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मैं  : सर्व० [सं० अहं] सर्वनाम उत्तम पुरुष में कर्ता का रूप। स्वयं। खुद। विशेष—गद्य में यह विभक्ति-रहित रूप है, परन्तु पद्य में यह सार्वविभक्ति रूप में भी प्रयुक्त होता है। जैसे—यह अपराध बड़ौ उन कीन्हौं। तच्छक डसन साँप मै=(मुझे) दीन्हौ।—सूर। स्त्री० अहंभाव। अहंमन्यता। विभ० हिन्दी में विभक्ति का व्रज रूप। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मैंगनीज़  : पुं० [अं०] मंगल नामक सफेद धातु।
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मैंढल  : पुं० =मैनफल। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मैंन  : पुं० =मोम। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मै  : स्त्री० [सं० मद्य से फा०] शराब। मद्य। मदिरा। अव्य० [अ०] साथ। सहित। जैसे—मै नौकर-चाकर से वे यहीं आनेवाले हैं। पुं० =मय। पुं० =मैखाना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मैकदा  : पुं० [फा० मैकदः] मधुशाला।
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मैकश  : पुं० [फा०] [भाव० मैकशी] बहुत शराब पीनेवाला। भद्यप।
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मैकशी  : स्त्री० [फा०] शराब पीना। मद्य-पान।
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मैका  : पुं० =मायका।
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मै-खाना  : पुं० [फा० मैख़ानः] मधुशाला। मदिरालय।
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मैगना-कार्टा  : पुं० [अं०] वह राजकीय आज्ञापत्र जिसमें राजा की ओर से प्रजाजनों को कोई स्वत्व या अधिकार देने की घोषणा की जाती है। शाही फरमान।
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मैगनेट  : पुं० [अं०] चुंबक।
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मैगल  : पुं० [सं० मदकल] मत्त हाथी। मस्त हाथी। वि० मत्त। मस्त।
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मैच  : पुं० [अं०] वह खेल जिसमें दो दल एक-दूसरे को पराजित करने और स्वयं विजयी होने के लिए सम्मिलित होते हैं। प्रतियोगिता का खेल।
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मैजल  : स्त्री० [अ० मंजिल] १. उतनी दूरी जितना कोई पुरुष एक दिन में तै करता हो या कर सकता हो। मंजिल। २. यात्रा। सफर। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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मैजिक  : पुं० [अं०] इंद्रजाल। जादू।
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मैजिक लालटैन  : स्त्री० [अं० मैजिक लैन्टर्न] एक प्रकार का यंत्र जिसमें विद्युत के प्रकाश की सहायता से परदे पर परछाई डालकर तसवीरें आदि दिखाई जाती हैं।
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मैटर  : पुं० [अं०] १. पदार्थ। भूत। २. कागज पर लिखा हुआ कोई विषय जो कंपोज करने के लिए दिया जाय। ३. कंपोज किये हुए टाइप या अक्षर जो छपने के लिए तैयार हों।
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मैत्र  : पुं० [सं० मित्र+अण्] १. मित्र होने की अवस्था या भाव। मित्रता। २. अनुराधा नक्षत्र। ३. मर्त्य लोक। ४. ब्राह्मण। ५. मलद्वार। गुदा। ६. वेद की एक शाखा। ७. एक प्राचीन वर्णसंकर जाति। ८. एक मुहूर्त (ज्योतिष)। वि० १. मित्र-संबंधी। २. मित्रों में होनेवाला। मैत्रक
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मैत्रीभ  : पुं० [सं० मध्य० स०] अनुराधा नक्षत्र।
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मैत्रायण  : पुं० [सं० मित्र+फक्-आयन] १. गृह्य सूत्र के प्रणेता एक प्राचीन ऋषि। २. मैत्र नाम की वैदिक शाखा।
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मैत्रावरुण, मैत्रावरुणि  : पुं० [सं० मित्र-वरुण, द्व० स० वृद्धि+अण्, मैत्रावरुण+इच्] १. अगस्त्य और वसिष्ठ (इन दोनों की उत्पत्ति मित्र और वरुण दोनों के संयुक्त वीर्य से मानी गयी है।) २. यज्ञ के १६ ऋत्विजों में से एक।
