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मैं  : सर्व० [सं० अहं] सर्वनाम उत्तम पुरुष में कर्ता का रूप। स्वयं। खुद। विशेष—गद्य में यह विभक्ति-रहित रूप है, परन्तु पद्य में यह सार्वविभक्ति रूप में भी प्रयुक्त होता है। जैसे—यह अपराध बड़ौ उन कीन्हौं। तच्छक डसन साँप मै=(मुझे) दीन्हौ।—सूर। स्त्री० अहंभाव। अहंमन्यता। विभ० हिन्दी में विभक्ति का व्रज रूप। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मैंगनीज़  : पुं० [अं०] मंगल नामक सफेद धातु।
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मैंढल  : पुं० =मैनफल। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मैंन  : पुं० =मोम। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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