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भारंगी  : स्त्री० [सं०] एक प्रकार का पौधा उसकी पत्तियाँ महुए की पत्तियों से मिलती हुई, गुदार और नरम होती हैं और जिनका साग बनाकर खाते हैं। बम्हनेटी। भृंगजा। असबरग।
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भार  : पुं० [सं०√भ़ृ+(भरण करना)+घञ्, वृद्धि] [वि० भारित] १. काँटे, तुला आदि की सहायता से जाना जानेवाला किसी चीज के परिणाम का गुरुत्व। वजन। (वेट) २. ऐसा बोझ जो किसी अंग, यान, वाहन आदि पर रखकर ढोया या कहीं ले जाया जाता है। बोझ। (लोड) क्रि० प्र०—उठाना।—ढोना।—रखना।—लादना। ३. वह बोझ जो बँहगी के दोनों पल्लों पर रखकर ले जाया जाता है। उदा०—भरि भरि भार कहारन आना।—तुलसी। क्रि० प्र०—उठाना।—काँधना।—ढोना।—भरना। ४. ऐसा अप्रिय, अरुचिकर या कठिन काम या उत्तरदायित्व जो कहीं से बलात् आकर पड़ा हो, अथवा जिसका वाहन विवशता तथा कष्टपूर्वक किया जा रहा हो। (बर्डन, उक्त दोनों अर्थों में) जैसे—आज-कल मुझ पर कई कामों का भार आ पड़ा है। क्रि० प्र०—उठाना।—उतरना।—उतारना। ५. किसी प्रकार का कार्य चलाने, कोई देन चुकाने या किसी प्रकार की देखरेख, रक्षा, सँभाल आदि करने का उत्तरदायित्व। कार्य-भार (चार्ज) जैसे—अब उन पर भाई के बाल-बच्चों का भी भार आ पड़ा है। ६. बंधक या रेहन पड़े रहने अथवा ऋण-ग्रस्त होने की अवस्था या भाव। (एकम्बेरेन्स) क्रि० प्र०—उठाना।—उतरना।—उतारना।—देना।—देखना। ७. आश्रय। सहारा। उदा०—दुहँ के भार सृष्टि सुम रही।—जायसी। ८. दो हजार पल या बीस पसेरी की एक पुरानी तौल। ९. विष्णु का एक नाम। अव्य० ओर। बल। जैसे—मुँह के भार गिरना। पुं० [सं० भट] वीर। शूर। पुं० १.=भाड़। २.=भाड़ा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भारक  : पुं० [सं० भार+कन्] १. भार। २. एक तौल।
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भार-कद्र  : पुं० [सं० ष० त०] गुरुत्व का केन्द्र।
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भारजीवी (विन्)  : पुं० [सं० भार√जीव् (जीना)+णिनि] भार ढोकर जीविका उपार्जन करनेवाला मजदूर। भारवाहक।
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भारत  : पुं० [सं० भरत+अण्, वृद्धि] १. वह जो भरत के गोत्र में उत्पन्न हुआ हो। २. (भारत+अण्] हमारा यह भारतवर्ष नामक देश। दे० ‘भारतवर्ष’। ३. भारतवर्ष का निवासी। ४. महाभारत नामक काव्य का वह पूर्व रूप जब वह २४॰॰॰ श्लोकों का था। दे० ‘महाभारत’। ५. उक्त ग्रंथ के आधार पर घमासान या घोर युद्ध। ६. उक्त ग्रंथ के आधार पर कोई बहुत लंबा-चौड़ा विवरण या व्याख्या। ७. अग्नि। आग। ८. अभिनेता। नट।
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भारतखंड  : पुं०=भारतवर्ष।
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भारतनंद  : पुं० [सं०] ताल के साठ मुख्य भेदों में से एक। (संगीत)
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भारत-यूरोपीय  : पुं० [हिं०] आधुनिक भाषा-विज्ञान के अनुसार उन भाषाओं का वर्ग या समूह जो भारत, ईरान और यूरोप, अमेरिका, के अनेक देशों में बोली जाती है।
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भारत-रत्न  : पुं० [सं० ष० त०] स्वतंत्र भारत में एक सर्वोच्च उपाधि जो उच्चकोटि के विद्वानों तथा राष्ट्रसेवियों को प्रदान की जाती है।
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भारत-वर्ष  : पुं० [सं० मध्य० स०] हमारा यह महादेश जिसके उत्तर में हिमालय, दक्षिण में भारतीय महासागर, पश्चिम में पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्व में पूर्वी पाकिस्तान तथा बरमा या ब्रह्मदेश है। हिन्द। हिन्दुस्तान। विशेष—पुराणानुसार यह जंबू द्वीप के अन्तर्गत नौ वर्षों या खंडों में से एक है और हिमालय के दक्षिण तथा गंगोत्तरी से लेकर कन्याकुमारी तक और सिन्धु नदी से ब्राह्मपुत्र तक विस्तृत है। आर्यावर्त। हिन्दुस्तान।
