य० [सं० यद (प्रकार)+थाल्] एक अव्यय जिसका प्रयोग नीचे लिखे आशय या भाव प्रकट करने के लिए होता है—(क) जिस प्रकार या जैसे कहा या बतलाया गया हो, उस प्रकार या वैसे। जैसे—यथा—विधि। (ख) जिसका उल्लेख हुआ हो, उसके अनुसार। जैसे—यथा—मति। (ग) उदाहरण के रूप में। जैसे—यथा विश्वामित्र। (घ) नीचे लिखे अनुसार या निम्न क्रम से। जैसे—यजुर्वेद की दो शाखाएँ है, यथा—कृष्ण यजुर्वेद और शुक्ल यजुर्वेद। विशेष—कुछ अवस्थाओं में इसका साथ नित्य सम्बन्धी ‘तथा’ आता है। जैसे—यथा नाम तथा गुण।
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यथाकाम  : पुं० [सं० अव्य० स०] १. मनमाना आचरण। २. यथा—कामी।
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यथाकामी (मिन्)  : पुं० [सं० यथा√कम् (चाहना)+णिनि] मनमाना आचरण करनेवाला। स्वेच्छाचारी।
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यथाकारी (रिन्)  : पुं० [सं० यथा√कृ(करना)+णिनि] मनमाना काम करनेवाला। स्वेच्छाचारी।
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यथा—कृत  : वि० [सं० सुप्सुपा० स०] जैसा आरम्भ में बना हो, वैसा ही। जैसे—यथाकृत वस्त्र=अर्थात् बिना सीया हुआ कपड़ा।
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यथा—क्रम  : अव्य० [सं० अव्य० स०] ठीक और निश्चित क्रम से। क्रमानुसार।
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यथाख्यात-चरित्र  : पुं० [सं० यथा—ख्यात, अव्य० स० यथाख्यात-चरित्र, कर्म० स०] ऐसे साधुओं का चरित्र जिन्होंने सब कषायों (काम, क्रोधादि पातकों) का क्षय कर दिया हो। (जैन)।
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यथाजात  : पुं० [सं० सुप्सुपा स०] जो जब भी वैसा ही (अज्ञानी) हो, जैसा जन्म के समय था, अर्थात् बहुत बड़ा नासमझ, मूर्ख या नीच।
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यथा-तथ  : वि० [सं० अव्य० स०] १. जैसा हो, वैसा। २. ऐसा वैसा, निकम्मा रद्दी या वाहियात।
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यथा-तथ-शैली  : स्त्री० [सं० कर्म० स०] काव्य, चित्रकला, मूर्तिकला आदि में वह शैली जिसमें हर एक चीज ज्यों की त्यों और अपने मूल रूप में अंकित या चित्रित की अथवा गढ़ी जाती है।
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यथा-तथा  : अव्य० [सं० द्व० स०] जैसे का तैसे।
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यथा-तथ्य  : वि० [सं० अव्य० स०] जैसे का तैसा। ज्यों का त्यों। हू-बहू।
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यथा—नियम  : अव्य० [सं० अव्य० स०] नियमानुसार
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यथानुक्रम  : अव्य० [सं० यथा—अनुक्रम, अव्य० स०] यथा—क्रम।
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यथापूर्व  : अव्य० [सं० अव्य० स०] १. जैसा पहले था, वैसा ही। पहले की तरह। पूर्ववत। २. ज्यों का त्यों।
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यथापूर्व स्थिति  : स्त्री० [सं०] किसी बात या विषय की वह स्थिति जो किसी विशिष्ट समय में वर्तमान रही हो अथवा प्रस्तुत समय में वर्तमान हो। (स्टेटस् को)।
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यथाभाग  : अव्य० [सं० अव्य० स०] १. अपने अपने अंश या भाग के अनुसार जितना चाहिए उतना। हिस्से के मुताबिक। २. यथोचित।
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यथा-मति  : अव्य० [सं० अव्य० स०] मति अर्थात् बुद्धि के अनुसार।
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यथा-मूल्य  : अव्य० [सं०] एक पद जिसका प्रयोग आयात और निर्यात पर लगाने वाले करों के सम्बन्ध में उस दशा में होता है जब कर-निर्धारण उन वस्तुओं के मूल्य के आधार पर होता है (एडवैलोरम)।
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यथा-योग्य  : अव्य० [सं० अव्य० स०] जैसा चाहिए, ठीक वैसा। उपयुक्त। यथोचित्त। मुनासिब। पुं० पत्र-व्यवहार में इस आशय का सूचक पद कि बड़ों को हमारा नमस्कार, बराबरवालों को प्रेमपूर्ण अभिवादन और छोटों को आशीर्वाद।
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यथारथ  : अव्य०=यथार्थ।
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यथारुचि  : अव्य० [सं० अव्य० स०] रुचि के अनुसार।
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यथार्थ  : अव्य० [सं० यथा—अर्थ, अव्य० स०] १. जो अपने अर्थ (आशय, उद्देश्य, भाव आदि) आदि के ठीक अनुरूप हो। ठीक। वाजिब। उचित २. जैसा होना चाहिए, ठीक वैसा। विशेष—यथार्थ और वास्तविक का अन्तर जानने के लिए दे० ‘वास्तविक’ का विशेष। ३. सत्यपूर्वक।