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मैत्री  : स्त्री० [सं० मित्र+ष्यञ्+ङीष्, य-लोप] १. दो व्यक्तियों के बीच का मित्र-भाव। मित्रता। दोस्ती। २. अपना कोई उद्देश्य सिद्ध करने के लिए किसी के साथ बढ़ाया या स्थापित किया जानेवाला घनिष्ठ मेल-जोल। संश्रय (एलायन्स) ३. दो या अधिक चीजों के एक ही तरह के होने की अवस्था या भाव समानता। जैसे—वर्ण-मैत्री। ४. अनुराधा नक्षत्र।
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मैत्रेय  : पुं० [सं० मैत्र+ढञ्-एय] १. एक बुद्ध। २. [मित्रयु+ढञ्-एय, यु-लोप] सूर्य। ३. एक ऋषि। ४. एक वर्ण संकर जाति।
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मैत्रेयिका  : स्त्री० [सं० मैत्रेय+कन+टाप्, इत्व] मित्रों या सहयोगियों में होनेवाला संघर्ष।
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मैत्रेयी  : स्त्री० [सं० मैत्रेय+ङीष्] १. याज्ञवल्क्य की स्त्री का नाम। जो ब्रह्मवादिनी और बड़ी पंडिता थी। २. अहल्ला का एक नाम।
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मैत्र्य  : पुं० [सं० मित्र+ष्यञ्] मित्रता। दोस्ती।
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मैथिल  : पुं० [सं० मिथिला+अण्] १. मिथिला का निवासी। २. राजा जनक। वि० मिथला सम्बन्धी।
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मैथिली  : स्त्री० [सं० मैथिल+ङीष्] १. मिथिला देश के राजा की कन्या, जानकी। सीता। २. मिथिला देश की बोली। वि० मिथिला देश अथवा मैथिलों का।
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मैथुन  : पुं० [सं० मिथुन+अण्] १. स्त्री के साथ पुरुष का समागम। संभोग। रति-क्रीड़ा। २. मन में काम-वासना या संभोग का विचार रखकर स्त्री या स्त्रियों के साथ किया जानेवाला कोई व्यवहार। जैसे—केलि-मैथुन। (दे०)
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मैथुनिक  : वि० [सं० मैथुन+ठक्-इक] १. मैथुन-संबंधी। मैथुन का। २. स्त्रीलिंग या पुलिंग अथवा दोनों से सम्बन्ध रखनेवाला। यौन। लैंगिक (सेक्सुअल)।
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मैथुनिकी  : स्त्री० [सं० मैथुनिक+ङीष्] आधुनिक चिकित्सा-प्रणाली की वह शाखा जिसमें दुष्ट मैथुन के कारण उत्पन्न होनेवाले रोगों का निदान और विवेचन होता है। (वेनीरियोलोजी)
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मैथुनी (निन्)  : वि० [सं० मैथुन+इनि] मैथुन करनेवाला।
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मैथुन्य  : पुं० [सं० मिथुन+ष्यञ्] १. मिथुन की अवस्था या भाव। २. [मैथुन+यत्] गांधर्व विवाह।
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मैदा  : पुं० [फा०मैदः] बहुत महीन छाना या पीसा हुआ आटा जिससे बढ़िया पकवान और मिठाइयाँ बनती हैं।
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मैदान  : पुं० [फा०] १. ऐसा विस्तार क्षेत्र या भूखंड जो प्रायः समतल हो और जिस पर किसी प्रकार की वास्तु-रचना आदि न हो। दूर तक फैली हुई सपाट जमीन। मुहावरा—मैदान करना या छोड़ना=किसी काम के लिए बीच में कुछ जगह खाली छोड़ना। मैदान जाना=शौच आदि के लिए, विशेषतः बस्ती के बाहर उक्त प्रकार के स्थान में जाना। पद—खुले मैदान=सब के सामने। २. पर्वतीय प्रदेश से भिन्न भूभाग जो प्रायः समतल होता है। ३. खेल, तमाशे प्रतियोगिता आदि के लिए बनाया हुआ उक्त प्रकार का क्षेत्र या भूमि। मुहावरा—मैदान बदना=लड़ने-भिड़ने के लिए स्थान नियत करना। मैदान मारना=प्रतियोगिता आदि में विजय प्राप्त करना। मैदान में आना=प्रतियोगिता या प्रतिद्वंद्विता के लिए सामने आना। मुकाबले पर आना। मैदान साफ होना=आगे बढ़ने के लिए मार्ग में कोई बाधा या रुकावट न होना। ४. युद्ध क्षेत्र। रण-भूमि। मुहावरा—मैदान करना=युद्ध-क्षेत्र में पहुँचकर युद्ध करना। मैदान मारना=युद्ध में विजय प्राप्त करना। (किसी के हाथ) मैदान रहना=किसी पक्ष को पूरी विजय प्राप्त होना। ५. किसी प्रकार की लंबाई, चौड़ाई या विस्तार। ऊपरी तल का फैलाव। जैसे—(क) इस तख्ते में इतना मैदान ही नहीं है कि इस पर इतने बेल-बूटे बन सकें। (ख) इस हीरे का ऊपरी मैदान कुछ कम है।