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भारतवर्षीय  : वि० [सं० भारतवर्ष+छ—ईय] भारतवर्ष-संबंधी। भारतवर्ष का।
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भारतवासी (सिन्)  : पुं० [सं० भारत√वस् (निवास करना)+णिनि] भारतवर्ष का निवासी। हिन्दुस्तान का रहनेवाला।
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भारत-विद्या  : स्त्री० [सं०] पुरातत्त्व की वह शाखा जिसमें भारतवर्ष के प्राचीन इतिहास, दर्शन, धर्म, भाषातत्त्व, साहित्य आदि का अनुसंधानात्मक अध्ययन और विवेचन होता है। (इण्डोलॉजी)
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भारति  : स्त्री०=भारती।
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भारती  : स्त्री० [सं०√भृ (भरण करना)+अतच्+अण्+ङीष्] १. वचन। वाणी। २. सरस्वती। ३. साहित्य में एक प्रकार की वृत्ति (पुरुषार्थसाधक व्यापार) जिसका प्रयोग मुख्यतः रौद्र तथा वीभत्स रस में होता था परन्तु आज-कल इसका संबंध पाठ्य अभिनय और रसाभिनय से जोड़ा गया है। ४. एक प्राचीन नदी का नाम। ५. एक प्राचीन तीर्थ। ६. दश-नामी संन्यासियों का एक भेद या वर्ग। जैसे—स्वामी परमानन्द भारती। ७. ब्राह्मी नाम की बूटी। ८. एक प्रकार का पक्षी।
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भारतीय  : वि० [सं० भारत+छ—ईय] १. भारत देश में उत्पन्न होनेवाला अथवा उससे संबंध रखनेवाला। जैसे—भारतीय पूँजी, भारतीय विचारधारा, भारतीय व्यापार। २. (व्यक्ति) जो भारत में बसी हुई अथवा रहनेवाली किसी जाति का हो। जैसे—भारतीय मुसलमान या भारतीय मसीही।
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भारतीयकरण  : पुं० [सं०] किसी विदेशी ज्ञान, पदार्थ, विद्या आदि को ग्रहण करके उसे आत्मसात् करते हुए भारतीय रूप देने की क्रिया या भाव। (इन्डियनाइज़ेशन)
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भारतीय वृत्त  : पुं० [सं० कर्म० स०]=भारत-विद्या।
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भार-तुला  : स्त्री० [सं०] वास्तुविद्या के अनुसार स्तंभ के नौ भागों में से पाँचवाँ भाग जो बीच में होता है।
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भारथ  : पुं० [हिं० भारत] १. भारतवर्ष। २. महाभारत। ३. युद्ध। लड़ाई। पुं० [सं०] भारद्वाज नामक पक्षी। भरदूल।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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भारथी  : पुं० [सं० भारत] योद्धा। सैनिक। स्त्री०=भारती।
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भारथ्य  : पुं० [सं० भारत] घमासान या घोर युद्ध।
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भारदंड  : पुं० [सं० ष० त०] १. एक प्रकार का साम। २. बँहगी। पुं० [हिं० भार+दंड] एक प्रकार का दंड जिसमें दंड करनेवाला साधारण दंड करते समय अपनी पीठ पर एक दूसरे आदमी को बैठा लेता है। (कसरत)
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भारद्वाज  : पुं० [सं० भरद्वाज+अञ्] १. भरद्वाज के कुल में उत्पन्न व्यक्ति। २. एक ऋषि जिनका रचा हुआ जैतसूर और गृह्यसूत्र है। ३. द्रोणाचार्य। ४. बृहस्पति का एक पुत्र। ५. मंगल ग्रह। ६. एक प्राचीन देश। ७. अस्थि। हड्डी। ८. भरदूल पक्षी।
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भारद्वाजी  : स्त्री० [सं०] जंगली कपास का पौधा और उसकी रूई।
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भार-धारक  : पुं० [सं० ष० त०] वह जो भार विशेषतः कार्यभार धारण कर रहा हो। (चार्ज-होल्डर)