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यथार्थतः (तस्)  : अव्य० [सं० यथार्थ+तस्] १. अपने यथार्थ रूप में। वास्तव में। वस्तुतः। सचमुच। २. दे० ‘वस्तुतः’।
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यथार्थता  : स्त्री० [सं० यथार्थ+तल्—टाप्] १. यथार्थ होने की अवस्था या भाव। २. सचाई। सत्यता। २. दे० ‘वास्तविकता’।
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यथार्थवाद  : पुं० [सं० ष० त०] १. दार्शनिक क्षेत्र में, प्लेटो द्वारा प्रवर्तित यह मर्त किसी पद से जिस अमूर्त कि या मूर्त बात या वस्तु का बोध होता है, वह स्वतंत्र सत्तावाली इकाई होती है। २. आज-कल साहित्यिक क्षेत्र में, (आदर्शवाद से भिन्न) यह मत या सिद्धान्त कि प्रत्येक घटना या बात अपने यथार्थ रूप में अंकित या चित्रित की जानी चाहिए (रियालिज्म)। विशेष— इसमें आदर्शों का ध्यान छोड़कर उसी रूप में कोई चीज या बात लोगों के सामने रखी जाती है, जिस रूप में वह नित्य या प्रायः सबके सामने आती रहती है। इसमें कर्ता न तो अपनी ओर से टीका-टिप्पणी करता है न अपना दृष्टिकोण बतलाता है और निष्कर्ष निकालने का काम दर्शकों या पाठकों पर छोड़ देता है।
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यथार्थवादी (दिन्)  : वि० [सं० यथार्थवाद+इनि] १. यथार्थवाद से सम्बन्ध रखनेवाला। २. यथार्थवाद के अनुरूप होनेवाला। ३. सत्यवादी। पुं० यथार्थवाद के सिद्धान्तों का समर्थक।
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यथालब्ध  : अ० य० [सं० अव्य० स०] जितना प्राप्त हो उसी के अनुसार। पुं० जैनियों के अनुसार जो कुछ मिल जाय उसी से संतुष्ट रहने की वृत्ति।
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यथालाभ  : अव्य० [सं० अव्य० स०] जो कुछ मिले, उसी के अनुसार।
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यथावत्  : अव्य० [सं० यथा+वति] १. ज्यों का त्यों। जैसे का तैसा। २. जैसा होना चाहिए वैसा। अच्छी या पूरी तरह से।
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यथासवर  : अव्य० [सं० यथा-अवसर] अवसर के अनुसार।
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यथावस्थित  : अव्य० [सं० यथा-अवस्थित, अव्य० स०] १. जैसा था, वैसा ही। २. सत्य। ३. अचल। स्थिर।
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यथाविधि  : अव्य० [सं० अव्य० स०] निश्चित की अथवा बतलाई हुई विधि के अनुसार। विधिपूर्वक।
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यथाविहित  : अव्य, [सं० अव्य० स०] विधान या विधि के अनुसार।
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यथा-शक्ति  : अव्य० [सं० अव्य० स०] शक्ति के अनुसार। भरसक।
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यथा-शक्य  : अव्य० [सं० अव्य० स०] शक्ति के अनुसार। भरसक।
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यथा-शास्त्र  : अव्य० [सं० अव्य० स०] जो कुछ शास्त्रों में बतलाया गया हो, उसी के अनुसार। शास्त्रों के अनुकूल या मुताबिक।
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यथासंख्य  : पुं० [सं० अव्य० स०] क्रम नामक अलंकार का दूसरा नाम।
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यथा-संभव  : अव्य, [सं० अव्य० स०] जहाँ तक या जितना संभव हो।
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यथा-समय  : अव्य० [सं० अव्य० स०] १. ठीक या नियत समय आने पर । २. जब जैसा समय हो,तब उसके अनुसार।
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यथा-साध्य  : अव्य० [सं० अव्य० स०] यथाशक्ति। भरसक।
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यथा-सूत्र  : अव्य० [सं० अव्य० स०] जहाँ से सूत्र चलता हो, वहाँ से। प्रारम्भ से। शुरू से।
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यथा-स्थान  : अव्य० [सं० अव्य० स०] ठीक जगह पर। अपने उचित या उपयुक्त स्थान पर। ठीक जगह पर।
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यथा-स्थित  : वि० [सं०] [भाव० यथास्थिति] जिस रूप या स्थिति में अब तक चला आ रहा हो, और अब तक चल रहा हो।
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यथा-स्थिति  : स्त्री० दे० यथापूर्व स्थिति। अव्य० [सं० अव्य० स०] जब जैसी स्थिति हो तब उसी के अनुसार।
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