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मैदानी  : वि० [फा०] १. (प्रदेश) जो समतल हो विशेषतः जिसमें पहाड़ आदि न हों। २. मैदान या मैदानों में काम आने या होनेवाला अथवा उनसे संबंध रखनेवाला। जैसे—मैदानी तोप। स्त्री० आँगन या मैदान में टाँगी अथवा लटकाई जानेवाली लालटेन। स्त्री० [हिं० मैदा] मैदे का उठाया हुआ खमीर।
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मैदा-लकड़ी  : स्त्री० [सं० मेदा+हिं० लकड़ी] एक प्रकार की मुलायम सफेद जड़ी जो औषध के काम आती है।
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मैन  : पुं० [सं० मदन] १. कामदेव। मदन। २. मोम। ३. राल में मिलाया हुआ मोम जिससे धातुओं की मूर्तियाँ बनाने के पहले उनका नमूना बनाया जाता है और जिसके आधार पर मूर्तियाँ ढालने का साँचा बनाया जाता है। पुं० [अं०] आदमी। मनुष्य।
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मैन-कामिनी  : स्त्री० [हि० मैन=मदन+सं० कामिनी] कामदेव की स्त्री। रति।
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मैनफर  : पुं० =मैनफल। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मैनफल  : पुं० [सं० मदनफल] १. मझोले आकार का एक प्रकार का झाड़दार और कँटीला वृक्ष जिसकी छाल खाकी रंग की लकड़ी हलके भूरे रंग की होती है, और फूल पीलापन लिये सफेद रंग के होते हैं २. इस वृक्ष का फल जिसमें दो दल होते हैं और जिसमें बिहीदाने की तरह चिपटे बीज होते हैं। इसका गूदा पीलापन लिए लाल रंग का और स्वाद कडुआ होता है।
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मैनमय  : वि० [हिं० मैन+सं०मय] जिसे बहुत प्रबल काम-वासना हो रही हो।
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मैनर  : पुं० =मैनफल। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मैनशिल  : स्त्री०=मैनसिल। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मैनसिल  : स्त्री० [सं० मनःशिला] मटमैले रंग का एक प्रकार का खनिज पदार्थ जिसे शोधकर दवा के काम में लाया जाता है।
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मैना  : स्त्री० [सं० मदना, मदन-शलाका] १. काले रंग की तथा पीली चोंचवाली एक प्रसिद्ध बड़ी चिड़िया जो सिखाने से मनुष्य की-सी बोली बोलने लगती है। सारिका। सारो। सतभइया नामक पक्षी। ३. हिमालय की स्त्री। स्त्री०=मेनका। पुं० =मीना (जंगली जाति)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मैनाक  : पुं० [सं० मेनका+अण्, पृषो० सिद्धि] एक पर्वत जो मैना तथा हिमालय का पुत्र माना जाता है। (पुराण) इसे सुनाभ और हिरण्यनाभ भी कहते हैं। २. हिमालय की एक चोटी।
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मैनी  : स्त्री० [देश] एक प्रकार का कँटीला पेड़। मरुवक।
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मै-परस्त  : पुं० [फा०] [भाव० मै-परस्ती] १. मदिर का प्रेमी और भक्त अर्थात् मद्यप। २. बहुत अधिक शराब पीनेवाला। मदिरासक्त।
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मै-परस्ती  : स्त्री० [फा०] बहुत अधिक शराब पीना।
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मै-फरोश  : पुं० [फा०] [भाव० मै-फरोशी] शराब बेचनेवाला। मद्यव्यवसायी। कलवार।
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मै-फरोशी  : स्त्री० [फा०] शराब बेचने का धंधा।
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मैमंत  : वि० [सं० मदमत्त] १. मदोन्मत्त। मतवाला। २. अभिमानी। घमंडी। स्त्री०=ममता। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मैमनत  : स्त्री० [अ० मैमंत] १. सम्पन्नता। २. सुख। ३. कल्याण।