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भारना  : स० [हिं० भार] १. भार या बोझ लादना। २. किसी पर अपने शरीर का भार या बोझ देना या रखना। ३. दबाना। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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भार-प्रमाणक  : पुं० [सं० भारण-प्रमाणक] वह प्रमाणक (प्रमाण-पत्र) जो इस बात का सूचक हो कि अमुक व्यक्ति ने दूसरे के अमुक कार्य, पद, कर्तव्य आदि का भार सौंप दिया है। (चार्ज सर्टिफिकेट)
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भारभृत  : वि० [सं० भार√भृ+क्विप्, तुक-आगम] बोझ ढोनेवाला।
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भारमापी (पिन्)  : पुं० [सं० भार√मा+णिच्, पुक्+णिनि] एक प्रकार का मंत्र जिससे पदार्थों का विशिष्ट गुरुत्व या तुलनात्मक भार जाना जाता है। (ग्रैवीमीटर)
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भारमिति  : स्त्री० [सं० ष० त०] [वि० भारमितीय] तरल और घन पदार्थों का विशिष्ट गुरुत्व या भार जानने की कला या विद्या।
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भारय  : पुं० [सं० भा√रय् (गति)+अच्] एक तरह का पक्षी। भरदूल।
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भार-यष्टि  : स्त्री० [सं० ष० त०] बहँगी।
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भारव  : पुं० [सं० भार√वा (प्राप्त होना)+क] धनुष की रस्सी। ज्या।
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भारवाह  : वि० [सं० भार√वह् (ढोना)+अण्] १. भार ढोनेवाला। २. कार्य-भार का वहन करनेवाला। पुं० बहँगी ढोनेवाला व्यक्ति।
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भारवाह-अधिकारी  : पुं० [सं० कर्म० स०] वह अधिकारी जिस पर किसी पद और उससे संबंध रखनेवाले कार्यों का भार हो। अवधायक अधिकारी। (आफिसर इनचार्ज)
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भारवाहक  : वि०, पुं० [सं० ष० त०]=भारवाह।
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भार-वाहन  : पुं० [सं० ष० त०] बोझ ढोने की क्रिया या भाव।
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भार-वाही (हिन्)  : वि०, पुं० [सं० भार√वह्+णिनि]=भारवाह।
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भारवि  : पुं० [सं०] ‘किरातार्जुनीय’ नामक महाकाव्य के रचयिता संस्कृत भाषा के एक प्रसिद्ध कवि।
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भार-हानि  : स्त्री० [सं० ष० त०] भार या वजन में होनेवाली कमी।
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भारहारी (रिन्)  : पुं० [सं० भार√हृ+णिनि] पृथ्वी का भार उतारनेवाले, विष्णु।
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भारा  : वि०=भारी। पुं० [हिं० भार] १. बोझ। २. भार या बँहगी जिस पर बोझ ढोते हैं। उदा०—लिअ फल मूल भेंटि भरि भारा।—तुलसी। पुं० भाला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भाराक्रांत  : वि० [सं० भार-आक्रांत, तृ० त०] [भाव० भाराक्रांति] १. जिसके ऊपर किसी प्रकार का बड़ा भार हो। २. भार से पीड़ित तथा व्यथित। ३. (संपत्ति) जिस पर देन आदि का भार उसे रेहन रखकर डाला गया हो। (हाइपाथेकेटेड)
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भाराक्रांता  : स्त्री [सं० भार-क्रांत+टाप्] एक प्रकार का वार्णिक वृत्त का नाम जिसके प्रत्येक चरण में न भ न र स और एक लघु और एक गुरु होते हैं और चौथे, छठे तथा सातवें वर्ण पर यति होती है।
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भाराक्रांति  : स्त्री० [सं० भार-आक्रांति, तृ० त०] १. भाराक्रांत होने की अवस्था या भाव। २. रेहन रखकर संपति पर देन का भार रखना। (हाइपॉथेकेशन)
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भारि  : पुं० [सं० ष० त०, पृषो० इ—लोप] सिंह।
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भारिक  : वि० [सं० भार+ठन्—इक] १. बोझ ढोनेवाला। २. जिसमें भार हो या जिसके कारण भार पड़े। दे० ‘निर्णायक’। जैसे—भारिक मत।
