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भूलना  : अ० [प्रा० भुल्ल] १. उचित अवधान या ध्यान न रहने के कारण किसी काम या बात का स्मृति-क्षेत्र में न रह जाना। याद न रहना। विस्तृत होना। जैसे—मैं तो बिल्कुल भूल ही गया था, अच्छा किया जो तुमने याद दिला दिया। २. दृष्टि-दोष, प्रमाद आदि के कारण किसी प्रकार की गलती, त्रुटि या भूल करना। जैसे—भूल गया था। पद—भूलकर भी=दृढ़ता-पूर्वक प्रतिज्ञा करते हुए। कदापि। कभी-कभी अथवा किसी भी दशा में। (केवल नहिक प्रसंगों में) जैसे—(क) अब कभी भूलकर भी उनका साथ न करना। (ख) वहाँ मैं भूलकर भी नहीं जाऊँगा। ३. किसी प्रकार के धोखे या भ्रम में पड़कर कर्तव्य न करना या उचित मार्ग से हटकर इधर-उधर हो जाना। जैसे—तुम तो दूसरों की बातों में भूलकर अपनी हानि कर बैठते हो। ४. उक्त प्रकार की बातों के फलस्वरूप किसी पर अनुरक्त होना। जैसे—तुम भी किसकी बातों में भूले हो, वह तुम्हें बहुत धोखा देगा। उदा०—मैं तो तोरी लाल पगिया पै भूली रे साजनाँ।—लोक-गीत। ५. किसी प्रकार के घमण्ड के वश में होकर इतराना। गर्व-पूर्वक प्रसन्न रहना। जैसे—(क) उन्हें एक मकान मिल गया है, इसी पर वह भूले हुए हैं। )(ख)सांसारिक वैभव पर भूलना नहीं चाहिए। ६. किसी चीज़ का खो जाना। गुम होना। जैसे—हमारी कलम यहाँ कहीं भूल गई है। स० १. कोई बात इस प्रकार मन से हटा देना कि फिर उसका ध्यान न आवे। याद न रखना। विस्तृत करना। जैसे—अब तो वह अपनी पुरानी हालत भूल गये हैं। २. असावधानता, उदासीनता, उपेक्षा, दृष्टि-दोष, प्रमाद आदि के कारण, परन्तु अनजान में वह न करना जो करना चाहिए। जैसे—उस पत्र में मैं एक बात लिखना भूल गया था। ३. अनजान में उस और ध्यान न देना जिधर ध्यान देना आवश्यक और उचित हो। जैसे—मुझे आपने जो वचन दिया था वह तो आप भूल ही गये। ४. गलती या चूक के कारण कर्त्तव्य, ठीक मार्ग आदि से विचलित होकर इधर-उधर हो जान। जैसे—वह रास्ता भूलकर कहीं का कहीं चला गया। ५. कोई चीज खो या गवाँ देना। जैसे—मैं अपनी घड़ी बाजार में भूल आया हूँ। वि०=भुलना।।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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