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भंजन  : पुं० [सं०√भंज्+ल्युट्—अन०] १. भंग करना। २. तोड़ना-फोड़ना। ३. ध्वंस। नाश। ४. आक। मदार। ५. भाँग। ६. व्रण की वह पीड़ा जो वायु के प्रकोप में कारण होती है। वि० =भंजक (समस्त पदों के अंत में) जैसे—भव-भय भंजन)।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
भंजनक  : अ० [सं०√भंज्+ल्युट्+अन+कन्] एक तरह का रोग जिसमें दाँत टूट जाते हैं और मुँह कुछ टेढ़ा हो जाता है।
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भँजना  : अ० [सं० भंजन] १. मग्न होना। टुकड़े-टुकड़े होना। २. भाँजा या मोड़ा जाना। ३. तहों या परतों के रूप में मोड़ा जाना। जैसे—कागज भंजना। ४. इधर-उधर घुमाना या चलाया जाना। जैसे—तलवार पाटा या लाठी भँजना। ५. बड़े सिक्के का छोटे सिक्कों मे परिवर्तन होना। भूनना। जैसे—रुपया भँजना। स०=भाँजना।
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भंजना  : अ० [सं० भंजन] पात्र आदि का टूट-फूट जाना। स० तोड़ना-फोड़ना। स०=भाँजना। अ०=भागना। स०=भगाना।
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भँजनी  : पुं० [हिं० भाँजना] करघे की वह लकड़ी जो ताने को विस्तृत करने के लिए उसके किनारों पर लगाई जाती है। भँसरा।
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