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भारिक मत  : पुं० [सं० कर्म० स०] दे० ‘निर्णायक मत’।
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भारित  : भू० कृ० [सं० भार+इतच्] १. जिस पर कोई भार या बोझ हो। २. जिस पर किसी प्रकार का ऋण या देन हो। (इन्कम्बर्ड)
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भारी  : वि० [हिं० भार] १. अधिक भारवाला। जो आसानी से न उठाया या वहन किया जा सके अथवा जिसे उठाने या वहन करने में अधिक सामर्थ्य या शक्ति व्यय होती हो। जैसे—भारी पत्थर। २. अपेक्षित या सामान्य मात्रा आदि से बहुत अधिक। जैसे—भारी वर्षा, भारी भूकंप, भारी फसल तथा भारी बहुमत। ३. (शरीर अथवा उसका अंग) जिसमें कुछ विकार या दर्द हो और फलतः इसीलिए जो सुस्त और निकम्मा-सा हो गया हो। जैसे—उनका शरीर या सिर आज कुछ भारी है। मुहा०—आवाज भारी होना=गले से ठीक तरह से आवाज या स्वर न निकलना। पेट भारी होना=खाये हुए पदार्थों का ठीक से न पचने के कारण पेट में अपच जान पड़ना। सिर भारी होना=सिर में थकावट जान पड़ना और हलकी पीड़ा होना। कान भारी होना=अच्छी तरह सुनाई न पड़ना। (स्त्री का) पैर भारी होना=गर्भवती होना। पेट में बच्चा होना। ३. व्यक्ति के संबंध में, जिसके मन में अभिमान, रोष या इसी प्रकार का और कोई विकार हो; और इसीलिए जो ठीक तरह से बातचीत न करता या सरल तथा स्वाभाविक व्यवहार न करता हो। जैसे—(क) आज-कल वे हमसे कुछ भारी रहते हैं। (ख) आज उनका मुँह कुछ भारी जान पड़ता है। मुहा०—(किसी अवसर पर) भारी रहना=(क) कुछ न बोलना। चुप रहना। (दलाल) जैसे—अभी तुम भारी रहो, पहले देख लो कि वे क्या कहते हैं। (ख) धीमी या मन्द गति से चलना। (कहार) ४. कार्यों, प्रयत्नों आदि के संबंध में, जिसमें कोई कठिनता या विकटता हो। जैसे—तुम्हें तो हर काम भारी मालूम होता है। ५. समय के संबंध में, जिसमें अधिक कष्ट होता हो या जिसे बिताना सहज न हो। जैसे—(क) गरमी के दिनों में यहाँ की दोपहर भारी होती है। (ख) आज की रात इस रोगी के लिए भारी है। क्रि० प्र०—पड़ना।—लगना। ६. वस्तुओं, व्यक्तियों आदि के सम्बन्ध में, जिसका किसी पर कोई अनिष्ट परिणाम या प्रभाव पड़ता हो या पड़ सकता हो। जैसे—यह लड़का अपने पिता (या भाई) पर भारी है; अर्थात् हो सकता है कि इसके ग्रहों के फलस्वरूप इसके पिता (या भाई) का कोई बहुत बड़ा अनिष्ट हो। क्रि० प्र०—पड़ना। ७. बहुत बड़े या विशाल आकार-प्रकार या रूप-रंग वाला। बहुत बड़ा। बृहत्। जैसे—(क) उनके यहाँ भारी भारी पुस्तकें देखने में आईं। (ख) उनका भाषण भारी भारी शब्दों से भरा था। (ग) सावन में यहाँ भारी मेला लगता है। ८. जो औरों की तुलना में बहुत अधिक बड़ा, महत्त्वपूर्ण या मान्य हो। बहुत बड़ा। जैसे—वे दर्शनशास्त्र के भारी विद्वान् हैं। पद—भारी भरकम या भड़कम=बहुत बड़ा और भारी। जैसे—भारी भरकम गठरी। बहुत भारी=बहुत बड़ा। ९. बहुत अधिक। अत्यन्त। जैसे—यह तुम्हारी भारी मूर्खता है। १॰. जो किसी प्रकार से असह्य या दुर्वह हो। जैसे—(क) क्या मेरा ही दम तुम्हें भारी है ? (ख) मुझे अपना सिर भारी नहीं पड़ा है, जो मैं उनसे लड़ने जाऊँ। क्रि० प्र०—पड़ना।—लगना। ११. किसी की तुलना में अधिक प्रबल या बलवान। जैसे—वह अकेला दो आदमियों पर भारी है। क्रि० वि० बहुत अधिक। उदा०—गो व्यंग्य तुम पै डरपौं भारी।—कबीर।
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भारीपन  : पुं० [हिं० भारी+पन (प्रत्य०)] भारी होने की अवस्था या भाव। गुरुत्व।
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भारी पानी  : पुं० [हिं०] १. जलाशयों, नदियों आदि का ऐसा पानी जिसमें खनिज पदार्थों की मात्रा अपेक्षया अधिक हो। २. आधुनिक रसायनशास्त्र में पानी की तरह का एक मिश्र पदार्थ जो आक्सीजन और भारी हाइड्रोजन के योग से बनता है और जिसका उपयोग परमाणुओं के विस्फोट में होता है। (हेवी वाटर)
