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मरीचि  : पुं० [सं०√मृ+ईचि] १. एक प्रसिद्ध प्राचीन ऋषि जी भृगु के पुत्र और कश्यप के पिता थे। २. एक मरुत का नाम। विशेष—मरीचि, अंगिरा, अत्रि, पुलस्त्य, पुलह, ऋतु और वसिष्ठ ये सात सप्तर्षि कहलाते हैं। ३. एक प्राचीन मान जो ६. त्रसरेणु के बराबर होता है। ४. किरण। मयूख। ५. कान्ति। चमक। ६. दे० ‘मरीचिका’।
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मरीचिका  : स्त्री० [सं० मरीचि+कन्+टाप्] १. गरमी के दिनों में बहुत तेज धूप के समय वातावरण की विशिष्ट स्थितियों के कारण दिखाई देनेवाले कुछ भ्रामक दृश्य। मृग-तृष्णा। जैसे—रेगिस्तान में दूरी पर जलाशय दिखाई देना या आकाश में नगर अथवा वन दिखाई देना। विशेष—प्रायः ऐसा भ्रामक दृश्य देखकर यात्री या पशु उन तक पहुँचने के लिए बहुत दूर तक चले जाते हैं पर अन्त में उन्हें थककर निराश ही होना पड़ता है। २. वह स्थिति जिसमें मनुष्य व्यर्थ की आशा या कल्पना के कारण किसी क्षेत्र में बहुत आगे बढ़ता जाता है और अन्त में विफल-मनोरथ तथा हताश होता है। मृगतृष्णा। मृगमरीचिका (मिराज)। ३. किरण। मयूख।
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मरीचि-गर्भ  : पुं० [सं० ब० स०] १. सूर्य। २. दक्ष सावर्णि मन्वन्तर में होनेवाले एक प्रकार के द्वताओं का गण।
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मरीचि-जल  : पुं० [सं० कर्म० स०] मृग-तृष्णा।
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मरीचि-तोय  : पुं० [सं० कर्म० स०] मगतृष्णा।
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मरीचिमाली (लिन्)  : पुं० [सं० मरीचिमाला+इनि] सूर्य।
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मरीचि (चिन्)  : वि० [सं० मरीचि+इनि] [स्त्री० मरीचिनी] जिसमें किरणें हों। किरण युक्त। पुं० १. सूर्य। २. चन्द्रमा।
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