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मैमाता  : वि० [स्त्री० मैमाती]=मैमंत। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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मैयत  : स्त्री० [सं० मृत्यु] १. मौत। मृत्यु। २. मृत शरीर। लाश। शव। ३. मृतक का अंतिम संस्कार। अन्त्येष्टि। जैसे—उनकी मैयत में शहर भर के लोग शामिल हुए थे।
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मैया  : स्त्री० [सं० मातृका, प्रा० मातृआ, माइया] माता। माँ।
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मैयार  : पुं० [हिं० मटियार] एक तरह की बंजर भूमि। पुं० [अ०] १. मापने-तौलने आदि का कोई उपकरण। २. कसौटी।
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मैर  : स्त्री० [सं० मृदर, प्रा० मिअर=क्षणिक] रह-रहकर होनेवाली वह कसक जो शरीर में साँप का जहर प्रविष्ट होने पर होती है।
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मैरा  : पुं० [सं० मयर, प्रा० मयड़] खेत में स्थित मचान।
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मैरीन  : पुं० [अं०] १. नौ-सेना। २. नौ-सैनिक। वि० समुद्र-सम्बन्धी। समुद्री।
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मैरेय  : स्त्री० [मार+ढक्-एय, नि० सिद्धि] १. गुड़ और धौ के फूल की बनी हुई एक प्रकार की प्राचीन काल की मदिरा। २. एक में मिला हुआ आसव और मद्य जिसमें ऊपर से शहद भी मिला दिया गया हो। ३. मदिरा। शराब।
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मैलंद  : पुं० [सं० मिलिंद] भौंरा।
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मैल  : स्त्री० [सं० मल] १. कोई ऐसी चीज जिसके पड़ने या लगने से दूसरी चीज खराब, गंदी या मैली होती हो अथवा उनकी चमक-दमक, सफाई आदि कम होती या बिगड़ जाती हो। मलिन या मैला करनेवाला तत्त्व या वस्तु। जैसे—किट्ट, गर्दा, धूल आदि। पद—हाथ पैर की मैल=बहुत ही उपेक्ष्य और तुच्छ वस्तु। जैसे—वह रुपये-पैसे को तो हाथ की मैल समझता था। २. मन में रहने या होनेवाला किसी प्रकार का दोष या विकार। मुहावरा—मन में मैल रखना=मन में किसी प्रकार का दुर्भाव या वैमनस्य रखना। वि०=मैला। (मलिन)। पुं० [देश] फीलवानों का एक संकेत जिसका व्यवहार हाथी को चलाने के लिए होता है। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मैल-खोरा  : वि० [हिं० मैल+फा० ख़ोर] धूल, गर्दा आदि पड़ने पर भी (क) जो मैला न दिखाई पड़ता हो अथवा (ख) जिसकी रंगत खराब न होती हो जैसे—(क) मैल-खोरा कपड़ा। (ख) मैल-खोरा रंग। पुं० १. काठी या जीन के नीचे रखा जानेवाला नमदा। २. साबुन।
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मैला  : वि० [सं० मलिन, प्रा० मइल] १. जिस पर मैल जमी हो। जिस पर गर्द, धूल या कीट आदि हो। जिसकी चमक-दमक मारी गई हो। मलिन। अस्वच्छ। ‘साफ’ का उलटा। पद—मैला-कुचैला। २. दोष, विकार आदि से युक्त। दूषित और विकृत। गंदा। पुं० १. गलीज। गू। विष्ठा। २. कूड़ा-करकट। ३. मैल। पुं० [अं० मैल] १. आकर्षण। २. प्रवृत्ति या रुचि।
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मैला-कुचैला  : वि० [हिं० मैला+सं० कुचैल=गंदा वस्त्र] [स्त्री० मैली-कुचैली] १. बहुत अधिक मैला या गंदा। २. जो बहुत मैले कपड़े आदि पहने हुए हो।
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मैला-घर  : पुं० [हिं०] वह सार्वजनिक स्थान जहाँ गाँव या शहर का कूड़ा-कर्कट, गू आदि फेंका जाता है।
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मैलान  : पुं० [अ०] १. आकर्षण। २. प्रवृत्ति या रुचि।
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मैलापन  : पुं० [हिं० मैला+पन (प्रत्यय)] मैले होने की अवस्था या भाव। मलिनता। गंदापन।
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मैशिनरी  : स्त्री०=मशीनरी।
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मैहर  : पुं० [हिं० मही=मट्ठा] १. मक्खन को तपाने पर उसमें से निकलनेवाला मट्ठा। घी की तलछट। पुं० =नैहर (मायका)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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