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भारुंड  : पुं० [सं०] १. रामायण के अनुसार एक वन जो पंजाब में सरस्वती नदी के पूर्व में था। २. एक ऋषि। ३. एक पक्षी।
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भारु  : पुं० [हिं० भारी] धीरे चलने के लिए एक संकेत जिसका व्यवहार कहार करते हैं। वि० [हिं० भार] १. भारी। २. जो बोझ या भार के रूर में हो या जान पड़े। प्रायः असह्य। जैसे—लड़की हमें भारू नहीं पड़ी है।
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भारोद्वह  : वि० [सं० भार+उद्√वह् (ढोना)+अच्] भार ले जानेवाला। भारवाहक। पुं० मजदूर।
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भारोपीय  : पुं०=भारत-युरोपीय।
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भार्गव  : वि० [सं० भृगु+अण्] १. भृगु के वंश में उत्पन्न। २. भृगु सम्बन्धी। भृगु का। जैसे—भार्गव अस्त्र। पुं० १. भृगु के वंश में उत्पन्न व्यक्ति। २. परशुराम। ३. शुक्राचार्य। ४. मार्कण्डेय। ५. जमदग्नि। ६. च्यवन ऋषि। ७. एक उप-पुराण का नाम। ८. पुराणानुसार भारतवर्ष के अन्तर्गत एक पूर्वीय देश। ९. हीरा। १॰. हाथी। ११. श्योनाक। १२. नीला भँगरा। १३. कुम्हार। १४. उत्तर प्रदेश के उत्तरी भागों में बसी हुई एक हिन्दू जाति।
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भार्गव-क्षेत्र  : पुं० [सं०] दक्षिण भारत के आधुनिक मलयालम प्रदेश का पुराना नाम। विशेष—प्रवाद है कि परशुराम के परशु फेंकने से यह प्रदेश बना था, इसी से इसका यह नाम पड़ा।
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भार्गवी  : स्त्री० [सं० भार्गव+ङीष्] १. पार्वती। २. लक्ष्मी। ३. दूब। ४. उड़ीसा की एक नदी।
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भार्गवीय  : वि० [सं० भर्गव+छ—ईय] भृगु-संबंधी। भार्गव।
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भार्गवेश  : पुं० [सं० भार्गव-ईश, ष० त०] परशुराम।
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भार्गायन  : पुं० [भर्ग+फञ्-वृद्धि-आयन] भर्ग के गोत्र में उत्पन्न व्यक्ति।
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भार्गी  : स्त्री० [सं० भर्ग+अण्+ङीष्] भारंगी।
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भार्य  : वि० सं० [√भृ (भरण करना)+ण्यत्, वृद्धि] जिसका भरण किया जाने का हो या किया जाय। पुं० १. नौकर। सेवक। २. आश्रित व्यक्ति। ३. आयुधजीवी। योद्धा।
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भार्य्या  : स्त्री० [सं०] जोरू। पत्नी।
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भार्याजित  : वि० [सं० तृ० त०] भार्या या जोरू के वश में रहनेवाला। पुं० एक तरह का हिरन।
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भार्वाट  : पुं० [सं० भार्या√अट् (जाना)+अण्, उप० स०] वह जो किसी दूसरे पुरुष को भोग के लिए अपनी भार्या या पत्नी दे। अपनी स्त्री का दूसरे पुरुष के साथ सम्बन्ध करानेवाला व्यक्ति।
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भार्याटिक  : वि० [सं० भार्याट+ठन्—इक] जोरू का गुलाम। स्त्रैण। पं० १. एक प्राचीन मुनि। २. एक प्रकार का हिरन।
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भार्यात्व  : पुं० [सं० भार्या+त्व] भार्या होने का भाव। पत्नीत्व।
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भार्यारू  : पुं० [सं० भार्या√ऋ (जाना)+उण्] १. एक प्रकार का हिरन। २. एक प्राचीन पर्वत। २. वह व्यक्ति जिसके वीर्य से परस्त्री को पुत्र हुआ हो।
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भार्या-वृक्ष  : पुं० [सं० मध्य० स०] पतंग नामक वृक्ष।
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भारतेन्दु।  :
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