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बृहद  : वि०=वृहत्।
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बृहदारण्यक  : पुं० [सं० कर्म० स०] एक प्रसिद्ध उपनिषद् जो दस मुख्य उपनिषदों के अन्तर्गत है। यह शतपथ ब्राह्यण के मुख्य उपनिषदों, में से और उसके अंतिम ६ अध्यायों या ५ प्रपाठकों में है।
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बृहदेला  : स्त्री० [सं० कर्म० स०] बड़ी इलाइची।
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बृहद्दंती  : स्त्री० [सं० कर्म० स०] एक प्रकार की दंती जिसके पत्ते एरंड के पत्तों के समान होते हैं। दे० ‘दंती’।
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बृहद्बला  : स्त्री० [सं० कर्म० स०] १. महाबला। २. सफेद लोध। ३. लज्जावंती। लजालू।
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बृहदभानु  : पुं० [सं० ब० स०] १. अग्नि। २. सूर्य। ३. चित्रक नामक वृक्ष। चीता। ४. विष्णु।
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बृहद्रथ  : पुं० [सं० ब० स०] १. इन्द्र। २. सामवेद का एक अंश। २. यज्ञ-पात्रष।
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बृहद्वर्ण  : पुं० [सं० ब, स०] सोनामक्खी। स्वर्णामाक्षिक।
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बृहदवल्ली  : स्त्री० [सं० कर्म० स०] करेला।
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बृहद्वादी (दिन्)  : वि० [सं० बृहत्√वद् (कहना)+णिनि, दीर्घ, नलोप] बहुत अधिक या बढ़-बढ़कर बातें करनेवाला।
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